पौधों के विकास में जेनेटिक्स से अधिक मिट्टी के गुणों की भूमिकाः अध्ययन
हवा में 75% से अधिक भाग नाइट्रोजन का होता है और ये बैक्टीरिया वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पौधों द्वारा उपयोग में लाए जा सकने वाले स्वरूप में परिवर्तित करते हैं। इससे छोटे और सीमांत किसानों के लिए पौधों में बाहरी नाइट्रोजन उर्वरक डालने की आवश्यकता कम हो जाती है।

अरहर एक ऐसी फसल है, जो भारत सहित कई देशों में शाकाहारी आहार में प्रोटीन की पूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान देती है। इसे अक्सर "गरीबों का प्रोटीन" भी कहा जाता है। अरहर प्रायः अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षा आधारित फसल के रूप में उगाई जाती है। इसकी जड़ों में छोटे-छोटे और विभिन्न आकार की गांठों (नोड्यूल्स) का निर्माण होता है, जो विशेष रूप से ब्रैडीराइजॉबियम (Bradyrhizobium) नामक नाइट्रोजन स्थिर (फिक्सेशन) करने वाले बैक्टीरिया के साथ सहजीवी होते हैं। यह संबंध अरहर और अन्य दलहनी पौधों को लाभ पहुंचाता है। हैदराबाद विश्वविद्यालय के एक नए शोध में यह बात सामने आई है।
हवा में 75% से अधिक भाग नाइट्रोजन का होता है और ये बैक्टीरिया वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पौधों द्वारा उपयोग में लाए जा सकने वाले स्वरूप में परिवर्तित करते हैं। इससे छोटे और सीमांत किसानों के लिए पौधों में बाहरी नाइट्रोजन उर्वरक डालने की आवश्यकता कम हो जाती है।
अरहर के नोड्यूल्स केवल राइजॉबिया (Rhizobia) से भरे नहीं होते, बल्कि उनमें और उनके आस-पास कई अन्य प्रकार के सूक्ष्मजीव भी उपस्थित होते हैं। यह प्राकृतिक संरचना वायुमंडलीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण की दक्षता को काफी हद तक प्रभावित कर सकती है।
हैदराबाद विश्वविद्यालय का नया शोध
प्रोफेसर अप्पा राव पोडिले और उनकी टीम ने हैदराबाद विश्वविद्यालय (UoH) में अरहर नोड्यूल्स के भीतर माइक्रोबायोम विविधता को प्रभावित करने वाले कारकों का पता लगाने के लिए एक व्यापक मेटाजीनोम विश्लेषण किया। पूर्व कुलपति प्रो. अप्पा राव और उनकी टीम ने अरहर की विभिन्न किस्मों जैसे आशा, दुर्गा और मन्नेमकोंडा कांडी, जो अलग तरह की मिट्टी (एल्फीसोल, वर्टीसोल और इन्सेप्टिसोल) में उगाई गई थीं, के साथ अरहर की एक जंगली किस्म का भी अध्ययन किया।
यह अध्ययन विज्ञान और अभियांत्रिकी अनुसंधान बोर्ड (SERB), जो अब अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) के नाम से जाना जाता है, के सहयोग से किया गया था। प्रो. अप्पा राव ने अपने पीएचडी छात्रों डॉ. अनिर्बान बसु, डॉ. चलसानी दंतेस्वरी और डॉ. पीवीएसआरएन शर्मा के साथ, हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्लांट साइंसेज विभाग में इस अध्ययन को अंजाम दिया।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
अध्ययन में पाया गया कि अरहर के नोड्यूल्स में राइजॉबिया के अलावा अन्य नॉन-राइजॉबियल एंडोफाइटिक बैक्टीरिया भी उपस्थित रहते हैं। जड़ों पर नोड्यूल की स्थिति, मिट्टी का प्रकार, अरहर की जीनोटाइप और नोड्यूल माइक्रोबायोम की संरचना को प्रभावित करने वाले अन्य पर्यावरणीय कारकों का इस अध्ययन के जरिए पता लगाया गया।
एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह था कि अरहर की जंगली किस्म के नोड्यूल्स में ब्रैडीराइजॉबियम का वर्चस्व था, जबकि आशा, दुर्गा और मन्नेमकोंडा कांडी जैसी उन्नत किस्मों में विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया समुदाय पाए गए। इससे संकेत मिलता है कि वंशावलीकरण (डोमेस्टिकेशन) की प्रक्रिया के दौरान प्राकृतिक सहजीविता में कुछ बदलाव हुआ है।
अध्ययन से यह भी स्पष्ट हुआ कि पौधों के जेनेटिक्स की तुलना में मिट्टी के गुण नोड्यूल माइक्रोबायोम को आकार देने में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह पौधों के माइक्रोबायोम में मिट्टी के महत्व को रेखांकित करता है। हैदराबाद विश्वविद्यालय के अनुसार, ये निष्कर्ष हाल ही में स्प्रिंगर नेचर द्वारा प्रकाशित जर्नल एनवायरमेंटल माइक्रोबायोम में प्रकाशित हुए हैं।