फसल विविधता पर दिल्ली में 19 से 24 सितंबर तक सम्मेलन, 202 देशों के प्रतिनिधि होंगे शामिल
फसल विविधता में कई साझीदार होते हैं- किसान, स्थानीय समुदाय, जीन बैंक मैनेजर और शोधकर्ता जो साथ मिलकर काम करते हैं। लेकिन उनकी कहीं चर्चा नहीं होती है। दुनिया भर में स्थापित जीन बैंक बीजों को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
खाद्य और कृषि के लिए प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज पर अंतर्राष्ट्रीय संधि (आईटीपीजीआरएफए) की गवर्निंग बॉडी का नौवां सम्मेलन 19 से 24 सितंबर 2022 तक दिल्ली में आयोजित किया जाएगा। इस गवर्निंग बॉडी की बैठक हर दो साल में होती है। नई दिल्ली में होने वाली बैठक की थीम फसल विविधता के अनाम संरक्षकों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता दिलाना है।
इस सम्मेलन में 202 देशों के प्रतिनिधि, विभिन्न देशों के 50-60 कृषि मंत्री, संयुक्त राष्ट्र और विशिष्ट एजेंसियों के 20 प्रतिनिधि, 43 अंतर सरकारी संगठन, 75 अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन और अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर 13 सलाहकार समूह भाग ले रहे हैं। आठवां सम्मेलन 2019 में रोम में आयोजित किया गया था। उसी सम्मेलन में नौवां सम्मेलन भारत में 2021 में आयोजित करने की घोषणा की गई थी। लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण पिछले साल इसका आयोजन नहीं हो सका।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि दुनिया इस समय जलवायु परिवर्तन, जैव विविधिता को नुकसान और बढ़ती खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही है। इस परिदृश्य में फसलों की विविधता को संरक्षित करना भविष्य के लिए जरूरी हो जाता है। फसल विविधता में कई साझीदार होते हैं- किसान, स्थानीय समुदाय, जीन बैंक मैनेजर और शोधकर्ता जो साथ मिलकर काम करते हैं। लेकिन उनकी कहीं चर्चा नहीं होती है। दुनिया भर में स्थापित जीन बैंक बीजों को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमें विविध प्रकार के खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने में किसानों और स्थानीय समुदायों की भूमिका अहम होती है। इसलिए जरूरी है कि फसल विविधता के संरक्षकों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान मिले।
‘अंतरराष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष 2023’ के देखते हुए इस सम्मेलन में मोटे अनाज पर विशेष सत्र होगा। इसमें कहा गया है कि कोरोना महामारी और हाल ही में रूस-यूक्रेन युद्ध ने हमारी कमजोरियों को उजागर कर दिया है। इसलिए फसल विविधता को बचाना महत्वपूर्ण है।
आईटीपीजीआरएफए को नवंबर 2001 में एफएओ के सम्मेलन के 31वें सत्र में अपनाया गया था। 29 जून, 2004 को लागू हुई संधि को भारत सहित 149 देशों ने अनुमोदित किया है। कृषि में हर देश का अपना जर्मप्लाज्म और अपनी जैव विविधता है। इसका संरक्षण, पहुंच, लाभ साझा करना और किसानों के अधिकारों की सुरक्षा - इन सभी मुद्दों पर सम्मेलन में चर्चा की जाएगी।
इस सम्मेलन से पहले कृषि में किसान कल्याण मंत्रालय ने 16 सितंबर को एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस मौके पर कृषि सचिव ने कहा कि किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए जैव विविधता की रक्षा करना जरूरी है। आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि विभिन्न देशों के पास उपलब्ध प्लांट जेनेटिक रिसोर्स नई किस्मों के लिए बेस मैटेरियल का काम करेंगे ताकि बेहतर क्वालिटी और उत्पादकता वाले बीज तैयार किए जा सकें।
आईटीपीजीआरएफए के सचिव केंट नंदोजी ने कहा कि यह सम्मेलन सभी भागीदार देशों को प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज के संरक्षण के लिए साझा मंच उपलब्ध कराएगा। इससे किसानों को फायदा होगा। उन्होंने यह भी कहा कि विभिन्न देशों में तकनीकी विकास को साझा करने से जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों के असर को कम करने में मदद मिलेगी।