विकास पर भारी महंगाई, निजी खपत बढ़ने की दर हुई धीमी, सालाना ग्रोथ घटने का भी अंदेशा

खाद्य महंगाई लगातार अधिक बने रहने के कारण खास कर शहरी वर्ग गैर-जरूरी खर्चे घटा रहा है, जिसका असर डिमांड पर दिखने लगा है। मैन्युफैक्चरिंग समेत पूरे सेकंडरी सेक्टर की चाल सुस्त पड़ गई है। इसलिए हो सकता है कि अगरी मौद्रिक नीति समीक्षा में आरबीआई विकास दर के अनुमान में भी कटौती करे।

विकास पर भारी महंगाई, निजी खपत बढ़ने की दर हुई धीमी, सालाना ग्रोथ घटने का भी अंदेशा

शेयर बाजार की चकाचौंध के पीछे भारत की इकोनॉमी में सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है। अर्थव्यवस्था उम्मीद से कहीं अधिक तेज गति से ठंडी हो रही है। खाद्य महंगाई लगातार अधिक बने रहने के कारण खास कर शहरी वर्ग गैर-जरूरी खर्चे घटा रहा है, जिसका असर डिमांड पर दिखने लगा है। मैन्युफैक्चरिंग समेत पूरे सेकंडरी सेक्टर की चाल सुस्त पड़ गई है। इसलिए हो सकता है कि अगरी मौद्रिक नीति समीक्षा में आरबीआई विकास दर के अनुमान में भी कटौती करे। विशेषज्ञ अब 2024-25 में 6.5% विकास दर का ही अनुमान लगा रहे हैं।

हालांकि सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. वी. अनंत नागेश्वरन का कहना है कि 6.5% विकास दर कोई खतरे का संकेत नहीं है। दूसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत विकास दर पर उन्होंने कहा कि यह निराशाजनक है, लेकिन चिंताजनक नहीं। 

अर्थव्यवस्था में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले सेकंडरी सेक्टर में ग्रोथ पिछले साल की दूसरी तिमाही और इस साल की पहली तिमाही, दोनों की तुलना में गिरी है। वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में सेकंडरी सेक्टर सिर्फ 3.9 प्रतिशत बढ़ा, जबकि पिछले साल इसी दौरान इसमें 13.7 प्रतिशत और इस साल की पहली तिमाही में 8.4 प्रतिशत की ग्रोथ रही थी।

खपत और निवेश में पहली तिमाही से गिरावट
जीडीपी में 56 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी निजी खपत (PFCE) की है और इसमें 6 प्रतिशत वृद्धि हुई है। यह पिछले साल की दूसरी तिमाही के 2.6 प्रतिशत से तो अधिक है, लेकिन इस वर्ष की पहली तिमाही के 7.4 प्रतिशत के मुकाबले घट गई है। यह कंपनियों के दूसरी तिमाही के नतीजों से भी पता चलता है। ज्यादातर कंपनियों, खास कर एफएमसीजी कंपनियों की रेवेन्यू ग्रोथ कम हुई है। सरकारी खपत (GFCE) में पिछले साल की दूसरी तिमाही में 14 प्रतिशत वृद्धि हुई थी, जो इस बार 4.4 प्रतिशत रह गई है। इस वर्ष की पहली तिमाही में इसमें निगेटिव ग्रोथ रही थी। 

अर्थव्यवस्था की गति धीमी पड़ने का सबसे ज्यादा असर उद्योगों पर पड़ रहा है। पूंजी निवेश (GFCF) की वृद्धि दर पिछले साल की दूसरी तिमाही में 11.6 प्रतिशत और इस साल की पहली तिमाही में 7.5 प्रतिशत थी। यह पिछली तिमाही में सिर्फ 5.4 प्रतिशत दर्ज हुई है। पहली छमाही में निवेश वृद्धि दर पिछले साल के 10.1 प्रतिशत की तुलना में सिर्फ 6.4 प्रतिशत रही है। मांग वृद्धि में सुस्ती के कारण उद्योग निवेश करने से हिचकिचा रहा है। नए निवेश के लिए संभव है कि कंपनियां अभी डिमांड ट्रेंड सुधरने का इंतजार करें। 

इस बार त्योहारों का सीजन भी बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है। निर्यात के मोर्चे पर भी स्थिति कमजोर है। पहली तिमाही में निर्यात 8.7 प्रतिशत बढ़ने के बाद दूसरी तिमाही में इसकी ग्रोथ घट कर सिर्फ 2.8 प्रतिशत रह गई है। इसलिए पूरे वित्त वर्ष की बात करें तो विशेषज्ञ मान रहे हैं कि विकास दर सरकार के पूंजी निवेश पर अधिक निर्भर करेगा।

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार अक्तूबर में आठ कोर सेक्टर की विकास दर 3.1 प्रतिशत रही है। यह सितंबर के 2.4 प्रतिशत और अगस्त के (-)1.6 प्रतिशत को छोड़ दें तो पिछले एक साल में सबसे कम ग्रोथ है। कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल होने वाले स्टील का उत्पादन 4.2 प्रतिशत और सीमेंट का 3.3 प्रतिशत बढ़ा है। 

धीमी विकास दर और ऊंची महंगाई दर ने आरबीआई के लिए ब्याज दरें घटाने का काम और जटिल बना दिया है। महंगाई को नियंत्रित रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने फरवरी 2023 से रेपो रेट नहीं बदला है। हालांकि इसके बावजूद खुदरा महंगाई 4 प्रतिशत की निर्धारित सीमा से बार-बार बाहर जा रही है। अक्टूबर में यह 6.2 प्रतिशत थी जो 14 महीने का सबसे ऊंचा स्तर था।

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