20 महीने, 36 मीटिंग, MSP कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार, किसान दिल्ली कूच को तैयार
केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 13 माह तक चलते एतिहासिक किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए कानूनी की वापसी के साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर एक समिति बनाकर हल निकालने का वादा किया गया था। उसके बाद संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आंदोलन चला रहे किसान दिल्ली के बार्डरों से वापस चले गये थे। लेकिन जहां केंद्र की मौजूदा सरकार अपने अंतिम चरण में हैं और किसान संगठन एक बार फिर इस मुद्दे पर दिल्ली कूच की तैयारी कर रहे हैं, वहीं पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता वाली भारी-भरकम समिति की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है।
केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 13 माह तक चलते एतिहासिक किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए कानूनी की वापसी के साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर एक समिति बनाकर हल निकालने का वादा किया गया था। उसके बाद संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आंदोलन चला रहे किसान दिल्ली के बार्डरों से वापस चले गये थे। लेकिन जहां केंद्र की मौजूदा सरकार अपने अंतिम चरण में हैं और किसान संगठन एक बार फिर इस मुद्दे पर दिल्ली कूच की तैयारी कर रहे हैं, वहीं पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता वाली भारी-भरकम समिति की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। ऐसे में समिति की सिफारिशों पर मौजूदा केंद्र सरकार के कार्यकाल में अमल सकेगा, कहना मुश्किल है। समिति के एक सदस्य ने रूरल वॉयस के साथ बातचीत में कहा कि अभी तक समिति के सदस्यों और उसके तहत गठित ग्रुप और सब-ग्रुप की 36 बैठकें हो चुकी हैं। इस पूरी कवायद के बाद अब समिति जल्दी ही अपनी रिपोर्ट फाइनल कर सकती है।
सूत्रों के मुताबिक समिति की कुछ माह पहले रिपोर्ट को लेकर काफी हद तक सहमति बन गई थी लेकिन कुछ सदस्यों की राय अलग होने के चलते इसे अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। हालांकि कुछ सदस्य ऐसे भी हैं जिन्होंने समिति की किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं लिया। जबकि संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्यों के लिए रखे गये पद मोर्चा द्वारा समिति में शामिल नहीं होने के चलते खाली रहे।
समिति के सदस्यों का एक वर्ग चाहता है कि कृषि उत्पादों की मार्केटिंग में बाजार खोलने की कवायद के रूप में एग्रीकल्चर मार्केट प्रॉड्यूस कमेटी (एपीएमसी) के एकाधिकार को समाप्त करने की जरूरत है। लेकिन इसके साथ ही कृषि उत्पादों की एमएसपी से नीचे खरीद नहीं होने की शर्त भी लागू की जाए। एमएसपी से नीचे खरीद की स्थिति में पैनल्टी का प्रावधान किया जाए। साथ की सरकारी खरीद में प्राइमरी एग्रीकल्चर कोआपरेटिव सोसायटी (पैक्स) और कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) की भूमिका बढ़ाने की सिफारिश भी सदस्यों की राय है।
सदस्यों का कहना है कि एमएसपी की इस व्यवस्था को लागू करने का जिम्मा राज्य सरकारों का होना चाहिए। इस समिति के कामकाज की शर्तों (टीओआर) में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की संस्था को लेकर भी सिफारिश देने के लिए कहा गया है। इस बारे में समिति के एक सदस्य ने रूरल वॉयस को बताया कि हम लोग चाहते हैं कि सीएसीपी को स्वायत्त और संवैधानिक संस्था का दर्जा दिया जाए। साथ ही इसका चेयरमैन किसानों के प्रतिनिधि को बनाया जाना चाहिए।
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ साल भर से अधिक चले किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए सहमति के बाद एमएसपी के मुद्दे पर समिति बनाई गई थी। केंद्र सरकार ने पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता में एमएसपी समिति बनाई थी। लेकिन समिति का दायरा एमएसपी तक सीमित न रखते हुए इसमें सीएसीपी की कार्यशैली और प्राकृतिक खेती जैसे विषय जोड़े गये थे। समिति का गठन 12 जुलाई, 2022 को एक गजट नोटिफिकेशन के जरिये किया गया था। इसकी पहली बैठक 22 अगस्त, 2022 को हुई थी। समिति ने देश के अलग-अलग हिस्सों में कई बैठकें की हैं।
वहीं एमएसपी को लेकर समिति की सिफारिशें तो अभी तक नहीं आई लेकिन कई किसान संगठनों ने सरकार द्वारा एमएसपी को कानूनी दर्जा नहीं दिये जाने और एमएसपी तय करने के लिए सी-2 लागत पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़ने सहित कई मांगें नहीं माने जाने के चलते इसी माह दिल्ली का रुख करने का ऐलान कर रखा है। ऐसे में अब देखना होगा कि समिति अपनी रिपोर्ट कब सौंपती है। हालांकि, रिपोर्ट आने के बाद भी इसकी सिफारिशों पर केंद्र सरकार अमल करेगी, यह कहना मुश्किल है।