एक्वाकल्चर: पांच प्रमुख पहल जो भारतीय सीफूड सेक्टर में ला सकती हैं बदलाव

समुद्र में ज्यादा मछली पकड़ने और जलवायु परिवर्तन के दबाव के कारण, जलीय कृषि एक सतत विकल्प के रूप में उभर रही है। लेकिन भारतीय एक्वाकल्चर में अब भी बुनियादी चुनौतियां मौजूद हैं जिन्हें दूर कर सीफूड सेक्टर को बढ़ावा दिया जा सकता है

एक्वाकल्चर: पांच प्रमुख पहल जो भारतीय सीफूड सेक्टर में ला सकती हैं बदलाव

भारत के लिए यह गर्व का विषय है कि हम जलीय कृषि (एक्वाकल्चर) - यानी मछली, झींगा और अन्य जलीय जीवों के भूमि-आधारित पालन में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल हैं। आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि उत्पादक, तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक और चौथा सबसे बड़ा सीफूड निर्यातक है। यह वैश्विक सीफूड उत्पादन में लगभग 10% का योगदान करता है। लेकिन यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है; यह उन लाखों किसानों और परिवारों की आजीविका का प्रश्न भी है जो देश के ग्रामीण और तटीय क्षेत्रों में इस उद्योग पर निर्भर हैं।

समुद्र में ज्यादा मछली पकड़ने और जलवायु परिवर्तन के दबाव के कारण, जलीय कृषि एक सतत विकल्प के रूप में उभर रही है। वैश्विक स्तर पर देखें तो हर दो में से एक मछली का पालन भूमि पर किया जाता है, और भारत में यह संख्या हर तीन में से दो मछली तक पहुंच चुकी है। यह ट्रेंड बताता है कि हम केवल प्रतिस्पर्धा में बने नहीं हैं, बल्कि अग्रणी भी हैं। इसके अलावा, भारत का सीफूड निर्यात लगभग आठ अरब डॉलर का है, जिससे जलीय कृषि हमारी अर्थव्यवस्था के सबसे तेजी से उभरते क्षेत्रों में से एक बन गई है।

इन उपलब्धियों के बावजूद, भारतीय जलीय कृषि क्षेत्र अब भी कुछ बुनियादी चुनौतियों से जूझ रहा है। किसानों को कम उत्पादकता, अधिक उत्पादन लागत, तालाब प्रबंधन में अक्षमता और व्यापक बीमारियों के प्रकोप जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसका असर उनके मुनाफे पर पड़ता है। भारतीय जलीय कृषि की एक दिलचस्प विशेषता यह है कि इसका ध्यान दो अलग-अलग बाजारों पर केंद्रित है: एक तरफ झींगा पालन मुख्य रूप से निर्यातोन्मुख है। भारत में उत्पादित अधिकांश झींगे अमेरिका, यूरोप, चीन, जापान, वियतनाम आदि बाजारों में भेजे जाते हैं। दूसरी तरफ, मछली पालन मुख्य रूप से घरेलू बाजार के लिए है। इसमें कतला, रोहू, मिरगल, तिलापिया और रूपचंद जैसी प्रजातियां शामिल हैं। हर सेगमेंट के सप्लाई चेन की अलग चुनौतियां हैं। उदाहरण के लिए, झींगा क्षेत्र में, पिछले पांच वर्षों से फार्म गेट कीमतें स्थिर बनी हुई हैं, जबकि उत्पादन लागत 30-40% तक बढ़ चुकी है। इसका मतलब है कि झींगा किसान मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा खो रहे हैं।

इतना ही नहीं, विभिन्न स्तरों पर अक्षम मार्केट लिंकेज उद्योग को आगे बढ़ने से रोक रहे हैं। जैसे-जैसे हम उत्पादन दोगुना करने और दूसरी नीली क्रांति की ओर बढ़ रहे हैं, यह स्पष्ट है कि इन बुनियादी चुनौतियों पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है। अच्छी बात यह है कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना जैसी स्कीमों के माध्यम से सरकार नए इन्फ्रास्ट्रक्चर और अनुसंधान में निवेश कर रही है।

1. यह बदलाव का समय है: परंपरा से तकनीक की ओर
वैश्विक मत्स्य उद्योग में अपनी स्थिति बनाए रखने और अगले विकास चरण का समर्थन करने के लिए हमें कुछ महत्वपूर्ण दूरियों को पाटने की आवश्यकता है, जिसमें डिजिटलीकरण सबसे अहम है। अन्य उद्योगों ने समय रहते टेक्नोलॉजी को अपनाया, लेकिन मत्स्य पालन उद्योग इस बदलाव में पीछे रह गया। जिससे उत्पादन, उपभोग और निर्यात में हमारी वास्तविक क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो पाया। लेकिन अब हमारे पास जनरेटिव एआई और भू-स्थानिक (जियोस्पेशियल) टूल्स जैसी उभरती तकनीकों को अपनाने का सुनहरा अवसर है, जो किसानों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने, समय रहते बीमारियों का पता लगाने और लागत नियंत्रण जैसी रोजमर्रा की चुनौतियों को हल करने में मदद कर सकती हैं। ऐसी तकनीकों को अपनाने से उत्पादन और उसके बाद की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, दक्षता और पूर्वानुमान क्षमता आएगी। इससे कई पुरानी समस्याओं का समाधान हो सकता है।

निश्चित रूप से नई तकनीक को अपनाने की भी अपनी चुनौतियां हैं, खासकर ऐसे क्षेत्र में जहां पारंपरिक तरीके हावी हैं। तकनीक प्रदाताओं को तीन प्रमुख चुनौतियों का समाधान निकालना होगा। पहली चुनौती सीखने की कठिनाई है। छोटे पैमाने पर काम करने वाले लाखों मत्स्य किसानों को ऐसे तकनीकी समाधान चाहिए जो आसान हों और समझने व उपयोग में सरल हों। दूसरी चुनौती लागत और व्यावहारिकता की है। सिर्फ शानदार तकनीक बनाना पर्याप्त नहीं है; असली सफलता इसमें है कि इसे किफायती और हर किसान की पहुंच में कैसे बनाया जाए। यही किफायत तकनीक को खेल बदलने वाला बना सकती है। तीसरी चुनौती वितरण और अंतिम छोर तक पहुंच की है। इसमें यह सुनिश्चित करना है कि ये समाधान वास्तव में जलीय कृषि केंद्रों तक पहुंचें और किसानों को इसका लाभ मिले। 

2. स्थानीयता पर जोर: जो उगाएं, उसे सराहें
जब तकनीक को अपनाने से जलीय कृषि क्षेत्र में नए अवसर खुल रहे हैं, हमें एक और महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत है। वह है घरेलू सीफूड खपत। यह सच है कि भारत का सीफूड निर्यात लगातार बढ़ रहा है और हर साल नए रिकॉर्ड बना रहा है। लेकिन क्या हमने खुद से यह सवाल किया है कि हम घरेलू बाजार पर पर्याप्त ध्यान दे रहे हैं या नहीं। भारत का झींगा निर्यात सराहनीय है, लेकिन यह पूरी तस्वीर नहीं है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में उतार-चढ़ाव आने पर निर्यात पर निर्भरता हमें कमजोर बना देती है। वैश्विक कीमतों में गिरावट का असर किसानों से लेकर निर्यातकों तक सभी पर पड़ता है, और हमारे त्वरित समाधान अक्सर अस्थायी पैबंद मात्र होते हैं। हमें न केवल निर्यात बल्कि घरेलू खपत को भी बढ़ावा देने के लिए रणनीति बनानी होगी, ताकि हमारा जलीय कृषि क्षेत्र और मजबूत हो सके।

असल बात यह है कि हम अपने झींगा (श्रिम्प) का निर्यात करने पर इतने केंद्रित हैं कि हम अपने ही देश में एक बड़े अवसर को नजरअंदाज कर रहे हैं। यह असंतुलन बाजार में अस्थिरता पैदा करता है और जब वैश्विक कीमतें गिरती हैं, तो हमें नुकसान उठाना पड़ता है। भारत में बड़ी संख्या में मांसाहारी लोग हैं, हमारा घरेलू बाजार बहुत विशाल है, लेकिन इसका पूरा उपयोग नहीं किया जा रहा है। दूसरी ओर, घरेलू खपत को बढ़ावा देने से बाजार में स्थिरता आएगी, कीमतों को नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी और हमारे किसानों के लिए एक अतिरिक्त सुरक्षा कवच तैयार होगा।

हमें इनोवेटिव मार्केटिंग प्रयासों और मूल्यवर्धन (वैल्यू एडिशन) पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है- कुछ वैसा ही जैसा हमने पोल्ट्री उद्योग के विकास में देखा है। अब समय आ गया है कि हम मूल्यवर्धन को बढ़ावा दें, उत्पादों में नवाचार करें और यह सुनिश्चित करें कि हमारा सीफूड शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ताओं के लिए सुलभ और आकर्षक बने।

यदि हम निर्यात के साथ-साथ अपने घरेलू बाजार को भी मजबूत करते हैं, तो हम अपने उद्योग को अंतरराष्ट्रीय झटकों से बचा सकते हैं और दीर्घकालिक स्थिरता की नींव रख सकते हैं। इस विषय पर उद्योग के अग्रणी लोग चर्चा कर रहे हैं, और जल्द ही हमें ऐसे ठोस प्रयास देखने को मिलेंगे जिससे झींगा हमारे घरों और भोजन की थालियों तक पहुंचेगा।

3. बायोटेक्नोलॉजी के जरिए एक्वाकल्चर को अपग्रेड करना
घरेलू खपत बढ़ाने के साथ अब समय आ गया है कि हम जलीय कृषि के भविष्य के लिए एक और महत्वपूर्ण कारक, बायोटेक्नोलॉजी को अपनाएं। जैसे-जैसे हमारा उद्योग विकसित हो रहा है, हमें नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। केवल पारंपरिक तरीकों पर निर्भर रहना अब पर्याप्त नहीं है। हम ऐसे दौर में हैं जहां विज्ञान आधारित समाधान न केवल उत्पादन क्षमता को बढ़ा सकते हैं, बल्कि घातक बीमारियों से निपटने, जैव सुरक्षा में सुधार और तालाब प्रबंधन को बेहतर बनाने में भी मदद कर सकते हैं। यह भारत में जलीय कृषि की दीर्घकालिक सस्टेनेबिलिटी और मजबूती के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

बायोटेक्नोलॉजी को अपनाना विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता है। सही इनोवेशन के साथ हम किसानों की सबसे बड़ी समस्याओं का समाधान निकाल सकते हैं। हालांकि इस क्षेत्र में अब भी एक बड़ा अंतर बना हुआ है- एक्वाकल्चर में बायोटेक्नोलॉजी पर किया गया शोध काफी हद तक अपर्याप्त है। कई बायोटेक फॉर्मूलेशन में वर्तमान चुनौतियों के प्रभावी समाधान के लिए अपडेट की जरूरत है। साथ ही, बायोटेक्नोलॉजिस्ट में एक्वाकल्चर की विशिष्ट आवश्यकताओं को लेकर जागरूकता की कमी है। यह दर्शाता है कि इस क्षेत्र में अधिक रुचि और शोध को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

यदि हम आधुनिक शोध और जलीय कृषि के रोजमर्रा के वास्तविक अनुभवों के बीच की खाई को पाट सकें, तो हमारे पास सीफूड उत्पादन के तरीकों को पूरी तरह नया रूप देने का अवसर होगा। नए दृष्टिकोण और बेहतर फॉर्मूलेशंस के साथ बायोटेक्नोलॉजी हमारे एक्वाकल्चर क्षेत्र को अधिक विश्वसनीय और भविष्य के लिए तैयार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

4. तालाब से थाली तक: पारदर्शिता की यात्रा
अब बात करते हैं एक और महत्वपूर्ण पहलू ट्रेसेबिलिटी की। क्या आपने कभी सोचा है कि आपका सीफूड कहां से आता है? वह किस तालाब या समुद्र से लिया गया है, आपकी थाली तक पहुंचने में उसने कौन-सा सफर तय किया, और क्या उसे टिकाऊ तरीके से पाला या पकड़ा गया? ज्यादातर लोगों का जवाब ‘नहीं’ होगा। ऐसा इसलिए नहीं कि हमें इसकी परवाह नहीं है, बल्कि इसलिए कि सीफूड उद्योग में वर्षों से इस स्तर की पारदर्शिता की कमी रही है।

ट्रेसबिलिटी आज अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे बड़े आयातक देशों में चर्चा का प्रमुख विषय है। वहां उपभोक्ता यह प्रमाण चाहते हैं कि जो खाद्य सामग्री वे खरीद रहे हैं, वह सतत और सुरक्षित है। लेकिन सीफूड सप्लाई चेन आज भी अत्यधिक विखंडित है। कई इंटरमीडियरी, अस्थिर मानकों और महत्वपूर्ण डेटा को डिजिटल रूप में संकलित करने में आवश्यक उपकरणों की कमी के कारण ट्रेसेबिलिटी का स्तर अब भी कमजोर बना हुआ है। इस कमी के चलते खाद्य सुरक्षा जोखिम, गलत लेबलिंग और सस्टेनेबिलिटी संबंधी चिंताएं बनी रहती हैं।

हाल के वर्षों में सीफूड आयात करने वाले देशों ने ट्रेसेबिलिटी को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत बदलाव किए हैं। हमारे अपने उद्योग में भी यह सुनिश्चित करने के प्रयास तेज हो गए हैं कि हमारा सीफूड अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करे और पारदर्शिता की बढ़ती मांग को पूरा करे। वैश्विक सीफूड बाजार में जैसे-जैसे ट्रेसेबिलिटी को प्राथमिकता मिल रही है, उपभोक्ताओं को मूल्यों के अनुरूप उत्पाद चुनने का अधिक अधिकार मिलेगा। जल्द ही, हम ट्रेसेबिलिटी पर आधारित नए व्यावसायिक मॉडल उभरते हुए देखेंगे, जो टिकाऊ और पारदर्शी सीफूड उद्योग की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।

5. सीफूड वैल्यू चेन का डीकार्बोनाइजेशन: स्थिरता और दक्षता का संगम
जैसे-जैसे हम उत्पादन को दोगुना करने, उत्पादकता बढ़ाने, बीमारियों को कम करने और लाभ मार्जिन बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं, हमारे सामने एक और उतना ही महत्वपूर्ण लक्ष्य है- सीफूड मूल्य श्रृंखला का डीकार्बोनाइजेशन। यह सिर्फ उत्पादन बढ़ाने की बात नहीं है, बल्कि इसे हमारे पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ तरीके से करने की जरूरत है।

सीफूड प्रोटीन का एक बेहतरीन स्रोत है, जिसका फीड कन्वर्जन रेशियो (एफसीआर) लगभग 1.2:1 है। अर्थात 1.2 किलोग्राम चारा खिलाने पर एक किलोग्राम बायोमास प्राप्त होता है। अगर इसकी तुलना चिकन, बीफ या पोर्क से की जाए, तो अंतर स्पष्ट हो जाता है। जैसे-जैसे वैश्विक जनसंख्या आठ अरब के करीब पहुंच रही है, हमारी खाद्य प्रणालियों पर दबाव तेजी से बढ़ रहा है। चुनौती केवल अधिक उत्पादन करने की नहीं है, बल्कि इसे स्वच्छ और हरित तरीके से करने की भी है।

वैश्विक खाद्य क्षेत्र में सतत विकास की लहर को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सीफूड इंडस्ट्री में कार्बन उत्सर्जन पर अध्ययन अभी प्रारंभिक चरण में हैं, क्योंकि जलीय कृषि में डेटा संग्रह की प्रभावी प्रणालियों की कमी है। आखिरकार, आप उसी चीज को नियंत्रित कर सकते हैं, जिसे आप माप सकते हैं।

सीफूड मूल्य श्रृंखला को डीकार्बोनाइज करने के लिए हमें व्यापक शोध की आवश्यकता है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि उत्सर्जन कहां हो रहा है और उन्हें कम करने के सटीक समाधान विकसित किए जा सकें। अब समय आ गया है कि सभी हितधारक मिलकर इस दिशा में प्रयास करें, जिससे सीफूड उत्पादन जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में योगदान दे और नेट जीरो लक्ष्यों को तेजी से हासिल करने में मदद करे। इस मिशन के साथ, हम सीफूड को न केवल एक प्रभावी प्रोटीन स्रोत बना सकते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सतत विकल्प भी सुनिश्चित कर सकते हैं।

एक्वाकनेक्टः हर तरह से जलीय कृषि को सशक्त बनाने का लक्ष्य
जलीय कृषि के भविष्य पर चर्चा के साथ यह समझना महत्वपूर्ण है कि निजी क्षेत्र भी इसकी वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक इंटीग्रेटेड सीफूड प्लेटफॉर्म के रूप में एक्वाकनेक्ट सभी हितधारकों के लिए टेक्नोलॉजी आधारित समाधान प्रदान करता है, जिससे कुशलतापूर्वक जुड़ाव संभव हो पाता है। हम किसानों को गुणवत्तापूर्ण फार्म इनपुट तक पहुंचने और उत्पादन को व्यापक एक्वा-पार्टनर नेटवर्क के माध्यम से बेचने में मदद करते हैं, जिससे वे सीधे सीफूड खरीदारों से जुड़कर अपनी उपज का बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकें।

यह प्रयास सिर्फ घरेलू मूल्य श्रृंखला तक सीमित नहीं है। वैश्विक व्यापार के महत्व को समझते हुए हमने एक्वाकनेक्ट ग्लोबल भी लॉन्च किया है। यह एंड-टू-एंड सीफूड प्लेटफॉर्म है, जिसे भारतीय उत्पादकों और अमेरिका, चीन, यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों के अंतरराष्ट्रीय खरीदारों के बीच की खाई को पाटने के लिए डिजाइन किया गया है। जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में डॉ. ग्रो के माध्यम से हमारा प्रयास है, जिसे हमने हर किसान के लिए जैव प्रौद्योगिकी को उपयोगी बनाने के विजन के साथ विकसित किया है। एक मजबूत आरएंडडी आधार के साथ, हम किफायती और उन्नत जैव प्रौद्योगिकी समाधान विकसित कर रहे हैं।

हमारी सबसे बड़ी ताकतों में से एक हमारा सक्षम फीडबैक लूप है। हम किसानों के साथ निरंतर, प्रतिदिन संपर्क में रहते हैं, उनके अनुभव को प्राप्त करते हैं और उन्हें तेजी से हमारे प्रोडक्ट डेवलपमेंट में शामिल करते हैं। इस तरह प्रयोगशाला में विकसित इनोवेशन पहले से कहीं अधिक तेजी से खेतों तक पहुंच रहे हैं। 

डिजिटाइजेशन के मोर्चे पर हम एआई और भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके एक अवरोध-रहित और स्केलेबल दृष्टिकोण अपना रहे हैं। हमारे एक्वासैट मॉडल यह बताते हैं कि कोई वाटर बॉडी मछली पालन या झींगा पालन के लिए है तो उनके कल्चर नमें कितना समय लगेगा। यह जानकारी मूल्य श्रृंखला में पारदर्शिता, पूर्वानुमान क्षमता और दक्षता लाती है, जिससे फार्म इनपुट की मांग और उत्पादन आपूर्ति का पूर्वानुमान संभव होता है।

हम ब्लूटिक (BluTik) प्लेटफॉर्म के माध्यम से सीफूड क्वालिटी इंस्पेक्शन में पारदर्शिता लाते हैं। यह उद्योग में पहली बार शुरू की गई पहल है, जो बिना छेड़छाड़ के गुणवत्ता निरीक्षण रिपोर्ट प्रदान करती है। इसमें रीयल-टाइम जियो-टैगिंग और टाइमस्टैम्प शामिल होते हैं। इससे खरीदारों को सीफूड की गुणवत्ता पर पूर्ण विश्वास मिलता है। ब्लूटिक के साथ सीफूड स्वयं अपनी गुणवत्ता का प्रमाण देता है, जिससे किसी भी तरह की अस्पष्टता की कोई संभावना नहीं रहती।

और भी बहुत कुछ हैं। एक्वासैट की क्षमता के माध्यम से हम एक क्लाइमेट-टेक सीफूड प्लेटफॉर्म विकसित कर रहे हैं, जो कार्बन उत्सर्जन को मापता है और नेट-जीरो लक्ष्यों को हासिल करने की रणनीति बनाने में मदद करता है। यह प्रयास सीफूड उद्योग को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में शामिल करने में मदद करेगा। संक्षेप में, एक्वाकनेक्ट का मिशन लगातार प्रयोग करना और निरंतर विकसित होकर सीफूड क्षेत्र को पुनः परिभाषित करना है। इसे फार्म से लेकर वैश्विक बाजार तक अधिक कुशल, पारदर्शी और पूर्वानुमान योग्य बनाना है। 

(मुरुगन चिदंबरम एक्वाकनेक्ट में डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन प्रमुख हैं)

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