आम में बौर तो खूब आया लेकिन फल बहुत कम रह गया, किसानों को नुकसान की चिंता

दसहरी आमों के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश के मलिहाबाद और उन्नाव क्षेत्र में इस साल आम की हालत देखकर किसान निराश हैं। आम की पैदावार में गिरावट के चलते किसानों के लिए लागत निकालना भी मुश्किल होगा और उपभोक्ताओं को भी आम महंगा मिलेगा।

आम में बौर तो खूब आया लेकिन फल बहुत कम रह गया, किसानों को नुकसान की चिंता
उन्नाव जिले के सिकन्दरपुर ब्लॉक में आम का बाग

- लखनऊ से सुमित यादव 

फलों का राजा कहा जाने वाला आम इस साल किसानों के लिए घाटे का सबब बन रहा है। आम के बागों का जो हाल है उसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस साल उत्पादन कम रहेगा और आम की बागवानी से जुड़े लोगों को नुकसान उठाना पड़ेगा। 

उत्तर प्रदेश का मलिहाबाद और उन्नाव जनपद आम के लिए देश-विदेश में जाने जाते हैं। यहां का दसहरी आम अपने खास स्वाद के लिए खूब पसंद किया जाता है और विदेशों तक इसका निर्यात होता है। लेकिन इस साल आम की बागवानी कर रहे किसान मायूस हैं। क्योंकि बागों में बौर तो खूब दिखा, लेकिन फसल काफी कमजोर है। जिन बागों में आम दिखाई दे रहा है, वहां भी पेड़ों से कच्चे आम टूट कर गिर रहे हैं। मौसम के उतार-चढ़ाव और हाल की आंधी-बारिश के कारण भी आम को काफी नुकसान हुआ है। 

उन्नाव जिले के सिकन्दरपुर ब्लॉक के पचोड्डा निवासी पप्पू खान (30 वर्ष) लकड़ी के ठेकेदार हैं। अपने भाइयों को देखकर पप्पू ने भी इस साल आम का एक बाग 70 हजार रुपये में दो साल के लिए ठेके पर लिया था। जिसमें से वह 15 हजार रुपये बयाने के रूप में दे चुके हैं। डेढ़ बीघे के बाग में चार बार सिंचाई कर चुके हैं। जिस पर लगभग 6000 रुपये खर्च आया। बाग की तीन बार जुताई, खाद, दो बार दवा का छिड़काव, निराई-गुड़ाई और थांवला बनाने में लगभग 15 हजार रुपये का खर्च आ चुका है। इतनी देखरेख के बावजूद हालत यह है कि पेड़ों से कच्चा आम टूटकर गिर रहा है। पूरे बाग में आम ही आम गिरा पड़ा है।

बाग में गिरे हुए आमों को दिखाते हुए उन्नाव जिले के किसान पप्पू खान 

बाग में गिरे हुए आमों को दिखाते हुए उन्नाव जिले के किसान पप्पू खान 

पप्पू खान कहते हैं कि बाग की हालत देखकर हिम्मत टूट रही है! पता नहीं कितना आम तैयार होगा? लागत निकलेगी या नहीं? कच्चा आम टूटने से रोकने के लिए दो बार दवा का छिड़काव कर चुके पप्पू को इसकी वजह भी नहीं पता है। न ही दवा छिड़काव का कोई फायदा हुआ। पप्पू किसी कृषि वैज्ञानिक को नहीं जानते हैं और न ही उन्हें किसान काल सेंटर 18001801551 के बारे में कोई जानकारी है। बाग में फैले कच्चे आम उठाते हुए पप्पू कहते हैं कि अब कभी दुबारा आम का व्यापार नहीं करेंगे।

उन्नाव जिले के ही अकील खान (35 वर्ष) के आठ बीघे के बाग में लगभग अस्सी पेड़ हैं। जिसमें से लगभग 50 पेड़ों में आम लगे हैं। अकील कहते हैं कि बौर तो खूब आया था, लेकिन आम बहुत कम रह गया है। जो आम बचा है वह भी टूटकर गिर रहा है। आम पकने तक कितना बचेगा, कह पाना मुश्किल है। फसल पहले ही बहुत कम थी, फिर समय से पहले भीषण गर्मी और आंधी-तूफान से नुकसान हो रहा है। ऐसी स्थिति में तो लागत निकलना मुश्किल है।

मलिहाबाद के ब्रजभान सिंह (44 वर्ष) का चार बीघा का आम का बाग है। उन्नाव की तरह मलिहाबाद में भी बौर तो बहुत आया, लेकिन उतना आम नहीं बना। ब्रजभान सिंह कहते हैं कि बाग में पिछले कुछ सालों से लागत बहुत बढ़ गई है। बाग की जुताई, सिंचाई के साथ-साथ कई बार दवा का छिड़काव करना पड़ता है। एक बार दवा का छिड़काव करने में 10 हजार रुपये तक का खर्च आता है। वह बताते हैं कि इस बार मौसम के उतार-चढ़ाव से रोग लगने की संभावना बढ़ रही है, जिससे लागत बढ़ जाती है। पिछले साल करीब सवा लाख रुपये का आम बेचने वाले ब्रजभान सिंह इस साल बाग देखकर निराश हैं।

आम उत्पादन में उत्तर प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है। उत्तर प्रदेश देश के आम उत्पादन में लगभग 24% को हिस्सेदारी रखता है। राज्य में दसहरी, चौसा और लंगड़ा जैसे आम प्रमुख हैं। भारत विश्व का प्रमुख आम निर्यातक देश है। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के अनुसार, वर्ष 2024 में भारत ने संयुक्त अरब अमीरात, यूके, यूएसए, कुवैत और कतर जैसे देशों को कुल 32.10 हजार टन आम का निर्यात किया था। ताजे आम के अलावा आम के पल्प का भी  लगभग इतना ही निर्यात होता है।

उन्नाव जिले में आम का बगीचे में फल की मौजूदा स्थिति, इस साल उत्पादन में कमी का संकेत

कृषि विज्ञान केंद्र, उन्नाव के कृषि वैज्ञानिक डॉ. जय कुमार यादव बताते हैं कि आम के फलों का गिरना निषेचन की कमी, द्विलिंगी पुष्पों की कमी, अपर्याप्त परागण, पराग कीटों की कमी, पोषक तत्वों की कमी और बाग में नमी के कारण होता है। इसकी रोकथाम के लिए किसान बाग में नमी बनाए रखें, और प्लानोफिक्स नामक ग्रोथ रेगुलेटर का छिड़काव करें। इससे आम के फलों को गिरने से बचाया जा सकता है।

आम में अत्यधिक बौर आने और बौर झड़ने की समस्या पोषक तत्वों की कमी, कीट व रोगों, पर्यावरणीय और हार्मोनल कारकों के कारण पैदा होती है। इसकी रोकथाम के लिए पुराने पेड़ों की नियमित छंटाई और मिट्टी की जांच करवाकर pH स्तर को संतुलित रखना आवश्यक है।

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिक दुष्यंत मिश्रा ने बताया कि आम में अन्य फलों की तरह ही परागण होता है जिसमें कुछ मित्र कीट सहयोग करते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से कीटनाशकों का उपयोग अत्यधिक बढ़ता जा रहा है जिससे बागों में पोलिनेशिया कीट भी खत्म हो जाते हैं। परिणामस्वरूप पेड़ों में आम कम आते हैं। जो आम दिखाई देते हैं वह झुमका आम है जो कुछ समय के बाद गिर जाते हैं। किसानों को आम के पेड़ों में रोग देखने के बाद कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से आवश्यकता होने पर ही दवा का छिड़काव करना चाहिए। अगर बौर में 5-6 कीट दिखाई दे रहे हैं तो दवा के छिड़काव की आवश्यकता नही होती हैं। इससे ज्यादा होने पर ही छिड़काव करें।

यदि पिछले वर्ष पेड़ पर बहुत कम या बिल्कुल भी फल नहीं लगे थे, तो इस वर्ष अत्यधिक बौर आ सकता है। यह पेड़ की प्राकृतिक प्रतिक्रिया होती है। मिट्टी में पोषक तत्वों का असंतुलन, खासकर नाइट्रोजन की अधिकता और फास्फोरस व पोटाश की कमी, अत्यधिक बौर को बढ़ावा दे सकती है जो कमजोर और झड़ने वाला बौर होता है। कई बार कीटों और रोगों के कारण भी बौर सूखकर गिर जाता है। 

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