दालों के दाम अभी नियंत्रण में रहेंगे : क्रिसिल
भले ही कई राज्यों में मानसून की बारिश ने पिछले दिनों कहर बरपाया है, लेकिन इस साल दालों की खुदरा महंगाई में ज्यादा उतार-चढ़ाव होने की उम्मीद कम है। रिसर्च एजेंसी क्रिसिल ने अपनी हालिया रिपोर्ट में यह बात कही है। क्रिसिल रेटिंग्स ने अनुमान लगाया है कि दालों की महंगाई का अगला शिखर 6-7 महीने बाद देखने को मिल सकता है। पिछले साल मौसम में आए अचानक बदलाव की वजह से दालों का उत्पादन प्रभावित हुआ था जिसकी वजह से कीमतें बढ़ गईं।
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भले ही कई राज्यों में मानसून की बारिश ने पिछले दिनों कहर बरपाया है, लेकिन इस साल दालों की खुदरा महंगाई में ज्यादा उतार-चढ़ाव होने की उम्मीद कम है। रिसर्च एजेंसी क्रिसिल ने अपनी हालिया रिपोर्ट में यह बात कही है। क्रिसिल रेटिंग्स ने अनुमान लगाया है कि दालों की महंगाई का अगला शिखर 6-7 महीने बाद देखने को मिल सकता है। पिछले साल मौसम में आए अचानक बदलाव की वजह से दालों का उत्पादन प्रभावित हुआ था जिसकी वजह से कीमतें बढ़ गईं।
क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नीति निर्माताओं को मानसून के मिजाज और कीमतों पर इसके पड़ने प्रभाव पर ध्यान देना होगा। साथ ही कीमतों पर पड़ने वाले दबाव को सुधारने के लिए कार्रवाई करनी होगी। इस साल बारिश में देरी से दलहन की बुआई प्रभावित हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार द्वारा प्रमुख दालों के लिए 40 फीसदी खरीद सीमा को हटाने से किसानों को प्रोत्साहन मिल सकता है और बुआई का रकबा बढ़ाने में मदद मिल सकती है। इससे दालों की महंगाई भड़कने की आशंका कम है। पिछले साल मौसम के अनियमित मिजाज के कारण उत्पादन प्रभावित हुआ जिसका कीमतों पर कुछ असर पड़ सकता है।
दालों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने अरहर, उड़द और मसूर की सरकारी खरीद की सीमा 40 फीसदी को एक साल के लिए हटाने की घोषणा की है। इससे किसान अब अपनी पूरी उपज सरकार को बेच सकेंगे। इसके अलावा, सरकार ने दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में भी अच्छी खासी वृद्धि की है। इससे किसान दाल की बुवाई का रकबा बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
क्रिसिल ने कहा है कि सरकार ने अरहर और मसूर पर स्टॉक लिमिट लगाकर दालों की जमाखोरी रोकने सहित अन्य नीतिगत कदम उठाकर कीमतों को नियंत्रित रखने का कदम उठाया है। इससे भी दालों की महंगाई रोकने में मदद मिलेगी।