तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी
तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने लिए संसद के आगामी सत्र में पेश होने वाले विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है। शुक्रवार 19 नबंवर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधन में इन कानूनों को रद्द करने के फैसले की घोषणा की थी। आगामी 29 नवबंर से शुरू होने वाले संसद के सत्र में मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर विधेयक को पेश किया जाएगा जिसके पारित होने के बाद तीनों कृषि कानून रद्द हो जाएंगे
तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने लिए संसद के आगामी सत्र में पेश होने वाले विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है। शुक्रवार 19 नबंवर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधन में इन कानूनों को रद्द करने के फैसले की घोषणा की थी। आगामी 29 नवबंर से शुरू होने वाले संसद के सत्र में मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर विधेयक को पेश किया जाएगा। इसे फार्म लॉज रिपील बिल, 2021 कहा गया है जिसके पारित होने के बाद तीनों कृषि कानून रद्द हो जाएंगे। मंत्रिमंडल की बैठक के बाद विधेयक को मंत्रिमंडल की मंजूरी की जानकारी सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने दी।
पांच जून, 2020 को अध्यादेशों के जरिये सरकार तीन नये कृषि कानून लेकर आई थी। द फार्मर्स प्रॉडयूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) एक्ट, 2020, फार्मर्स (इंपावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्यूरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020 और आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) कानून, 2020 के नाम से यह कानून लाये गये थे। इनमें पहले दो कानून नये थे और तीसरे कानून में कई बड़े बदलाव कर इसे अधिक उदार बनाया गया था। इन कानूनों को रद्द करने वाले नये विधेयक संसद में पारित होने के बाद जहां पहले दो कानून समाप्त हो जाएंगे वहीं आवश्यक वस्तु अधिनियम पांच जून, 2020 के पहले की स्थिति में आ जाएगा।
इन तीन कृषि कानूनों के आने के कुछ दिन बाद ही इनका विरोध शुरू हो गया था। विरोध में तेजी आती गई और कुछ माह बाद ही यह किसानों के बड़े आंदोलन के रूप में बदल गया। स्थानीय स्तर पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों में आंदोलन के बाद किसानों ने 26 नवंबर, 2020 को दिल्ली कूच शुरू किया और उसे पुलिस द्वारा रोक दिये जाने के बाद किसानों ने 27 नवबंर, 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन शुरू कर दिया। जो अभी तक जारी है और दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन को दो दिन बाद एक साल हो जाएगा। इस आंदोलन के शुरू में सरकार और आंदोलनकारी किसान संगठनों के बीच 11 बार वार्ता हुई जो नाकाम रही। वहीं जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने इन तीनों कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक आदेश तक रोक लगा दी थी। साथ ही एक चार सदस्यीय समिति गठित की थी जिसे दो माह में रिपोर्ट देनी थी। समिति के एक सदस्य भूपिन्दर सिंह मान ने खुद को समिति से अलग कर लिया था। बाकी तीन सदस्यों प्रोफेसर अशोक गुलाटी, डॉ. पी के जोशी और अनिल घनवत ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को मार्च में सौंप दी थी। यह रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है।
इस बीच किसानों के लगातार चलते आंदोलन और विरोध के तेज होने का दौर जारी रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवबंर को गुरू पर्व के मौके पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए इन तीनों कानूनों को रद्द करने की घोषणा कर सबको चौंका दिया। साथ ही किसान संगठनों की महत्वपूर्ण मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य् (एमएसपी) पर एक कमेटी बनाने की घोषणा भी की। बुधवार का कैबिनेट का फैसला कानूनों को संसद में रद्द करने की प्रक्रिया का ही हिस्सा है।
हालांकि प्रधानमंत्री की किसानों को घर लौटने की अपील पर किसान संगठनों ने कहा कि वह संसद में इन कानूनों के रद्द होने की प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार करेंगे। वहीं किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा ने बयान जारी कर कहा है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी उनकी मुख्य मांग है और उसके लिए संसद में कानून लाने की मांग मोर्चा ने की है। इसके साथ ही मोर्चा ने प्रधानमंत्री को लिखे एक खुले पत्र में अपनी छह मांगे रखी हैं और सरकार से इन पर बातचीत शुरू करने के लिए कहा है। किसान आंदोलन के दिल्ली की सीमाओं पर एक साल पूरा होने के मौके पर 26 नवंबर को बड़ी संख्या में जुटने की रणनीति बना रहे हैं।