कितनी कारगर होंगी कृषि और ग्रामीण विकास की योजनाएं?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण की शुरुआत चार ‘शक्तिशाली’ विकास इंजनों की पहचान से की, जिनमें पहला कृषि है। यह लंबे समय से ध्यान दिया जाने वाला अपेक्षित विषय है। कृषि क्षेत्र के लिए प्रमुख घोषणाओं में ‘धन-धान्य कृषि योजना’ नामक एक नई प्रमुख योजना शामिल है, जिसे देश के 100 जिलों में लागू किया जाएगा।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण की शुरुआत चार ‘शक्तिशाली’ विकास इंजनों की पहचान से की, जिनमें पहला कृषि है। यह लंबे समय से ध्यान दिया जाने वाला अपेक्षित विषय है। कृषि क्षेत्र के लिए प्रमुख घोषणाओं में ‘धन-धान्य कृषि योजना’ नामक एक नई प्रमुख योजना शामिल है, जिसे देश के 100 जिलों में लागू किया जाएगा। ये जिले ‘कम उत्पादकता, मध्यम फसल इंटेंसिटी और औसत से नीचे के ऋण मानकों’ वाले होंगे। इस योजना का उद्देश्य है: 1) कृषि उत्पादकता बढ़ाना, 2) फसल विविधीकरण और सतत कृषि पद्धतियों को अपनाना, 3) पंचायत और ब्लॉक स्तर पर फसल कटाई के बाद भंडारण को बढ़ावा देना, 4) सिंचाई सुविधाओं में सुधार करना और 5) दीर्घकालिक एवं अल्पकालिक ऋण की उपलब्धता आसान बनाना। इस योजना में चुने गए 100 जिलों में 1.7 करोड़ किसानों को कवर किए जाने की ‘संभावना’ है। तो क्या इसका मतलब यह है कि ये 100 जिले पहले ही चुने जा चुके हैं?
मैं बुरी खबर से शुरुआत करता हूं। इस नई योजना के लिए बजट में कोई विशिष्ट धन आवंटित नहीं किया गया है! बजट में कोई ‘धन’ नहीं, लेकिन यह योजना 1.7 करोड़ किसानों का ‘धन’ बढ़ाएगी और अधिक ‘धान्य’ भी पैदा करेगी। यह थोड़ा रहस्यमय लगता है! सबसे उदार व्याख्या यही हो सकती है कि धन कृषि मंत्रालय की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) जैसी मौजूदा योजनाओं से आएगा। तो क्या यह योजना कई स्रोतों से वित्तपोषित होगी, जो संभवतः मिशन मोड में समन्वित होकर इन 100 जिलों में कार्यान्वित की जाएगी? देखते हैं कि यह कैसे आगे बढ़ती है। ऐसा प्रयास नौकरशाही की उलझनों में फंस सकता है! यह मानते हुए कि यह योजना 100 जिलों में विकास का एक शक्तिशाली इंजन बनेगी और इसके लिए धन की कमी नहीं होगी, आइए आगे के एक संभावित रास्ते पर विचार करें।
यह योजना मुख्य रूप से 2007 में शुरू किए गए सफल ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन’ के सिद्धांतों पर आधारित प्रतीत होती है। इस मिशन का लक्ष्य उन पिछड़े जिलों पर केंद्रित था, जहां खाद्यान्न (मुख्य रूप से चावल और गेहूं) की अधिक उत्पादकता की संभावना थी। इस योजना को 5 वर्षों में 5000 करोड़ रुपये की निधि मिली थी। संक्षेप में कहें तो मिशन के तहत लागू लक्षित कदमों के कारण खाद्यान्न उत्पादन में 3.4 करोड़ टन की वृद्धि हुई, जबकि लक्ष्य दो करोड़ टन का था। यह 4500 करोड़ रुपये की लागत से हासिल किया गया, जो निर्धारित बजट से 500 करोड़ रुपये कम था (स्रोत: कृषि मंत्रालय)।
धन-धान्य कृषि योजना ‘कम संसाधन’ वाले जिलों पर केंद्रित है। जो कम उत्पादकता, मध्यम फसल इंटेंसिटी और औसत से नीचे के ऋण मानकों के आधार पर चुने गए हैं। इनमें से अधिकांश जिले वर्षा आधारित क्षेत्रों में होंगे। दृष्टिकोण सही है, लेकिन मिशन के घटक क्या होंगे? क्या यह योजना किसी विशेष फसल पर केंद्रित होगी, या फिर इसमें कई फसलों पर फोकस किया जाएगा? प्रत्येक जिले की अपनी भौगोलिक और आर्थिक चुनौतियां होती हैं। योजना के डिजाइन में इस भिन्नता को समायोजित करना होगा और इसे संचालन स्तर पर इनोवेशन की गुंजाइश देनी होगी। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और राष्ट्रीय बागवानी मिशन से मिले सबक उपयोगी साबित हो सकते हैं। पहले बताए गए पांच घटक योजना की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन्हें सार्थक तरीके से संयोजित करना भी एक चुनौती होगी।
सिंचाई सुविधाओं में सुधार और ऋण उपलब्धता बढ़ाने की पहल प्रत्यक्ष सरकारी हस्तक्षेप वाली हैं और इन्हें तुरंत शुरू किया जा सकता है। लेकिन अन्य तीन घटकों को साथ लाने के लिए एक मजबूत जुड़ाव की आवश्यकता होगी। आमतौर पर उत्पादकता बढ़ाने में अधिक उपज देने वाले बीज, बेहतर जल प्रबंधन और उर्वरक जैसे इनपुट का अधिक प्रयोग शामिल होते हैं। यही हरित क्रांति की पारंपरिक रणनीति रही। लेकिन इस दृष्टिकोण को सतत कृषि पद्धतियों और विविधीकरण के साथ जोड़ना कठिन होगा। यदि हरित क्रांति के सिद्धांतों को दोहराया जाता है, तो यह भविष्य में सस्टेनेबिलिटी की नई समस्याएं पैदा कर सकता है।
इसके अलावा, फसल विविधीकरण और भंडारण आपस में जुड़े हुए हैं। कोई भी अनाज भंडारगृह तेजी से बना सकता है, भले ही उस क्षेत्र को इसकी आवश्यकता हो या न हो। वे भर भी सकते हैं क्योंकि अच्छे भंडारण स्थलों की कमी है। लेकिन अगर बात जल्दी खराब होने वाली उपज की है, तो मामला बिगड़ सकता है। जल्दी खराब होने वाली फसलों के लिए भंडारण और प्री-प्रोसेसिंग सुविधाओं की कमी अधिक गंभीर समस्या है। तो क्या हम वापस जिला कृषि योजनाओं की ओर लौट रहे हैं? धन-धान्य कृषि योजना का डिजाइन एक संवेदनशील और कुशल टीम की मांग करता है और इसे लागू करने से पहले विभिन्न पक्षों के साथ व्यापक परामर्श की आवश्यकता होगी। सरकार को इस योजना को जल्दबाजी में शुरू करने से बचना चाहिए, ताकि यह ‘सबके लिए एक’ प्रकार की अव्यावहारिक योजना न बन जाए।
मैं धन-धान्य कृषि योजना में निम्नलिखित प्रमुख पहलुओं को देखना पसंद करता:
1)इन जिलों में किसानों की आय बढ़ाने की आवश्यकता का स्पष्ट उल्लेख,
2) किसानों को अधिक मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए मार्केटिंग/बाजार से जुड़ाव पर जोर और 3) कृषि आय बढ़ाने के लिए पशुपालन और मत्स्य पालन को शामिल करना। इन्हें अब भी योजना में जोड़ा जा सकता है। ये सभी घटक मौजूदा कार्यक्रमों से लिए जा सकते हैं, लेकिन इन्हें जिला स्तर पर समन्वित करने की आवश्यकता होगी।
बजट भाषण में ग्रामीण विकास के लिए 100 ‘कृषि जिलों’ के एक कार्यक्रम का भी उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है, “राज्यों के साथ साझेदारी में एक व्यापक बहु-क्षेत्रीय ग्रामीण समृद्धि और अनुकूलन कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। यह कौशल विकास, निवेश, टेक्नोलॉजी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाकर रोजगार की समस्या को दूर करेगा। लक्ष्य यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त अवसर उत्पन्न किए जाएं ताकि पलायन एक विकल्प हो, यह आवश्यकता न बने। यह कार्यक्रम ग्रामीण महिलाओं, युवा किसानों, ग्रामीण युवाओं, सीमांत और छोटे किसानों तथा भूमिहीन परिवारों पर केंद्रित होगा।”
“वैश्विक और घरेलू सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल किया जाएगा और बहुपक्षीय विकास बैंकों से उपयुक्त तकनीकी और वित्तीय सहायता प्राप्त की जाएगी। पहले चरण में 100 विकासशील कृषि-जिलों को शामिल किया जाएगा। यह कार्यक्रम निम्नलिखित पर केंद्रित होगा:
1) ग्रामीण महिलाओं के लिए उद्यम विकास, रोजगार और वित्तीय स्वतंत्रता को उत्प्रेरित करना;
2) युवा किसानों और ग्रामीण युवाओं के लिए नए रोजगार और व्यवसाय के सृजन में तेजी लाना;
3) उत्पादकता सुधार और भंडारण के लिए कृषि क्षेत्र की देखभाल और इसे आधुनिक बनाना, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के लिए; तथा
4) भूमिहीन परिवारों के लिए विविध अवसर उत्पन्न करना।”
यह योजना भी सही दिशा में है। लेकिन दुर्भाग्य से इसके लिए भी कोई अलग बजटीय प्रावधान नहीं किया गया है। धन-धान्य कृषि योजना की तरह इसके लिए भी धन संभवतः ग्रामीण विकास मंत्रालय की मौजूदा योजनाओं से आएगा।
वास्तविक प्रश्न जो अब भी अनुत्तरित है, वह यह है:
क्या धन-धान्य कृषि योजना में उल्लिखित 100 जिले वही हैं जो ‘ग्रामीण समृद्धि और अनुकूलन कार्यक्रम’ के 100 जिले हैं? ये 112 आकांक्षी जिलों से कैसे अलग हैं? क्या इनमें कोई ओवरलैप होगा? ओवरलैप होना बुरा नहीं है। प्रश्न यह है कि हमें ये दोनों सूचियां कब देखने को मिलेंगी? क्या यह 100 + 100 + 112 जिले हैं या फिर चयनित 200 से अधिक जिले होंगे जहां एक से अधिक कार्यक्रम चलेंगे? इनका समन्वय कौन करेगा? नीति आयोग? यदि दिशानिर्देश स्पष्ट हुए तो जिला स्तर पर समन्वय जिला मजिस्ट्रेट कर सकता है। लेकिन केंद्रीय स्तर पर कौन करेगा?
अच्छे इरादे से तीन कार्यक्रम कम संसाधन वाले जिलों के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इनके डिजाइन, कार्यान्वयन और निगरानी में गंभीर चुनौतियां हैं। फिलहाल हम केवल यही आशा कर सकते हैं कि ये सफल हों!
(लेखक भारत सरकार के कृषि एवं खाद्य मंत्रालय के पूर्व सचिव हैं)