अमेरिकी किसानों को सालाना 26 लाख की मदद, भारतीय किसानों को मात्र 6 हजार, मुकाबले में कैसे टिकेंगे

पिछले पांच साल में अमेरिका के किसानों को सालाना औसतन 30782 डॉलर यानी करीब 26.78 लाख की सरकारी मदद मिली है। यह पैसा सीधे उनके खाते में गया। यह जानकारी अमेरिका के गवर्नमेंट अकाउंटेबिलिटी ऑफिस (जीओए) की ओर से 17 दिसंबर, 2024 को सीनेट की कृषि और सहयोगी क्षेत्र की समिति को सौंपी गई रिपोर्ट में दी गई है।

अमेरिकी किसानों को सालाना 26 लाख की मदद, भारतीय किसानों को मात्र 6 हजार, मुकाबले में कैसे टिकेंगे

भारत पर अमेरिका के कृषि उत्पादों के लिए बाजार खोलने का दबाव बढ़ता जा रहा है। लेकिन दोनों देशों के किसानों को मिलने वाली सरकारी मदद में जमीन आसमान का फर्क है। ऐसे में भारत का किसान अमेरिकी किसानों के साथ प्रतिस्पर्धा में कैसे टिक पाएगा, यह बड़ा सवाल है। 

पिछले पांच साल में अमेरिका के किसानों को सालाना औसतन 30782 डॉलर यानी करीब 26.78 लाख की सरकारी मदद मिली है। यह पैसा सीधे उनके खाते में गया। यह जानकारी अमेरिका के गवर्नमेंट अकाउंटेबिलिटी ऑफिस (जीओए) की ओर से 17 दिसंबर, 2024 को सीनेट की कृषि और सहयोगी क्षेत्र की समिति को सौंपी गई रिपोर्ट में दी गई है। इस रिपोर्ट में 2019 से 2023 के बीच 10 लाख किसानों को अमेरिकी सरकार द्वारा दी गई 161 अरब डॉलर की मदद का विस्तृत ब्यौरा दिया गया है। इधर, भारत में परोक्ष सब्सिडी को छोड़ दें तो केंद्र सरकार से सालाना केवल 6000 रुपये की सीधे मदद किसानों को मिलती है। यह धनराशि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (पीएम-किसान) के तहत पात्र किसानों के खाते में डाली जाती है, जिनकी संख्या करीब 10 करोड़ है। 

यह तुलना इसलिए अहम हो जाती है क्योंकि अमेरिका भारत पर अपने कृषि उत्पादों के लिए बाजार खोलने के लिए दबाव बना रहा है। हालांकि, बाजार तो अधिकांश उत्पादों के लिए खुला हुआ है लेकिन असल मुद्दा उत्पादों के आयात पर लगने वाले सीमा शुल्क का है। अमेरिका इसमें कटौती करवाना चाहता है। अमेरिका ने इस दबावों के लिए रेसिप्रोकल टैरिफ लगाना शुरू किया है जिसके तहत कनाडा, मैक्सिको और चीन समेत कई देशों के उत्पादों पर अमेरिका ने सीमा शुल्क में बढ़ोतरी कर दी है। अमेरिकी कृषि उत्पादों का सबसे बड़े आयातक चीन भी शुल्क लागू करने के साथ बड़े पैमाने पर अमेरिकी कृषि उत्पादों का आयात घटाने के लिए घरेलू उत्पादन बढ़ाने की कोशिशों में जुट गया है, साथ ही ब्राजील जैसे अन्य देशों से कृषि उत्पादों का आयात बढ़ा रहा है। ऐसे में अमेरिका पर अपने किसानों के उत्पाद को खपाने के लिए नये बाजार तलाशने का दबाव बढ़ गया है और उसकी कोशिश होगी कि भारत के कृषि उत्पादों के बाजार में उसके लिए राह आसान हो जाए।

अमेरिकी किसानों को सीधी मदद

अमेरिकी सरकार द्वारा किसानों को सीधी मदद अमेरिकी संसद द्वारा 2018 में पारित फार्म बिल, 2018 के प्रावधानों के तहत दी गई है। यह मदद 22 फसलों, डेयरी, पशुपालन और मत्स्य पालन के लिए प्राइस लॉस कवरेज (पीएलसी), एग्रीकल्चर रिस्क कवरेज (एआरसी) तथा अमेरिकी कृषि विभाग द्वारा चलाये जा रहे 27 कार्यक्रमों के तहत दी गई है। अमेरिका में किसान की जगह एग्रीकल्चर प्रॉड्यूसर शब्द का उपयोग किया जाता है। क्योंकि किसानों के अलावा कृषि क्षेत्र की अमेरिकी कारपोरेशन भी यह मदद पाती हैं। अमेरिका में अधिकतम मदद पाने वाले 10 प्रॉड्यूसर ने 1.77 करोड़ डॉलर से अधिक की राशि प्राप्त की और सबसे अधिक मदद 21.5 करोड़ डॉलर की मिली। 

जीओए रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी सरकार द्वारा किसानों और एग्री कारपोरेशंस को दी जा रही मदद का 64 फीसदी हिस्सा मक्का, सोयाबीन, कपास, चावल, ज्वार और गेहूं जैसी फसलों के लिए दिया गया है। अमेरिका में कुल 18.2 लाख किसान हैं और वहां के किसान परिवारों की औसत आय 97984 डॉलर सालाना है जो वहां के मिडिल वैल्यू परिवारों की सालाना औसत आय 80610 डॉलर से अधिक है। 

विभिन्न मदों में मिलती है सहायता 

अमेरिकी फार्म सर्विस एजेंसी (एफएसए), नेचुरल सिसोर्स कंजर्वेशन सर्विस और रिस्क मैनेजमेंट एजेंसी के जरिए दी जाने वाली यह सहायता कमोडिटी असिसटेंस के रूप में एग्रीकल्चर रिस्क कवरेज, डेयरी इंडेमिनिटी पेमेंट प्रोग्राम, डेयरी मार्जिन कवरेज और प्राइस लॉस कवरेज के लिए दी जाती है। इसके अलावा कंजर्वेशन, क्रॉप इंश्योरेंस, डिजास्टर असिस्टेंस और सप्लीमेंटरी असिस्टेंस के रूप में कृषि उत्पादकों को पैसा दिया जाता है। 

इन प्रावधानों में इफेक्टिव रेफरेंस प्राइस (ईआरपी) का इस्तेमाल फसलों की कीमतों में गिरावट से होने वाले नुकसान को कवर करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा बीमा के तहत प्राकृतिक आपदा या दूसरे कारणों से पैदावार या कीमतों में गिरावट को भी शामिल किया जाता है। इतना ही नहीं, कृषि उत्पादों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अन्य देशों द्वारा लगाई जाने वाली पाबंदियों और नीतियों से होने वाले नुकसान की भरपाई भी अमेरिकी सरकार अपने किसानों को करती है। 

किसानों को बीमा, कीमतों में अंतर, नीतिगत फैसलों के असर, टिकाऊ और प्राकृतिक खेती के साथ ही डेयरी उत्पादन में कमी, पशुपालकों को होने वाले नुकसान, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन और प्लांटेशन के लिए सरकारी मदद दी जाती है। जीओए की रिपोर्ट बताती है कि वहां पिछले कुछ वर्षों में मदद पाने वाले डेयरी किसानों की संख्या तेजी से बढ़ी है। 

कैसे मुकाबला करेंगे भारतीय किसान

अगर भारत सरकार अमेरिका के कृषि उत्पादों को भारतीय कृषि बाजार में प्रवेश के लिए सीमा शुल्क दरों में कटौती करती है तो उसका सीधा असर हमारे किसानों पर पड़ेगा। सरकार से मामूली मदद पाने वाली भारतीय किसान सालाना औसतन 26.78 लाख रुपये की मदद हासिल करने वाले अमेरिकी कृषि उत्पादकों से कैसे प्रतिस्पर्धा करेंगे, यह बड़ा सवाल है। 

पिछले दिनों भारत आये अमेरिकी सेक्रेटरी होवार्ड लटनिक ने काफी जोर देकर कहा था कि भारत को अपना कृषि बाजार अमेरिकी उत्पादों के लिए खोलना जरूरी है। अब देखना होगा कि इसे नीतिगत स्तर पर किस तरह अमल में लाया जाता है। वहीं, व्यापारिक रिश्तों में बढ़ते तनाव के बीच चीन ने जिस तरह से अमेरिकी कृषि उत्पादों के आयात को कम करना शुरू किया है, उससे अमेरिका के ऊपर दबाव है कि वह अपने किसानों को होने वाले नुकसान को कम करे और इसी रणनीति के तहत उसकी नजर भारतीय बाजार पर है। ऐसे में अगर भारत सरकार अपने किसानों को संरक्षण नहीं देती है तो यह भारतीय कृषि क्षेत्र के सामने एक नया संकट पैदा करने वाली स्थिति होगी। 

ग्लोबल ट्रेडवार

चीन ने 4 मार्च से अमेरिका से आयात होने वाले सोयाबीन, ज्वार, बीफ, पोर्क, डेयरी उत्पादों, अक्वा उत्पादों, फल और सब्जियों पर 10 फीसदी सीमा शुल्क लगा दिया। वहीं गेहूं, मक्का, कपास और चिकेन पर 15 फीसदी सीमा शुल्क लगा दिया। अमेरिका द्वारा चीनी उत्पादों पर लगाये गये सीमा शुल्क के विरोध में चीन ने कृषि उत्पादों पर सीमा शुल्क लगाने का फैसला किया। इस कदम का क्या असर होगा, उसका अंदाजा अमेरिका और चीन के बीच इन वस्तुओं के आयात से लगाया जा सकता है। 

साल 2024 में चीन ने 27.29 अरब डॉलर के कृषि व संबंधित उत्पादों का अमेरिका से आयात किया था। इसमें 12.76 अरब डॉलर का सोयाबीन, 1.48 अरब डॉलर का कॉटन, 1.11 अरब डॉलर का पोर्क, 1.02 अरब डॉलर का सीफूड, 58.4 करोड़ डॉलर के डेयरी उत्पाद, 49.01 करोड़ डॉलर का पोल्ट्री मीट, 55.69 करोड़ डॉलर का गेहूं, 32.79 करोड़ डॉलर का मक्का और 1.26 अरब डॉलर के दूसरे मोटे अनाज शामिल हैं। 

लगता है कि यह टैरिफ वार अमेरिकी किसानों पर भारी पड़ने वाला है। लेकिन फार्म बिल 2018 के तहत मिलने वाली सीधी सहायता उनके लिए बड़ी मदद है जबकि हमारे किसान को मिलने वाली सरकारी मदद बहुत कम है। उसमें भी करीब 30 फीसदी किसान पीएम-किसान योजना के दायरे से बाहर हो जाते हैं।

 

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