खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने पर जोर

खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और बढ़ती वैश्विक चुनौतियों के बीच मिट्टी के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से मंगलवार को दिल्ली में ग्लोबल सॉयल कॉन्फ्रेंस 2024 का शुभारंभ हुआ। 19 से 22 नवंबर तक होने वाले इन सम्मेलन में मिट्टी के स्वास्थ्य और सतत विकास में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करने के लिए दुनिया भर से आए 2 हजार वैज्ञानिक, नीति निर्माता, किसान, पर्यावरण विशेषज्ञ, उद्योग जगत के प्रतिनिधि, शिक्षक और छात्र भाग ले रहे हैं। 

खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने पर जोर

खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और बढ़ती वैश्विक चुनौतियों के बीच मिट्टी के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से मंगलवार को दिल्ली में ग्लोबल सॉयल कॉन्फ्रेंस 2024 का शुभारंभ हुआ। 19 से 22 नवंबर तक होने वाले इन सम्मेलन में मिट्टी के स्वास्थ्य और सतत विकास में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करने के लिए दुनिया भर से आए 2 हजार वैज्ञानिक, नीति निर्माता, किसान, पर्यावरण विशेषज्ञ, उद्योग जगत के प्रतिनिधि, शिक्षक और छात्र भाग ले रहे हैं। 

यह सम्मेलन इंडियन सोसाइटी ऑफ सॉयल साइंस, नई दिल्ली द्वारा इंटरनेशनल सॉयल साइंस यूनियन और अन्य राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने, जलवायु परिवर्तन से निपटने, भूमि क्षरण रोकने और जैव विविधता संरक्षण जैसे मुद्दों पर चर्चा करना है। साथ ही, यह खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ संसाधन प्रबंधन में नई तकनीकों के विकास को भी प्रोत्साहित करेगा।

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सम्मेलन को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए कहा कि मृदा स्वास्थ्य आज एक गंभीर चिंता का विषय है। कैमिकल फर्टिलाइजर का बढ़ता उपयोग व बढ़ती निर्भरता, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और अस्थिर मौसम ने मिट्टी पर दबाव डाला है। आज भारत की मिट्टी बड़े स्वास्थ्य संकट का सामना कर रही है।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि कई अध्ययनों के अनुसार देश की 30 प्रतिशत माटी खराब हो चुकी है। मिट्टी में जैविक कार्बन की कमी ने उसकी उर्वरकता को कमजोर किया है। यह चुनौतियां न केवल उत्पादन को प्रभावित करती हैं बल्कि आने वाले समय में किसानों की आजीविका और खाद्य संकट भी पैदा करेंगी, इसलिए यह जरूरी है कि इस पर गंभीरता से इस पर विचार किया जाए।

नीति आयोग के सदस्य डॉ. रमेश चंद ने मिट्टी की खराब होती गुणवत्ता से निपटने के लिए नवाचार, शोध और सहयोगात्मक नीतियां अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए उत्पादकता और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।  

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि मिट्टी की सेहत को बनाए रखने के लिए हितधारकों की क्षमता बढ़ाने, जन जागरूकता फैलाने और ऐसी समावेशी नीतियों को बढ़ावा देने की जरूरत है जो मिट्टी को सतत विकास का आधार बनाएं।  

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