मनरेगा मजदूरी में मामूली संशोधन की खेत मजदूर यूनियन ने की आलोचना
अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन (AIAWU) ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत मजदूरी में नाममात्र संशोधन की निंदा की है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने दरों को संशोधित करने की अधिसूचना जारी की है, लेकिन यह वृद्धि औसतन 2% से 7% तक है।

अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन (AIAWU) ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत मजदूरी में नाममात्र संशोधन की निंदा की है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने दरों को संशोधित करने की अधिसूचना जारी की है, लेकिन यह वृद्धि औसतन 2% से 7% तक है। यूनियन ने कहा है कि यह वृद्धि न केवल ग्रामीण मजदूरों का अपमान है, बल्कि बढ़ती महंगाई और आर्थिक संकट के बीच उनकी आजीविका पर गंभीर चिंता भी उठाती है।
यूनियन के अध्यक्ष ए. विजयराघवन और महासचिव बी. वेंकट ने एक बयान में कहा कि मजदूरी में बड़ी वृद्धि करने से लगातार इनकार करना मनरेगा पर व्यापक हमले का हिस्सा है। कम मजदूरी मजदूरों को इस योजना में भाग लेने से हतोत्साहित करती है। इससे ग्रामीण रोजगार प्रदान करने के योजना का मुख्य उद्देश्य कमजोर होता है। ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर स्थायी समिति ने भी बताया है कि अपर्याप्त मजदूरी मजदूरों की घटती भागीदारी का मुख्य कारण हैं।
वर्तमान में मनरेगा की मजदूरी वेतन कृषि मजदूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL) के आधार पर संशोधित की जाती है, जिसमें 2009-10 को आधार वर्ष के रूप में उपयोग किया जाता है। हालांकि संसदीय स्थायी समिति ने इस पुरानी पद्धति की कड़ी आलोचना की है, और कहा है कि 2009-10 को आधार वर्ष के रूप में उपयोग करना गलत है। महेंद्र देव समिति ने भी आधार वर्ष को 2014 में स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी। स्थायी समिति ने सुझाव दिया था कि आधार वर्ष को संशोधित करना और वेतन गणना पद्धति को समायोजित करना कम वेतन की समस्या को हल करने के लिए आवश्यक है। बयान के अनुसार, इन सिफारिशों के बावजूद, केंद्र सरकार ने जानबूझकर अपनी ही स्थायी समिति के निष्कर्षों की अनदेखी की है।
सबसे कम वृद्धि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में देखी गई, जो केवल 2.33% है। इन दोनों राज्यों में मजदूरी की दर में केवल 7 रुपये की वृद्धि हुई है। वहां एक दिन के काम के लिए कुल मजदूरी अब 307 रुपये है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के 2023-24 के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण के अनुसार, एक ग्रामीण परिवार का मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (MPCE) 4,122 रुपये है, जो अब और बढ़ गया होगा।
यूनियन का कहना है कि पहले से ही बजट में मनरेगा के लिए आवंटन पिछले वर्ष की तुलना में कम था, यहां तक कि संसदीय समिति की मनरेगा के बजटीय आवंटन को बढ़ाने की सिफारिश को भी स्वीकार नहीं किया गया। इस वर्ष के बजट की तरह, भाजपा ने ग्रामीण गरीबों और कृषि मजदूरों की कीमत पर अपने प्रो-कॉर्पोरेट एजेंडे का विस्तार जारी रखा है।
यूनियन का दावा है कि पहले मनरेगा मजदूरों को गर्मियों के दौरान सामना की जाने वाली कठिनाइयों की भरपाई के लिए विशेष भत्ते मिलते थे। सरकार ने हाल के वर्षों में ऐसे सभी भत्तों को समाप्त कर दिया है। यह स्पष्ट रूप से मनरेगा की भावना को बनाए रखने की प्रतिबद्धता की कमी को दर्शाता है। मनरेगा का लगातार विघटन भारत के लोगों द्वारा अर्जित काम के अधिकार पर एक प्रणालीगत हमला है। यूनियन ने इस कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए अपनी इकाइयों से केंद्र सरकार के निर्णय के खिलाफ विरोध करने का आह्वान किया है।