भारतीय कृषि का विकास तभी संभव है जब उपभोक्ता अधिक दाम देने के लिए तैयार होः डॉ. आर.एस. सोढ़ी
अमूल के प्रबंध निदेशक डॉ. आर.एस. सोढ़ी का कहना है कि भारतीय कृषि का विकास तभी संभव है जब उपभोक्ताअधिक दाम चुकाने के लिए तैयार हो। रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एंड नेकॉफ अवार्ड्स 2022 के दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। दूसरे सत्र का विषय था कृषि क्षेत्र की समृद्धि में सहकारिता, एफपीओ और एग्री स्टार्ट-अप की भूमिका। कॉन्क्लेव का आयोजन रूरल वॉयस की दूसरी वर्षगांठ पर 23 दिसंंबर 2002 को नई दिल्ली में किया गया
अमूल के प्रबंध निदेशक डॉ. आर.एस. सोढ़ी का कहना है कि भारतीय कृषि का विकास तभी संभव है जब उपभोक्ताअधिक दाम चुकाने के लिए तैयार हो। रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एंड नेकॉफ अवार्ड्स 2022 के दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। दूसरे सत्र का विषय था कृषि क्षेत्र की समृद्धि में सहकारिता, एफपीओ और एग्री स्टार्ट-अप की भूमिका। कॉन्क्लेव का आयोजन रूरल वॉयस की दूसरी वर्षगांठ पर 23 दिसंंबर 2002 को नई दिल्ली में किया गया। डॉ. सोढ़ी ने अपनी बात को वहां से आगे बढ़ाया जिसे पहले सत्र में उठाते हुए नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा था कि कृषि और सहयोगी क्षेत्र में तेज वृद्धि वहां हो रही है जहां कीमतों के मामले में सरकार का दखल कम से कम है।
डॉ. आर एस सोढ़ी ने आंकड़ों को सामने रखते हुए कहा कि पिछले 50 साल में दूध उत्पादन की वृद्धि दर खाद्यान्न उत्पादन की वृद्धि दिर से आगे चली गई है। उन्होंने कहा कि हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि दूध के लिए कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं है। एमएसपी कृषि अर्थव्यवस्था का एक एक हिस्सा है पूरी कृषि अर्थव्यवस्था नहीं है। डॉ. सोढ़ी ने कहा कि एमएसपी और सब्सिडी का फायदा किसान की बजाय उपभोक्ता को मिलता है।
उन्होंने कहा कि भारत में सप्लाई चैन की एफिसिएंशी काफी बेहतर है। सहकारी क्षेत्र ने इस मामले में निजी क्षेत्र के लिए भी एक बेमचमार्क स्थापित कर दिया है। किसानों को दूध की कीमत में 70 से 80 फीसदी हिस्सेदारी मिलती है। इसके चलते यहां बेहतर कीमत मिलने से किसान खुश हैं वहीं उपभोक्ता भी बिना किसी भारी उतार-चढ़ाव से बाजिब दाम पर दूध व दूध उत्पाद मिलने से खुश हैं।
सहकारिता का अहमियत समझाते हुए डॉ. सोढ़ी ने कहा कि सहकारिता प्रतिस्पर्धी माहौल तैयार करती है और उसका फायदा छोटे किसान व उरभोक्ताओं दोनों को मिलता है। इसका नतीजा तेज विकास के रूप में देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि शहरी और ग्रामीण आबादी के बीच असमानता बढ़ रही है। इस अंतर को तभी पाटा जा सकता है जब उपभोक्ता अधिक कीमत चुकाने के लिए तैयार हो और उसी से भारतीय कृषि क्षेत्र तेज गति से बढ़ सकता है।
सहकार से समृद्धि के नारे को हकीकत में बदलने की जरूरतः डॉ. चंद्रपाल सिंह यादव
रुरल वॉयस को बहुसंख्यक आबादी की आवाज बनने के लिए बधाई देते हुए कृभको के चेयरमैन डॉ. चंद्रपाल सिंह यादव ने किसान दिवस मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को श्रद्धांजलि देकर उनको याद किया।
उन्होंने कहा कि देश में आठ लाख कोआपरेटिव हैं और इनके साथ प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में 32 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं। किसानों को ऋण उपलब्ध कराने, उर्वरक उपलब्ध कराने और उनके उत्पादों को बाजार तक ले जाने में प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों (पैक्स) की बहुत अहम भूमिका है। हमें सहकार से समृद्धि के नारे को हकीकत में बदलने की जरूरत है। डॉ. यादव ने कहा कि युवाओं को सहकारिता के साथ जोड़ने की जरूरत है। ऐसा करने के बेरोजगारी, महंगाई और गरीबी जैसी समस्याओं का हल संभव है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सहकारी समितियों को चाहिए कि वह किसानों को भंडारण की सुविधा उपलब्ध कराये ताकि किसानों को अपनी उपज सस्ते में न बेचनी पड़े। उन्होंने गुजरात और महराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहा कि सहकारिता को मजबूत करने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है।
सहकारिता हमारे अंदर से आती है इसके लिए बहुत नियम कानूनों की जरूरत नहींः डॉ. डी एन ठाकुर
सहकार भारती के अध्यक्ष डॉ. डी एन ठाकुर ने अपनी बात शुरू करने के पहले कहा कि मैं कोई एक्सपर्ट तो नहीं हूं लेकिन एक प्रैक्टिशनर हूं। सहकारित हमारे दिल में है इसलिए इसे किसी नियम कानून से संचालित नहीं किया जा सकता है। किसी सहकारी समिति को नियम कानून के तहत पंजीकृत तो किया जा सकता है लेकिन केवल ऐसा करने से उसे चलाया नहीं जा सकता है। इसके लिए केवल गाइडलाइन की जरूरत है।
उन्होंने एमएसपी का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार इसे पूरी तरह लागू करने में सक्षम नहीं है। सरकार इसे कानूनी प्रावधान बना देती है तो उससे खाद्य सब्सिडी दोगुना हो जाएगी। मेरा सुझाव है कि सरकार को नेशनल कोआपरेटिव फूड ग्रिड बना देना चाहिए और एक नेशनल फार्मर प्रॉस्परिटी फंड बना देना चाहिए। उन्होंने मुफ्त खाद्यान्न आवंटन की आलोचना करते हुए रहीम के एक दोहे का उद्धरण देते हुए कहा कि मुफ्त में मिलने वाली वस्तु आपका आत्मसम्मान हर लेती है। जिस देश के लोगों में आत्म सम्मान नहीं है वह कभी तरक्की नहीं कर सकता है।
डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के आने पर सहकारी समितियों का अस्तित्व कैसे बचेगाः अजय वीर जाखड़
इस सत्र के माडरेटर और भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ ने कई अहम सवाल उठाये। उन्होंने कहा कि कई संगठन जिनमें किसान संगठन भी शामिल हैं, इस बात के पक्ष में हैं कि किसानों को उर्वरक सब्सिडी सीधे दी जाए। जिसे डीबीटी कहा जाता है। लेकिन अगर ऐसा होता है तो गांव की प्राथमिक सहकारी समितियों का अस्तित्व कैसे बचेगा। एक अन्य सवाल उठाते हुए उन्होंंने पूछा कि क्या फार्मर्स प्रॉड्यूसर आर्गनाइजेशन (एफपीओ) समस्या का समाधान हैं या खुद में एक समस्या हैं।
जाखड़ ने कहा कि मैं इस पक्ष में नहीं हूं की हम अपने गोदामों के बारे में सारी जानकारी सरकार के साथ साझा करें। यह दोतरफा होना चाहिए। जब हमें यह नहीं पता कि निजी कंपनियों के गोदामों में किसी उत्पाद की कितनी मात्रा है तो फिर सहकारी समितियां अपनी जानकारी क्यों साझा करें। अंत में अजय जाखड़ ने कहा कि क्या सरकार की योजनाएं जिसमें एमएसपी, सब्सिडी और किसान सम्मान निधि जैसी योजनाएं शामिल हैं वह छोटे किसानों के जीवन को बेहतर कर सकती हैं। क्या वह इनसे एक आत्सम्मान युक्त बेहतर जीवन जी सकती है। सरकार का जिम्मा किसानों का आमदनी नहीं बल्कि उनको एक बेहतर आजीविका प्रदान करना है।