विश्व बौद्धिक संपदा दिवस: बढ़ते उपभोक्ता बाजार में जियोग्राफिकल इंडिकेशन का महत्व
बौद्धिक संपदा (IP) के बदलते परिदृश्य में जीआई यूनीक हैं, क्योंकि ये सामुदायिक अधिकारों को संरक्षण प्रदान करते हैं। पेटेंट, ट्रेडमार्क और कॉपीराइट जैसे अन्य बौद्धिक संपदा अधिकारों की तरह ये व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा नहीं करते।

भौगोलिक संकेत या जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) उस स्थान को दर्शाता है जहां से कोई उत्पाद उत्पन्न होता है और वह स्थान की विशिष्ट गुणवत्ता, विशेषता या प्रतिष्ठा से जुड़ा होता है। भारत में जीआई ढांचे को 1999 में जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट के माध्यम से लागू किया गया था। आज देश में कृषि और प्राकृतिक उत्पादों, मैन्युफैक्चरिंग वाली वस्तुओं, खाद्य पदार्थों और हस्तशिल्प समेत 650 से अधिक उत्पादों को जीआई मान्यता प्राप्त है। इस तरह जीआई विशिष्ट क्षेत्रों से जुड़े उत्पादों की अनूठी पहचान को संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है।
बौद्धिक संपदा (IP) के बदलते परिदृश्य में जीआई यूनीक हैं, क्योंकि ये सामुदायिक अधिकारों को संरक्षण प्रदान करते हैं। पेटेंट, ट्रेडमार्क और कॉपीराइट जैसे अन्य बौद्धिक संपदा अधिकारों की तरह ये व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा नहीं करते। जीआई अधिकृत यूजर के रूप में वास्तविक उत्पादकों का पंजीकरण कर उन्हें जीआई टैग के उपयोग और उल्लंघन के मामलों में कानूनी कार्रवाई का विशेष अधिकार प्रदान करता है।
जीआई स्थानीय स्तर पर तैयार वस्तुओं की प्रतिष्ठा की रक्षा करता है और सदियों पुरानी पारंपरिक और सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखता है। महाराष्ट्र का अल्फांसो आम, तमिलनाडु की कांजीवरम साड़ी और अरुणाचल प्रदेश के अपातानी बुनाई जैसे उत्पादों के जीआई टैग इनकी नकल को रोकते हैं और मूल गुणवत्ता तथा विशिष्टता को बनाए रखते हैं।
जीआई का एक प्रमुख लाभ है कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाता है। जब उपभोक्ता उत्पादों की प्रामाणिकता और उत्पत्ति के प्रति जागरूक होते हैं, तो जीआई पंजीकृत उत्पाद प्रीमियम मूल्य पर बिक सकते हैं। इसका लाभ छोटे उत्पादकों को होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जीआई रोजगार बढ़ाते हैं और सतत कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करते हैं। उदाहरण के लिए एक समय विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी निज़ामाबाद की काली मिट्टी की कारीगरी ने 2015 में जीआई पंजीकरण के बाद जबरदस्त तरक्की देखी है। इससे अब 10,000 से अधिक कारीगरों को आजीविका मिल रही है।
देश के प्रमुख क्लस्टर का अध्ययन बताता है कि किसी विशिष्ट स्थानीय उत्पाद ने कैसे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया- जिसमें उत्पादक, विक्रेता, व्यापारी, बिचौलिये, फाइनेंसर, लॉजिस्टिक्स और बुनियादी ढांचा शामिल हैं। प्राचीन सभ्यताओं में बंदरगाह व्यापार और उत्पादन के प्रमुख केंद्र हुआ करते थे। आज ग्रामीण-शहरी विभाजन को कम करने और विकेन्द्रीकृत विकास की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है। इस दिशा में बड़े शहरों से दूर वाले क्षेत्रों को उत्पादन केंद्र के रूप में विकसित करना, स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन करना और आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण करना विकास योजनाओं के कई संकटों को हल कर सकता है। जीआई टैग ऐसे उत्पादों की पहचान और मान्यता प्रदान करते हैं जो क्षेत्र के विकास में मदद करते हैं।
नकली उत्पाद उपभोक्ताओं और उत्पादकों दोनों के लिए एक बड़ा खतरा हैं। जीआई संरक्षण ऐसे मामलों में कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे नकली और अनुचित विक्रेताओं को क्षेत्रीय ब्रांड नामों के दुरुपयोग से रोका जा सकता है। विश्व व्यापार संगठन (WTO) का बौद्धिक संपदा अधिकारों पर व्यापार संबंधी समझौता (TRIPS) और भारत का जीआई अधिनियम, 1999 यह सुनिश्चित करते हैं कि उत्पादकों के अधिकार सुरक्षित रहें और उनके उत्पादों की विशिष्टता बरकरार रहे।
जीआई उपभोक्ताओं में यह विश्वास उत्पन्न करता है कि वे जो उत्पाद खरीद रहे हैं, वे पारंपरिक तरीकों से निर्मित, उच्च गुणवत्ता वाले और प्रामाणिक हैं। यह भरोसा ऐसे उत्पादों को अधिक आकर्षक बनाता है, विशेषकर उन उपभोक्ताओं के लिए जो विरासत और प्रामाणिकता को महत्व देते हैं। व्यवसायों के लिए जीआई मान्यता उनके ब्रांड की प्रतिष्ठा को बढ़ाती है। जीआई की विश्वसनीयता उपभोक्ताओं की पसंद को प्रभावित करती है, जिससे बिक्री बढ़ती है और ग्राहक निष्ठा मजबूत होती है।
जीआई पारंपरिक उत्पादन तरीकों का उपयोग करते हैं, जो अक्सर पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही तकनीकों पर आधारित होते हैं। ये विधियां स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर प्राकृतिक और सतत प्रक्रियाएं अपनाती हैं, जो पर्यावरण संरक्षण के अनुरूप होती हैं।
सीमाई राज्यों में जीआई टैगिंग और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। प्रत्येक उत्पाद को राजनीतिक नक्शे पर किसी जिले या क्षेत्र से जोड़ा जाता है। यह वैश्विक स्तर पर उस क्षेत्र में देश की ऐतिहासिक उपस्थिति का एक प्रमाण बन जाता है। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर विवाद की स्थिति में ऐसे नक्शे महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में काम कर सकते हैं।
भारत सरकार ने 2030 तक 10,000 जीआई टैग का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने में नाबार्ड (NABARD) सहित कई सरकारी संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका है। नाबार्ड ने जीआई पंजीकरण को प्रोत्साहित करने में प्रारंभिक चरणों से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आंध्र प्रदेश के पोचमपल्ली इकत को देश का तीसरा जीआई टैग दिलाने में सहायता इसका उदाहरण है।
नाबार्ड ने 2019 में GI पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए एक समग्र नीति शुरू की, जो न केवल जीआई पंजीकरण को समर्थन देती है बल्कि अधिकृत उपयोगकर्ताओं का पंजीकरण, मार्केटिंग में सहायता, उत्पादकों के कौशल विकास, दस्तावेजीकरण, क्षमता निर्माण और जागरूकता अभियानों के माध्यम से भी सहायता प्रदान करती है। अब तक नाबार्ड के समर्थन से 139 उत्पादों को GI प्रमाणपत्र मिल चुका है।
आज के उन्नत उपभोक्ता बाजार में जीआई लेबल एक विशिष्ट उत्पाद का संकेत है जो उत्पादकों को प्रीमियम मूल्य दिला सकता है। लेकिन जीआई केवल लेबल नहीं हैं - वे विरासत को सुरक्षित रखने, स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करने, उपभोक्ता विश्वास बनाने और नकली उत्पादों पर रोक लगाने के सशक्त साधन हैं। जैसे-जैसे वैश्विक व्यापार का विस्तार हो रहा है और उपभोक्ता प्रामाणिकता की तलाश कर रहे हैं, जीआई का महत्व लगातार बढ़ रहा है। जीआई विरासत का सम्मान करने के साथ नवाचार को प्रोत्साहित करते हैं, और इस तरह आधुनिक बाजारों में सतत विकास का आधार बनते हैं।
(लेखक, नाबार्ड के चीफ जनरल मैनेजर हैं।)