लंपी वैक्सीन: कैसे आईसीएआर ने तैयार की दुनिया की पहली DIVA लंपी स्किन डिजीज वैक्सीन

लंपी वैक्सीन बनाने की इस ऐतिहासिक यात्रा की शुरुआत नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वाइन (एनआरसीई) / नेशनल सेंटर फॉर वेटरनरी टाइप कल्चर्स (एनसीवीटीसी), हिसार में हमारे वायरस रिपॉजिटरी को एक नए वायरस से समृद्ध करने के सामान्य उद्देश्य के साथ हुई। विभिन्न पूर्वी राज्यों में मेरी कई टेलीफोनिक चर्चाओं के बाद हमें झारखंड के रांची और आसपास के पशु फार्मों में लंपी स्किन डिजीज जैसे लक्षणों वाले मामले मिले।

लंपी वैक्सीन: कैसे आईसीएआर ने तैयार की दुनिया की पहली DIVA लंपी स्किन डिजीज वैक्सीन

वर्ष 2019 में भारत को दो प्रमुख पशु रोगों का प्रकोप झेलना पड़ा- मवेशियों में लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) और सूअरों में अफ्रीकी स्वाइन फीवर (एएसएफ)। उसी समय कोरोना वायरस महामारी भी उभर रही थी जो जल्द ही पूरी दुनिया में फैल गई। ऐतिहासिक रूप से एलएसडी और स्वाइन फीवर अफ्रीका तक सीमित होते थे, लेकिन 1990 के दशक की शुरुआत में ये इजराइल, मिस्र, मध्य पूर्व, पूर्वी यूरोप होते हुए 2019 में भारतीय उपमहाद्वीप तक पहुंच गए। हमने अपने स्नातक की पढ़ाई के दौरान इन रोगों के बारे में केवल विभेदीय निदान (Differential Diagnosis) के संदर्भ में पढ़ा था, कभी यह कल्पना भी नहीं की थी कि हम इन्हें अपने जीवनकाल में भारतीय भूमि पर देखेंगे। दिसंबर 2019 में इनके भारत में मौजूद होने की पुष्टि हुई। उसके बाद विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (डब्लूओएएच, पूर्व में ओआईई) को इसकी आधिकारिक रूप से जानकारी दी गई।

वैक्सीन बनाने की इस ऐतिहासिक यात्रा की शुरुआत नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वाइन (एनआरसीई) / नेशनल सेंटर फॉर वेटरनरी टाइप कल्चर्स (एनसीवीटीसी), हिसार में हमारे वायरस रिपॉजिटरी को एक नए वायरस से समृद्ध करने के सामान्य उद्देश्य के साथ हुई। विभिन्न पूर्वी राज्यों में मेरी कई टेलीफोनिक चर्चाओं के बाद हमें झारखंड के रांची और आसपास के पशु फार्मों में लंपी स्किन डिजीज जैसे लक्षणों वाले मामले मिले। इसकी रिपोर्ट बिहार कृषि विश्वविद्यालय, रांची, झारखंड के पशु चिकित्सा संकाय के डीन प्रोफेसर एम.के. गुप्ता ने दी। मैं (बीएन) उस समय आईसीएआर-एनआरसीई, हिसार का निदेशक था। मैंने ठान लिया था कि हमारी वायरस रिपॉजिटरी को नए वायरस आइसोलेट्स से समृद्ध करूंगा।

मैंने (बीएन) डॉ. नवीन कुमार (सह-लेखक) के नेतृत्व में विशेषज्ञ वैज्ञानिकों की एक टीम रांची भेजी। 23 दिसंबर 2019 को टीम वहां पहुंची और प्रभावित मवेशियों की जांच की। उन्होंने लंपी स्किन डिजीज से मिलते-जुलते लक्षणों की पहचान की और विश्लेषण के लिए जैविक नमूने एकत्र किए।

पीसीआर परीक्षण से एलएसडी वायरस की पुष्टि हुई, जो एक महत्वपूर्ण सफलता थी। अगली चुनौती वायरस को आइसोलेट (अलग) करना था जो एक जटिल कार्य था और इसके लिए सावधानीपूर्वक इन-विट्रो कल्टीवेशन की आवश्यकता थी। रांची में प्रकोप के 10 दिनों के भीतर बकरी की किडनी कोशिकाओं में एलएसडी वायरस को सफलतापूर्वक अलग करना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। संपूर्ण जीनोम सीक्वेंसिंग से पता चला कि भारतीय एलएसडी वायरस स्ट्रेन, केन्याई प्रकार के काफी करीब था। एलएसडी वायरस के सफल आइसोलेशन ने भारत की विदेशी टीकों पर निर्भरता को समाप्त कर दिया और घरेलू वैक्सीन विकसित करने की नींव रखी। यह एलएसडी के खिलाफ देश की लड़ाई में एक नए अध्याय की शुरुआत थी।

लंपी-प्रोवैकइंड: एक ऐतिहासिक वैक्सीन
मैंने (बीएन) डॉ. नवीन को फिर से फोन किया ताकि वैश्विक स्तर पर उपलब्ध विभिन्न वैक्सीन विकल्पों पर चर्चा की जा सके और एक महत्वपूर्ण सवाल पूछा: "क्या हम अपने यहां वैसा कुछ विकसित कर सकते हैं?" अगले ही दिन उन्होंने वैक्सीन विकल्पों की विस्तृत जानकारी दी, जिसमें लाइव एटेन्‍यूएटेड (कमजोर किए गए) वैक्सीन भी शामिल थे, जो पॉक्सवायरल बीमारियों के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं। हमने वायरस को एटेन्‍यूएट (कमजोर) करने का निर्णय लिया। हम अपनी प्रयोगशाला और पशु गृह सुविधाओं की सीमाओं से वाकिफ थे, फिर भी हमने आगे बढ़ने का संकल्प लिया। 

इसी बीच, मुझे डिप्टी डायरेक्टर जनरल (एनिमल साइंस) नियुक्त किया गया और मेरा ट्रांसफर दिल्ली हो गया। मुझे लगा कि यह ट्रांसफर हमारे प्रयासों में बाधा डाल सकता है, लेकिन वह वास्तव में हमारे लिए वरदान साबित हुआ। इससे वैक्सीन तैयार करने और उसके व्यवसायीकरण में मदद मिली। कोविड-19 महामारी फैली तो दुनियाभर की प्रयोगशालाएं बंद हो गईं। फिर भी डॉ. नवीन भारत में लंपी बीमारी के संकट का समाधान खोजने में लगे रहे। जब पूरी दुनिया कोविड के कारण ठहर गई थी, एलएसडी बिना रोक-टोक के फैलता रहा और यह धीरे-धीरे पूरे देश में पहुंच गया।

एक वेटरिनरी पैथोलॉजिस्ट के रूप में मैंने लंपी स्किन डिजीज के भारत के पशुधन और अर्थव्यवस्था पर होने वाले विनाशकारी प्रभाव को पहले ही भांप लिया था। बाहरी बीमारियों के प्रति भारत की संवेदनशीलता को देखते हुए मुझे एहसास हुआ कि हमें स्वदेशी वैक्सीन की आवश्यकता है। हमने वायरस को एटेन्‍यूएट करने का निर्णय लिया। डॉ. नवीन और उनकी टीम ने कोविड-19 महामारी के दौरान भी अपने प्रयास जारी रखे। 14 महीने में वीरो कोशिकाओं में 50 बार वायरस को गुजारने के बाद, जीनोम सीक्वेंसिंग से पता चला कि वायरस में एटेन्‍यूएशन से जुड़े म्यूटेशन हो चुके थे। इससे वायरस के एटेन्‍यूएशन और वैक्सीन के रूप में इसकी क्षमता की पुष्टि हुई। वर्ष 2021 के मध्य तक हमारे पास एक एटेन्‍यूएटेड एलएसडी वायरस था, जो एक संभावित वैक्सीन बन सकता था।

डिप्टी डायरेक्टर जनरल (एनिमल साइंसेज) के रूप में मेरी प्राथमिक जिम्मेदारी लंपी बीमारी से लड़ने के लिए एक प्रभावी वैक्सीन बनाने के काम को तेजी से आगे बढ़ाने की था। मैंने आईवीआरआई, एनआरसीई और एनआईएचएसएडी के निदेशकों की बैठक बुलाई ताकि प्रगति का आकलन किया जा सके। मूल्यांकन के बाद डॉ. नवीन की टीम की वैक्सीन को आईवीआरआई के मुक्तेश्वर कैंपस में परीक्षण के लिए चुना गया। नियंत्रित वातावरण में इस वैक्सीन ने सुरक्षा के साथ प्रभावशीलता दिखाई। इसमें वायरस के पुनः सक्रिय होने या शारीरिक स्राव के माध्यम से संचरण का कोई जोखिम नहीं था।

26,000 से अधिक गायों और भैंसों पर किए गए फील्ड ट्रायल ने भी इस वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावशीलता की पुष्टि की, जिसमें गर्भवती और दूध उत्पादन करने वाले पशु भी शामिल थे। अन्य नीथलिंग-आधारित वैक्सीन के विपरीत, जो अक्सर बुखार या दूध उत्पादन में कमी जैसे प्रतिकूल प्रभाव डालती थीं, लंपी-प्रोवैकइंड में ऐसे दुष्प्रभाव नहीं पाए गए। इससे यह एलएसडी के लिए उपलब्ध सबसे सुरक्षित वैक्सीन बनी।

आईसीएआर महानिदेशक की स्वीकृति के बाद 10 अगस्त 2022 को भारत सरकार के कृषि, मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्री द्वारा इस वैक्सीन को आधिकारिक रूप से जारी किया गया। इस वैक्सीन को व्यापक सराहना मिली जिससे देशभर में इसकी मांग बढ़ गई। हालांकि, दो वर्षों के भीतर एक लाइव एटेन्‍यूएटेड वैक्सीन के तेज विकास ने कुछ सवाल खड़े किए, लेकिन हमने प्रभावशीलता और सुरक्षा को लेकर उठी चिंताओं का समाधान किया और अपने अनुसंधान में तेजी लाई। इससे कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल हुईं, जैसे कि वैक्सीन और फील्ड स्ट्रेन को अलग पहचानने के लिए पीसीआर टेस्ट, एक डीआईवीए टेस्ट और प्रतिरक्षा तंत्र एवं इम्यून बायोमार्कर्स पर गहरी समझ।

एलएसडी निगरानी में प्रगति
लंपी स्किन डिजीज के लिए डीआईवीए-समर्थ वैक्सीन का विकास एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस बीमारी से लड़ने के लिए व्यापक टीकाकरण आवश्यक है, लेकिन अन्य मौजूदा वैक्सीन संक्रमित और टीकाकृत पशुओं के बीच अंतर नहीं कर पाती हैं, जिससे प्रभावी रोग प्रबंधन बाधित होता है। भारत की एलएसडी वैक्सीन में एक अनूठा जेनेटिक डिलीशन है, जिससे यह प्राकृतिक स्ट्रेन से अलग पहचानी जा सकती है। हमने रिकॉम्बिनेंट ओआरएफ-154 का उपयोग करके एक एलिसा (ELISA) टेस्ट विकसित किया है, जो सीरोलॉजिकल आधार पर संक्रमित और टीकाकृत पशुओं में अंतर कर सकता है। यह डीआईवीए-समर्थ वैक्सीन पशु चिकित्सा विज्ञान में एक क्रांतिकारी उपलब्धि है।

एनआरसीई हिसार में अग्रणी अनुसंधान
डॉ. नवीन और उनकी टीम ने के खिलाफ अनुसंधान में क्रांतिकारी योगदान किया है। एनआरसीई हिसार में डॉ. नवीन के नेतृत्व वाली टीम ने एलएसडी के प्रारंभिक निदान के लिए नए बायोमार्कर भी पहचाने हैं और वैक्सीन इंड्यूस्ड सुरक्षा के संबंधों को परिभाषित किया है। इन निष्कर्षों ने टीके के अनुकूलन और प्रभावशीलता मूल्यांकन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे भारत और वैश्विक स्तर पर मवेशियों में एलएसडी नियंत्रण के प्रयासों को मजबूती मिली है। भारत में लंपी स्किन डिजीज गंभीर चिंता का विषय बन गया है, जो मवेशियों के स्वास्थ्य और डेयरी उद्योग को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। 2022 के प्रकोप में कई राज्यों में रोगग्रस्त होने की दर (मॉर्बिडिटी रेट) 80% और मामले घातक होने की दर (फैटेलिटी रेट) 67% तक पहुंच गई थी। इससे 18,337.76 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ और दूध उत्पादन में 25% तक की गिरावट आई। एलएसडी डेयरी उत्पादकता के लिए एक बड़ा खतरा है, जिससे लाखों छोटे किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

सरकार ने आपातकालीन उपाय के रूप में मवेशियों को एलएसडी से बचाने के लिए गोटपॉक्स वैक्सीन के टीकाकरण को मंजूरी दी थी, जो अब भी जारी है। फील्ड डेटा बताते हैं कि गोटपॉक्स वैक्सीन केवल आंशिक सुरक्षा प्रदान करती है। अब समय आ गया है कि सरकार जल्द से जल्द सीडीएससीओ द्वारा अनुमोदित लाइव एटेन्‍यूएटेड एलएसडी वैक्सीन को अपनाने का निर्णय ले, ताकि मवेशियों में नए प्रकोप को रोका जा सके। एलएसडी वैक्सीन पहले ही चार कंपनियों को व्यावसायिक रूप से प्रदान की जा चुकी है। बायोवेट प्राइवेट लिमिटेड को इस वैक्सीन के निर्माण का लाइसेंस भी मिल चुका है। 

(डॉ. बी.एन. त्रिपाठी कुलपति, शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी जम्मू, पूर्व उप महानिदेशक (पशु विज्ञान), आईसीएआर एवं पूर्व निदेशक, आईसीएआर-एनआरसीई, हिसार हैं। डॉ. नवीन कुमार निदेशक, आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी पुणे, पूर्व प्रमुख, नेशनल सेंटर फॉर वेटरनरी टाइप कल्चर्स, आईसीएआर-एनआरसीई, हिसार हैं)

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