तोमर ने छोटे किसानों से किया आह्वान, कुपोषण मिटाने में मददगार मोटा अनाज ज्यादा उगाएं
मोटा अनाज न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया में कुपोषण को दूर करने में मददगार हो सकता है। रागी, ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाजों को उगाने में कम पानी की जरूरत होती है लेकिन इनमें पोषक तत्व बहुत ज्यादा होता है। इतने गुणों के बावजूद इन अनाजों को गरीब आदमी का भोजना समझा जाता रहा है।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने छोटे और सीमांत किसानों से अधिक से अधिक मोटा अनाज उगाने का आह्वान किया है। यह न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया में कुपोषण को दूर करने में मददगार हो सकता है। रागी, ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाजों को उगाने में कम पानी की जरूरत होती है लेकिन इनमें पोषक तत्व बहुत ज्यादा होता है। इतने गुणों के बावजूद इन अनाजों को गरीब आदमी का भोजना समझा जाता रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा आयोजित तीन दिवसीय कृषि विज्ञान मेले का नई दिल्ली स्थित पूसा कृषि संस्थान में उद्घाटन करते हुए उन्होंने यह बात कही।
अपने उद्घाटन भाषण में तोमर ने कहा कि मोटा अनाज बड़े किसान नहीं उगाते हैं बल्कि छोटे और सीमांत किसान ही इसे उगाते हैं। कुपोषण की समस्या और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच भारत ने अग्रणी भूमिका निभाई है। मौजूदा साल (2023) को दुनिया भर में मोटा अनाज के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18 मार्च को दिल्ली में होने वाले एक समारोह में अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष की औपचारिक लांचिंग करेंगे जिसमें दुनियाभर के वैज्ञानिक, अन्य प्रतिनिधि व कई देशों के मंत्री शामिल होंगे। तोमर ने पूसा कृषि विज्ञान मेले की थीम श्री अन्न रखने की सराहना करते हुए कहा कि इस मेले के माध्यम से भी किसानों को काफी लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है। यहां का किसान जितनी तरक्की करेगा, जितना समृद्ध होगा, देश उतनी तरक्की करेगा, उतना समृद्ध होगा। भारत को बढ़ाना है तो किसानों की ताकत बढ़ानी होगी।
उन्होंने कहा कि मोटा अनाज न केवल ज्यादा पोषण देता है बल्कि किसानों को अच्छी कीमत भी दिलवाता है। इसकी खेती करना छोटे और सीमांत किसानों के लिए अच्छा रहेगा जो भारत के कुल कृषक समुदाय का 86 फीसदी हिस्सा हैं। तोमर ने कहा, "हम अच्छा तो खा रहे हैं लेकिन पोषण से भरपूर भोजन नहीं कर रहे हैं। न केवल भारत में बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में कुपोषण की समस्या है। हम अधिक मोटा अनाज उगाकर कुपोषण की समस्या का समाधान कर सकते हैं।" भारत प्रमुख मोटा अनाज उत्पादक देश है। उन्होंने कहा कि यदि मोटा अनाज और इनसे बने उत्पादों के लिए भारी मांग पैदा की जाती है तो छोटे और सीमांत किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है। सरकार मोटा अनाज के लिए बाजार बनाने और मूल्यवर्धन को प्रोत्साहित करने के प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि 'गरीब आदमी के भोजन' के रूप में प्रचारित मोटा अनाज को ब्रांड के रूप में पहचान देने के लिए सरकार ने आठ तरह के मोटा अनाज को "श्री अन्न" का नाम देने का निर्णय लिया है। यह गेहूं और चावल की तुलना में बेहतर पोषण देता है।
उन्होंने बताया कि मोटे अनाजों का निर्यात बढ़ाने के लिए सरकार की योजना 16 अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों और खरीदार-विक्रेता सम्मेलन (बीएसएम) में निर्यातकों, किसानों और व्यापारियों की भागीदारी को सुविधाजनक बनाने की है। जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आबादी सभी देशों के सामने एक चुनौती है। भारतीय वैज्ञानिकों ने जलवायु अनुकूल बीज की किस्मों का विकास किया है। फिर भी जलवायु परिवर्तन का प्रभाव रहेगा और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किसानों को इन चुनौतियों को स्वीकार करते हुए काम करना जारी रखना होगा।
उन्होंने कृषि क्षेत्र की प्रगति के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), इसके संस्थान व कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के वैज्ञानिकों के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि किसानों ने इनके अनुसंधान को खेती में अपनाया। इस कारण कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ी है और इसका फायदा देश की अर्थव्यवस्था को भी मिल रहा है। इस साल 'कृषि विज्ञान मेले' में 200 से अधिक स्टॉल लगाए गए हैं। इस अवसर पर कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी, आईसीएआर के महानिदेशक हिमांशु पाठक और आईएआरआई के निदेशक एके सिंह भी मौजूद थे। मेले में हजारों किसानों के साथ कृषि वैज्ञानिक एवं स्टार्टअप के उद्यमी भी शामिल हुए। 2 मार्च से शुरू हुआ यह मेला 4 मार्च तक चलेगा। इस मौके पर कृषि मंत्री ने प्रगतिशील किसानों को पुरस्कार भी दिए व प्रकाशनों का विमोचन भी किया। मेले में गेहूं, सरसों, चना, सब्जियों, फूलों, फलों की महत्वपूर्ण किस्मों का प्रदर्शन किया गया है। जबकि किसान परामर्श स्टॉल किसानों की समस्याओं के समाधान में मदद कर रहे हैं।