गन्ना एसएपी में देरी और बकाया बना किसानों के गुस्से की वजह, कृषि कानूनों के खिलाफ यूपी में आंदोलन हो रहा तेज

राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) की घोषणा में देरी गन्ना मूल्य के बकाया भुगतान में देरी का केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को फायदा मिलता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश में किसानों के लिए गन्ना मूल्य और उसके भुगतान में देरी हमेशा एक बड़ा मुद्दा रहा है। रुरल वॉयस ने भाकियू के मुख्यालय सिसौली के अलावा मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर और शामली जिलों के गांवों में किसानों से आंदोलन के असर की जमीनी स्थिति जानने कोशिश की।

गन्ना एसएपी में देरी और बकाया बना किसानों के गुस्से की वजह, कृषि कानूनों के खिलाफ यूपी में आंदोलन हो रहा तेज

सिसौली, मुजफ्फरनगर।

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) की घोषणा में देरी गन्ना मूल्य के बकाया भुगतान में देरी का केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को फायदा मिलता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश में किसानों के लिए गन्ना मूल्य और उसके भुगतान में देरी हमेशा एक बड़ा मुद्दा रहा है। इसी को भुनाने के लिए 2014 के चुनावों में उस समय भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और मौजूदा प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी ने गन्ना किसानों को आपूर्ति के  14 दिनों में भुगतान का वादा किया था। लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। राज्य सरकार ने अभी तक चालू पेराई सीजन (2020-21)  के लिए गन्ने का एसएपी तय नहीं किया है। इसके पहले अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार ने एसएपी घोषणा में देरी का रिकार्ड बनाते हुए 18 जनवरी 2016 को एसएपी की घोषणा की थी। लेकिन चालू सीजन में देरी का यह रिकार्ड भी टूट रहा है। वहीं चीनी मिलों पर 14 जनवरी, 2021 तक गन्ना मूल्य भुगतान का बकाया 12,104 करोड़ रुपये हो गया है। इस दोहरे मुद्दे ने राज्य के किसानों की नाराजगी को बढ़ाने का काम किया है। इन दो वजहों के चलते कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों का समर्थन बढ़ रहा है। आगामी 26 जनवरी को आंदोलन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की तादाद लाखों में पहुंचने का दावा केवल भातीय किसान यूनियन (भाकियू) के पदाधिकारी ही  नहीं बल्कि यहां के आम किसान भी इस दावे को सही बता रहे हैं। गांवों में मौजूद किसानों के रुख को जानने के लिए रुरल वॉयस ने भाकियू के मुख्यालय सिसौली के अलावा मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर और शामली जिलों के गांवों में किसानों से आंदोलन के असर की जमीनी स्थिति जानने कोशिश की। जिसमें यह बातें उभरकर सामने आई हैं।  

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इस गन्ना बेल्ट में किसान 70 फीसदी से ज्यादा जमीन में गन्ने की खेती करते हैं। लेकिन अभी तक राज्य सरकार ने चालू पेराई सीजन (2020-21) का एसएपी तय नहीं किया है। इसके चलते किसानों द्वारा जो गन्ना आपूर्ति की जा रही है उस पर एसएपी और गन्ना के कुल मूल्य के सामने जीरो लिखा जा रहा है। हालांकि राज्य सरकार आधिकारिक रूप से आंकड़े जारी नहीं कर रही है। लेकिन उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 14 जनवरी 2021 तक राज्य में कुल 420 लाख टन गन्ना आपूर्ति की गई थी। पिछले साल के एसएपी के आधार पर इसका भुगतान 13468 करोड़ रुपये बनता है। जिसमें से 4132 करोड़ रुपये का भुगतान उक्त तिथि के आंकड़ों के मुताबिक किया गया है। यह भुगतान पिछले साल  एसएपी को आधार बनाकर किया गया है। जबकि 9336 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया है। वहीं पिछले सीजन (2019-20) में किसानों ने चीनी मिलों को 1118 लाख टन गन्ने की आपूर्ति की थी और उसका भुगतान  35899 करोड़ रुपये बना था। जिसमें से 14 जनवरी तक 2018 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया था। इस तरह से 14 जनवरी, 2021 तक चीनी मिलों पर किसानों का कुल 11354 करोड़ रुपये का बकाया था। पिछले साल के बकाया में 750 करोड़ रुपये का ब्याज जोड़ देने पर कुल बकाया 12104 करोड़ रुपये बनता है। इसमें पिछले साल के ब्याज समेत बकाया की हिस्सेदारी 2768 करोड़ रुपये बनती है। उत्तर प्रदेश सरकार के चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग की वेबसाइट पर दी गई 18 जनवरी, 2021 तक की जानकारी के मुताबिक पिछले सीजन का भुगतान 34050 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। इस आधार पर पिछले साल का बकाया 1849 करोड़ रुपये बैठता है। विभाग के मुताबिक चालू सीजन  का भुगतान बढ़कर 4448 करोड़ रुपये हो गया है। हालांकि विस्तृत जानकारी के बिना यह गणना संभव नहीं  है कि इस तिथि को कुल बकाया कितना है क्योंकि यहां 18 जनवरी तक के विस्तृत आंकड़े यहां उपलब्ध नहीं हैं।

उत्तर प्रदेश में गन्ने का एसएपी

साल

एसएपी

बढ़ोततरी (रु)

फीसदी में बढ़ोतरी

कब हुई घोषित

किसकी सरकार

 

2007-08

125

00

 

 

बसपा

मई 2007

2008-09

140

15

12

 

बसपा

से मार्च

2009-10

165

25

18

9 अक्टूबर

बसपा

मार्च 2012

2010-11

205

40

24

10 नवंबर

बसपा

बढ़ोतरी

2011-12

240

35

17

11 नवंबर

बसपा

115 रुपये

2012-13

280

40

17

12 दिसंबर

सपा

मार्च 2012

2013-14

280

00

00

13 नवंबर

सपा

से मार्च

2014-15

280

00

00

14 नवंबर

सपा

2017

 

2015-16

280

00

00

16 जनवरी

सपा

बढ़ोतरी

 

2016-17

305

25

09

16 नवंबर

सपा

65 रुपये

 

2017-18

315

10

03

17 अक्टूबर

भाजपा

मार्च -17

 

2018-19

315

00

00

18 नवंबर

भाजपा

 

 

2019-20

 

 

 

 

भाजपा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

राज्य सरकार ने अभी तक चालू सीजन के लिए एसएपी क्यों घोषित नहीं किया उसका कोई जवाब चीनी उद्योग के पास नहीं है और सरकार में भी कोई इस पर बोलने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन कयास यह लगाये जा रहे हैं कि किसानों के आंदोलन के चलते यह देरी हो रही है। अगर सरकार कम बढ़ोतरी करती है तो उससे किसान भड़क सकते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि यह देरी किसानों की नाराजगी बढ़ा रही है। अगर मौजूदा और पिछली दो सरकारों की बात करें तो सबसे कम बढ़ोतरी योगी सरकार के समय में हुई है। साल 2007 में मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी की सरकार आई तो राज्य में गन्ने का एसएपी 125 रुपये प्रति क्विटंल था  लेकिन उनके कार्यकाल में यह 240 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया यानी कुल 115 रुपये प्रति  क्विटंल की बढ़ोतरी उनके कार्यकाल में हुई। मायावती सरकार के कार्यकाल में गन्ने के एसएपी में जब बढ़ोतरी हुई तो वह 12 फीसदी से 24 फीसदी तक रही। साल 2012 में सत्ता में आई मुख्यमंमत्री अखिलेश यादव की सरकार ने गन्ने के एसएपी में कुल 65 रुपये की बढ़ोतरी दो बार में कर इसे 305 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंचाया लेकिन  तीन साल एसएपी को स्थिर रखा। इस सरकार के कार्यकाल में दो बार की गन्ने के एसएपी की बढ़ोतरी 9 फीसदी और 17 फीसदी रही। लेकिन इन दोनों सरकारों के उलट भाजपा की मौजूदा सरकार ने 2017-18 के सीजन की अकेली 10 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की जो तीन फीसदी बैठती है। वहीं इसके बाद के दो सीजन 2018-19 और 2019-20 में एसएपी में कोई बढ़ोतरी नहीं की और उसे स्थिर रखा है। चालू पेराई सीजन का एसएपी अभी तक घोषित नहीं हुआ है। अगर यह 18 जनवरी को घोषित नहीं होता है तो यह एसएपी की घोषणा में देरी रिकार्ड भी बना जाएगा।

किसान आंदोलन और गन्ना के मुद्दे पर मुजफ्फरनगर जिले के खरड़ गांव के 40 वर्षीय और 12 बीघा की काश्त वाले किसान अमित मलिक का कहना है कि दिल्ली में किसान जिस कांट्रैक्ट खेती के कानून के खिलाफ लड़ रहे हैं हम तो पहले से ही उसके नीचे है। चीनी मिल कंपनी गन्ने का बीज तय करती है, फिर तय करती है कि हम कब उसे गन्ना सप्लाई करेंगे। दाम भी हम तय नहीं करते है। उसके बाद भुगतान कब करना है वह भी मिलों के हाथ में है। पिछले सीजन में मैंने बजाज समूह की भैंसाना चीनी मिल को जो गन्ना बेचा था उसका मुझे अभी मार्च तक ही भुगतान मिला है। इसमें भी पिछले एक माह में तेजी आई है। जबकि चालू सीजन में मैंने 240 क्विंटल सप्लाई कर दिया है मुझे यह भी नहीं पता कि इस साल क्या दाम मिलेगा और भुगतान कब मिलेगा। वह कहते हैं कि इन कानूनों का विरोध इसलिए तेज हो रहा है क्योंकि कांट्रैक्ट खेती में किस तरह का शोषण हो सकता है वह हम गन्ना में देख रहे हैं। इसलिए हम सब आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। मैं खुद गाजीपुर गया था और अब मेरा भाई वहां गया है। यही बात मेरठ  जिले  के सतवई गांव के किसान संजीव दोहराते हैं और यही बात शामली जिले के बनत गांव के किसान राजकुमार गुड्डु भी दोहराते हैं। गन्ना मूल्य और उसके कुल भुगतान की पर्ची पर शून्य लिखे होने का सुबूत यहां के किसान देते हैं।

वहीं लांक गांव के किसान धीरज मलिक का कहना है कि राज्य में मौजूदा सरकार के दौरान बिजली की दरें 100 रुपये प्रति हार्स पावर से बढ़कर 175 रुपये हार्स पावर प्रति माह होने से हमारा बिजली बिल करीब दो गुना हो चुका है। डीजल की कीमत भी करीब 20 रुपये लीटर बढ़ चुकी है। अलावलपुर माजरा गांव के किसान जयकुमार सिंह कहते हैं कि गन्ने की नई किस्म सीओ 0238 आने से चीनी मिलों के लिए चीनी की रिकवरी तो दो फीसदी तक बढ़ गई है लेकिन इस किस्म में बीमारियां अधिक आती हैं जिसके चलते पेस्टीसाइड पर लागत में भारी बढ़ोतरी हुई है। गन्ने की कटाई की लागत 40 रुपये से 50 रुपये प्रति क्विटंल के बीच पहुंच गई है। इस बढ़ते घाटे से हमारा संकट बढ़ता जा रहा है। इस किस्म में तीन पेस्टीसाइड इस्तेमाल करने पड़ते हैं जबकि पहली गन्ना किस्मों में पेस्टीसाइड की लगभग न के बराबर जरूरत पड़ती थी।

गन्ने से जुड़े यह मुद्दे आंदोलन को मजबूत कर रहे हैं। आंदोलन में किसानों की शिरकत बढ़ाने और 26 जनवरी की किसान संगठनों की प्रस्तावित ट्रैक्टर परेड की तैयारी के लिए सिसौली में भाकियू के मुख्यालय पर 17 जनवरी को पंचायत बुलाई गई थी। इस पंचायत के पहले रुरल वॉयस के साथ बातचीत में भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत कहते हैं कि किसानों में सरकार के रवैये से नाराजगी बढ़ रही है। वह कहते हैं कि राजा को हठधर्मी नहीं होना चाहिए। किसानों के विरोध और आंदोलन के चलते सरकार की तीन नये कृषि कानूनों को रद्द कर देना चाहिए। सरकार को जिद्दी नहीं होना चाहिए। वह 1943 के ब्रिटिश शासन दौरान गेहूं की कीमत पर सीलिंग लगाने के फैसले  का विरोध कर रहे सर छोटू राम का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जब ब्रिटिश सरकार ने पांच रुपये मन (करीब 40 किलो) का दाम तय कर दिया तो सर छोटूराम ने कहा था कि किसान दस रुपये मन से कम दाम नहीं लेगा और अगर सरकार उसकी बात नहीं मानती है तो वह गेहूं की खड़ी फसल को आग लगा सकता है लेकिन कम दाम पर सरकार को नहीं देगा। उनके आंदोलन को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने किसानों की मांग मानकर 10 रुपये मन का दाम तय किया था। अब तो हमारी सरकार है उसे इस तरह की जिद नहीं करनी चाहिए। किसान 26 जनवरी को बड़ी तादाद में दिल्ली पहुंचेंगे। नरेश टिकैत बालियान खाप के चौधरी हैं जिसके मुजफ्फनगर और शामली जेल में 84 गांव हैं। टिकैत कहते हैं कि अगर सरकार नहीं मानती है तो भाजपा के लिए मुश्किल बढ़ जाएगी। सबसे बड़ी बात किसान के सम्मान की है।

रविवार की भाकियू पंचायत में बालियान खाप के अलावा दूसरी खाप के लोग भी मौजूद रहे और सैकड़ों ट्रैक्टरों पर लोग सिसौली पहुंचे थे। सिसौली नगर पंचायत के पूर्व चेयरमैन यशपाल बंजी ने बताया कि हमने लोक सभा चुनाव में भाजपा का समर्थन किया था। यहां करीब 8500 वोट पड़े थे जिसमें से 5500 वोट भाजपा को मिले थे। किसानों का मुद्दा है और हम इस मसले पर भाजपा का साथ नहीं देंगे। इस समय यशपाल बंजी की पत्नी नीरु देवी सिसौली नगर पंचायत की चेयरमैन है। सिसौली के ही एक 72 साल के किसान चांद सिंह बालियान कहते हैं कि यह आंदोलन 1988 के  चौधरी और इसके मुद्दे बड़े हैं। मैं वोट क्लब पर अक्तूबर 1988 के  चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के आंदोलन में भी गया था लेकिन यह आंदोलन उसके बड़ा है क्योंकि इसमें यूपी के अलावा बाकी राज्यों के किसान भी शामिल हैं। मैं 26 जनवरी को दिल्ली बार्डर पर जाउंगा क्योंकि यह हमारे अस्तित्व की लड़ाई है।

यहां पंचायत में  आये शामली जिले के हथछोया गांव के किसान भंवर सिंह तोमर का कहना है कि एक दिन पहले शामली जिला मुख्यालय पर करीब 1500 ट्रैक्टरों का मार्च हुआ है। हम इससे भी बड़ी संख्या में दिल्ली पहुंचेंगे। वह भाकियू के सहारनपुर मंडल के अध्यक्ष हैं। वहीं बागपत जिले में बड़ौत में धरना दे रहे देस खाप के किसानों का कहना है कि 26 जनवरी को यहां से दो हजार से अधिक ट्रैक्टर दिल्ली  जाएंगे। देस खाप के चौधरी सुरेंद्र सिंह के बेटे संजीव चौधरी यह दावा करते हैं। यहां मलकपुर की चीनी मिल गन्ना भुगतान में राज्य की सबसे ज्यादा देरी से भुगतान करने वाली चीनी मिलों में शामिल है।

इस तरह से देखा जाए तो गन्ना एसएपी की घोषणा में  देरी, एसएपी में दो साल कोई बढ़ोतरी नहीं होना और गन्ना मूल्यव भुगतान के बकाया व भुगतान में देरी ऐसे मुद्दे  हैं जो किसानों नाराजगी को बढ़ा रहे हैं और उनको आंदोलन से जोड़ रहे हैं। ऐसे में इस पूरे इलाके में किसान जिस तरह की तैयारी कर रहे हैं उसे देखते हुए आंदोलन और ट्रैक्टर परेड में किसानों की शिरकत सरकार के लिए मुश्किलें पैदा करेगी। वहीं जितना आंदोलन खिंचव रहा  है उतना ही राज्य में भाजपा का राजनीतिक नुकसान बढ़ रहा है क्योंकि किसानों की नाराजगी गुस्से में तब्दील होती जा रही है।

 

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