रूरल वॉयस परिचर्चा: सहकारी समितियों में पारदर्शिता और इनके लिए फंड जुटाने के रास्ते तलाशना जरूरी, कोऑपरेटिव को पाठ्यक्रम में शामिल करने का भी सुझाव
विशेषज्ञों ने परिचर्चा में सहकारी समितियों के कामकाज में पारदर्शिता लाने, इसके लिए टेक्नोलॉजी को अपनाने, कोऑपरेटिव के जरिए किसानों की आमदनी बढ़ाने, इनके लिए फंड जुटाने के नए रास्ते तलाशने, युवाओं को कोऑपरेटिव से जोड़ने के लिए इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने और सर्विस सेक्टर में कोऑपरेटिव का हस्तक्षेप बढ़ाने जैसे सुझाव दिए
कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर फोकस करने वाले मीडिया संस्थान रूरल वॉयस और सहकार भारती ने बुधवार को सहकारिता पर एक परिचर्चा का आयोजन किया। इसका मकसद सहकारिता आंदोलन की अड़चनों को पहचानना और सहकारिता को आगे बढ़ाने के लिए नई संभावनाओं पर विचार करना था। परिचर्चा में सहकारिता क्षेत्र की कई जानी-मानी हस्तियों ने हिस्सा लिया। उन्होंने सहकारी समितियों के कामकाज में पारदर्शिता लाने, इसके लिए टेक्नोलॉजी को अपनाने, कोऑपरेटिव के जरिए किसानों की आमदनी बढ़ाने, इनके लिए फंड जुटाने के नए रास्ते तलाशने, युवाओं को कोऑपरेटिव से जोड़ने के लिए इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने और सर्विस सेक्टर में कोऑपरेटिव का हस्तक्षेप बढ़ाने जैसे सुझाव दिए।
परिचर्चा का विषय था 'सहकार से समृद्धि: रास्ते अनेक'। इसमें में तीन सत्र रखे गए थे। पहले सत्र का विषय था बेहतर आय के लिए कोऑपरेटिव को मजबूत करना। दूसरे सत्र का विषय था सहकारिता में वैश्विक अनुभव का भारत कैसे फायदा उठाए। तीसरे और आखिरी सत्र का विषय था कोऑपरेटिव को कैसे प्रासंगिक बनाया जाए।
पहले सत्र की शुरुआत करते हुए पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन ने नए सहकारिता मंत्रालय के गठन को अच्छा कदम बताते हुए कहा कि इसे कोऑपरेटिव के कामकाज में पारदर्शिता लाने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि कोऑपरेटिव में टेक्नोलॉजी का अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इससे उनके काम में पारदर्शिता आएगी। उन्होंने बताया कि तेलंगाना में सभी प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पैक्स) का कंप्यूटराइजेशन हो गया है जबकि उत्तर प्रदेश में अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि अगर किसी कोऑपरेटिव में गड़बड़ी होती है तो टेक्नोलॉजी से उसका जल्दी पता लगाया जा सकता है।
अमूल के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर जयेन मेहता ने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए जरूरी है कि उन्हें उनके उत्पाद की अधिक से अधिक कीमत मिले और उनकी लागत कम हो। अमूल इसी मॉडल पर चलता है। भारत में डेयरी कोऑपरेटिव की संभावनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अभी दुनिया का 22 फ़ीसदी दूध उत्पादन भारत में होता है। 10 साल में यह 35 फ़ीसदी हो जाएगा। इन 10 वर्षों में जो अतिरिक्त दूध उत्पादन होगा उसका भी एक तिहाई भारत से आएगा। उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव किसानों की उत्पादकता बढ़ाने उनका खर्च घटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
सहकार भारती के राष्ट्रीय महासचिव डॉ उदय जोशी ने कहा कि कोऑपरेटिव के सदस्यों को ट्रस्टीशिप की भावना से काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नए मंत्रालय के गठन के बाद सहकारिता से जुड़े कानून में संशोधन के अनेक सुझाव आए हैं, लेकिन सहकार भारती का मानना है कि पहले राष्ट्रीय नीति तैयार की जानी चाहिए फिर उस नीति के आधार पर संशोधन किए जाने चाहिए। इससे आगे चलकर बार-बार बदलाव की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव में जरूरत के मुताबिक पूंजी निवेश नहीं हो रहा है। इनके लिए बांड, डिबेंचर, प्रेफरेंस शेयर आदि के जरिए धन जुटाने के रास्ते तलाशने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने के लिए पैक्स को मजबूत करना जरूरी है।
भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ ने कोऑपरेटिव से जुड़े लोगों के प्रशिक्षण की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि इस कार्य के लिए एनसीयूआई का गठन किया गया लेकिन उसके काम को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। ज्यादातर अधिकारी कोआपरेटिव से जुड़े कानूनों से परिचित ही नहीं हैं। अधिकारी स्तर पर पारदर्शिता नहीं होती। इन परिस्थितियों को बदलना जरूरी है। जाखड़ ने कहा कि कोऑपरेटिव क्षेत्र में सफलता के लिए जरूरी है कि उन कारणों को भी समझा जाए जिनकी वजह से कोऑपरेटिव विफल हुई हैं।
दूसरे सत्र में चर्चा की शुरुआत करते हुए इंटरनेशनल कोऑपरेटिव एलायंस, एशिया-पैसिफिक के प्रेसिडेंट और कृभको के चेयरमैन डॉ. चंद्रपाल सिंह ने कहा कि बिना कोऑपरेटिव आंदोलन के देश को आर्थिक रूप से मजबूत नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि भारत में सहकारिता आंदोलन कृषि आधारित है। कृषि मजबूत हो तो सहकारिता भी मजबूत होगी। इंटरनेशनल कोऑपरेटिव एलायंस (आईसीए) का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया की 12 फ़ीसदी आबादी कोऑपरेटिव से जुड़ी है। पूरे विश्व में 30 लाख के आसपास कोऑपरेटिव हैं। युवाओं को कोऑपरेटिव से जोड़ने के लिए उन्होंने उच्च शिक्षा में कोऑपरेटिव को एक विषय के तौर पर जोड़ने का सुझाव दिया। कोऑपरेटिव संस्थाओं को प्रोफेशनल तरीके से चलाने के लिए उन्होंने प्रशिक्षण की जरूरत बताई।
भारतीय रिजर्व बैंक के डायरेक्टर सतीश मराठे ने कहा कि कोऑपरेटिव को अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्र सर्विस सेक्टर, एग्रीकल्चर और मैन्युफैक्चरिंग में लाना होगा तभी उनका विकास हो सकता है। उन्होंने फ्रांस, जर्मनी और नीदरलैंड्स के कोऑपरेटिव आंदोलन का अध्ययन करने का सुझाव दिया। कृषि क्षेत्र के लिए फ्रांस और नीदरलैंड तथा मैन्युफैक्चरिंग के लिए जर्मनी के मॉडल का अध्ययन किया जा सकता है। उन्होंने कोऑपरेटिव और बैंकिंग के बीच इंगेजमेंट बढ़ाने की जरूरत बताई। उन्होंने यह भी कहा कि कोऑपरेटिव के रोज का कामकाज देखने वाले मैनेजमेंट और उनकी ओनरशिप दोनों को अलग करना जरूरी है। सरकार के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि वह रेगुलेशन तो करे लेकिन कोऑपरेटिव का माइक्रोमैनेजमेंट ना करे। उन्होंने कहा कि एग्रो प्रोसेसिंग के क्षेत्र में कॉपरेटिव के विकास की काफी संभावनाएं हैं।
खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के कोंडा रेड्डी चावा ने जापान, डेनमार्क, नीदरलैंड्स, न्यूजीलैंड और फ्रांस के अध्ययनों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि डेनमार्क में कृषि कोऑपरेटिव उत्पादन से लेकर मार्केटिंग तक सब में सक्रिय है। भारत में भी किसानों को बड़े स्तर पर जोड़ने की जरूरत है। न्यूजीलैंड का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां किसान कई बड़े बिजनेस और उद्योग संभाल रहे हैं।
इंटरनेशनल कोऑपरेटिव एलायंस, एशिया-पैसिफिक के सीईओ बालू अय्यर ने कहा कि सर्विस सेक्टर में कोऑपरेटिव के लिए अनेक संभावनाएं हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि देश की जीडीपी में सर्विस सेक्टर का योगदान 50 फ़ीसदी से अधिक है लेकिन इसका बड़ा हिस्सा असंगठित है। अमेरिका का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां सफाई कर्मियों ने मिलकर कोऑपरेटिव खड़ा किया है। इसके सदस्यों को निजी कंपनी की तुलना में अधिक आमदनी होती है। इसके अलावा कोऑपरेटिव को जो मुनाफा होता है उसमें उनकी हिस्सेदारी भी होती है। अय्यर ने भी कोऑपरेटिव के लिए पूंजी जुटाने के तरीकों पर विचार करने की बात कही।
तीसरे सत्र में इरमा के डॉ. शाश्वत विश्वास ने कोऑपरेटिव के कामकाज में पेशेवर तौर तरीके अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव के साथ निजी क्षेत्र को भी सरकार की मदद की जरूरत पड़ती है लेकिन सरकार निजी कंपनियों के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करती जबकि कोऑपरेटिव के काम में उसका हस्तक्षेप होता है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर कोऑपरेटिव आज भी बहुत पुराने तौर तरीके से चल रहे हैं। टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से उनके कामकाज में पारदर्शिता लाई जा सकती है। उन्होंने कोऑपरेटिव के गवर्नेंस में सुधार पर भी जोर दिया।
एनएफसीएसएफ लिमिटेड के एमडी प्रकाश नायकनवरे ने विभिन्न क्षेत्रों में कोऑपरेटिव की अहमियत बताते हुए कहा कि महाराष्ट्र की शुगर कोऑपरेटिव मिल चलाने के साथ अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, शिक्षण संस्थान, कंज्यूमर स्टोर, कॉपरेटिव बैंक सब कुछ चला रहे हैं। ऐसा दूसरी जगहों और दूसरे क्षेत्रों में भी हो सकता है। उन्होंने भी कॉपरेटिव के कामकाज में प्रोफेशनलिज्म की कमी का मुद्दा उठाया और कहा कि प्रशिक्षण तथा टेक्नोलॉजी के जरिए इसे दूर किया जा सकता है। उन्होंने शुगर कोऑपरेटिव को दीर्घकालिक लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि कॉपरेटिव को अपनी मार्केटिंग पर भी ध्यान देना चाहिए जो अभी वे नहीं करते हैं।
नैकॉफ चेयरमैन राम इकबाल सिंह ने कहा कि इस कार्यक्रम में जो सुझाव दिए जा रहे हैं उन पर सरकार को अमल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि छोटे किसानों के लिए सरकारी अधिकारियों के पास जाना और अपनी बात कह पाना मुश्किल होता है। इसलिए कॉपरेटिव के नियम आसान होने चाहिए। राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय संगठनों की भूमिका पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव का कोई विकल्प नहीं है।
सहकार भारती के प्रेसिडेंट डॉ डीएन ठाकुर ने कहा कि कोऑपरेटिव ना कभी अप्रासंगिक हुए और ना कभी हो सकते हैं। चाहे खाद्य सुरक्षा हो, ऊर्जा की सुरक्षा हो या सामाजिक सामंजस्य यह सब कोऑपरेटिव के जरिए ही सुनिश्चित हो सकता है। अभी तक कोई भी कोऑपरेटिव अंदरूनी कारणों से नहीं बल्कि बाहरी तत्वों के कारण विफल हुआ है। कोऑपरेटिव की तुलना प्रकृति से करते हुए उन्होंने कहा की प्रकृति की तरह इसमें भी संतुलन जरूरी है। उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव का कोई विकल्प नहीं है। इसके बिना समस्या बढ़ेगी। कोऑपरेटिव को प्रासंगिक बनाने के लिए शिक्षा, प्रशिक्षण और जागरूकता जरूरी है।