आलू किसानों के साथ हाईफन फूड्स की कारगर पहल, बनी फ्रेंच फ्राइज की सबसे बड़ी निर्यातक
भारत फ्रेंच फ्राइज का एक प्रमुख निर्यातक बनकर उभरा है, जिसका श्रेय सीधे उत्पादकों से आलू खरीदने वाली हाईफन फूड्स सरीखी कंपनियों और किसानों की बढ़ती भागीदारी को जाता है। साल 2015 में 500 किसानों के साथ शुरुआत करने वाली हाईफन फूड्स इस समय भारत से सबसे अधिक फ्रोजन फ्रेंच फ्राइज निर्यात करने वाली कंपनी बन गई है जो 40 देशों को निर्यात करती है।

गुजरात के बनासकांठा जिले के मोटा कोटरा गांव के तुलसीभाई 13 एकड़ में आलू की खेती करते हैं। उनकी पैदावार 13 टन प्रति एकड़ है और इसे 13.50 रुपये किलो बेचकर वह तमाम खर्चों के बाद भी 25 फीसदी मुनाफा कमा लेते हैं जो एक एकड़ में 45 हजार रुपये से अधिक बैठता है, और वह भी 100 से 110 दिन की फसल में।
गुजरात के बनासगांठ, साबरकांठा और मेहसाणा जिले में तलसीभाई जैसे करीब 7500 किसान हैं और ऐसे कुछ किसान मध्य प्रदेश के मालवा के देवास, उज्जैन जिलों में भी हैं। यह कमाई वह आलू की प्रोसेसिंग करने वाली कंपनी हाईफन फूड्स के साथ कांट्रैक्ट फार्मिंग के जरिये कर पा रहे हैं। ये किसान आलू प्रोसेसिंग के लिए अच्छी मानी जाने वाली सेंटाना वैरायटी का उत्पादन करते हैं जिसकी प्रोसेसिंग कर कंपनी फ्रेंच फ्राई और हैश ब्राउन, फ्लैक और चिप्स बनाकर उनका निर्यात करती है।
साल 2015 में 500 किसानों के साथ शुरुआत करने वाली हाईफन इस समय भारत से सबसे अधिक फ्रोजन फ्रेंच फ्राइज निर्यात करने वाली कंपनी बन गई है जो 40 देशों को निर्यात करती है। खास बात यह है कि वर्ष 1992 में अमेरिकी कंपनी लैंब वेस्टन ने भारत में फ्रोजन फ्रेंच फ्राइज का आयात शुरू किया था और उसके बाद कनाडा की कंपनी मकैन फूड्स ने मैकडॉनल्ड चेन को आपूर्ति के लिए फ्रोजन फ्रेंच फ्राइज का आयात शुरू किया था। लेकिन अब भारत दुनिया का प्रमुख फ्रेंच फ्राइज निर्यातक बन गया है। भारत से हर साल लगभग 1500 करोड़ रुपये की एक टन लाख टन से अधिक फ्रेंच फ्राइज का निर्यात होता है। इसमें सबसे अधिक हिस्सेदारी हाईफन फूड्स की है।
आलू की आढ़त से शुरुआत
हाईफन फूड्स के मैनेजिंग डायेक्टर और सीईओ हरेश करमचंदानी की आलू प्रोसेसिंग और निर्यात के क्षेत्र में कामयाबी की कहानी काफी दिलचस्प है। रूरल वॉयस के साथ एक मुलाकात में वह बताते हैं कि हमारा आलू की आढ़त का पुश्तैनी कारोबार था। परिवार के लोग नहीं चाहते थे कि मैं आढ़त पर बैठूं। इसलिए मैं भी ग्रेजुशन के बाद मल्टीप्लेक्स चेन से लेकर ऑटो डीलरशिप जैसे विकल्पों के बारे में सोच रहा था, लेकिन आखिरकार अहमदाबाद में अपने पुश्तैनी काम के साथ ही जुड़ गया।
हरेश बताते हैं कि यहीं से मुझे आइडिया आया कि इस धंधे में किसान और कारोबारी कोई भी बड़ा फायदा नहीं ले पाता, फिर ऐसा क्या किया जाए कि कारोबार का नक्शा ही बदल जाए। इसी सोच के साथ मैंने आलू प्रोसेसिंग प्लांट लगाने का फैसला किया। इससे लिए मैंने इस कारोबार को गहराई से स्टडी किया, दुनिया भर के फूड फेयर्स में गया और साल 2010 में इस क्षेत्र में आगे बढ़ने का पक्का मन बना लिया। 2015 में हमने पहला संयंत्र लगाया। इसके लिए यूरोप से अत्याधुनिक मशीनों का आयात किया गया और मेहसाणा में 26 टन प्रति घंटे की उत्पादन क्षमता का फ्रोजन फ्रेंच फ्राइज प्लांट स्थापित किया। साथ में चार टन प्रति घंटे की उत्पादन क्षमता का हैश ब्राउन का प्लांट भी लगाया।
पहली चुनौती: आलू की सही किस्म
हरेश करमचंदानी बताते हैं कि प्रोसेसिंग के लिए आलू का कच्चे माल के रूप में उपलब्ध होना एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि देश में पैदा होने वाले लगभग 95 फीसदी आलू टेबल पोटेटो हैं और यह प्रोसेसिंग क्वालिटी का आलू नहीं होता है। इसमें ड्राई मैटर 15 से 16 फीसदी होता है, शुगर लेवल तेजी से बढ़ता है, साथ ही इसका साइज भी छोटा है। जबकि प्रोसेसिंग के लिए इस्तेमाल होने वाली आलू किस्मों में डाई मैटर 20 से 23 फीसदी तक होता है। इसलिए हमने नीदरलैंड से सेंटाना व दूसरी किस्मों के आलू का आयात किया और उसे देश में उगाने के लिए कानूनी अधिकारी (आईपीआर) हासिल किये, जिसके लिए हम यूरोपीय कंपनी को रॉयल्टी चुकाते हैं। इस आलू को हम कांट्रैक्ट फार्मिंग के जरिये किसानों से उगवाते करवाते हैं।
हाईफार्म पाठशाला प्रोजेक्ट
हाईफन फूड्स ने साल 2015-16 में 500 किसानों के साथ आलू की कांट्रैक्ट फार्मिंग शुरू की थी और अब इन किसानों की तादाद बढ़कर 7500 हो गई है। हाईफन फूड्स के चीफ ऑपरेटिंग आफिसर (सप्लाई चेन मैनेजमैंट) मोहम्मद आरिफ बताते हैं कि हम किसानों को सही किस्म और गुणवत्ता का बीज उपलब्ध कराते हैं। उन्हें बढ़िया उत्पादन के लिए खेती के तरीकों की जानकारी और मदद देते हैं। इसके लिए हमने किसानों को एक एप्लीकेशन पर जोड़ा है और हाईफार्म पाठशाला प्रोजेक्ट के तहत किसानों को फसल के दौरान जरूरी जानकारी देते हैं। इससे वे खाद, बीज, पानी आदि का सही इस्तेमाल करते हैं और बेहतरीन फसल लेते हैं। किसानों की उपज को हाईफन खरीदती है और किसानों को सीधे भुगतान करती है।
उत्पादन बढ़ा, पानी बचा
बनासकांठा के जिस खेत में हम गये, वहां आलू की हार्वेस्टिंग चल रही थी। खेत पर मौजूद किसान ने बताया कि हमने पांच रुपये किलो की कीमत पर आलू का कांट्रैक्ट शुरू किया था और इस साल हमें 13.50 रुपये किलो का भाव मिल रहा है। साथ ही खेती के सही तरीके की जानकारी कंपी के वैज्ञानिकों व अधिकारियों द्वारा दी जाती है। एप के जरिये सिंचाई का समय पता लग जाता है क्योंकि मिट्टी में नमी, मौसम और हवा में नमी की जानकारी हमें मिल जाती है।
मोहम्मद आरिफ बताते हैं कि हमारे सारे किसान मिनी स्प्रिंकर और ड्रिप इरीगेशन तकनीक का इस्तेमाल करते हैं और इससे 25 फीसदी पानी की बचत कर रहे हैं। आलू की खेती के लिए किसानों को 30 इंच की बजाय 48 इंच की दूरी पर बेड बनाने का सुझाव दिया गया, इससे आलू का उत्पादन बढ़ गया क्योंकि आलू का आकार बढ़ गया है। सेंटाना किस्म का आलू पारंपरिक किस्मों की तरह मिट्टी में नीचे की तरफ नहीं बढ़ता है, बल्कि चौड़ाई में बढ़ता है और बेड के बीच दूरी अधिक होने से उसे अधिक जगह मिलती है। इसके चलते उत्पादन 11 टन से बढ़कर 13 टन प्रति हैक्टेयर हो गया है।
कंपनी किसानों के खेत से आलू को सीधे स्टोरेज ले जाती है। हाईफन बल्क चैंबर स्टोरेज वाले कोल्ड स्टोरेज का भी इस्तेमाल कर रही है। वहां खुला स्टोर किया जाता है। इसमें कूलिंग के लिए टनल्स का इस्तेमाल किया जाता है। इनकी क्षमता 1500 से 2000 टन है। हाईफन अपना 20 फीसदी आलू इस तरह के स्टोरेज में रखती है बाकी करीब 8 फीसदी आलू पंरपरागत तरीके के बैग में भरकर कोल्ड स्टोरेज में रखती है। असल में आलू को 8 से 9 माह के लिए स्टोर करना पड़ता है क्योंकि पूरे साल प्रोसेसिंग के लिए उसकी जरूरत होती है।
शीड टू शेल्फ मॉडल
गुजरात में देश का 7.5 फीसदी आलू पैदा होता है लेकिन प्रोसेसिंग के लिए 90 फीसदी से अधिक आलू गुजरात में ही उगाया जाता है क्योंकि यहां की जलवायु प्रोसेसिंग वाली आलू किस्मों के लिए बेहतर है।
हाईफन फूड्स का बिजनेस मॉडल सीड टू शैल्फ वाला है। इसमें बीज की अहमियत काफी अधिक है। हरेश करमचंदानी बताते हैं कि हम जनरेशन जीरो (जी-0) से शुरूआत करते हैं जिसके लिए जर्मप्लाज्म सेंटोना कंपनी से लेते हैं। उसके बाद इसे कंट्रोल्ड फार्मिंग में जी-वन पर लाते हैं। फिर कांट्रेक्ट फार्मिंग के जरिए इससे जी-2 का उत्पादन करते हैं और उसके बाद जी-3 के लिए मल्टीप्लाई करते हैं।
हरेश बताते हैं कि बीज उत्पादन का काम पंजाब में कांट्रैक्ट फार्मिंग में कराते हैं क्योंकि वहां की जलवायु उसके लिए मुफीद है और वहां फार्म भी बड़े हैं। वहां से सीड पोटेटो लाकर हम अपने कांट्रैक्ट वाले किसानों को देते हैं। यह एक पांच साल की प्रक्रिया है। इसके लिए हमारे मॉडल फार्म भी हैं और अब हम शुरुआती स्टेज के लिए अक्वापोनिक और हाइड्रोपोनिक तकनीक का इस्तेमाल करने वाले हैं।
सीड के बाद की अगली स्टेज है प्रोक्योरमेंट, फिर स्टोरेज और उसके बाद की स्टेज है प्रोसेसिंग जिसके बाद कोल्ड सप्लाई चेन का रोल आता है। हम प्रोसेस्ड फ्रेंच फ्राइज और हैश ब्राउन व दूसरे उत्पादों को माइनस 18 डिग्री पर फ्रीज करते हैं। जहां से यह निर्यात होता है और घरेलू बाजार में भी पहुंचता है।
उत्पादन का 80 फीसदी निर्यात
हाईफन अपने 80 फीसदी उत्पादन को निर्यात करती है और करीब 20 फीसदी उत्पादन घरेलू मार्केट में खपत के लिए जाता है। जहां निर्यात के लिए यूरोप, अमेरिका, खाड़ी के देश और जापान, कोरिया के साथ दूसरे पूर्वी व दक्षिण एशिया के 40 देशों को हम निर्यात करते हैं। भारत में बर्गर किंग और केएफसी जैसी चेन को फ्रेंच फ्राई की आपूर्ति करते हैं। भारत से 2022-23 में 1478.73 करोड़ रुपये की 1,35,877 टन फ्रेंच फ्राइज का निर्यात किया गया, जबकि चालू साल में अप्रैल से दिसंबर, 2024 तक 1056.92 करोड़ रुपये की 106,506 टन फ्रेंच फ्राई का निर्यात किया गया। हाईफन ने पिछले साल 85 हजार टन फ्रेंच फ्राई और 8000 टन हैश ब्राउन का निर्यात किया था।
गुणवत्ता पर जोर
हरेश कहते हैं कि हमारा पहला निर्यात आर्डर थाइलैंड को गया था और वहां फेल हो गया था। इस कड़वे अनुभव ने हमें मार्केट को पहचानने और सही मार्केट के लिए सही उत्पाद का चयन करने की सीख दी। हमारी पूरी उत्पादन प्रक्रिया वर्ल्ड क्लास है और गुणवत्ता मानकों पर दुनिया के बेहतर मानकों को पूरा करती है। यही वजह है कि हमारा निर्यात लगातार बढ़ रहा है।
हरेश कहते हैं जिस तरह से यूरोप में जलवायु परिवर्तन का आलू उत्पादन पर असर पड़ रहा है। उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए जमीन की उपलब्धता चुनौती बनती जा रही है। ऐसे में दुनिया के तमाम मार्केट फ्रोजन फ्रेंच फ्राई, हैश ब्राउन, चिप्स और फ्लैक के लिए भारत को एक संभावित बड़े सप्लायर के रूप में देख रहे हैं और यह हमारे लिए एक मौका है।
भावी योजनाएं
हाईफन फूड्स 2027 तक एक हजार करोड़ रुपये के निवेश से 20 टन प्रति घंटा की फ्रोजन फ्रेंच फ्राइज और 4 टन प्रति घंटा की क्षमता की हैश ब्राउन उत्पादन लाइन स्थापित कर रही है। कंपनी आलू की नीदरलैंड की कंपनियों स्टेट, एचजेडपीसी और मीजेर कंपनियों की किस्में सेंटाना, इन्नोवेटर, केनीबैक, लेडी रोसैटा के साथ शिमला स्थित सेंट्रल पोटेटो रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीपीआरआई) की किस्म कुफरी फ्राईसोना और कुफरी फ्राइयोम का फ्रेंच फ्राई के उत्पादन के लिए इस्तेमाल कर रही है।
इसके साथ की आलू की आपूर्ति के लिए मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र और उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में आलू की कांट्रैक्ट फार्मिंग की योजना पर अमल करने जा रही है। मध्य प्रदेश में इसकी शुरुआत हो चुकी है और उत्तर प्रदेश में अगले सीजन से कांट्रैक्ट फार्मिंग शुरू कर सकती है।