महाराष्ट्र में फिर गरमाया प्याज का मुद्दा, सरकारी खरीद में कम दाम पर उठे सवाल
महाराष्ट्र राज्य प्याज उत्पादक संघ ने किसानों से अपील की है कि उचित दाम मिलने तक वह अपना प्याज नेफेड और एनसीसीएफ को न बेचें
लोकसभा चुनाव में भाजपा और सहयोगी दलों को नुकसान पहुंचाने वाला प्याज का मुद्दा महाराष्ट्र में अभी शांत नहीं हुआ है। प्याज की महंगाई से उपभोक्ताओं को राहत दिलाने के लिए केंद्र सरकार राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (एनसीसीएफ) के माध्यम से बफर स्टॉक के लिए 5 लाख टन की खरीद करवा रही है। लेकिन सरकारी खरीद के लिए प्याज का भाव बाजार रेट से कम रखा गया है, जिसके चलते किसान नेफेड और एनसीसीएफ को प्याज बेचने से बच रहे हैं। यही वजह है कि खरीद एजेंसियां प्याज की ज्यादा खरीद नहीं कर पा रही हैं। इस बीच, बाजार में प्याज की कीमतें बढ़ती जा रही हैं।
महाराष्ट्र राज्य प्याज उत्पादक संघ के अध्यक्ष भारत दिघोले ने सवाल उठाया कि सरकार या उसकी एजेंसी बाजार भाव से कम दाम पर प्याज खरीदने के बारे में कैसे सोच सकती हैं। उन्होंने किसानों से अपील की है कि वे नेफेड और एनसीसीएफ को प्याज न बेचें, क्योंकि मंडियों में अधिक दाम मिल रहे हैं। भारत दिघोले का कहना है कि जब प्याज के दाम एक-दो रुपये किलो तक गिरते हैं तो सरकार किसानों को कोई राहत नहीं देती, लेकिन भाव में थोड़ी-सी बढ़ोतरी होते ही कीमतें गिराने के प्रयास शुरू हो जाते हैं।
महाराष्ट्र के किसान नेता अनिल घनवट ने रूरल वॉयस को बताया कि काफी समय बाद प्याज के दाम बढ़े हैं। अगर सरकार प्याज की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए कोई कदम उठाती है तो लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ेगा। इस साल महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार प्याज की कीमतों पर ज्यादा अंकुश लगाने की स्थिति में नहीं है।
उपभोक्ताओं को सस्ता प्याज उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार मूल्य स्थिरीकरण कोष योजना के तहत नेफेड और एनसीसीएफ के जरिए प्याज की खरीद करवाती है। रबी सीजन की प्याज खरीद लोकसभा चुनाव से पहले शुरू होनी थी। लेकिन खरीद चुनाव के बाद शुरू हो पाई। सरकारी खरीद के लिए किसानों को बाजार से कम भाव दिया जा रहा है, जिससे प्याज उत्पादक किसानों में असंतोष है। नेफेड सीधे किसानों से प्याज खरीदने की बजाय एफपीओ के माध्यम से खरीद कर रहा है। इसे लेकर भी प्याज उत्पादकों में नाराजगी है।
महाराष्ट्र की मंडियों में प्याज का भाव 3000-3500 रुपये प्रति कुंतल तक पहुंच गया है। जबकि नेफेड ने पहले 2105 और फिर 2555 रुपये प्रति कुंतल के रेट पर प्याज खरीदना शुरू किया था। मंडियों में बेहतर दाम मिलने के कारण किसान नेफेड और एनसीसीएफ को प्याज नहीं बेच रहे हैं। इसे देखते हुए प्याज का भाव स्थानीय स्तर पर तय करने का फैसला लिया गया। अब सरकारी खरीद के लिए विभिन्न जिलों में प्याज का भाव 2357 रुपये से लेकर 2987 रुपये प्रति कुंतल के बीच तय किया गया है। लेकिन यह भाव भी बाजार रेट से कम है।
वर्ष 2023-24 के दौरान देश में प्याज का उत्पादन लगभग 16 फीसदी घटने का अनुमान है। प्याज निर्यात पर रोक हटने के बाद घरेलू बाजार में प्याज की आवक घटी है और प्याज के दाम बढ़ रहे हैं। पिछले एक महीने में प्याज के थोक दाम लगभग 50 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। ऐसे में नेफेड और एनसीसीएफ के लिए बाजार भाव से कम कीमत पर प्याज की खरीद करना मुश्किल हो गया है। यही कारण है कि 5 लाख टन प्याज खरीद के लक्ष्य के मुकाबले अभी तक बहुत कम खरीद हुई है।
भरत दिघोले ने कहा कि नेफेड को पुराने सिस्टम के तहत प्याज खरीदना चाहिए। पहले नेफेड के अधिकारी खुद मंडियों में जाकर बोली लगाते थे। जिससे किसानों को अच्छा दाम मिलता था। लेकिन अब नेफेड बड़े व्यापारियों और कृषि उत्पादक कंपनियों (एफपीसी) से प्याज खरीदता है, जो एक तय दाम पर खरीदा जाता है। उन्होंने कहा कि नेफेड पहले किसानों के हित में काम करता था। लेकिन अब ऐसा लगता है की नेफेड उपभोक्ताओं के लिए काम कर रहा है, ताकि उन्हें सस्ता प्याज उपलब्ध कराया जा सके। नेफेड की कार्यप्रणाली पर भी कई सवाल उठ रहे हैं।