पैकिंग वाले खाद्य पदार्थों की हर 6 महीने में जांच कराने के एफएसएसएआई के आदेश का विरोध, छोटे निर्माताओं की मुश्किलें बढ़ेंगी
एनजीओ तथा सिविल सोसायटी ग्रुप ने एफएसएसएआई के चेयरपर्सन और सीईओ को पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि फूड मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस में लगे लाखों छोटे और मझोले उपक्रमों के लिए यह आदेश आर्थिक रूप से मुश्किलें पैदा करेगा। इस तरह की ऑनलाइन व्यवस्था भी अपने आप में काफी कठिन होगी।
फूड रेगुलेटर एफएसएसएआई के हाल के आदेश पर विभिन्न गैर सरकारी संगठनों और सिविल सोसाइटी ग्रुप ने सवाल उठाए हैं। इस आदेश में रेगुलेटर ने सभी फूड बिजनेस ऑपरेटर (एफबीओ) के लिए हर 6 महीने में सभी खाद्य पदार्थों की जांच करवाने और उनकी लैब रिपोर्ट को पोर्टल पर अपलोड करने का निर्देश दिया है। फूड बिजनेस ऑपरेटर में मैन्युफैक्चरर, री-पैक्स और री-लेवलर आदि आते हैं।
इन एनजीओ तथा सिविल सोसायटी ग्रुप के अलावा अनेक जाने-माने लोगों ने भी इस आदेश की आलोचना की है। उन्होंने रेगुलेटर से इस आदेश को वापस लेने का आग्रह किया है। उनका कहना है कि देश में लाखों की संख्या में छोटे मैन्युफैक्चर हैं। उनके लिए हर प्रोडक्ट की जांच करवाना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं होगा।
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के चेयरपर्सन और सीईओ को इन सबने एक पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि फूड मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस में लगे लाखों छोटे और मझोले उपक्रमों के लिए यह आदेश आर्थिक रूप से मुश्किलें पैदा करेगा। इस तरह की ऑनलाइन व्यवस्था भी अपने आप में काफी कठिन होगी ।
उन्होंने यह भी कहा है कि इस आदेश के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नजर नहीं आता है। पत्र में कहा गया है, “यह देश के छोटे और मझोले फूड बिजनेस ऑपरेटर्स को खत्म करने का एक रास्ता है। इससे फूड इंडस्ट्री के बड़े ब्रांड को फायदा होगा और वे छोटी तथा मझोली कंपनियों को खरीद लेंगे। एफएसएसएआई के नियम ऐसे बड़े ब्रांड के पक्ष में होते हैं, छोटे फूड बिजनेस ऑपरेटर के नहीं। ऐसा पहले भी देखा गया है।”
पत्र में कहा गया है, “हम सामूहिक रूप से आपसे इस आदेश को तत्काल वापस लेने का आग्रह करते हैं। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एफएसएसएआई की तरफ से जांच सैपलिंग और टेस्टिंग की व्यवस्था ही होनी चाहिए। जब रेगुलेटर के पास जांच और सैंपलिंग की व्यवस्था है, खाद्य सुरक्षा अधिकारी और खाद्य विश्लेषक हैं, तो खाद्य पदार्थों की जांच की जिम्मेदारी मैन्युफैक्चर पर क्यों दी जा रही है?”
पत्र में हितों के टकराव की भी बात कही गई है। साथ ही कहा गया है कि जांच पर होने वाले खर्च का क्या होगा। इसे फूड बिजनेस ऑपरेटर को कौन और कैसे लौटाएगा? हर प्रोडक्ट के लिए जांच की लागत 5000 से 19500 रुपए तक आती है। यानी साल में दो बार जांच कराने पर हर प्रोडक्ट के लिए कम से कम 10000 का खर्च आएगा। अनेक कंपनियां 15 से 20 तरह के प्रोडक्ट बनाती हैं। उनकी लागत काफी बढ़ जाएगी। (शहद की जांच की लागत 30,000 रुपए आती है। भारी धातुओं की जांच के लिए प्राइवेट लैब 13000 रुपए के आसपास लेते हैं।)
सालाना 12 लाख रुपए से कम टर्नओवर वाले एफबीओ से जोखिम कम है, इसलिए उन्हें सिर्फ रेगुलेटर के पास रजिस्ट्रेशन कराने की जरूरत है। 12 लाख रुपए से अधिक टर्नओवर वाले बिजनेस को लाइसेंस की जरूरत है।
150 लोगों और संस्थाओं के दस्तखत वाले इस पत्र में लैब की उपलब्धता की भी बात कही गई है। पत्र के मुताबिक, “एफएसएसएआई ने तमाम पैरामीटर पर जांच की बात कही है, क्या देश में इतने बड़े पैमाने पर जांच की सुविधा है जो लगातार लाखों सैंपल का परीक्षण कर सकें?” दस्तखत करने वालों में सेव आवर राइस नेटवर्क, अलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा), सेफ फूड अलायंस, तमिलनाडु ऑर्गेनिक फार्मर्स फेडरेशन और बीज स्वराज अभियान भी शामिल हैं।