रूरल वॉयस विशेषः आईओटी के इस्तेमाल से मछली उत्पादन क्षेत्र में आएगी नई क्रांति
आइओटी का इस्तेमाल कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों में इंटरनेट ऑफ थिंग का उपयोग बढ़ रहा है और मत्स्य पालन के महत्वपूर्ण क्षेत्र में इस्तेमाल कर मछली उत्पादन काफी बढ़ाया जा सकता हैं । आईओटी का इस्तेमाल ताजा जल के मछलियों से लेकर समुद्र जल की मछलियों के प्रबंधन में इस्तेमाल में किया जा रहा है।मछलियों के सीड फीड और तालाब प्रबंधन आईओटी का बहुत बडा रोल निभा सकता हैं। क्योकि इंटरनेट आधारित उपकरणों के माध्यम से अधिक कुशल प्रंबधन करके मछली पालन में लागत को कम करने के साथ पर्यावरण अनकुल ,गुणवत्तायुक्त अधिक उत्पादनलिया जा सकता है।
एक्वाकल्चर एक ऐसा क्षेत्र है जोकि हाल के वर्षो में काफी वृद्धि देखी गई है।क्योकि आज के वक्त में विभिन्न क्लाउड-आधारित विश्लेषण करने वाले सॉफ़्टवेयर टूल का इस्तेमाल करके समुद्र के खारे जल से लेकर मीठे जल में पाली जाने वाली फिशरीज क्षेत्र में किया जा रहा है। मछलियों के मछलियों के सीड फीड और तालाब प्रबंधन जिसमें इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी ) का बहुत बडा रोल निभा सकता हैं। क्योकि इंटरनेट आधारित उपकरणों के माध्यम से अधिक कुशल प्रंबधन करके मछली पालन में लागत को कम करने के साथ पर्यावरण अनकुल ,गुणवत्तायुक्त अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। इन सभी मुद्दों पर रूरल वॉयस एग्री टेक शो का नया एपिसोड तैयार किया गया है सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर भुवनेश्वर (सीफा) प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ प्रताप चन्द्र दास ने इंटरनेट ऑफ थिंग्स का एक्वाकल्चर उपयोग और उसके फायदे के के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। आप ऊपर दिये गये वीडियो लिंक को क्लिक करके इस शो को देख सकते हैं।
डॉ प्रताप चन्द्र दास ने बताया कि आइओटी का इस्तेमाल कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों में इंटरनेट ऑफ थिंग का उपयोग बढ़ रहा है और मत्स्य पालन के महत्वपूर्ण क्षेत्र में इसका बडे पैमाने पर अपने देश में इस्तेमाल कर मछली उत्पादन काफी बढ़ाया जा सकता हैं । उन्होंने बताया कि अपने देश के साथ दुनिया में आईओटी का इस्तेमाल ताजा जल के मछलियों से लेकर समुद्र जल की मछलियों के प्रबंधन में इस्तेमाल में किया जा रहा है। डॉ दास का कहना था कि आइओटी के डाटा के आधार पर तालाब का स्थिति का आंकलन करके मछलियों के तालाब में बीज उत्पादन ,आहार प्रबंधन और तालाब के पानी की गुणवत्ता और पर्यावरणीय प्रबंधन के संबधी निर्णय लेकर मछली तालाब का सही तरीके से समय पर प्रंबधन कर सकते हैं ।
डॉ दास ने बताया कि ,आइओटी उपकरण फीडिंग प्रबंधन,के साथ मत्स्य पालन के लिए जरूरी चीजों पर समय पर सही प्रबंधन के लिए गाइड करता हैं। उन्होंने कहा कि आइओटी उपकरण इस्तेमाल कर मत्स्य पालन से अधिकतम पैदावार लिया जा सकता है । उनके अनुसार इंटरनेट आधारित उपकरणों के माध्यम से तालाबों के पानी की गुणवत्ता जैसे तालाबों के पानी का घुलनशील ऑक्सीजन,पीएच, तापमान एवं क्षारीयता पर लगातार समय -समय पर सटीक जानकारी मिल जाती है । इससे किसान समय से मछलियों के बेहतर विकास के लिए उचित समय पर सटीक प्रबंधन कर सकता हैं। वही दूसरी तरफ आइओटी उपकरणो द्वारा मिले डाटा के माध्यम मछली तालाब होने वाले किसी भी नुकसान के पहले ही सूचना मिल जाती है। जिससे मछली पालक आगे होने वाले नुकसान से बचने के लिए पहले इंतजाम कर सकते हैं। उन्होंने इसका उदारण देते हुए बताया कि मछलियों के पालने में तालाब के पानी का आक्सीजन लेबल सबसे महत्वपूर्ण है। इसके लिए पंरम्परागत तरीके में तालाब के आक्सीजन पानी लेबल चेक करने के लिए हमेशा एक आदमी का जरूरत होती है। इसके बाद आक्सीजन लेबल मेंटेन करने के लिए तालाब के पानी में समय से ऐरेटर चलना औऱ बंद करना जरूरी होता है। लेकिन अब मत्स्य पालक तालाब के पानी का आक्सीजन लेबल नापने के लिए तालाब में एक सेंसर लगा सकते हैं । जिसका डाटा लैबटाप या स्मार्ट फोन पर कही से भी देखा जा सकता है । मछलियों के बेहतर विकास के लिए तालाब जरूरी आक्सीजन लेबल मेंटेन करने के लिए सेंसर के माध्यम से चालू और बंद किया जा सकता है ।
डॉ दास के अनुसार मछलियों आईओटी से हम मछलियों के बीज उत्पादन में इस्तेमाल करके गुणवत्ता युक्त बीज उत्पादन कर सकते हैं इसके साथ मछलियों के आहार प्रबंधन में लागत में कमी और परम्परागत की तुलना में कई गुना ज्यादा मछली का उत्पादन ले सकते हैं । इसके साथ ही ।मछली तालाब में भविष्य में किसी भी कारण से होने वाले नुकसान से बच सकते हैं।उन्होंने कहा कि आइओटी थिंग्स के माध्यम से दूर पर रहकर भी मछली फार्म को आसानी निगरानी किया जा सकता हैऔऱ इस तकनीक के जरिये समय और धन दोनो बचाया जा सकता है। उनके अनुसार आइओटी एक्वाकल्चर सिस्टम को संचालन करने अधिक कुशल और यहां तक कि पर्यावरण के अनुकूल बनाता है ।
सुल्तान फिश फार्म के कोपार्टनर करनाल नोलो खेड़ी रहने वाले नीरज चौधरी ने बताया कि आईओटी के इस्तेमाल से मछली पालन के कार्य में नुकसान काफी कम हो जाता है । उन्होंने बताया कि, परम्परागत तरीके से मछली पालन करने से ज्यादा आदमी और अधिक समय की जरूरत होती है। जबकि मछली पालन में आईओटी के इस्तेमाल से समय और लागत के बचत के साथ मछली की उत्पादन में काफी बढ़ोत्तरी होती है।
नीरज चौधरी ने कहा कि मछली से बेहतर उत्पादन के लिए मुख्य रूप से पांच पैरामीटर होते है जिस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है जैसे तापमान , पीएच, अमोनिया , नाइट्रेट, अमोनिया और डीओ लेबल जिसको हर समय चेक करने की जरूरत होती है ।इन पांच लेबल पर मछलियों के अनुसार तालाब का पानी मेंटनकरना जरूरी होता है। नीरज ने बताया कि इसके लिए पांच सेंसर की जरूरत होती है। जिसको उन्होंने अपने तालाब पर लगवाया है । इन पांच सेंसरो के माध्यम से ,पीएच, अमोनिया , नाइट्रेट, अमोनिया और डीओ लेबल हर आधे घंटे में का मोबाइल डाटा उपल्बध हो जाता है । इसके बाद मिले डाटा के अनुसार तालाब का प्रबंधन करने में आसानी हो जाती है। इससे मछलियों का विकास बेहतर होता है और उत्पादन अधिक होता है, जबकि पहले परम्परागत तरीके में समय से पीएच, अमोनिया , नाइट्रेट, अमोनिया और डीओ लेबल का डाटा की जानकारी समय से नही उपल्बध हो पाती थी, जिसके कारण मछलियां मरने लगती थी। उन्होंने उदारण देते हुए बताया कि तालाब में पीएच लेबल कम या अधिक होता है तो, मोबाइल नोटिफिकेशन आता है । इस नोटिफिकेशन के हिसाब से हम मछली तालाब में एलएम,चुना , फिटकरी या कोई केमिकल डालकर पीएच लेबल मेंटन करना होता है तो हम इन तत्वो को डालकर पीएच लेबल मेंटन करते हैं । जिससे मछलियों का विकास बेहतर हो सके।
नीरज ने बताया कि आईओटी इस्तेमाल किसान प्रोटेक्ट्रेड तालाब हो या खुले वतावरण तालाब में किसी भी तरह के तालाब में इसका इस्तेमाल करके बेहतर उत्पादन ले सकते हैं।