गुजरात में लगातार सातवीं बार बनेगी भाजपा की सरकार, हिमाचल फतह से कांग्रेस को बूस्ट
भारतीय जनता पार्टी गुजरात में लगातार सातवीं बार सरकार बनाने जा रही है। यहां 1 और 5 दिसंबर को हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को 150 से ज्यादा सीटों पर जीत मिलने के आसार हैं। 182 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 92 सीटें चाहिए। यहां 2017 के चुनाव में भाजपा को 99 सीटों पर जीत मिली थी और कांग्रेस 77 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थी। कांग्रेस इस बार भी दूसरे नंबर पर है, लेकिन उसकी सीटों की संख्या 20 से भी कम हो गई है
भारतीय जनता पार्टी गुजरात में लगातार सातवीं बार सरकार बनाने जा रही है। यहां 1 और 5 दिसंबर को हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को 150 से ज्यादा सीटों पर जीत मिलने के आसार हैं। 182 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 92 सीटें चाहिए। यहां 2017 के चुनाव में भाजपा को 99 सीटों पर जीत मिली थी और कांग्रेस 77 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थी। कांग्रेस इस बार भी दूसरे नंबर पर है, लेकिन उसकी सीटों की संख्या 20 से भी कम हो गई है। नई एंट्री के तौर पर आम आदमी पार्टी को पांच और अन्य को तीन सीटों पर जीत मिलती नजर आ रही है।
गुजरात के विपरीत हिमाचल में भाजपा के हाथ से सत्ता छिनती दिख रही है। वैसे भी यहां हर पांच साल में दूसरी पार्टी की सरकार बनने का ट्रेंड रहा है। भाजपा ने इस बार 'राज नहीं, रिवाज बदलेगा' का नारा दिया था, लेकिन वैसा होता नहीं दिख रहा। यहां की कुल 68 सीटों में से कांग्रेस को करीब 40 मिलने के आसार बन रहे हैं, जबकि भाजपा 25 सीटों पर सिमटती दिख रही है। 2017 के चुनाव में भाजपा को 44 और कांग्रेस को 21 सीटें मिली थीं।
गुजरात में भाजपा की यह सबसे बड़ी जीत है। इससे पहले 2002 में उसे 127 सीटें मिली थीं। राज्य में कांग्रेस का रिकॉर्ड 149 सीटों का है, जो उसने माधव सिंह सोलंकी के नेतृ्त्व में 1985 में बनाया था। भाजपा उससे भी आगे निकल गई है। किसी राज्य में लगातार सात बार सरकार बनाने का रिकॉर्ड पश्चिम बंगाल में लेफ्ट फ्रंट ने बनाया था। गुजरात में भाजपा ने उस रिकॉर्ड को भी छू लिया है।
विश्लेषकों का कहना है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी का फैक्टर भी काफी हद तक कारगर रहा है। उसने भाजपा से ज्यादा कांग्रेस पार्टी के वोट काटे हैं। इसी का नतीजा है कि कांग्रेस ने अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया है।
कांग्रेस के इस प्रदर्शन के पीछे एक कारण पार्टी के चुनाव अभियान में कमी को भी माना जा रहा है। यहां केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से प्रचार पर कोई जोर नहीं था। राहुल गांधी ने मुश्किल से दो रैलियां कीं। पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे भी गिनी-चुनी सभाओं में ही गए। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत यहां चुनाव की अगुवाई कर रहे थे।
कांग्रेस के विपरीत भाजपा ने हमेशा की तरह पूरा दमखम लगा दिया था। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 से ज्यादा रैलियां कीं। गृह मंत्री अमित शाह करीब दो महीने तक राज्य में ही बैठकर चुनाव अभियान का जायजा ले रहे थे। इन दोनों शीर्ष नेताओं के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा तथा सभी केंद्रीय मंत्री प्रचार में लगे थे। यहां पार्टी 1995 से लगातार सत्ता में है।
गुजरात में कांग्रेस ग्रामीण इलाकों में पकड़ रखती थी, लेकिन इस बार वहां भी उसकी स्थिति कमजोर हुई है। खास कर सौराष्ट्र के क्षेत्र में भाजपा की स्थिति मजबूत हुई है। आम आदमी पार्टी ने जो मुफ्त बिजली-पानी के वादे किए थे, उसका सीमित असर ही दिखा है। हालांकि यहां विधानसभा में मौजूदगी दर्ज कराने के बाद उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो सकता है।
हिमाचल प्रदेश में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने अपने ही परिवार से नया मुख्यमंत्री बनाने की बात कहकर अपने बेटे विक्रमादित्य के लिए दावेदारी रख दी है। वे तीसरी बार विधायक बने हैं। हालांकि पार्टी में उनसे भी वरिष्ठ नेता हैं और दावेदारी उनकी तरफ से भी आने की उम्मीद है। पार्टी ने यहां महंगाई, बेरोजगारी, पुरानी पेंशन स्कीम जैसे आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर चुनाव लड़ा था। यहां प्रियंका गांधी ने सघन प्रचार किया था।
आम आदमी पार्टी ने हिमाचल में कोई खास जोर नहीं लगाया था, लेकिन भाजपा ने महिलाओं और युवाओं पर काफी फोकस किया था। राज्य में 1998 के बाद से महिलाओं का वोट प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा रहा है। पार्टी पहली बार महिलाओं के लिए अलग से घोषणापत्र लेकर आई थी।
हिमाचल में जीत से कांग्रेस को बूस्ट मिलेगा। उत्तर भारत में एक मात्र हिमाचल में ही उसकी सरकार होगी। बाकी देश में सिर्फ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसकी अपने दम पर सरकार है। अगले साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और राजस्थान विधानसभा चुनावों में पार्टी अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश करेगी। लेकिन गुजरात में करारी हार के बाद उसके हाथ से 2024 में विपक्षी मोर्चे की अगुवाई करने का मौका छिन सकता है। वैसे भी पार्टी नेताओं का कहना है कि वे विधानसभा चुनावों पर कम, 2024 के आम चुनावों पर अधिक फोकस कर रहे हैं।