कॉटन पर आयात शुल्क हटाने की तैयारी, कीमतों में गिरावट से किसानों को हो सकता है नुकसान
अगर कॉटन पर आयात शुल्क समाप्त होता है तो विदेशों से सस्ते आयात के कारण घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में गिरावट आ सकती है। इसका नुकसान किसानों के अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कपास खरीद के लिए अधिकृत सरकारी एजेंसी कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) को भी उठाना पड़ सकता है।

भारत सरकार कॉटन पर लागू 10 फीसदी आयात शुल्क और उस पर 10 फीसदी सेस को समाप्त कर सकती है। वजह है कॉटन इंडस्ट्री का दबाव! कॉटन इंडस्ट्री देश में कपास की कमी को देखते हुए टेक्सटाइल निर्यात बढ़ाने के मकसद से कॉटन पर आयात शुल्क खत्म करवाने की कोशिश कर रही है। लेकिन इससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
अगर कॉटन पर आयात शुल्क समाप्त होता है तो विदेशों से सस्ते आयात के कारण घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में गिरावट आ सकती है। इसका नुकसान किसानों के अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कॉटन खरीद के लिए अधिकृत सरकारी एजेंसी कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) को भी उठाना पड़ सकता है। क्योंकि सीसीआई द्वारा एमएसपी पर खरीदी गई करीब 100 लाख गांठ में से करीब तीन चौथाई का स्टॉक अभी उसके पास मौजूद है।
सूत्रों के मुताबिक, वस्त्र मंत्रालय कॉटन पर आयात शुल्क समाप्त किये जाने के पक्ष में है और इस मसले पर सीसीआई की तरफ से भी सहमति दिये जाने के आसार हैं। कॉटन पर आयात शुल्क हटाने को लेकर यार्न और फैब्रिक इंडस्ट्री द्वारा काफी पैरवी की जा रही है। फिलहाल कॉटन पर 10 फीसदी का आयात शुल्क लागू है और उसके ऊपर 10 फीसदी सेस (उपकर) लगता है जिसके चलते प्रभावी आयात शुल्क 11 फीसदी हो जाता है।
कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) के सीएमडी ललित कुमार गुप्ता ने रूरल वॉयस को बताया कि भारत में खास गुणवत्ता की कॉटन का सालाना 10 से 15 लाख गांठ का आयात होता है और यह आयात सीमा शुल्क से प्रभावित नहीं होता है। क्योंकि इस तरह का कपास का देश में उत्पादन नहीं होता है और इसका आयात करना ही पड़ता है। केंद्र सरकार ने कॉटन आयात के मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिए पिछले दिनों कमेटी ऑन कॉटन प्रॉडक्शन एंड कंजप्शन (सीओसीपीसी) की बैठक बुलाई थी, जिसमें शामिल अधिकांश लोगों की राय कॉटन पर आयात शुल्क समाप्त करने के पक्ष में थी। बैठक में शामिल कुछ लोगों ने शुल्क हटाने की स्थिति में किसानों के पास बकाया कपास की कीमतें गिरने की बात भी कही थी।
कॉटन पर सीमा शुल्क हटाने को लेकर सीसीआई की राय पूछने पर ललित कुमार गुप्ता ने कहा कि सरकार जो भी फैसला लेगी, हम उसके साथ हैं। जहां तक किसानों की बात है तो उनके हित एमएसपी से सुरक्षित हैं। हम किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एजेंसी हैं। हालांकि, कीमतों में गिरावट से नुकसान के बारे में उनका कहना है कि हम पूरे साल मार्केट में कॉटन बेचते हैं। कई बार साल के अंत में ऊंची कीमत भी मिलती है क्योंकि बाजार में कॉटन की कमी की स्थिति में जीनिंग कंपनियां माल रोक लेती हैं उसके बाद भी दाम बढ़ा देती हैं। फिर भी अगर सीसीआई को कोई नुकसान होता है तो उसकी भरपाई सरकार करती है।
सीसीआई के मैनेजिंग डायरेक्टर का कहना है कि यार्न एंड फैब्रिक इंडस्ट्री की राय है कि सरकार का हस्तक्षेप कम होना चाहिए। वहीं, अगर भारत सीमा शुल्क समाप्त करता है तो उसके चलते भारतीय बाजार के आयात के लिए खुलने से वैश्विक बाजार में कपास की कीमतें एक से दो फीसदी तक बढ़ जाती हैं। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि भारत के अलावा किसी देश में कॉटन पर सीमा शुल्क नहीं है। हमारे यहां 2022 से कॉटन पर आयात शुल्क लागू है। उन्होंने बताया कि सीसीआई 55 हजार से 56 हजार रुपये प्रति कैंडी (लगभग 356 किलो) की कीमत पर कॉटन की बिक्री कर रही है। चालू सीजन 2024-25 में सीसीआई ने 100 लाख गांठ कॉटन (170 किलो प्रति गांठ) की खरीद की है और उसमें से करीब 25 फीसदी की बाजार में बिक्री हो चुकी है।
सीसीआई द्वारा एमएसपी पर कॉटन खरीदने का सीजन भी समाप्त हो चुका है। ऐसे में करीब दो-तिहाई फसल ऐसी है जो या तो किसानों के पास है या फिर किसानों ने व्यापारियों को बेची है। उद्योग सूत्रों का कहना है कि किसानों के पास 60 से 65 लाख गांठ कॉटन है। अगर सरकार कॉटन से आयात शुल्क हटा देती है तो उसका आयात करीब 48 से 50 हजार रुपये प्रति कैंडी के आसपास पड़ेगा। उस स्थिति में सीसीआई द्वारा 55 से 56 हजार रुपये प्रति कैंडी बेची जा रही घरेलू कॉटन की कीमतों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इससे किसानों को तो नुकसान होगा ही, अगर दाम गिरते हैं तो सीसीआई को भी बकाया स्टॉक पर 2000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होने की आशंका उद्योग सूत्र जता रहे हैं।
कॉटन सीजन 2024-25 के लिए कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) ने देश में 302.25 लाख गांठ कॉटन उत्पादन का अनुमान लगाया था जिसे मार्च, 2025 में घटाकर 295.30 लाख गांठ कर दिया गया। सीएआई के मुताबिक, चालू साल में खपत का अनुमान 313 लाख गांठ का है। वहीं सरकार द्वारा 11 मार्च, 2025 को जारी कृषि उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान में कॉटन उत्पादन को घटाकर 294.25 लाख गांठ कर दिया गया है। कृषि मंत्रालय ने नवंबर, 2024 में जारी पहले अग्रिम अनुमान में कॉटन उत्पादन 299.26 लाख गांठ रहने का अनुमान जारी किया था।
भारत में कॉटन उत्पादन की लागत ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया से करीब डेढ़ गुना आती है। ऐसे में ये देश भारत में कम कीमतों पर निर्यात करने की स्थिति में रहते हैं। यार्न व फैब्रिक इंडस्ट्री का तर्क है कि महंगी कॉटन के कारण भारत से टेक्सटाइल निर्यात प्रतिस्पर्धी नहीं रह जाता है। हालांकि, उद्योग को एडवांस लाइसेंस के तहत शुल्क मुक्त कॉटन के आयात की सुविधा है। ऐसे में उद्योग का यह तर्क बहुत मायने नहीं रखता है।
अगर सरकार कपास पर आयात शुल्क समाप्त करती है तो नई फसल की बुवाई के समय किसान हतोत्साहित होंगे क्योंकि कपास की बुवाई का सीजन शुरू हो रहा है। सरकार ने इस साल के बजट कॉटन मिशन की घोषणा की थी, जिसका मकसद देश में कपास उत्पादन को बढ़ावा देना है। अगर देश में कपास का सस्ता आयात होगा तो किसानों के साथ सरकार के उद्देश्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इसके साथ ही यह मुद्दा राजनीतिक रंग भी ले सकता है और किसान संगठन सरकार के इस कदम का विरोध कर सकते हैं। खास बात यह है कि देश में करीब 220 लोक सभा सीटें ऐसी हैं जहां कपास का उत्पादन होता है। ऐसे में यह मामला राजनीतिक रूप से काफी संवेदनशील भी है।