ट्रंप के आने से विश्व कृषि बाजार में उथल-पुथल की आशंका, 2025 में नई व्यापार व्यवस्था संभव

दुनिया की इकोनॉमी में करीब एक-चौथाई हिस्सेदारी रखने वाले अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। जिस तरह उन्होंने तमाम देशों पर टैरिफ लगाने की चेतावनी लगातार दी है, उसके जवाब में दूसरे देश भी टैरिफ लगा सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए किसानों का मार्जिन घट सकता है।

ट्रंप के आने से विश्व कृषि बाजार में उथल-पुथल की आशंका, 2025 में नई व्यापार व्यवस्था संभव

अंतरराष्ट्रीय कृषि बाजार के लिए 2024 प्रमुख अनाज, तिलहन और चीनी की कीमतों में गिरावट का साल रहा। इसके विपरीत कोको, कॉफी और पाम ऑयल जैसी उष्णकटिबंधीय फसलों के दाम में बढ़ोतरी हुई। इसी पृष्ठभूमि के साथ दुनियाभर के किसान नए साल में प्रवेश करेंगे। उनके सामने जलवायु परिवर्तन के साथ भूराजनीतिक अनिश्चितता का जोखिम भी रहेगा। तीन-चार दशक के वैश्वीकरण के दौर के बाद अब दुनिया आर्थिक और राजनीतिक रूप से डी-ग्लोबलाइजेशन की ओर जाने लगी है। वर्ष 2024 में इसकी गति बढ़ी और आने वाले समय में इसके और बढ़ने के आसार हैं। कुछ विशेषज्ञ अमेरिका में ट्रंप की जीत को वैश्वीकरण का अंत भी मान रहे हैं।

विश्व कृषि व्यापार पर ट्रंप का असर
दुनिया की इकोनॉमी में करीब एक-चौथाई हिस्सेदारी रखने वाले अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। जिस तरह उन्होंने तमाम देशों पर टैरिफ लगाने की चेतावनी लगातार दी है, उसके जवाब में दूसरे देश भी टैरिफ लगा सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए किसानों का मार्जिन घट सकता है। अमेरिका ने 2023 में 195 अरब डॉलर मूल्य के कृषि उत्पादों का आयात किया था, जिनमें फल और सब्जियां, चीनी, चीज, वनस्पति तेल, कॉफी और कोको शामिल हैं।

विशेषज्ञ मान रहे हैं कि ट्रंप के पहले 100 दिनों में सभी आयातित वस्तुओं पर 5% से 10% तक शुल्क लगेगा। चीन से आयात पर यह दर 60% तक हो सकती है। जाहिर है कि ऐसे में अमेरिका के खिलाफ भी जवाबी टैरिफ लगाए जाएंगे। चीन, अमेरिकी कृषि उत्पादों का बड़ा खरीदार है। वर्ष 2023 में अमेरिका ने कुल 34 अरब डॉलर का कृषि निर्यात किया था, जिसमें 19% चीन ने खरीदा। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के साथ टैरिफ वार के कारण अमेरिका का कृषि निर्यात 2025 में घटकर आधा रह जाएगा। चीन दूसरे देशों से आयात बढ़ा रहा है, इससे पिछले दो वर्षों में अमेरिकी कृषि आय में 37% की गिरावट आई है।

चीन के जवाबी टैरिफ से अमेरिका का सोयाबीन निर्यात प्रभावित होगा। कृषि उपज के तौर पर अमेरिका से चीन सबसे अधिक सोयाबीन ही खरीदता है। पिछले एक साल के दौरान सोयाबीन की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में 25% तक गिरी हैं। चीन के कदम से अमेरिकी सोया किसानों को और नुकसान होगा। वैसे, अगर अमेरिका और यूरोपियन यूनियन (ईयू) के बीच व्यापार समझौता हुआ तो ईयू, दक्षिण अमेरिका के बजाय अमेरिका से सोयाबीन और सोयामील का आयात कर सकता है।

अमेरिका-चीन ट्रेड वार का सबसे अधिक फायदा ब्राजील को मिल सकता है। भूराजनीतिक कारणों से ब्राजील कई देशों को अमेरिका से ज्यादा मक्का निर्यात करने लगा है। वैश्विक गेहूं बाजार में रूस बड़ा सप्लायर बन गया है और कीमतों पर भी उसका नियंत्रण है। कभी अमेरिका के कृषि उत्पादों का सबसे बड़ा खरीदार चीन था। लेकिन ट्रंप-1 के समय टैरिफ लगाए जाने के बाद वह दक्षिण अमेरिकी देशों और रूस से बड़ी मात्रा में अनाज और सोयाबीन खरीदने लगा है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन कीमतों की परवाह किए बिना सप्लाई सुरक्षित कर रहा है। आगे भी कृषि व्यापार भूराजनीति से प्रभावित रहेगा और अमेरिका के निर्यात में कमी आएगी।

ट्रंप के पहले कार्यकाल में क्या हुआ था
ट्रंप ने 2018 में जब चीन पर टैरिफ लगाया तो चीन ने भी जवाबी टैरिफ लगाया था। तब चीन के सोयाबीन आयात में अमेरिका का हिस्सा 40% से घटकर 18% रह गया था। उस दौरान ब्राजील की हिस्सेदारी 46% से बढ़कर 76% हो गई। चीन ने अर्जेंटीना, यूक्रेन और ऑस्ट्रेलिया से भी सोया खरीद बढ़ाई है। इस बार भी चीन हो सकता है कृषि उत्पादों को निशाना बनाए।

कोलंबिया ग्रेन इंटरनेशनल (CGI) के सीईओ जेफ वैन पीवेनेज ने वर्ल्ड ग्रेन पत्रिका को बताया कि गेहूं, मक्का और सोया बिजनेस से जुड़े सभी लोग टैरिफ को लेकर चिंतित हैं। चीन ने 2019 में अमेरिका पर जवाबी टैरिफ लगाए थे तो उसका अमेरिकी निर्यात पर बहुत असर पड़ा था। ट्रंप के समय चीन के खिलाफ लगाए गए शुल्क बाइडन प्रशासन के दौरान भी लागू रहे, लेकिन चीन ने अपनी कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाई। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि छह महीने तक दोनों देशों के बीच बातचीत होगी। तब तक यथास्थिति बनी रहेगी। हालांकि इस समय चीन के पास रिकॉर्ड सोयाबीन है। इसका फायदा वह बातचीत में उठाने की कोशिश करेगा। 

जी-7 बनाम ब्रिक्स
नई विश्व व्यवस्था में राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों की दो धुरी बन रही हैं। एक तरफ जी-7 देश हैं तो दूसरी तरफ ब्रिक्स देश। खास बात यह है कि ब्रिक्स देशों का दबदबा तेजी से बढ़ रहा है। विकसित देश अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और इंग्लैंड के नेतृत्व वाले जी-7 की इकोनॉमी विश्व जीडीपी का 30% है। दूसरी तरफ ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका की अगुवाई वाले ब्रिक्स देशों की इकोनॉमी विश्व जीडीपी के 32% तक पहुंच गई है। संगठन के विस्तार के साथ इसके और बढ़ने की संभावना है।

रूस के कजान में आयोजित पिछले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में रूस ने नया अंतरराष्ट्रीय अनाज वायदा एक्सचेंज बनाने का प्रस्ताव रखा था। इसके बनने और कारोबार शुरू होने में समय लगेगा, लेकिन ये देश पश्चिमी बाजारों पर निर्भरता कम करना चाहते हैं। विश्व कृषि व्यापार में इन देशों की हिस्सेदारी बड़ी होने के बावजूद कोई अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंज इन देशों में नहीं है। दुनिया का 44% अनाज उत्पादन और खपत ब्रिक्स देशों में होता है। वैश्विक अनाज निर्यात में इन देशों की 25% हिस्सेदारी है। इन देशों का चावल निर्यात में 39%, गेहूं निर्यात में 33% और मक्का निर्यात में 23% हिस्सा है। 

ध्रुवीय भूराजनीतिक परिस्थितियों में अमेरिका और यूरोपियन यूनियन को इनपुट का भी नुकसान उठाना पड़ सकता है। उर्वरक में इस्तेमाल होने वाले नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का ज्यादा उत्पादन ब्रिक्स देश ही करते हैं। जी-7 देशों के पास फॉस्फोरस की उपलब्धता तो बहुत कम है। 

व्यापार संबंधों में बदलाव संभव
राबो बैंक ने ‘ट्रंप 2.0: वैश्विक खाद्य और कृषि पर प्रभाव’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में लिखा है कि ट्रंप के नीतिगत बदलाव वैश्विक खाद्य और कृषि व्यापार के लिए एक जटिल परिदृश्य तैयार करेंगे। इन नीतियों से मौजूदा व्यापार संबंधों में बदलाव आएगा और उपभोक्ताओं तथा बिजनेस का खर्च बढ़ सकता है। महंगाई तो बढ़ेगी ही, उपभोक्ता व्यवहार और अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था में भी परिवर्तन संभव है। यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि ट्रंप कितना टैरिफ लगाते हैं। उसी पर दूसरे देशों का जवाबी टैरिफ भी निर्भर करेगा। 

राबो बैंक के एक्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट स्टीफन निकोलसन ने एक इंटरव्यू में कहा, ट्रंप ने पहले कार्यकाल में सीखा है, और वे जानते हैं कि काम कैसे होगा। वे अपने प्रशासन में उन लोगों को लाएंगे जो मुख्यधारा के रिपब्लिकन नहीं हैं, लेकिन उनके और उनकी नीतियों के प्रति वफादार हैं। अपने पहले कार्यकाल में चीन के साथ व्यापार युद्ध के दौरान ट्रंप ने किसानों को हुए नुकसान की भरपाई की थी। इस बार शायद वे ऐसा न करें क्योंकि अब उन्हें चुनाव में नहीं जाना है।

ट्रंप ने अपनी पूर्व सहायक ब्रुक रोलिंस को अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) का नेतृत्व करने के लिए चुना है। रोलिंस अभी अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी इंस्टीट्यूट की प्रेसिडेंट और सीईओ हैं। इस थिंक टैंक को 2021 में ट्रंप की पब्लिक पॉलिसी को प्रमोट करने के लिए स्थापित किया गया था। टेक्सास ए एंड एम यूनिवर्सिटी से एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट की पढ़ाई करने वाली रोलिंस ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी प्रशासन में रह चुकी हैं।

अंतरराष्ट्रीय कृषि उद्योग के लिए एक और चिंता अमेरिका, मेक्सिको और कनाडा के बीच समझौता (USMCA) है। इस पर दो साल में फिर से बातचीत होनी है। मेक्सिको और कनाडा अमेरिका के दो सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं।

यूरोप से अमेरिका को निर्यात को देखें तो कुछ वस्तुओं पर टैरिफ का मामूली असर होगा, जबकि कुछ वस्तुओं पर असर ज्यादा हो सकता है। यूरोपीय निर्यातक टैरिफ के कारण बढ़ने वाली लागत का कुछ हिस्सा खुद वहन करने की स्थिति में हैं। लेकिन यदि अमेरिका ने 20% टैरिफ लगाया या दूसरी नॉन-टैरिफ बाधाएं खड़ी कीं, तो यूरोपीय निर्यातकों के लिए स्थिति बिल्कुल अलग होगी।

भारत का प्रभाव
भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है और यहां गेहूं की कीमतें ऊंची हैं। वर्ल्ड ग्रेन पत्रिका ने लिखा है कि शिकागो में गेहूं की कीमत 5.8 डॉलर प्रति बुशल है जबकि भारत में इसकी कीमत 9 डॉलर है। इसलिए इस साल या अगले साल संभव है कि भारत गेहूं आयात को मंजूरी दे। भारत में खाद्य की बढ़ती मांग के कारण भी आयात का दबाव बन सकता है। भारत बड़े स्तर पर गेहूं आयात कर सकता है और इस तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है।

कृषि के लिए अन्य चुनौतियां
उपकरण, ईंधन, उर्वरक और रसायनों के दाम बढ़ने से किसानों की उत्पादन लागत बढ़ रही है। वैश्विक अनाज व्यापार की मात्रा में भी गिरावट आने की उम्मीद है। आईजीसी ने 2024-25 के लिए 41.9 करोड़ टन अनाज व्यापार का अनुमान लगाया है, जो 2023-24 में 45.5 करोड़ टन था। जलवायु परिवर्तन भी वैश्विक अनाज बाजार में अनिश्चितता बढ़ा रहा है। प्रमुख उत्पादन क्षेत्र चरम मौसम घटनाओं से प्रभावित हो रहे हैं। यूरोप में अत्यधिक बारिश हुई तो ब्लैक सी क्षेत्र में सूखा पड़ा। अल नीनो ने समस्या को और बढ़ा दिया। 

मौसम के मोर्चे पर देखें तो 2025 में एक कमजोर ला नीना की संभावना बन रही है। हालांकि इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन इसके कुछ प्रभाव पहले ही दिखाई दे रहे हैं। ब्राजील में बारिश में देरी हो रही है, अर्जेंटीना और अमेरिका के दक्षिणी हिस्सों में मौसम शुष्क होना ला नीना के प्रभाव हैं। वैसे इसके प्रभाव के बारे में मार्च-अप्रैल तक ही स्पष्ट जानकारी मिलेगी।

बायोफ्यूल की बढ़ेगी वैश्विक मांग
बायोफ्यूल की मांग एक बार फिर तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। 2000 के दशक की शुरुआत में भी इसमें तेजी आई थी, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी मांग बढ़ने की दर कम हो गई। वर्ल्ड ग्रेन के अनुसार, नई मांग एविएशन इंडस्ट्री से आएगी। वनस्पति तेलों, एथेनॉल, पौधों के बायोमास और अपशिष्ट उत्पादों से बने सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF) की मांग बढ़ रही है। इसमें सोयाबीन-आधारित बायोडीजल और मक्का-आधारित एथेनॉल शामिल हैं। SAF को पारंपरिक ईंधन के साथ 10% से 50% की सीमा तक मिलाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) के अनुसार अमेरिका और यूरोप में 46 हवाई अड्डों पर 360,000 से अधिक उड़ानों में SAF का उपयोग किया गया।

2024 में SAF का वैश्विक उत्पादन 60 करोड़ गैलन से अधिक पहुंचने की उम्मीद है। हालांकि यह वैश्विक स्तर पर इस वर्ष उपयोग किए जाने वाले लगभग 100 अरब गैलन विमान ईंधन का बहुत छोटा हिस्सा है। तीन साल पहले बाइडेन प्रशासन ने 2030 तक तीन अरब गैलन और 2050 तक 35 अरब गैलन सस्टेनेबल विमान ईंधन उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया था। तब घरेलू विमान ईंधन की 100% जरूरत इसी से पूरी होगी।

लेकिन कुछ सवाल अब भी बने हुए हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि ट्रंप की नीति SAF के प्रति क्या होगी? सस्टेनेबल विमान ईंधन की लागत अभी पेट्रोलियम ईंधन का करीब तीन गुना है, क्या यह कम होगी? क्या आवश्यक फीडस्टॉक उत्पादन के लिए पर्याप्त अतिरिक्त कृषि योग्य भूमि विकसित की जा सकती है? अध्ययनों से पता चला है कि जंगल की भूमि को फसलों के लिए बदलने से मिट्टी से कार्बन रिलीज होता है। तो इसका नेट प्रभाव क्या होगा? 

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