प्रकृति की शक्तिः अगली पीढ़ी के बायोलॉजिकल्स से आएगी कृषि में क्रांति
अगली पीढ़ी के बायोलॉजिकल्स की इस यात्रा में वैज्ञानिक आविष्कार, तकनीकी उन्नयन और मार्केट डायनामिक्स ईंधन का काम कर रहे हैं। मिट्टी की माइक्रोबायोलॉजी, पौधों के बीच परस्पर क्रिया और पौधों के नियमन की व्यवस्था को समझने से बेहतर माइक्रोबॉयल स्ट्रेन, पौधों के सत्व और बायोएक्टिव कंपाउंड विकसित करने का रास्ता खुला है। बायोलॉजिकल्स को अपनाने तथा कॉमर्शियलाइजेशन से अमेरिका और यूरोप के बाजारों में अच्छी प्रगति देखने को मिली है। भारत का विशाल बाजार अब तक अनछुई संभावनाओं वाला है। भारत के विशाल कृषि क्षेत्र में अनेक विविधताएं हैं। सस्टेनेबल खेती के तरीके पर लगातार जोर देने, प्रासंगिक बायोलॉजिकल सॉल्यूशन को अपनाने से मिट्टी की सेहत में सुधार आ सकता है, फसलों की उत्पादकता बढ़ सकती है, पौधों में जलवायु रोधी क्षमता विकसित हो सकती है और आखिरकार किसानों का मुनाफा बढ़ सकता है
कृषि क्षेत्र में हमेशा बदलाव होते रहे हैं। अगली पीढ़ी के बायोलॉजिकल्स के उभरने से कृषि में परिवर्तनकारी प्रगति देखने को मिली है। बीते दो दशकों में इस क्षेत्र में वैज्ञानिक खोज और तकनीकी क्षमता, दोनों में काफी तरक्की हुई है। इससे मिट्टी से संबंधित माइक्रोबायोलॉजी, पौधों और जीवाणुओं के बीच परस्पर क्रिया तथा पौधों की नियमन व्यवस्था को हम बेहतर तरीके से समझ पाए हैं। इस लेख का उद्देश्य उन वैज्ञानिक जटिलताओं और प्रौद्योगिकीय सफलताओं को समझना है जिनकी वजह से उन्नत बायोलॉजिकल सॉल्यूशंस का विकास हो रहा है। हम भारतीय बाजार के साथ अमेरिका और यूरोप के बाजारों की तुलना करेंगे। उनके बीच खास अंतर और अवसरों को देखेंगे। इसके अतिरिक्त, हम भारत के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक बायोलॉजिकल्स के बारे में जानेंगे। मिट्टी की सेहत, खाद्य पदार्थों के उत्पादन, जलवायु के प्रति लचीलेपन की क्षमता तथा किसानों के मुनाफे पर उनके असर की भी चर्चा करेंगे। उपलब्ध आंकड़ों, वैज्ञानिक रिपोर्ट, शोध के उदाहरण तथा कॉमर्शियल उत्पादों के व्यापक विश्लेषण के जरिए हम कृषि क्षेत्र में एक टिकाऊ और संपन्न भविष्य का रास्ता तलाशेंगे।
मिट्टी से संबंधित माइक्रोबायोलॉजी और जीवाणुओं की परस्पर क्रिया के क्षेत्र में प्रगति
पिछले दो दशक के दौरान मिट्टी में पाए जाने वाले जीवाणुओं तथा पौधों के बीच परस्पर क्रिया पर अनेक शोध कार्य हुए हैं। उदाहरण के लिए स्मिथ एवं अन्य (2018) की एक स्टडी नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुई थी। उसमें बताया गया है कि खास तरह के जीवाणु समुदाय पौधों में पोषक तत्वों को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ा सकते हैं। इससे फसल की उत्पादकता 15 फीसदी तक बढ़ सकती है। इस जानकारी से ऐसे माइक्रोबॉयल इनोकुलेंट और बायोफर्टिलाइजर विकसित करने में मदद मिली जिनसे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है तथा उनमें पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती है। राइजोबियम आधारित बायोफर्टिलाइजर और माइकोरिजल इनोकुलेंट जैसे कॉमर्शियल उत्पादों को अमेरिका तथा यूरोपीय बाजारों में बड़े पैमाने पर स्वीकार किया गया है। इनका फसलों की उत्पादकता तथा मिट्टी की सेहत पर महत्वपूर्ण एवं सकारात्मक असर पड़ा है।
पौधों के बीच परस्पर क्रिया तथा नियमन की जटिलताओं को समझना
हाल के कुछ प्रयोगों से दो पौधों के बीच परस्पर क्रिया की जटिलताओं तथा पौधों के विकास का नियमन करने वाली व्यवस्था को समझने का अवसर मिला है। उदाहरण के लिए बाल्डविन एवं अन्य (2020) का एक शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित हुआ है। इस शोध में पौधों के बीच संचार में सिग्नलिंग मॉलिक्यूल की भूमिका को बताया गया है। इससे आसपास के पौधों को आसन्न संकट से निपटने का मौका मिलता है। इस जानकारी से इनोवेटिव बायोकंट्रोल एजेंट, बायोस्टिम्युलेंट और प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर विकसित करने में मदद मिली है। एलिसिटर आधारित बायोस्टीमुलेंट और सिस्टेमिक एक्वायर्ड रेजिस्टेंस (एसएआर) इंड्यूसर जैसे कॉमर्शियल उत्पादों से पौधों में सुरक्षा मेकैनिज्म और फसलों की प्रतिरोधी क्षमता को सुधारने में मदद मिली है।
इनोवेशन के लिए टेक्नोलॉजिकल टूल
अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी से अगली पीढ़ी के बायोलॉजिकल्स के विकास में क्रांति आई है। उदाहरण के लिए CRISPR-Cas9 जैसी जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक में प्रगति से माइक्रोबॉयल स्ट्रेन और प्लांट जीनोम में खास तरह के बदलाव किए गए ताकि अपेक्षित नतीजे मिल सकें। शोधकर्ताओं ने ऐसे माइक्रोबॉयल स्ट्रेन तैयार करने में सफलता पाई है जिनसे बीमारियों के लिए प्रतिरोधी क्षमता के साथ पोषक तत्वों को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ाई जा सके। इससे कॉमर्शियल प्रोडक्ट के डेवलपमेंट का भी रास्ता साफ हुआ। इसके अतिरिक्त हाई थ्रूपुट स्क्रीनिंग तथा ओमिक्स टेक्नोलॉजी के प्रयोग से नए बायोएक्टिव कंपाउंड, फायदेमंद माइक्रोबॉयल स्ट्रेन विकसित करने में तेजी आई है। साथ ही पौधों के साथ उनकी परस्पर क्रिया को भी बेहतर समझा जा सका है। इससे ऐसे पेटेंट वाले माइक्रोबॉयल फॉर्मूलेशन और बायो आधारित प्रोडक्ट विकसित करने में सफलता मिली जो क्षमता और विशिष्टता के मामले में बेहतर होते हैं।
हम कहां हैं? अमेरिका, यूरोप और भारत का नजरिया
बायोलॉजिकल्स की स्वीकार्यता विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग है। अमेरिका और यूरोप में रेगुलेटरी ढांचा अनुकूल होने तथा उपभोक्ताओं में सस्टेनेबल प्रोडक्ट की मांग होने के कारण बाजार का विकास हुआ है। मार्केट रिसर्च फ्यूचर की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में वर्ष 2000 से 2020 के दौरान बायोलॉजिकल के बाजार के विभिन्न सेगमेंट में 150 से अधिक प्रोडक्ट उतारे गए हैं। इनमें बायोपेस्टिसाइड, बायो फर्टिलाइजर और बायोस्टिम्युलेंट शामिल हैं। इसी तरह यूरोप के बायोलॉजिकल बाजार में 200 से ज्यादा माइक्रोबॉयल स्ट्रेन तथा बायो मॉलिक्यूल का इसी अवधि में रजिस्ट्रेशन हुआ है। इनसे वहां सस्टेनेबल (टिकाऊ) खेती की प्रमुख चुनौतियों का समाधान निकालने में मदद मिली है। इसके विपरीत भारत में अभी तक इस तरह के उत्पादों को अपनाना शुरुआती चरण में है। यहां कमर्शियल प्रोडक्ट की संख्या बहुत कम है। हालांकि यहां के बाजार में संभावनाएं काफी अधिक हैं क्योंकि भारत के कृषि क्षेत्र में बहुत अधिक विविधता है तथा सरकार भी खेती के सस्टेनेबल तौर-तरीकों पर जोर दे रही है।
भारत के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक बायोलॉजिकल्स और उनका प्रभाव
भारत की कृषि जलवायु विविधता और चुनौतियों को देखते हुए कुछ खास तरह के बायोलॉजिकल अधिक महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए बेसिलस थुरिन्जिएंसिस आधारित बायोपेस्टिसाइड, जैसे माइक्रोबॉयल बायोकंट्रोल एजेंट के प्रयोग से कीटों को नियंत्रित करने तथा रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल में कमी लाने में उल्लेखनीय सफलता मिली है। बायोफर्टिलाइजर के क्षेत्र में एजोटोबेक्टर और राइजोबियम जैसे नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया स्ट्रेन नाइट्रोजन की उपलब्धता बढ़ाने और सिंथेटिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करने में महत्वपूर्ण साबित हुए हैं। सीवीड सत्व, ह्यूमिक पदार्थ और माइक्रोबॉयल मेटाबोलाइट से भरपूर बायोस्टिम्युलेंट से फसल की ग्रोथ, विपरीत परिस्थितियों को झेलने की क्षमता तथा उत्पादकता सुधारने में अच्छे नतीजे मिले हैं। इन बायोलॉजिकल समाधान को अपनाने तथा सस्टेनेबल खेती के तौर-तरीके से मिट्टी की सेहत में सुधार हो सकता है, संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल हो सकता है और भारतीय कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन को लेकर प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जा सकती है।
भविष्य का परिदृश्यः पेप्टाइड, एप्टेमर, सिग्नलिंग मॉलिक्यूल तथा अन्य
भविष्य की बात करें तो अगले 10 साल के दौरान कृषि क्षेत्र में बायोलॉजिकल्स की प्रगति के लिए काफी संभावनाएं हैं। शोधकर्ता पेप्टाइड, एप्टेमर, सिग्नलिंग मॉलिक्यूल तथा अन्य बायो मॉलिक्यूल के इस्तेमाल की संभावनाएं तलाश रहे हैं। यह टारगेटेड कीटों और बीमारियों पर नियंत्रण के लिए है। उदाहरण के लिए पेप्टाइड आधारित बायोपेस्टिसाइड ने खास तरह के कीटो को नियंत्रित करने में अच्छा प्रदर्शन किया है। एप्टेमर के जरिए बीमारी का शुरुआती दिनों में ही पता लगाने के लिए पैथोजेन को पहचानने में मदद मिली है। इसी तरह कोरम सेंसिंग मॉलिक्यूल जैसे माइक्रोबॉयल स्रोतों से प्राप्त सिग्नलिंग मॉलिक्यूल का प्रयोग पौधों की रिस्पांस क्षमता सुधार सकता है, तथा उनमें विपरीत परिस्थितियों को झेलने की क्षमता विकसित कर सकता है। जिस तरह के शोध चल रहे हैं और पेटेंट्स की फाइलिंग की गई है, उनसे पता चलता है कि इस तरह की प्रौद्योगिकी में लोगों की रुचि बढ़ रही है। इनसे पौधों को बचाने तथा उनकी ग्रोथ के रेगुलेशन में क्रांतिकारी नतीजे देखने को मिल सकते हैं।
निष्कर्ष
अगली पीढ़ी के बायोलॉजिकल्स की इस यात्रा में वैज्ञानिक आविष्कार, तकनीकी उन्नयन और मार्केट डायनामिक्स ईंधन का काम कर रहे हैं। मिट्टी की माइक्रोबायोलॉजी, पौधों के बीच परस्पर क्रिया और पौधों के नियमन की व्यवस्था को समझने से बेहतर माइक्रोबॉयल स्ट्रेन, पौधों के सत्व और बायोएक्टिव कंपाउंड विकसित करने का रास्ता खुला है। बायोलॉजिकल्स को अपनाने तथा कॉमर्शियलाइजेशन से अमेरिका और यूरोप के बाजारों में अच्छी प्रगति देखने को मिली है। भारत का विशाल बाजार अब तक अनछुई संभावनाओं वाला है। भारत के विशाल कृषि क्षेत्र में अनेक विविधताएं हैं। सस्टेनेबल खेती के तरीके पर लगातार जोर देने, प्रासंगिक बायोलॉजिकल सॉल्यूशन को अपनाने से मिट्टी की सेहत में सुधार आ सकता है, फसलों की उत्पादकता बढ़ सकती है, पौधों में जलवायु रोधी क्षमता विकसित हो सकती है और आखिरकार किसानों का मुनाफा बढ़ सकता है। जैसे-जैसे हम अगले दशक की ओर बढ़ रहे हैं, पेप्टाइड, एप्टेमर, सिग्नलिंग मॉलीक्यूल, जेनेटिक इंजीनियरिंग तथा अन्य उभरती टेक्नोलॉजी के इंटीग्रेशन में कृषि क्षेत्र के भविष्य को आकार देने की संभावनाएं नजर आती हैं। इस उन्नति से न सिर्फ मिट्टी की सेहत और खाद्य उत्पादन में सुधार आएगा, बल्कि ये जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने और दुनियाभर के किसानों के लिए सस्टेनेबल और संपन्न भविष्य सुनिश्चित करने में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं।
(डॉ. रेणुका दीवान, बायोप्राइम एग्रीसॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड की सीईओ हैं)