हरवीर सिंह
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RuralVoice.in एक ऐसा मीडिया प्लेटफार्म है जो रुरल अर्बन के बीच के विभाजन के बीच सूचना की खाई को करने के साथ ग्रामीण भारत की खबरों और उसके लिए जरूरी सूचना को प्राथमिकता देने का काम करता है। यह एक नालेज आधारित नया मीडिया स्टार्ट- अप है। इसे एग्रीकल्चर, रुरल, इकोनामी, पालिटिक्स और बिजनेस रिपोर्टिंग के तीस साल के अनुभवी जर्नलिस्ट हरवीर सिंह ने शुरू किया है। प्रिंट, रेडियो, टीवी और डिजिटल मीडिया के माध्यमों में विभिन्न लीडरशिप स्तरों पर देश के बड़े मीडिया समूहों में काम करने का अनुभव उनके पास है। इसके पहले वह आउटलुक हिंदी के संपादक रहे हैं। वहीं उन्होंने मनी भास्कर के संपादक के रूप में और बिजनेस भास्कर के इकोनामिक एडिटर के रूप में दैनिक भास्कर समूह में काम किया। इसके अलावा वह दैनिक हिंदुस्तान और अमर उजाला समूह में सीनियर लीडरशिप पाजिशंस में रहे हैं। हरवीर सिंह के नेतृत्व में प्रोफेशनली ट्रेंड और कमिटेड जर्नलिस्ट्स की एक टीम इस संस्थान के लिए काम कर रही हैं। इस नेटवर्क को देश के अधिकांश हिस्सों तक ले जाने की योजना है। रिपोर्टिंग और लेखन का एक ही मूलमंत्र है कि यह किसी भी राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक पूर्वाग्रह से मुक्त होगा। RuralVoice.in के कंटेंट का केंद्र बिंदु ‘भारत’ यानी रुरल इंडिया रहेगा।
प्रणय शर्मा
RuralVoice के वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी कंसल्टिंग एडिटर प्रणय शर्मा विदेश मामलों पर लिखने के साथ ही एक इस मुद्दे पर एक जाने-माने कमेंटेटर हैं। कुल 37 साल से ज्यादा के जर्नलिस्टिक अनुभव वाले प्रणय शर्मा को प्रिंट और टीवी दोनों माध्यमों में काम करने का अनुभव है। वह देश के प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ के साथ लंबे समय तक काम कर चुके हैं। इसके सथ ही वह अंग्रेजी की अग्रणी पत्रिका आउटलुक के चीफ ऑफ ब्यूरो और फारेन एडिटर रहे हैं।
RuralVoice.in पर कंटेंट की गुणवत्ता के मानकों को बनाये रखने के लिए एक एडिटोरियल एडवाइजरी बोर्ड बनाया गया है। इस बोर्ड में कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था व नीतिगत मामलों पर देश और दुनिया में प्रतिष्ठित विशेषज्ञों के रूप में गिनी जाने वाली प्रतिभाएं शामिल हैं। जिनको नीति निर्माण, आर्थिक मसलों पर दक्षता के साथ ही सरकार और सांस्थानिक स्तर पर लंबा प्रशासकीय अनुभव हासिल है। बोर्ड के सदस्यों का संक्षिप्त परिचय यहां दिया गया है।
टी. नंद कुमार
t.nandakumars@gmail.com
टी. नंद कुमार के पास भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के 38 वर्षों के अनुभव के साथ नीति निर्माण, प्रोजेक्ट डिजाइन और क्रियान्वयन का अनुभव है। वह केंद्र सरकार में कृषि एवं सहकारिता मंत्रालय में डेढ़ वर्ष (सितंबर 2008–फरवरी 2010) तक और खाद्य एवं जन वितरण मंत्रालय में दो वर्षों (जुलाई 2006–सितंबर 2008) तक सचिव रहे। नंद कुमार भारत में श्वेत क्रांति लाने वाले राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के चेयरमैन (मार्च 2014–अगस्त 2016) रहे। उन्होंने डेयरी सेक्टर को मजबूत बनाने और किसान कल्याण के लिए राज्य स्तरीय सहकारी संगठनों के साथ काम किया है। प्रोसेसिंग, ब्रीड विकास और पशु पोषण में नई टेक्नोलॉजी लाने का श्रेय उन्हें जाता है। उन्होंने ‘फार्मर्स फर्स्ट’ और ‘एनडीडीबी फाउंडेशन फॉर न्यूट्रिशन‘ जैसी पहल की भी शुरुआत की।
वे मदर डेयरी फ्रूट्स एंड वेजिटेबल्स लिमिटेड, इंडियन इम्युनोलॉजिकल्स लिमिटेड और आईडीएमसी लिमिटेड के चेयरमैन रहे हैं। यहां कंपनी कानून की जरूरतों के मुताबिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की। वे प्लानिंग, इंटरनेशनल कोऑपरेशन एंड डिजास्टर रिस्क रिडक्शन के प्रभारी सदस्य रहे। यहां राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना का ड्राफ्ट और जिला आपदा प्रबंधन योजना का टेंपलेट तैयार किया। आपदा में जोखिम कम करने और बीमा कवरेज की रणनीति बनाई। सुपर साइक्लोन फैलिन से प्रभावी तरीके से निपटे जिससे जान-माल को बहुत कम नुकसान हुआ।
एक साल तक (2005-06) झारखंड के विकास आयुक्त और अतिरिक्त मुख्य सचिव रहे। उस समय विद्युत बोर्ड के चेयरमैन भी थे। तीन वर्षों (2002-05) तक अंकटाड के अधीन अंतरराष्ट्रीय जूट अध्ययन दल के महासचिव (चीफ एक्जीक्यूटिव) रहे। उनके पास टेक्सटाइल इंडस्ट्री का तीन वर्षों का अनुभव है। विश्व व्यापार से संबंधित नीतियों, खासकर डब्लूटीओ के तहत मल्टी फाइबर व्यवस्था खत्म करने की अच्छी जानकारी है। वे पांच वर्षों तक स्पाइसेज बोर्ड ऑफ इंडिया के चेयरमैन रहे। व्यापार पर उरुग्वे दौर की वार्ता के असर पर इंटरनेशनल ट्रेड सेंटर और डब्लूटीओ के साथ भी कार्य किया। उनके पास भारत के शहरी केंद्रों में पांच वर्षों के कार्य का अनुभव है। इस दौरान विश्व बैंक, यूएनडीपी, यूएनसीएचएस और द्विपक्षीय दानकर्ताओं के साथ सस्ते घर, जलापूर्ति और स्वच्छता जैसे शहरी इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए कई कार्य किए।
नंद कुमार कई सरकारी समितियों और आयोगों के सदस्य भी रहे। इनमें प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख डॉ. सी. रंगराजन की अध्यक्षता में चीनी उद्योग को डिरेगुलेट करने के लिए बनी विशेष समिति और योजना आयोग के सदस्य डॉ. सौमित्र चौधरी की अध्यक्षता में कृषि उत्पादों के प्रभावी वितरण के लिए सप्लाई चेन में निवेश को प्रोत्साहन देने वाली समिति शामिल हैं। वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते रहते हैं।
डॉ. बिश्वजीत धर
bisjit@gmail.com
डॉ. बिश्वजीत धर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में प्रोफेसर हैं। उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री ली है। विश्वविद्यालय में अध्यापन से पहले वे अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर विशेषज्ञता रखने वाले भारतीय विदेश मंत्रालय के थिंक टैंक रिसर्च एंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज (आरआईएस) के महानिदेशक थे। उन्होंने भारत सरकार के डब्लूटीओ अध्ययन केंद्र की स्थापना में मदद की और कई वर्षों तक इस सेंटर के प्रमुख रहे।
डॉ. धर बहुपक्षीय संधि वार्ताओं में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य रहे हैं। इनमें विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ), यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज, वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन और कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी शामिल हैं। वे कई अंतर-सरकारी संगठनों के लिए बने विशेषज्ञ दलों में भी थे। डॉ. धर यूएन कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट, यूएन इकोनॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड द पैसिफिक, यूएन डेवलपमेंट प्रोग्राम, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन और साउथ सेंटर समेत कई अंतर-सरकारी संगठनों के साथ करीब से जुड़े रहे हैं। अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में उन्होंने शोध पत्र प्रस्तुत किया है। उनके लेख प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं मंय प्रकाशित होते रहे हैं। कई राष्ट्रीय दैनिक में उनके कॉलम नियमित रूप से प्रकाशित होते हैं। डॉ. धर एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ इंडिया के निदेशक मंडल में रह चुके हैं। भारत सरकार के बोर्ड ऑफ ट्रेड में भी सदस्य रहे हैं। अभी वे यूएन इकोनॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड द पैसिफिक में एशिया-पैसिफिक रिसर्च एंड ट्रेनिंग नेटवर्क में एडवाइजर हैं। वे केरल सरकार के इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर आईपीआर स्टडीज के बोर्ड में भी हैं।
हिमांशु
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हिमांशु जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय स्थित स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में इकोनॉमिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। सेंटर डि साइंसेज ह्यूमेंस, नई दिल्ली में विजिटिंग फेलो भी हैं। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (ब्रिटिश अकादमी सीनियर विजिटिंग फेलो और सी.आर. पारेख फेलो), यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी- वर्ल्ड इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स रिसर्च यूएनयू-वाइडर (फिनलैंड) और ग्रीकम (फ्रांस) में विजिटिंग फेलो रह चुके हैं। डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स उनके शोध का मुख्य क्षेत्र रहा है। गरीबी, असमानता, रोजगार, खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण विकास और कृषि क्षेत्र में बदलाव पर उन्होंने विशेष रूप से कार्य किया है। उनका मौजूदा शोध भारत में गरीबी और असमानता, रोजगार में ढांचागत बदलाव और बदलता पैटर्न तथा ग्रामीण भारत में आजीविका से जुड़ा है।
हिमांशु कई सरकारी समितियों से जुड़े रहे हैं। इनमें गरीबी का आकलन करने वाला विशेषज्ञ दल (तेंदुलकर समिति), राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, ग्रामीण विकास और आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय शामिल हैं।
उनकी हाल की पुस्तकों में ‘हाउ लाइव्स चेंजः पालनपुर, इंडिया एंड डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स’ शामिल हैं, जिसे उन्होंने निकोलस स्टर्न और पीटर लैंजो के साथ मिलकर लिखा है और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, लंदन (2018) ने प्रकाशित किया है। यह पुस्तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांव पालनपुर के दीर्घकालिक सर्वेक्षण पर आधारित है। 1957-58 के पहले सर्वेक्षण समेत इस गांव का सात बार सर्वेक्षण हो चुका है। निकोलस स्टर्न और पीटर लैंजो के साथ पालनपुर के छठे और सातवें दौर के सर्वेक्षण में वे प्रधान अनुसंधानकर्ता रहे हैं।
हिमांशु विभिन्न मीडिया प्रकाशनों के लिए नियमित रूप से लिखते रहे हैं। उनकी मौजूदगी टेलीविजन कार्यक्रमों में भी रहती है। अंग्रेजी दैनिक ‘मिंट’ में वे विकास से जुड़े मुद्दों पर पाक्षिक कॉलम लिखते हैं। उन्हें इंडियन सोसायटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स के संजय ठाकुर यंग इकोनॉमिस्ट अवार्ड और फ्रांस के विदेश मंत्रालय के ‘पर्सनालिटी डि एवेनिर’ अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने इकोनॉमिक्स में पीएचडी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से की है।
डॉ. दीनानाथ ठाकुर
dnthakur@yahoo.com
डॉ. दीनानाथ ठाकुर का कृषि, ग्रामीण कर्ज और सहकारिता में व्यापक अनुभव है। उन्होंने गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिक्स, पुणे से मास्टर्स और जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, भुवनेश्वर से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा की डिग्री ली है। राष्ट्रीय स्तर के कई सहकारी संस्थानों में वे सलाहकार की भूमिका निभा रहे हैं। मिलेनियल इंडिया इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर (एमआईआईसीसीआईए) में भी सलाहकार है। जनवरी 2015 से जनवरी 2019 तक वे राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम (एनसीडीसी) के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर रहे। इसके साथ वे लक्ष्मणराव इनामदार नेशनल अकादमी फॉर कोऑपरेटिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट, गुरुग्राम के महानिदेशक भी थे। भारतीय राष्ट्रीय सहकारिता उपभोक्ता महासंघ (एनसीसीएफ) और भारतीय कृषि वानिकी विकास सहकारिता लिमिटेड (आईएफएफडीसी) के बोर्ड में एनसीडीसी के नॉमिनी रहे हैं। उन्हें 2016-18 के लिए एग्रीकल्चरल एंड फूड मार्केटिंग एसोसिएशन फॉर एशिया एंड द पैसिफिक (एएफएमए), बैंकॉक, थाइलैंड का चेयरमैन चुना गया था। एनसीडीसी से पहले वे भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में असिस्टेंट कमिश्नर, डिप्टी डायरेक्टर और डायरेक्टर पदों पर रहे चुके हैं। कृषि कर्ज और सहकारिता में उनकी विशेषज्ञता है। इन क्षेत्रों में कार्य करने वाली राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के लिए वे सलाहकार की भूमिका निभाते रहते हैं।