समिति के बड़े कार्यक्षेत्र में एमएसपी के अलावा भी बहुत कुछ, गठित होने के साथ ही उठे सवाल
जिस तरह से संयुक्त किसान मोर्चा इस समिति का हिस्सा नहीं बनना चाहता है तो कहीं इस समिति का हश्र सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन कृषि कानूनों पर गठित एक्सपर्ट समिति की तरह तो नहीं हो जाएगा। वहीं किसानों की आय दोगुना करने के लिए गठित दलवई समिति की हजारों के पेज की सिफारिशें पहले से ही हैं
केंद्र सरकार द्वारा जून 2020 में लाये गये तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का हल निकालने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक एक्सपर्ट कमेटी गठित की थी। समिति की रिपोर्ट आंदोलन समाप्त होने के बाद सार्वजनिक हुई और उसके साथ ही लोग उसे भूल गये। अब सरकार ने 18 जुलाई को कृषि से जुड़े मुद्दों पर एक समिति गठित करने की जानकारी गजट में प्रकाशित की है जो 12 जुलाई की कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की अधिसूचना है। यह 29 सदस्यीय समिति है। किसान आंदोलन को समाप्त करने की शर्त के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर एक समिति गठित करने की बात सरकार ने कही थी। माना जा रहा है कि यह समिति उसी शर्त को पूरा करने के लिए गठित की गई है। लेकिन जिस तरह से समिति में सदस्यों की भागीदारी है और अधिसूचना में समिति के कार्यक्षेत्र का जो दायरा बताया गया है उसे देखकर इसे केवल एमएसपी पर समिति कहना तथ्यात्मक नहीं होगा। दूसरे, समिति की अधिसूचना जारी होने के साथ ही इसको लेकर विवाद भी शुरू हो गया है। किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के इसमें शामिल नहीं होने की बात भी अब सामने आ गई है। रूरल वॉयस ने 18 जुलाई को समिति के गठन की घोषणा के समय ही संकेत दिया था कि एसकेएम की समिति में शामिल होने की संभावना न के बराबर है। हालांकि समिति में तीन सदस्य संयुक्त किसान मोर्चा से होने की जानकारी अधिसूचना में है और इसके लिए मोर्चा द्वारा सदस्यों के नाम भेजने के बाद उनको शामिल करने की बात कही गई है।
कषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा गठित समिति के कार्यक्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के लिए राष्ट्र को संबोधित करते हुए कही बातों को ही मुख्य आधार बनाया गया है। इस बात को समिति के कुछ सदस्यों ने रूरल वॉयस के साथ अनौपचारिक बातचीत में स्वीकार भी किया है।
समिति के कार्यक्षेत्र में एमएसपी का मुद्दा अहम है। इसे देश भर में कैसे प्रभावी और पारदर्शी बनाया जाए उसके लिए समिति सुझाव देगी। लेकिन इसमें यह कहीं भी नहीं कहा गया है कि समिति एमएसपी की कानूनी गारंटी के बारे में राय देगी। किसान संगठनों की यही सबसे मुख्य मांग रही है। इस पर संयुक्त मोर्चा के सदस्यों का कहना है कि समिति के गठन के पहले हम टर्म्स ऑफ रेफरेंस की मांग कर रहे थे जो हमें नहीं बताई गई। इसलिए इस समिति को हम अपनी मांग के अनुरूप नहीं मानते हैं।
कृषि मामलों के एक नीतिगत एक्सपर्ट का कहना है कि 29 सदस्यीय समिति होने से इसकी सदस्य संख्या इतनी बड़ी है कि इसका किसी ठोस नतीजे पर आना काफी टेढ़ा काम है। समिति एमएसपी को प्रभावी बनाने के साथ ही कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) को अधिक स्वायत्त बनाने, विपणन व्यवस्था को बेहतर करने, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और फसल विविधीकरण पर काम करेगी। समिति में सरकारी अधिकारियों की बड़ी संख्या है। विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों के शामिल होने का अर्थ है कि समिति के सामने रखे गये मुद्दों में से अधिकांश पर तो पहले ही काम हो जाना चाहिए था। वह तो इन विभागों को पहले ही चला रहे हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल किसान संगठनों के पदाधिकारियों का कहना है कि समिति की अध्यक्षता पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल को दी गई है। तीन विवादित केंद्रीय कृषि कानूनों को तैयार करने से लेकर उनको लागू करने, उनका बचाव करने और किसान संगठनों के साथ वार्ता में भी उनकी अहम भूमिका रही थी। ऐसे में यह समिति कैसे किसानों का भरोसा कैसे जीतेगी। वहीं किसानों के प्रतिनिधियों के नाम पर इसमें तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के पक्षधर लोगों को शामिल करना भी किसान संगठनों को अखर रहा है।
हालांकि समिति में नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद भी हैं। वहीं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ के डॉ. सी एस सी शेखर और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) के डॉ. सुखपाल सिंह भी हैं। आईसीएआर के महानिदेशक भी इसमें सदस्य हैं। लेकिन अध्यक्ष के अलावा पांच केंद्रीय सचिव और चार राज्यों के अधिकारियों के साथ समिति में अधिकारियों का ही वर्चस्व है।
कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि जिस तरह से संयुक्त किसान मोर्चा इस समिति का हिस्सा नहीं बनना चाहता है तो कहीं इस समिति का हश्र सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन कृषि कानूनों पर गठित एक्सपर्ट समिति की तरह तो नहीं हो जाएगा। वहीं किसानों की आय दोगुना करने के लिए गठित दलवई समिति की हजारों के पेज की सिफारिशें पहले से ही हैं। नई समिति के कामकाज का दायरा जिस तरह से बड़ा रखा गया है यह भी उसी तरह की समिति बन जाएगी। इसलिए इसे केवल एमएसपी पर फोकस करने वाली समिति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। खास बात यह है कि अधिसूचना में समिति की रिपोर्ट सौंपने की कोई समयसीमा नहीं बताई गई है।
एक बड़ा सवाल यह भी है कि इन सभी मुद्दों पर सरकार लगातार काम करने की बात करती रही है। फसल विविधीकरण और मार्केटिंग पर काम करने की बातें होती रही हैं। ऐसे में इस समिति की सिफारिशों के क्या मायने होंगे।
वहीं किसान आंदोलन के हल के रूप में सामने आए समिति के गठन के विकल्प ने इसके मुख्य मकसद के उलट संयुक्त किसान मोर्चा को फिर एक नया मुद्दा दे दिया है। वहीं इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों ने भी सरकार की आलोचना शुरू कर दी है।
यह भी एक संयोग है कि उत्तर प्रदेश के अमरोहा से लोक सभा सांसद कुंवर दानिश अली ने सरकार द्वारा किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी देने के बारे में सवाल पूछा था जिसका जवाब 19 जुलाई, 2022 को सदन में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दिया गया। इसमें एमएसपी पर कानूनी गारंटी के जवाब में 'जी नहीं' का इस्तेमाल करते हुए कहा गया है सरकार ने एमएसपी और दूसरे मुद्दों पर गठित की है। साथ ही फसलों पर दी जाने वाली एमएसपी पर जानकारी दी गई है। इसमें कहा गया कि सरकार ने एमएसपी को प्रभावी बनाने और कृषि विविधीकरण, सीएसीपी की स्वायत्ता सहित संबंधित मुद्दों पर एक समिति गठित की है।
ऐसे में गठन के समय ही समिति के पुनर्गठन की मांग होने के लगी है तो यह समिति की सिफारिशों को कितना गंभीरता से लिया जाएगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन यह बात जरूर है कि समिति को लेकर गंभीरता पर शुरू में ही सवाल खड़े हो गये हैं।