सरकारी एजेंसियों की कम कीमत पर प्याज की बिक्री से महाराष्ट्र के किसान नाराज, बन सकता है चुनावी मुद्दा

महाराष्ट्र के प्याज किसानों ने प्याज की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा बार-बार दखल देने का विरोध किया है। राज्य के किसान संगठनों का कहना है कि जैसे ही कीमतों में सुधार होता है तो सरकार केंद्रीय एजेंसियों द्वारा बनाये गये बफर स्टॉक से बाजार में कम कीमतों पर बिक्री कर कीमतों को गिरा देती है जो किसानों के हितों के खिलाफ है। सरकार का यह कदम आगामी विधानसभा चुनाव में राजनीतिक रूप से नुकसानदेह साबित होगा

सरकारी एजेंसियों की कम कीमत पर प्याज की बिक्री से महाराष्ट्र के किसान नाराज,  बन सकता है चुनावी मुद्दा

महाराष्ट्र में प्याज का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में है। केंद्र सरकार ने हाल ही में नेशनल कंज्यूमर कोऑपरेटिव फेडरेशन ऑफ इंडिया (एनसीसीएफ) के माध्यम से 35 रुपये प्रति किलोग्राम की रियायती दरों पर प्याज की बिक्री शुरू की है, जिसका किसान संगठनों ने विरोध जताया है। किसान संगठनों का कहना है कि सरकार के इस निर्णय के बाद प्याज की कीमतों में 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है। केंद्र सरकार का यह कदम किसानों के हितों के खिलाफ है, अगर सरकार का यही रवैया रहा, तो उन्हें इसका खामियाजा आगामी विधानसभा चुनाव में भुगतना होगा। 

केंद्रीय उपभोक्ता मामले विभाग के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के अनुसार, फिलहाल प्याज का औसत खुदरा भाव 49.5 रुपये प्रति किलो (किलोग्राम) है, और बाजार में प्याज 50 से 60 रुपये प्रति किलो में बिक रहा है। वहीं, थोक बाजार में प्याज की कीमतें 2500 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल के बीच हैं, जबकि एक महीने पहले ये कीमतें 2300 से 2600 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास थीं। किसानों का कहना है कि प्याज का खुदरा भाव पिछले महीने भी 50 रुपये के आसपास था, लेकिन उनके लिए मुनाफे की स्थिति नहीं बन रही है। किसानों का कहना है कि जैसे ही प्याज की कीमतों में थोड़ी बढ़ोतरी होती है, सरकार अपनी नीतियों से दाम गिरा देती है, जिससे वे उचित लाभ नहीं कमा पाते।

विधानसभा चुनावों में 'प्याज' बनेगा मुद्दा 

महाराष्ट्र के किसान संगठन स्वाभिमानी शेतकरी संघठना के प्रमुख और पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने रूरल वॉयस को बताया कि महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य है, लेकिन इसके बावजूद यहां के किसान हमेशा कम कीमतों को लेकर परेशान रहते हैं। जब प्याज की कीमतों में थोड़ा सुधार होता है, तो सरकार बफर स्टॉक से रियायती दरों पर प्याज बेचना शुरू कर देती है, जिससे कीमतें फिर गिर जाती हैं। शेट्टी ने कहा कि किसानों की यह नाराजगी आने वाले विधानसभा चुनावों में सरकार के खिलाफ बड़ी भूमिका निभा सकती है।

किसान संगठन शेतकरी संघठना के नेता और एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के सदस्य अनिल घनवट ने रूरल वॉयस को बताया कि पिछले महीने महाराष्ट्र में प्याज की कीमतों में गिरावट आई थी, लेकिन खुदरा कीमतें तब भी ऊपर थीं। हाल ही में जब प्याज की थोक कीमतों में थोड़ा सुधार हुआ, तो सरकार ने 35 रुपये प्रति किलो की दर से प्याज बेचना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि जब किसी कृषि उपज की कीमतें सही होती हैं, तब सरकार दाम गिरा देती है, लेकिन जब दाम कम होते हैं, तब नुकसान की भरपाई के लिए कुछ नहीं करती।

घनवट ने कहा कि बाजार में प्याज का खुदरा भाव 55 से 60 रुपये प्रति किलो है, जबकि सरकार इसे 35 रुपये में बेच रही है। इससे बाजार पर असर पड़ेगा और किसानों को आर्थिक नुकसान होगा। घनवट ने सुझाव दिया कि सरकार को रिटेल में सस्ते में बेचने की बजाय ओपन ऑक्शन के जरिए मंडियों में प्याज बेचना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर सरकार का यही रवैया रहा तो आगामी विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बनेगा। 

उपभोक्ताओं पर मेहरबान है सरकार 

महाराष्ट्र राज्य प्याज उत्पादक संघ के अध्यक्ष भारत दिघोले ने भी सरकार के इस कदम पर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने रूरल वॉयस को बताया कि भले ही सरकार ने प्याज निर्यात पर लगी रोक हटा दी हो, लेकिन प्याज पर 40 प्रतिशत एक्सपोर्ट ड्यूटी और 500 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य अभी भी लागू है। इसके कारण प्याज का निर्यात प्रभावित हो रहा है और किसानों को बेहतर कीमत नहीं मिल पा रही है। 

दिघोले ने कहा कि हाल के दिनों में प्याज की कीमतों में थोड़ा सुधार हुआ था, लेकिन सरकार के रियायती दरों वाला प्याज बेचने के निर्णय से फिर कीमतें गिर गईं। उन्होंने कहा कि पिछले हफ्ते तक किसानों को 4300 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला था, जो अब गिरकर 2500 से 3700 रुपये प्रति क्विंटल के बीच आ गया है। उन्होंने कहा कि सरकार उपभोक्ताओं के लिए मेहरबान है, लेकिन किसानों की परेशानियों से सरकार को कोई लेना देना हनीं। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सरकार यही चाहती है, तो किसान भी इसके लिए तैयार हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में सरकार को इसका नतीजा देखने को मिलेगा।

किसान संगठनों ने केंद्र और राज्य सरकार को कड़े शब्दों में कहा है कि अगर सरकार का यही रवैया रहा, तो उन्हें इसका खामियाजा आगामी विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा। किसान नेताओं का कहना है कि प्याज का मुद्दा लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी अहम भूमिका निभाएगा।

केंद्र ने बढ़ाई प्याज की खरीद 

केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्रालय के अनुसार, इस साल सरकार ने सरकारी एजेंसियों के माध्यम से 4.7 लाख टन प्याज की खरीद की, जो पिछले साल से ज्यादा है। पिछले साल सरकार ने 3.0 लाख टन प्याज खरीदा था। सरकार के मुताबिक, इस साल प्याज की कीमतें पिछले साल की तुलना में बेहतर रही हैं। मंडी में प्याज की कीमतें पिछले साल 693 से 1,205 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले इस साल 1,230 से 2,578 रुपये प्रति क्विंटल के बीच बनी हुई हैं। औसत बफर खरीद मूल्य भी इस साल 2,833 रुपये प्रति क्विंटल रहा, जबकि पिछले साल यह 1,724 रुपये था। 

केंद्रीय कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 26 अगस्त, 2024 तक खरीफ प्याज की बुवाई क्षेत्र में पिछले साल के मुकाबले 102 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस अवधि तक 2.90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में प्याज की बुवाई हो चुकी है, जबकि पिछले साल इसी समय पर यह क्षेत्र 1.94 लाख हेक्टेयर था। इसके अलावा, लगभग 38 लाख टन प्याज अभी भी किसानों और व्यापारियों के पास स्टोर में है। सरकार का कहना है कि वह प्याज की उपलब्धता और कीमतों पर नजर रखेगी और किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के साथ-साथ उपभोक्ताओं को किफायती कीमत पर प्याज उपलब्ध कराएगी।

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