प्रधानमंत्री का संकेत, कृषि कानूनों पर और पीछे हटने को तैयार नहीं सरकार
सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देते हुए साफ कर दिया कि तीन नये कृषि सुधार कानूनों पर उनकी सरकार पीछे नहीं हटेगी। हालांकि कानूनों में किसी भी तरह के संशोधन और आंदोलनरत किसान संगठनों के साथ सरकार की सार्थक चर्चा की बात भी उन्होंने कही। प्रधानमंत्री ने जोर दे कर कहा कि एमएसपी थी है और रहेगी
पिछले करीब 75 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन को देखते हुए सभी की निगाहें प्रधानमंत्री के भाषण पर टिकी हुई थी कि इससे किसान आंदोलन के सुलझने की राह निकल सकती है। लेकिन फिलहाल लगता है कि सरकार और आंदोलनकारी किसान संगठन अपने-अपने स्थान पर ही खड़े हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि विपक्ष यह नहीं बता पाया कि कृषि कानूनों में गलत क्या है। सुधारों जरूरी हैं और सुधारों की प्रक्रिया निरंतर है। उनके वक्तव्य का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह रहा है कि उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि देश में छोटे किसानों के हितों का खयाल सरकारें नहीं रख रही थी लेकिन उनकी सरकार उनका खयाल रख रही हैं और देश में छोटे किसानों की संख्या 80 फीसदी से ज्यादा है।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में जोर दे कर कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था थी है और रहेगी। इसके साथ ही एपीएमसी मंडियों की व्यवस्था के बने रहने पर भी उन्होंने जोर दिया। असल में किसान एमएसपी के खत्म होने की आशंका जता रहे हैं और उनकी एक प्रमुख मांग में एमएसपी को कानूनी गारंटी देना और उस पर खरीद की गारंटी देना है। कानूनी गारंटी के लिए सरकार तैयार नहीं है। इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री के संबोधन में भी कानूनी गारंटी का संकेत नहीं मिलता है।
किसानों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री पूर्व प्रधानमंत्री और देश में किसानों के हितों के लिए सबसे बड़े नेता माने जाने वाले चौधरी चरण सिंह का हवाला देते हुए इस मसले पर बात रखी है। उन्होंने कहा वह लगातार किसानों के हित के बारे में सोचते थे। उनके द्वारा छोटे किसानों के बारे में की गई टिप्पणियों का प्रधानमंत्री ने जिक्र किया और कहा कि छोटे किसान के लिए खेती आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है इसलिए इसमें सुधार की जरूरत है। इसके साथ ही उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के किसानों के हित में उठाये गये कदमों का भी जिक्र किया और कहा कि हरित क्रांति के लिए उनके द्वारा किये जा रहे सुधारों की मुखालफत हुई थी।
असल में प्रधानमंत्री का जोर था कि छोटे किसानों के हितों का सरकार खयाल रख रही और पहले सभी कुछ बड़े किसानों को मिलता था। इसलिए वह अपने भाषण में किसानों को दो हिस्सों में रखते नजर आए। उन्होंने कहा कि किसी भी सुधार में कुछ कमियां रह जाती हैं और उनको सुधारा जा सकता है। इसके लिए सरकार तैयार है। हमें इन सुधारों को कुछ समय के लिए परख लेना चाहिए और जहां जरूरी होगा सुधार किया जाएगा। हालांकि सराकर के नये कानूनों को लेकर वह बहुत विस्तार में नहीं गये और उनके फायदे पर उन्होंने कुछ खास नहीं कहा। हालांकि यह जरूर कहा कि डेयरी और दूसरे सेक्टर जहां सरकार का दखल कम है वह अच्छा कर रहे हैं।
आंदोलन को लेकर उनका रुख बहुत सख्त नहीं था और उन्होंने सिखों के बारे में की जा रही गलत टिप्पणियों पर संयम बरतने की बात कहा कि वह खुद पंजाब में लंबे समय तक रहे है और मैं उनका आभारी हूं। इसलिए उनके देश के लिए कर्तव्य और समर्पण पर किसी तरह की गलत टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए।
उन्होंने अपने लंबे भाषण में अधिकांश समय कृषि, किसान आंदोलन और दूसरे पक्षों पर बात की। लेकिन यह भी संकेत दे दिया कि सरकार कानून वापसी के लिए तैयार नहीं है और किसान संगठनों को बातचीत के जरिये रास्ता निकालना चाहिए। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि किसान संगठनों और सरकार के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू होगा। हालांकि यह भी दिख रहा है कि अभी दोनों पक्ष अपनी बातों पर ही अड़े हैं और मुद्दे का कोई समाधान जल्दी निकलता नहीं दिखता क्योंकि किसान संगठनों को कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी के कम कुछ भी मंजूर नहीं है। इसलिए अभी आंदोलन लंबा चल सकता है और यही वजह है कि किसान संगठन अब आंदोलन को दिल्ली की सीमाओं के अलावा सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों ले जाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।