आरबीआई ने आखिर क्यों खुदरा महंगाई के पूर्वानुमान में नहीं की ज्यादा कटौती
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास को लगता है कि बढ़ती मुद्रास्फीति के दृष्टिकोण पर करीबी और निरंतर निगरानी आवश्यक है। रिजर्व बैंक का लक्ष्य खुदरा महंगाई को 4 फीसदी के स्तर पर लाना है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने हालांकि दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की है जो खरीफ फसलों के लिए शुभ संकेत है। मगर अल-नीनो के प्रभाव को लेकर अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है। विशेषज्ञों का भी कहना है कि भू-राजनीतिक तनाव, मानसून को लेकर अनिश्चितता और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमोडिटी की कीमतों, खासकर चीनी, चावल और कच्चे तेल की कीमतों और वैश्विक वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव से महंगाई बढ़ने का जोखिम अभी भी बना हुआ है।
अल-नीनो की वजह से मानसून की अनिश्चितता को देखते हुए रिजर्व बैंक को आने वाले महीनों में खाद्य महंगाई के फिर से भड़कने का अंदेशा है। शायद इसलिए उसने जून की अपनी नीतिगत समीक्षा में वित्त वर्ष 2023-24 के खुदरा महंगाई के अनुमान में सिर्फ 10 आधार अंक की कटौती की है। जबकि अप्रैल में खुदरा महंगाई घटकर 4.7 फीसदी रह गई और मई में 4.5 फीसदी से कम रहने की उम्मीद है। मई के आंकड़े 12 जून को आएंगे। थोक महंगाई तो जनवरी से 5 फीसदी से नीचे चल रही है। अप्रैल में यह शून्य से नीचे -0.92 फीसदी थी। इसके बावजूद रिजर्व बैंक ने अपने पूर्वानुमान 5.2 फीसदी में सिर्फ 10 आधार अंक की कटौती कर इसे 5.1 फीसदी किया है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास को लगता है कि बढ़ती मुद्रास्फीति के दृष्टिकोण पर करीबी और निरंतर निगरानी आवश्यक है। रिजर्व बैंक का लक्ष्य खुदरा महंगाई को 4 फीसदी के स्तर पर लाना है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने हालांकि दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की है जो खरीफ फसलों के लिए शुभ संकेत है। मगर अल-नीनो के प्रभाव को लेकर अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है। विशेषज्ञों का भी कहना है कि भू-राजनीतिक तनाव, मानसून को लेकर अनिश्चितता और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमोडिटी की कीमतों, खासकर चीनी, चावल और कच्चे तेल की कीमतों और वैश्विक वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव से महंगाई बढ़ने का जोखिम अभी बना हुआ है।
वित्त वर्ष 2023-24 की अपनी दूसरी नीतिगत समीक्षा में आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में खुदरा महंगाई 5.1 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। आरबीआई के अनुमान के मुताबिक, पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में खुदरा महंगाई की दर 4.6 फीसदी, दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में 5.2 फीसदी, तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) में 5.4 फीसदी और चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में 5.2 फीसदी रह सकती है। इसे देखते हुए ही आरबीआई ने ब्याज दरों (रेपो रेट) को 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया है।
शक्तिकांत दास ने नीतिगत समीक्षा में 4 फीसदी खुदरा महंगाई के प्राथमिक लक्ष्य की ओर बढ़ने पर जोर दिया है। ऐसे में चालू कैलेंडर वर्ष (2023) में ब्याज दरों में कमी की उम्मीद कम ही नजर आ रही है। अस्थिर वैश्विक आर्थिक परिदृश्य और घरेलू मुद्रास्फीति के जोखिम के बीच यह समझदारी भरा फैसला है कि आरबीआई ने इंतजार करो और देखो की रणनीति का पालन किया है। एक अर्थशास्त्री कहते हैं, "विकास के मोर्चे पर चिंता और खुदरा महंगाई के 4 फीसदी से ऊपर रहने की संभावना के साथ हम 2023 में नीतिगत दरों में यथास्थिति की उम्मीद करते हैं।"
हालांकि, महंगाई का स्तर अनुकूल हो गया है और वास्तविक दरों के सकारात्मक रहने का अनुमान है। इसके बावजूद आरबीआई ने कहा है कि महंगाई की दर अभी उस स्तर तक नहीं पहुंची है जहां ब्याज दरों में कटौती की संभावना बनती है। एक अन्य अर्थशास्त्री का कहना है कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी की वजह से महंगाई की दर लगातार घट रही है और कमोडिटी की कीमतों में भारी गिरावट आई है। दुनिया भर में बाधित आपूर्ति फिर से अपनी राह पकड़ चुकी है और सामान्य हो गई है। इसलिए कोयला, प्राकृतिक गैस, तेल, स्टील, गेहूं, लकड़ी, पॉम ऑयल, दूध आदि टिकाऊ वस्तुओं की कीमतों में गिरावट आई है। आरबीआई आने वाले समय में अपने रुख में बदलाव करेगा।
रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा है कि 2023-24 की दूसरी छमाही में मुद्रास्फीति औसत 5.3 फीसदी रहने की उम्मीद है। ऐसे में बहुत करीब से नजर रखना जरूरी है। तब तक अल-नीनो के नकारात्मक प्रभाव का भी स्पष्ट रूप से पता चल जाएगा। वर्तमान में आरबीआई ने मुद्रास्फीति के अनुमानों में सामान्य मानसून का अनुमान लगाया है। कुल मिलाकर यह समान रूप से संतुलित दृष्टिकोण वाली नीति मालूम होती है। हालांकि, वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए विशेषज्ञों का अनुमान है कि आरबीआई सतर्कता बरतना जारी रखेगा।