डब्ल्यूटीओ को खत्म करने का समय, ट्रंप टैरिफ इसके नियमों के खिलाफः स्वदेशी जागरण मंच

मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ अश्वनी महाजन ने एक बयान में कहा कि अमेरिका ने पहले भी डब्ल्यूटीओ नियमों का उल्लंघन किया है, लेकिन इस बार उल्लंघन का पैमाना बहुत बड़ा है, क्योंकि ट्रंप ने सभी पर उच्च पारस्परिक (रेसिप्रोकल) टैरिफ लगाए हैं।

डब्ल्यूटीओ को खत्म करने का समय, ट्रंप टैरिफ इसके नियमों के खिलाफः स्वदेशी जागरण मंच

अमेरिका के रेसिप्रोकल टैरिफ को डब्ल्यूटीओ नियमों का उल्लंघन बताते हुए स्वदेशी जागरण मंच ने कहा है कि अब डब्ल्यूटीओ को खत्म करने का समय आ गया है। मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ अश्वनी महाजन ने एक बयान में कहा कि अमेरिका ने पहले भी डब्ल्यूटीओ नियमों का उल्लंघन किया है, लेकिन इस बार उल्लंघन का पैमाना बहुत बड़ा है, क्योंकि ट्रंप ने सभी पर उच्च पारस्परिक (रेसिप्रोकल) टैरिफ लगाए हैं। गौरतलब है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल 2025 को इस टैरिफ की घोषणा की। राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की, जिसका अर्थ है कि भारत से अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले सामान पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगेगा।

महाजन ने कहा, अब तक भारत सहित विभिन्न देश डबल्यूटीओ में अपनी प्रतिबद्धताओं के आधार पर आयात शुल्क लगाते रहे हैं। WTO के जन्म के साथ ही हर देश द्वारा लगाए जा सकने वाले आयात शुल्क, जिन्हें 'बाउंड टैरिफ' कहा जाता है, समझौते के अनुसार निर्धारित किए गए थे। भारत का बाउंड टैरिफ औसतन 50.8 प्रतिशत है। हालांकि भारत वास्तव में लगभग 6 प्रतिशत का औसत भारित आयात शुल्क (एप्लाइड टैरिफ) लगा रहा है, जो ‘बाउंड टैरिफ’ से बहुत कम है।

महाजन के अनुसार राष्ट्रपति ट्रंप की यह शिकायत वैध नहीं है कि भारत अमेरिका से आने वाले माल पर अधिक शुल्क लगाता है, क्योंकि सभी देश डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुसार अपने बाध्य टैरिफ की सीमा के भीतर आयात शुल्क लगाते हैं। अमेरिका ने पहले के जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ्स एंड ट्रेड (गैट) समझौतों में अन्य देशों द्वारा उच्च आयात शुल्क लगाए जाने को क्यों स्वीकार किया?

डब्ल्यूटीओ के जन्म से पहले, विभिन्न देश अपने उद्योगों की सुरक्षा के लिए आयात शुल्क के अतिरिक्त ‘मात्रात्मक प्रतिबंध’ ​​(क्यूआर) भी लगाते थे। विदेशी पूंजी पर भी कई प्रकार के प्रतिबंध थे। अमेरिका और अन्य विकसित देश चाहते थे कि भारत और अन्य विकासशील देश आयात शुल्क कम करें और ‘क्यूआर’ का उपयोग बंद करें ताकि उनके माल को उन देशों को बिना किसी बाधा के निर्यात किया जा सके। वे यह भी चाहते थे कि विकासशील देश विकसित देशों की पूंजी को अपने देशों में प्रवेश करने दें, अपने बौद्धिक संपदा कानूनों में बदलाव करें, कृषि पर समझौता करें और सेवाओं को व्यापार वार्ता का हिस्सा बनने दें। 

विकासशील देश इस सबके लिए तैयार नहीं थे। ऐसे में विकसित देश विकासशील देशों के उच्च आयात शुल्क लगाने पर सहमत हुए। यह कोई दान नहीं बल्कि एक सौदा था। ऐसे में अगर अमेरिकी प्रशासन अब यह कहता है कि भारत अमेरिका से अधिक शुल्क लगा रहा है, तो उनका तर्क जायज नहीं है।

महाजन के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रंप विश्व व्यापार संगठन के अस्तित्व को ही नकार रहे हैं। अमेरिका का एकतरफा टैरिफ लगाना विश्व व्यापार संगठन के नियमों और भावना, दोनों के खिलाफ है। डब्ल्यूटीओ एक शक्तिशाली संगठन रहा है और इसमें किए गए समझौते कानूनी रूप से बाध्यकारी होते हैं। ऐसे में अमेरिका द्वारा एकतरफा टैरिफ की घोषणा डब्ल्यूटीओ के खत्म होने का संकेत है।

महाजन का कहना है कि अब टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते (गैट) में ‘ट्रिप्स’, ‘ट्रिम्स’, सेवाओं और कृषि पर समझौतों के बारे में नए सिरे से सोचने का समय आ गया है। यह ध्यान देने योग्य है कि ट्रिप्स पर समझौते ने रॉयल्टी व्यय के मामले में हमें भारी नुकसान पहुंचाया  और इसका सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। भारत द्वारा रॉयल्टी व्यय, जो 1990 के दशक में एक बिलियन अमेरिकी डॉलर से भी कम था, अब सालाना 17 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है। डब्ल्यूटीओ और इसकी तथाकथित नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली के कारण भारत, चीन द्वारा डंपिंग और चीनी सरकार द्वारा अनुचित सब्सिडी और चीन जैसी गैर-बाजार अर्थव्यवस्था को भी एमएफएन का दर्जा देने की बाध्यता जैसी अनुचित व्यापार प्रथाओं का शिकार रहा है। 

उन्होंने कहा कि अमेरिका जैसे विकसित देशों से सब्सिडी वाले कृषि उत्पादों से अनुचित प्रतिस्पर्धा, भारत सहित विकासशील देशों द्वारा भारी रॉयल्टी व्यय, कुछ उदाहरण हैं कि भारत और अन्य विकासशील देश डब्ल्यूटीओ के तहत कैसे नुकसान में हैं। यह साबित हो चुका है कि डब्ल्यूटीओ जैसे बहुपक्षीय समझौते भारत जैसे विकासशील देशों के लिए अच्छे नहीं हैं, और द्विपक्षीय समझौते सबसे उपयुक्त हैं, क्योंकि उन्हें हमारे व्यापारिक भागीदारों के साथ आपसी सहमति से राष्ट्र के हितों को ध्यान में रखते हुए हस्ताक्षरित किया जा सकता है। अब समय आ गया है कि जब अमेरिका डब्ल्यूटीओ की अवहेलना कर रहा है, तो हमें डब्ल्यूटीओ में ट्रिप्स सहित अन्य शोषणकारी समझौतों से बाहर आने की रणनीति के बारे में सोचना चाहिए। साथ ही, डब्ल्यूटीओ के विघटन के बाद अब मात्रात्मक नियंत्रण यानि ‘क्यूआर’ लगाना संभव होगा। ऐसे में हम अपने लघु एवं कुटीर उद्योगों की रक्षा करने तथा देश में रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद करने के लिए एक बार फिर उत्पादों के लघु उद्योगों के लिए आरक्षण की नीति को शुरू करके विकेंद्रीकरण और रोजगार सृजन की दिशा में बड़ा प्रयास कर सकते हैं।

अब जबकि राष्ट्रपति ट्रंप ने दुनिया भर में वस्तुओं पर टैरिफ लगा दिया है, हमें इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए अपने अंतरराष्ट्रीय व्यापार की रणनीति बनानी होगी। ऐसे कई क्षेत्र हैं जिन्हें लाभ हो सकता है, क्योंकि हमारे निर्यात को अमेरिका में नए बाजार मिल सकते हैं, जबकि चीन के निर्यात को ट्रंहमें ट्रंप के टैरिफ के बाद विदेशी बाजारों को हासिल करने में अपने उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए और उनका समर्थन करना चाहिए।

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