जी20 तकनीकी कार्यशालाः जलवायु अनुकूल कृषि के लिए मिलकर प्रयास करने पर वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं ने किया मंथन
कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (डेयर), कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा हैदराबाद में “जलवायु समुत्थान कृषि” पर 4-6 सिंतबर तक तीन दिवसीय जी20 तकनीकी कार्यशाला का आयोजन किया गया है। कार्यशाला का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों पर चर्चा करना और उन्हें उजागर करने के लिए दुनिया भर के विशेषज्ञों को एक साथ लाना है।
कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (डेयर), कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा हैदराबाद में “जलवायु समुत्थान कृषि” पर 4-6 सिंतबर तक तीन दिवसीय जी20 तकनीकी कार्यशाला का आयोजन किया गया है। कार्यशाला का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों पर चर्चा करना और उन्हें उजागर करने के लिए दुनिया भर के विशेषज्ञों को एक साथ लाना है। इस दौरान जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने में देशों के कौशल और दक्षताओं को बढ़ाने के लिए सहयोग और सूचनाओं के आदान-प्रदान पर जोर दिया जाएगा। कार्यशाला में वैज्ञानिक उन नए समाधानों की सूची बनाएंगे जो कृषि खाद्य प्रणालियों में अनिश्चितता को कम करने और चुनौतियों का समाधान करने के लिए आवश्यक हैं।
कार्यक्रम का पहला दिन “जलवायु समुत्थान कृषि अनुसंधान आवश्यकताओं और नवोन्मेष” विषय पर केंद्रित था, जिसमें प्रमुख वक्ताओं ने कृषि में समुत्थान प्राप्त करने के लिए अपने-अपने देशों में किए जा रहे अनुभवों को साझा किया। इस कार्यक्रम में जी20 के सदस्य देशों, आमंत्रित-अतिथि देशों के सदस्य और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों, कृषि मंत्रालय और अन्य मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों सहित लगभग 100 प्रतिनिधियों ने कृषि अनुसंधान के विभिन्न मुद्दों, मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन और वैश्विक संदर्भ में कृषि के सतत विकास के लिए अन्य तकनीकों और तरीकों पर विचार-विमर्श किया।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि कृषि काफी संवेदनशील क्षेत्र है और यह जलवायु परिवर्तन से काफी प्रभावित है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को हम सभी पहले से ही अनुभव कर रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि इस कार्यशाला से निकली सिफारिशें जलवायु-समुत्थान कृषि प्राप्त करने की दिशा प्रदान करेंगी।
डेयर सचिव और आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि भारत में कृषि जलवायु परिवर्तन और परिवर्तनशीलता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। हाल के वर्षों में प्रतिकूल जलवायु की आवृत्ति में वृद्धि हुई है जिसकी वजह से भारत सहित दुनियाभर में कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा के लिए जोखिम बढ़ गया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने में आईसीएआर के प्रयास बहुत महत्वपूर्ण हैं।
डेयर की अतिरिक्त सचिव अलका नांगिया अरोड़ा ने कहा कि जलवायु संबंधी जोखिम सूखा, बाढ़ और वर्षा में उच्च अंतर-मौसम परिवर्तनशीलता की घटनाओं के रूप में प्रकट होता है। इसलिए जोखिम - जलवायु और जोखिम के अन्य रूप -शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं के लिए एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है। आईसीएआर के उप-महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन) और जलवायु-समुत्थान कृषि के तकनीकी कार्यशाला के अध्यक्ष एस. के. चौधरी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता पैदा करने और किसानों और अन्य हितधारकों की क्षमता का निर्माण करने के लिए भारत के अति-संवेदनशील जिलों में जलवायु परिवर्तनशीलता से निपटने के लिए स्थान-विशिष्ट जलवायु समुत्थान प्रौद्योगिकियों (सीआरटी) का प्रदर्शन किया जा रहा है। इसके अलावा, यह सुनिश्चित किया गया कि इस कार्यशाला का विचार-विमर्श कृषि क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को व्यापक रूप से संबोधित करने के लिए अनुसंधान और विकास मुद्दों के लिए एक रोड मैप प्रदान करेगा।
हैदराबाद में हो रहे इस तीन दिवसीय कार्यक्रम के आगामी तकनीकी सत्रों में जलवायु समुत्थान कृषि को उन्नत करने के मामले के अध्ययन और अनुभव, जलवायु समुत्थान कृषि के लिए नीति, वित्त और संस्थागत आवश्यकताओं पर चर्चा की जाएगी।