जलवायु परिवर्तन से समूचे विश्व में मिट्टी की नमी में गिरावट, स्थायी हो सकती है नमी में यह कमी

शोध में 21वीं सदी के दौरान मिट्टी की नमी के स्तर में गिरावट का संकेत मिलता है। वर्ष 2000 से 2002 के बीच नमी में तेज गिरावट शुरू हुई। इस अवधि के दौरान मिट्टी की नमी में लगभग 1,614 गीगाटन पानी की हानि हुई। 2002 से 2016 तक अतिरिक्त 1,009 गीगाटन की कमी आई।

जलवायु परिवर्तन से समूचे विश्व में मिट्टी की नमी में गिरावट, स्थायी हो सकती है नमी में यह कमी

21वीं सदी की शुरुआत से दुनियाभर में मिट्टी की नमी के स्तर में चिंताजनक गिरावट आई है, और अनुमान है कि इसकी भरपाई भी नहीं की जा सकती है। साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में यह बात कही गई है। पृथ्वी के जल चक्र में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले असर से यह प्रवृत्ति कृषि, पारिस्थितिक तंत्र और मानव समाज के लिए बड़े खतरे की ओर इशारा करती है।​

शोध में 21वीं सदी के दौरान मिट्टी की नमी के स्तर में गिरावट का संकेत मिलता है। वर्ष 2000 से 2002 के बीच नमी में तेज गिरावट शुरू हुई। इस अवधि के दौरान मिट्टी की नमी में लगभग 1,614 गीगाटन पानी की हानि हुई। 2002 से 2016 तक अतिरिक्त 1,009 गीगाटन की कमी आई। तुलनात्मक रूप से देखें तो ग्रीनलैंड की बर्फ पिघलने से 2002 से 2006 के बीच 900 गीगाटन पानी का नुकसान हुआ था। वर्ष 2021 तक मिट्टी की नमी के स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ और वर्तमान जलवायु परिस्थितियों में इसके होने की संभावना कम है।​

कार्बन ब्रीफ के साथ बातचीत में मेलबर्न विश्वविद्यालय में जल विज्ञान और रिमोट सेंसिंग विशेषज्ञ और अध्ययन के प्रमुख लेखक प्रोफेसर डोंग्रेयोल रयू ने इन निष्कर्षों की गंभीरता पर जोर देते हुए कहा, "हमने पिछले दो दशकों में मिट्टी की नमी में दो बार क्रमिक गिरावट देखी। हमने पहले यह प्रवृत्ति नहीं देखी थी, इसलिए यह बहुत चिंताजनक है।"

अध्ययन में मिट्टी की नमी में लगातार हो रही कमी के लिए दो मुख्य कारकों की पहचान की गई है- वर्षा पैटर्न में परिवर्तन और बढ़ती इवैपोरेटिव डिमांड (evaporative demand)। इवैपोरेटिव डिमांड भूमि, वनस्पति और सतही जल से नमी निकालने की क्षमता को दर्शाती है। जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ता है, वाष्पीकरण दर बढ़ती है और मिट्टी और अधिक सूखने लगती है।​

प्रोफेसर रयू ने कहा, "हमें लगता है कि बढ़ते तापमान ने 21वीं सदी में जल भंडारण और मिट्टी की नमी में गिरावट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।"​ 2000 से 2002 के बीच देखी गई मिट्टी की नमी में प्रारंभिक तेज गिरावट कम वैश्विक वर्षा और बढ़ते वाष्पीकरण के संयोजन के कारण हुई। एक अन्य महत्वपूर्ण गिरावट 2015-2016 की अवधि के दौरान हुई, जो 2014-2016 की अल नीनो घटना से उत्पन्न सूखे के साथ मेल खाती है।​

मिट्टी की नमी में कमी के दूरगामी परिणाम हैं। मिट्टी में कम होती नमी सूखे की गंभीरता और आवृत्ति को बढ़ाती है। इससे मानव आबादी, पारिस्थितिक तंत्र और कृषि उत्पादकता प्रभावित होती है।​ इसके अलावा, अध्ययन से पता चलता है कि भूतल पर जल भंडारण में गिरावट ने 21वीं सदी की शुरुआत में वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 2000 से 2002 के बीच मिट्टी की नमी कम होने के कारण वैश्विक औसत समुद्र स्तर में लगभग 2 मिमी वार्षिक वृद्धि हुई, जो उस अवधि के दौरान ग्रीनलैंड की बर्फ पिघलने से हुई वृद्धि से काफी अधिक थी।​ स्टडी के लिए अपनाए गए क्रॉस-वैलिडेशन दृष्टिकोण ने शोधकर्ताओं को मिट्टी की नमी में गिरावट की प्रामाणिकता की पुष्टि करने में सक्षम बनाया। 

भविष्य के अनुमान और सिफारिशें
अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है कि यदि वर्तमान गर्मी की प्रवृत्तिय जारी रहती है, तो मिट्टी की नमी में देखे गए परिवर्तन स्थायी हो सकते हैं। इसमें बदलती जलवायु में मिट्टी में नमी बढ़ाने के लिए ऐसे मॉडल विकसित करने को जरूरी बताया गया है जिससे भूमि की सतह में सुधार किया जा सके।

सूखे को अक्सर धीमी आपदा कहा जाता है। यह धीरे-धीरे विकसित होता है लेकिन उसका प्रभाव लंबे समय तक रहता है और गंभीर होता है। प्रोफेसर रयू ने चेतावनी दी, "बाढ़ और हीटवेव के विपरीत, सूखा बहुत धीरे-धीरे आता है। इसके प्रभाव लंबे और विलंबित होते हैं। हमें पहले से तैयार रहना चाहिए क्योंकि एक बार सूखा आने पर इसका प्रभाव लंबे समय तक बना रह सकता है।"

इस अध्ययन के निष्कर्ष एक महत्वपूर्ण चेतावनी की तरह हैं, जो पृथ्वी के जल चक्र पर जलवायु परिवर्तन के गहरे प्रभाव को उजागर करते हैं। यह अध्ययन वैश्विक स्तर पर घटती मिट्टी की नमी से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए उचित उपायों की तत्काल आवश्यकता पर बल देता है।

Subscribe here to get interesting stuff and updates!