कुल खाद्य तेल खपत में 38% से अधिक हुआ पाम ऑयल का हिस्सा, घरेलू उत्पादन बढ़ाने के प्रयास
पाम ऑयल पर भारत की निर्भरता बढ़ रही है। देश के कुल खाद्य तेल उपभोग में 38% से अधिक हिस्सा पाम ऑयल का हो गया है। इस मांग को पूरा करने के लिए 2025-26 तक अतिरिक्त 6 लाख हेक्टेयर तक पाम ऑयल की खेती के क्षेत्र के विस्तार करने की जरूरत है। इस विस्तार से घरेलू उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है। संकेत है कि कच्चे पाम ऑयल का उत्पादन 2025-26 तक 11.2 लाख टन तक पहुंच सकता है। यह 2029-30 तक 28 लाख टन तक पहुंच सकता है।
पाम ऑयल पर भारत की निर्भरता बढ़ रही है। देश के कुल खाद्य तेल उपभोग में 38% से अधिक हिस्सा पाम ऑयल का हो गया है। इस मांग को पूरा करने के लिए 2025-26 तक अतिरिक्त 6 लाख हेक्टेयर तक पाम ऑयल की खेती के क्षेत्र के विस्तार करने की जरूरत है। इस विस्तार से घरेलू उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है। संकेत है कि कच्चे पाम ऑयल का उत्पादन 2025-26 तक 11.2 लाख टन तक पहुंच सकता है। यह 2029-30 तक 28 लाख टन तक पहुंच सकता है।
इंदौर में "पाम ऑयल - स्वास्थ्य और पोषण के लिए धारणाओं में बदलाव" पर आयोजित कार्यशाला में ये बातें कही गईं। इसका आयोजन सॉलिडारिडाड, एशियन पाम ऑयल एलायंस एवं द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने संयुक्त रूप से किया। कार्यशाला में पोषण विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और खाद्य तेल उद्योग द्वारा पाम ऑयल के गुणों और भारत के खाद्य तेल परिदृश्य में इसकी भूमिका पर चर्चा की गई। कार्यशाला का मुख्य फोकस पाम ऑयल के स्वास्थ्य संबंधी गुणों पर प्रकाश डालते हुए इसके बारे में फैली गई भ्रामक जानकारियों को दूर करना है।
इस अवसर पर एशियन पाम ऑयल अलायंस के चेयरमैन अतुल चतुर्वेदी ने बताया कि दुनिया में पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक होने के नाते भारत खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत में सदियों से पाम ऑयल का इस्तेमाल कई खाद्य और गैर-खाद्य उत्पादों में होता रहा है। हालांकि, हाल के वर्षों में स्वास्थ्य, पोषण और पर्यावरण पर इसके प्रभाव के बारे में भ्रामक रिपोर्ट सामने आई हैं, जिससे हमारे किसानों, खासकर छोटे किसानों को नुकसान हुआ है और हमारी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा है।
डॉ. शतद्रु चट्टोपाध्याय, प्रबंध निदेशक, सॉलिडारिडाड एशिया ने मानकों के अनुसार स्वस्थ्य कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देते बताया कि महत्वपूर्ण फसल होने के बाद भी पाम ऑयल के विषय में गलत धारणाएं न केवल इस उद्योग की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती हैं। छोटे किसान भी इससे प्रभावित हो रहे हैं।
द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अजय झुनझुनवाला ने कहा कि हम भारतीय पाम ऑयल उद्योग में टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। किसानों को भारतीय पाम ऑयल स्थिरता मानक अपनाने के लिए प्रोत्साहित करके, हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि हमारी कृषि पद्धतियां पर्यावरण के अनुकूल और सामाजिक रूप से जिम्मेदार हों।
एसईए के कार्यकारी निदेशक डॉ. बीवी मेहता ने पाम के आर्थिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया, "भारत प्रतिवर्ष लगभग 90 लाख टन पाम ऑयल का आयात करता है, जिससे साफ है कि स्थानीय स्तर पर पाम की खेती बढ़ाने की आवश्यकता है। देश में कुल खाद्य तेल खपत में से पाम ऑयल की खपत 38% से अधिक हो गई है। सोयाबीन, सरसों और सूरजमुखी के तेलों की खपत भी उसके बाद है। खाद्य तेल उद्योग में अग्रणी होने के नाते, हम अपने किसानों को लाभ पहुंचाने और घरेलू उत्पादन को मजबूत करने के लिए पाम ऑयल के न्यूनतम विक्रय मूल्य को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"
गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड में ऑयल पाम बिजनेस के सीईओ सौगाता नियोगी ने कहा बताया कि ‘खाद्य तेलों का राष्ट्रीय मिशन - ऑयल पाम’ हमारे देश के लिए खाद्य तेल आयात को कम करने की दिशा में एक सही कदम है। पाम 3-4 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष उपज देने की क्षमता के साथ, अन्य वनस्पति तेल की तुलना में अधिक उपज देने वाली फसल है। इसमें गन्ना और धान जैसी अन्य फसलों की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। ऑयल पाम क्षेत्र में जैव विविधता को बढ़ाने में भी सहायता करता है।
एनजी रंगा कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व डीन और पोषण विशेषज्ञ डॉ. विजया खादेर ने पाम ऑयल की गुणवत्ता पर कहा कि कई अध्ययनों से पता चलता है कि पाम ऑयल में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसी कारण से खाद्य और गैर-खाद्य दोनों उत्पादों में इसका उपयोग होता है। पाम ऑयल के बारे में कोई भी राय बनाने से पहले, यह जरूरी है कि लोग इसके गुणों के बारे में अच्छे से पढ़ें और समझे तभी वह केवल सुनी-सुनाई बातों पर भरोसा करने के बजाय सही निर्णय ले पाएंगे।