विशेष सब्सिडी के बाद भी डीएपी आयात घाटे का सौदा, ऊंचे दाम और कमजोर रुपये ने बिगाड़ा गणित
अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी की बढ़ती कीमतों और डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी को देखते हुए विशेष सब्सिडी के बाद भी डीएपी आयात उर्वरक कंपनियों के लिए घाटे का सौदा बन सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई नये साल की पहली कैबिनेट बैठक में डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) पर 3500 रुपये प्रति टन की विशेष सब्सिडी जारी रखने का फैसला लिया गया। सरकार के इस फैसले से उम्मीद जगी कि डीएपी उर्वरक का दाम नहीं बढ़ेगा और किसानों को यह 1350 रुपये प्रति बैग (50 किलो) के हिसाब से मिलता रहेगा। लेकिन विशेष सब्सिडी के बावजूद उर्वरक कंपनियों को डीएपी का दाम 1350 रुपये प्रति बैग रखने पर करीब 3500 रुपये प्रति टन का घाटा उठाना पड़ सकता है।
उच्च पदस्थ सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि इस संबंध में ब्रहस्पतिवार को उर्वरक मंत्रालय ने उर्वरक कंपनियों की बैठक बुलाई गई थी जिसमें डीएपी का दाम 1350 रुपये प्रति बैग पर बरकरार रखने को कहा गया। इस तरह उर्वरक कंपनियों में डीएपी का दाम नहीं बढ़ाने का दबाव है। जबकि दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी की बढ़ती कीमतों और डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी को देखते हुए विशेष सब्सिडी के बाद भी डीएपी आयात उर्वरक कंपनियों के लिए घाटे का सौदा बन सकता है।
सरकार ने न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत दी जाने वाली सब्सिडी के अलावा 3500 रुपये प्रति टन की दर से विशेष सब्सिडी जारी रखने की घोषणा की है। सरकार ने पहले यह स्पेशल इंसेंटिव अप्रैल, 2024 से 31 दिसंबर, 2024 के लिए दिया था। बुधवार की कैबिनेट बैठक में इसे 31 दिसंबर, 2025 तक जारी रखने का फैसला लिया है। लेकिन हर तिमाही पर इसकी समीक्षा की जाएगी और उसके आधार पर फैसले में बदलाव किया जा सकता है।
उद्योग सूत्रों के मुताबिक, इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी की कीमत 630 डॉलर प्रति टन के आसपास है। वहीं, सरकार ने स्पेशल सब्सिडी तय करने के लिए वैश्विक बाजार में डीएपी की कीमत 559.71 डॉलर प्रति टन को आधार बनाया है और डॉलर की दर को 83.23 रुपये प्रति डॉलर माना है। जबकि डीएपी की कीमत करीब 70 डॉलर प्रति टन बढ़ चुकी है। वहीं डॉलर के मुकाबले रुपया 3 जनवरी को 85.78 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंच गया। इन दो कारकों के चलते डीएपी की आयात लागत करीब साढ़े 7 हजार रुपये प्रति टन बढ़ गई है। जिससे उर्वरक कंपनियों को 3500 रुपये प्रति टन की विशेष सब्सिडी के बावजूद घाटा उठाना पड़ेगा।
सरकार एनबीएस के तहत डीएपी पर 21,911 रुपये की सब्सिडी देती है। इसके आलावा 3,500 रुपये प्रति टन का स्पेशल इंसेंटिव है। डीएपी बिक्री की मौजूदा कीमत 27,000 रुपये प्रति टन है। यह सब मिलाकर 52,411 रुपये प्रति टन बैठता है। लेकिन वैश्विक बाजार में डीएपी की मौजूदा कीमत 630 डॉलर प्रति टन और डॉलर के मुकाबले रुपया 85.78 के स्तर पर होने के चलते एक टन डीएपी का आयात मूल्य ही 54,041 रुपये प्रति टन बैठता है। इसके ऊपर पांच फीसदी सीमा शुल्क, पोर्ट हैंडलिंग और बैगिंग खर्च व डीलर मार्जिन का अतिरिक्त खर्च आता है।
उद्योग सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि मौजूदा स्थिति में एनबीएस सब्सिडी और स्पेशल इंसेंटिव के बाद भी एक टन डीएपी पर उर्वरक कंपनियों को करीब 3500 रुपये प्रति टन का नुकसान होगा। इसका असर उर्वरक कंपनियों द्वारा किये जाने वाले डीएपी आयात पर पड़ सकता है। इसलिए डीएपी पर विशेष सब्सिडी जारी रखने के बावजूद देश में डीएपी का कितना आयात हो पाएगा, फिलहाल कहना मुश्किल है।
डीएपी का सबसे ज्यादा उपयोग बेसल डोज के रूप में होता है यानी बुवाई के समय ही इसका अधिक उपयोग किया जाता है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 15 दिसंबर, 2024 तक देश में डीएपी का स्टॉक 9.2 लाख टन था जबकि पिछले साल इसी समय तक देश में 13 लाख टन डीएपी का स्टॉक था। देश में डीएपी की सालाना करीब 100 लाख टन है और यूरिया के बाद यह सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला उर्वरक है। डीएपी और इसके देश में होने वाले उत्पादन के लिए कच्चे माल समेत करीब 90 फीसदी आयात पर निर्भरता है।