कोयला-आधारित संयंत्रों के प्रदूषण से भारत में गेहूं और चावल की पैदावार को नुकसान: अध्ययन
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च के अनुसार, कोयला-आधारित विद्युत संयंत्रों के प्रदूषण के कारण भारत के कई इलाको में गेहूं और चावल की पैदावार में 10% या उससे ज्यादा कमी आई है।
एक नए अध्ययन से पता चला है कि कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों से होने वाला वायु प्रदूषण भारत में गेहूं और चावल की उपज को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। इससे सालाना 80 करोड़ डॉलर से अधिक के आर्थिक नुकसान का अनुमान है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के डोएर स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी की रिसर्च के अनुसार, कोयला-आधारित विद्युत संयंत्रों से निकलने वाले नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) के प्रदूषण के कारण भारत के कई इलाको में गेहूं और चावल की पैदावार में 10% या उससे ज्यादा कमी आई है। ये दोनों अनाज देश की खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
कोयला-आधारित विद्युत संयंत्र भारत में 70% से अधिक बिजली आपूर्ति करते हैं। लेकिन ये वायु प्रदूषण का भी बड़ा कारण हैं। हालांकि, मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों का काफी अध्ययन किया गया है, लेकिन फसलों की पैदावार पर वायु प्रदूषण के प्रभाव का उतना सटीक आकलन नहीं किया गया था।
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित यह शोध भारत में गेहूं और चावल की पैदावार पर कोयला संयंत्रों से निकलने वाले नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) के प्रदूषण का आकलन करता है।
अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक सांख्यिकीय मॉडल का उपयोग किया, जिसमें भारत के 144 बिजली संयंत्रों के उत्पादन और वायु की दिशा के आंकड़ों को उपग्रह से प्राप्त कृषि भूमि पर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्तर और फसल उत्पादन के साथ जोड़कर देखा गया। अध्ययन में पाया गया कि कोयला-आधारित विद्युत संयंत्रों से होने वाला प्रदूषण 100 किमी दूर तक फसलों की पैदावार को प्रभावित करता है।
अध्ययन के अनुसार, यदि 100 किलोमीटर के दायरे में कृषि भूमि से कोयला संयंत्रों के प्रदूषण को घटाया जाए तो भारत में चावल उत्पादन सालाना लगभग 42 करोड़ डॉलर और गेहूं उत्पादन 40 करोड़ डॉलर तक बढ़ सकता है।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी शोधार्थी कीरत सिंह कहते हैं, "हम यह समझना चाहते थे कि भारत में कोयला-आधारित बिजली उत्पादन से होने वाले प्रदूषण का कृषि पर क्या प्रभाव पड़ता है। कोयला-आधारित उत्पादन के जरिए बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने और खाद्य सुरक्षा बनाए रखने के बीच संतुलन बनाया जा सकता है।"
अध्ययन बताता है कि पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कोयला संयंत्रों के प्रदूषण से फसलों की पैदावार में 10% से अधिक की गिरावट देखी गई है—जो कि 2011 से 2020 के बीच भारत में चावल और गेहूं की छह वर्षों की पैदावार वृद्धि के बराबर है।
अध्ययन इस बात पर जोर देता है कि भारत में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के उत्सर्जन को नियंत्रित में स्वास्थ्य प्रभावों के साथ-साथ फसल नुकसान को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।