मध्य प्रदेश को बासमती के भौगोलिक क्षेत्र में शामिल करने की कोशिशें फिर तेज
करीब छह माह पहले केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश सरकार के आग्रह पर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) को इस मुद्दे पर अपनी राय देने के लिए कहा था। उसके बाद से दो बार कृषि मंत्रालय में इस मुद्दे पर बैठक हो चुकी हैं।
ज्योग्राफिक इंडिकेशन (जीआई) के लिए बासमती धान के भौगोलिक क्षेत्र में मध्य प्रदेश को शामिल करने की मुहिम ठंडी नहीं पड़ी है। बल्कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के केंद्रीय कृषि मंत्री बनने के बाद ये कोशिशें जोर पकड़ रही हैं। करीब छह माह पहले केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश सरकार के आग्रह पर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) को इस मुद्दे पर अपनी राय देने के लिए कहा था। उसके बाद से दो बार कृषि मंत्रालय में इस मुद्दे पर बैठक हो चुकी हैं। यह स्थिति तब है जबकि मध्य प्रदेश को बासमती क्षेत्र में शामिल करने का प्रयास कर रहा संगठन और राज्य सरकार इस मुद्दे पर बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (आईपीएबी) और मद्रास हाई कोर्ट में सफलता नहीं मिली थी।
अहम बात यह है कि पिछली सरकार में कृषि मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर के समय भी मध्य प्रदेश को बासमती उत्पादक क्षेत्र में शामिल करने की कोशिश की गई थी लेकिन बात नहीं बनी। मौजूदा सरकार में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी मध्य प्रदेश से हैं। यह मामला उनके पास भी पहुंचा और करीब छह माह पहले उन्होंने इसे आईसीएआर के माध्यम से आईएआरआई के पास भेज दिया था।
लेकिन दिलचस्प बात यह है कि एक ओर जहां भारत में बासमती के भौगोलिक क्षेत्र में मध्य प्रदेश को शामिल करने की कोशिशें जारी हैं वहीं, दूसरी तरफ यूरोपीय यूनियन में बासमती के ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) मामले में पाकिस्तान के आवेदन पर भारत ने आपत्ति दर्ज करते हुए भारत के उन्हीं सात राज्यों को उत्पादन क्षेत्र बताया है जो जीआई मेें शामिल हैं। आईसीएआर एक एक वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि भारत द्वारा पाकिस्तान में नये क्षेत्रों को शामिल करने के पुरजोर विरोध के बाद देश में नये क्षेत्र शामिल करना लगभग असंभव है।
बासमती पर भारत-पाक विवाद
बासमती को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच कई वर्षों से विवाद चल रहा है। पाकिस्तान ने 2022 में यूरोपीय यूनियन (ईयू) में बासमती के जीआई के लिए आवेदन किया था। तब पाकिस्तान के आवेदन पर आपत्ति जताते हुए भारत ने इसे रद्द करने की मांग की। पाकिस्तान ने अपने आवेदन में 44 जिलों में बासमती उगाने का दावा किया है। जिनमें बलूचिस्तान जैसे इलाके भी शामिल हैं जहां सामान्य चावल पैदा करना भी मुश्किल है। पाकिस्तान ने इस सूची में पाक अधिकृत कश्मीर के चार जिलों को भी शामिल किया था।
इससे पहले साल 2008 में बासमती के जीआई के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान की एक संयुक्त बैठक में एक ग्रुप बनाया गया था। इसमें दोनों देशों के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी शामिल थे। तब तय किया गया था कि बासमती के लिए पाकिस्तान के 14 जिलों को उत्पादन क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया जाएगा, वहीं भारत के सात राज्यों पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और जम्मू एवं कश्मीर को बासमती उत्पादक क्षेत्र माना जाएगा। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में तय किया गया था कि दोनों देश संयुक्त रूप से बासमती के जीआई टैग के लिए आवेदन करेंगे। लेकिन दोनों देशों के बीच आपसी संबंध बिगड़ने के चलते यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
इस बीच, भारत ने 2018 में बासमती के जीआई टैग के लिए ईयू में आवेदन किया। लेकिन ईयू ने भारत के आवेदन को ठंडे बस्ते में डाल दिया। जबकि पाकिस्तान ने 2022 में आवेदन किया तो ईयू ने उसे फास्ट ट्रैक से आगे बढ़ाया। भौगोलिक संकेत (जीई) के तहत आवेदन की शर्त है कि मूल देश में उत्पाद को जीआई टैग के लिए अधिसूचित होना चाहिए। भारत में जीआई के लिए कानून 1999 में बन गया था। लेकिन पाकिस्तान में इसके लिए कानून ही 2022 में बना। तब जाकर पाकिस्तान ने बासमती को जीआई टैग दिया। साथ ही पाकिस्तान ने बासमती के उत्पादक जिलों की संख्या 14 से बढ़ाकर 44 कर दी।
इसके अलावा पाक अधिकृत कश्मीर के चार जिले भी जोड़ दिये गये और जिलों की संख्या 48 हो गई। पाकिस्तान में जीआई टैग के लिए आवेदन को पब्लिक करने का प्रावधान नहीं है इसलिए भारत को पाकिस्तान के इस कदम की पूरी जानकारी नहीं मिल पाई। लेकिन ईयू में आवेदन के बाद जब पाकिस्तान के आवेदन को आपत्तियों के लिए सार्वजनिक किया गया तो भारत को बासमती पर पाकिस्तान की चाल का पता लगा।
एमपी को बासमती क्षेत्र में शामिल करने की कवायद
एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने रूरल वॉयस को बता कि पाकिस्तान के आवेदन पर भारत आधिकारिक रूप से अपनी आपत्ति दर्ज करा चुका है। उसमें भारत में बासमती उत्पादन के पारंपरिक क्षेत्र की बात भी कही गई है। इस मामले में भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ जो रुख अपनाया गया है उसके चलते मध्य प्रदेश को बासमती उत्पादन क्षेत्र में शामिल करने का कोई तर्क नहीं रह जाता है। अगर अब भारत बासमती क्षेत्र में मध्य प्रदेश को शामिल करता है तो इससे पाकिस्तान के खिलाफ दलील कमजोर होगी। भौगोलिक संकेत (जीआई) की अवधारणा के हिसाब से भी मध्य प्रदेश को बासमती उत्पादक क्षेत्र घोषित करने का कोई पुख्ता आधार नहीं है।
जब मध्य प्रदेश का मामला बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड में पहुंचा तो मध्य प्रदेश की ओर से कई पैरोकार थे। लेकिन भारत सरकार इसके विरोध में थी और उसके साथ ही पाकिस्तान भी इसमें पक्षकार था। आईपीएबी में प्रतिकूल फैसले के बाद मध्य प्रदेश की ओर से मद्रास हाई कोर्ट में मामला दायर किया लेकिन वहां भी सफलता नहीं मिली। उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा आया। सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर भी बहस हुई कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पूरे राज्य में बासमती पैदा नहीं होता है लेकिन बासमती उत्पादक क्षेत्र के तौर पर पूरे राज्यों को चिन्हित किया गया है। इस मुद्दे पर विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मामले को वापस मद्रास हाई कोर्ट भेज दिया और अभी मामला उसी स्तर पर है।