विश्व की डेयरी बन सकता है भारत
राष्ट्रीय स्तर पर हुए आंदोलन के चलते सिस्टम से बिचौलियों को हटाने में कामयाबी मिली और यह सुनिश्चित किया गया कि पूरी वैल्यू चेन पर किसानों का नियंत्रण रहे। श्वेत क्रांति पूरी तरह से भारत के दूरदर्शी लोगों के विचारों का परिणाम थी, जबकि हरित क्रांति को पश्चिम से उधार लिया गया था
भारत की अर्थव्यवस्था पिछले चार-पांच दशकों से निरंतर विकास कर रही है। इसका कृषि, मैन्युफैक्चरिंग और सेवा जैसे अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। दुनिया ने भी भारत को एक महत्वपूर्ण वैश्विक शक्ति के रूप में स्वीकार किया है। लेकिन 1947 में स्थिति बिल्कुल अलग थी। देश औपनिवेशिक जंजीरों से तो मुक्त हो गया था लेकिन सच्चे अर्थों में आर्थिक स्वतंत्रता और खाद्य सुरक्षा हासिल करना बाकी था। आजादी के बाद हमारा पूरा फोकस देश की बढ़ती आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना था, क्योंकि उस समय भारत विकसित देशों की तरफ से मिलने वाली खाद्य सहायता पर निर्भर था।
देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने आणंद में संभावनाओं की तलाश की और आगे चलकर डॉ वर्गीज कुरियन के साथ चर्चा के बाद राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड का ढांचा तैयार हुआ। यह नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की निगरानी में बना था। इस बोर्ड ने ग्रामीण भारत में सामाजिक आर्थिक क्रांति ला दी और 'अरब लीटर' के विचार को अमली जामा पहनाया। उसी का नतीजा है कि विश्व के दुग्ध क्षेत्र में भारत आज शीर्ष देशों में शामिल है। ऑपरेशन फ्लड के तहत दुग्ध कोऑपरेटिव के अमूल मॉडल को पूरे देश में अपनाया गया। राष्ट्रीय स्तर पर इस आंदोलन के चलते सिस्टम से बिचौलियों को हटाने में कामयाबी मिली और यह सुनिश्चित किया गया कि पूरी वैल्यू चेन पर किसानों का नियंत्रण रहे। यह श्वेत क्रांति पूरी तरह से भारत के दूरदर्शी लोगों के विचारों का परिणाम थी, जबकि हरित क्रांति को पश्चिम से उधार लिया गया था।
आज भारत का डेरी और पशुपालन क्षेत्र 10 करोड़ ग्रामीण परिवारों के लिए आय का मुख्य साधन बन गया है। इसने खास तौर से सीमांत और महिला किसानों को रोजगार तथा टिकाऊ आजीविका का साधन मुहैया कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कृषि अर्थव्यवस्था में डेरी और पशुपालन का हिस्सा करीब 30% है। डेयरी क्षेत्र इकोनॉमी में 9.6 लाख करोड रुपए का योगदान करता है जबकि पोल्ट्री, फिशरीज और अन्य संबंधित क्षेत्रों का योगदान तीन लाख करोड़ रुपए है। देश में हर साल जितने दूध का उत्पादन होता है उसका मूल्य गेहूं, धान और दालों के कुल मूल्य से भी ज्यादा है। इस तरह देसी बिजनेस मॉडल को अपनाते हुए भारत ने डेयरी सेक्टर में आत्मनिर्भरता हासिल की है।
भारत के डेयरी क्षेत्र की विशाल सफलता के पीछे दो दर्शन माने जा सकते हैं-
- वैल्यू फॉर मेनी: मतलब हमारे किसानों ने जितना दूध निकाला उसकी उन्हें अधिकतम कीमत मिली। उपभोक्ता दूध के लिए जितना पैसा देता है उसका 70 से 80% किसानों को मिलता है। इसके विपरीत अमेरिका और यहां तक कि यूरोप के देशों में भी किसानों को 35 से 40 फ़ीसदी हिस्सा ही मिलता है।
- वैल्यू फॉर मनी: भारत का डेयरी सेक्टर इतना आगे बढ़ा तो इसके पीछे एक बड़ी वजह है यह भी है कि यहां के मध्य वर्ग को अच्छी क्वालिटी के प्रोडक्ट कम कीमत पर मिले।
औसत ग्राहक दूध के पोषण के महत्व को समझता है। बाजार में निजी और कोऑपरेटिव दोनों ब्रांड की मौजूदगी के कारण उन्हें उत्पाद कम कीमत पर मिलते हैं।
डेयरी सेक्टर में कोऑपरेटिव की मौजूदगी से उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों का लाभ सुनिश्चित हुआ है। कोऑपरेटिव ने ऐसे मानक स्थापित किए हैं जिन्हें निजी क्षेत्र हासिल करने की कोशिश करता रहता है। आर्थिक पहलू के अलावा भारत का डेयरी उद्योग एक सक्षम सप्लाई चेन मैनेजमेंट और तकनीकी इंटीग्रेशन का भी सफल उदाहरण बन गया है।
भारत के डेयरी सेक्टर में कोऑपरेटिव मॉडल कितना सक्षम और प्रभावी है यह बात आंकड़ों से साबित होती है। 1950 में जब भारत खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहा था उस समय हमारा कुल दूध उत्पादन सिर्फ 1.7 करोड़ टन था।
1970 के दशक में ऑपरेशन फ्लड शुरू हुआ तो भारत दूध के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर था, जिस तरह आज हम खाद्य तेल आयात पर निर्भर करते हैं। दूध उत्पादन 2.1 करोड़ टन पर स्थिर था और विश्व के कुल 42.5 करोड़ टन उत्पादन में भारत का हिस्सा सिर्फ 5% था। अमेरिका की तुलना में एक तिहाई और यूरोप की तुलना में आठवें हिस्से के बराबर दूध उत्पादन भारत में होता था।
ऑपरेशन फ्लड के नतीजे तब देखने को मिले जब 1997 में भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बना। यहां सालाना 7.4 करोड़ टन दूध का उत्पादन हो रहा था। उस दौरान देश में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 110 ग्राम से बढ़कर 214 ग्राम हो गई थी। 1997 से लेकर आज तक भारत दुनिया का शीर्ष दुग्ध उत्पादक बना हुआ है। आज यहां 21 करोड़ टन दूध का उत्पादन होता है और दुनिया के 91 करोड टन उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23% पहुंच गई है। अन्य देशों से तुलना करें तो अमेरिका की तुलना में भारत का उत्पादन दोगुना और यूरोप से 30% ज्यादा है।
भारत में दूध का उत्पादन पिछले 20 वर्षों के दौरान सालाना 4.8% की दर से औसत दर से बढ़ा है, जबकि इस अवधि में दूध का वैश्विक उत्पादन 1.8% के और सबसे बढ़ा है। सच तो यह है कि दूध के उत्पादन में जो वृद्धि हुई है उसके 50% से ज्यादा भारत, पाकिस्तान और दक्षिण एशियाई देशों से आया है।
सालाना 4.6% की अनुमानित वृद्धि दर से भारत 2047 तक 63 करोड़ टन के स्तर को हासिल कर सकता है। उस समय दूध का वैश्विक उत्पादन 135 से 140 करोड़ टन रहने का अनुमान है। इस तरह विश्व के दूध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 45% होगी।
हालांकि अन्य उद्योगों की तरह डेयरी और पशुपालन उद्योग के सामने भी चुनौतियां हैं। अगले 25 वर्षों (2047 तक) में 63 करोड़ टन दूध उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को तत्काल निर्यात के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी क्षमता विकसित करने की आवश्यकता है। 2047 तक देश में 10 करोड़ टन सरप्लस दूध उपलब्ध होगा जिससे निर्यात के काफी अवसर निकलेंगे। अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिक्री के नए बाजार नहीं तलाशे गए तो किसानों को उचित कीमत नहीं मिल पाएगी और वह डेयरी बिज़नेस को अपनाने के प्रति हतोत्साहित होंगे।
अगले 2 वर्षों के दौरान भारत के डेयरी सेक्टर को अपनी स्थिति मजबूत करने और नई दिशाएं तलाशने की आवश्यकता है। डेयरी और पशुपालन को नई पीढ़ी के डेयरी किसानों के सामने आर्थिक रूप से मुनाफे वाले सेक्टर के रूप में रखा जाना चाहिए। देश के नेतृत्व को इस क्षेत्र की कमजोरियों के साथ संभावनाओं को भी समझना पड़ेगा। इसलिए हमारे प्रमुख लक्ष्यों में एक राजनीतिक नेतृत्व और नीति निर्माताओं को इस लिहाज से संवेदनशील बनाने की जरूरत है। देश की जीडीपी में डेयरी सेक्टर जो योगदान कर रहा है उसी अनुपात में इसके लिए बजट आवंटन भी होना चाहिए। इसके साथ साथ हमें 2050 में देश के 165 करोड़ लोगों की खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना चाहिए।
हमारे सामने भारत को विश्व की डेयरी के रूप में स्थापित करने का मौका है। चाहे वह कोऑपरेटिव सेक्टर के कामकाज का तरीका हो, उनके मॉडल को लागू करना हो, विशेषज्ञता का इस्तेमाल हो या फिर नई मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी अपनाने की बात हो, हमें अपने आप को इस तरह तैयार करने की जरूरत है कि विश्व डेयरी क्षेत्र में हर समाधान के लिए भारत की ओर देखे। हमारा लक्ष्य सिर्फ सबसे बड़ा उत्पादक बनना नहीं होना चाहिए, बल्कि भारत और विश्व के लोगों के लिए सेहत और पोषण भी सुनिश्चित करना होना चाहिए। इससे भारत के डेयरी किसान की संपन्नता की लगातार बढ़ती रहेगी।
(लेखक गुजरात कोआपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ), अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर और इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट हैं)