रूरल वॉयस कॉन्कलेवः कृषि क्षेत्र की तेज वृद्धि दर के बगैर विकसित भारत का लक्ष्य रहेगा अधूराः प्रो. रमेश चंद
नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने कहा है कि कृषि क्षेत्र की तेज वृद्धि दर के बगैर विकसित भारत के लक्ष्य को पाना मुश्किल होगा। उन्होंने कहा कि भारत दो लक्ष्य के साथ चल रहा है- भारत को विकसित बनाना है और इस विकास में सबको साथ लेकर चलना है। रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव 2023 का उद्घाटन करते हुए बतौर मुख्य वक्ता उन्होंने यह बात कही।
नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने कहा है कि कृषि क्षेत्र की तेज वृद्धि दर के बगैर विकसित भारत के लक्ष्य को पाना मुश्किल होगा। उन्होंने कहा कि भारत दो लक्ष्य के साथ चल रहा है- भारत को विकसित बनाना है और इस विकास में सबको साथ लेकर चलना है। रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव 2023 का उद्घाटन करते हुए बतौर मुख्य वक्ता उन्होंने यह बात कही।
नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित यह कॉन्क्लेव रूरल वॉयस के स्थापना दिवस पर 23 दिसंबर को आयोजित किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रो. रमेश चंद ने कहा कि विकसित भारत बनने के लिए अगले 24-25 वर्षों तक 7 से 8 प्रतिशत की विकास दर होनी चाहिए। तब हमारी आय इतनी हो जाएगी कि हम विकसित देश कहलाने के काबिल हो जाएंगे। विश्व बैंक के अनुसार जिस देश की प्रति व्यक्ति आय 12000 डॉलर यानी 10 लाख रुपये प्रति व्यक्ति हो जाए, तो वह विकसित देश हो गया है। अभी हमारी प्रति व्यक्ति आय 1,70,000 रुपये के आसपास है। इसे अगले 24 वर्षों में 6 से 7 गुना बढ़ाना पड़ेगा। देश ने विकास के इसी रास्ते को अपनाने का फैसला किया है। सारी नीतियां उसी के इर्द-गिर्द पर बनाई जाएंगी ताकि वांछित ग्रोथ रेट मिले और उसमें सब की भागीदारी हो।
उन्होंने कहा कि इतनी ग्रोथ हासिल करने के लिए उसमें सबको शामिल करना पड़ेगा चाहे वह कृषि हो या इंडस्ट्री हो। इसमें कृषि की जिम्मेदारी ज्यादा हो जाती है। देश की 18 से 20% आय कृषि से आती है। अगर यह 3.5 से 4% की दर से नहीं बढ़ता है तो 2047 तक विकसित भारत बनना लगभग असंभव हो जाएगा। कृषि में ऊंची विकास दर हासिल किए बिना हम विकसित भारत नहीं बन सकते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश रहा है और भविष्य में भी भारत के विकास में इसकी बड़ी भूमिका रहेगी। अगर कृषि क्षेत्र को दरकिनार कर हम विकसित भारत बनते भी हैं तो वह समावेशी विकास नहीं होगा। ऐसी कोई वजह है नहीं है कि देश को विकसित बनाने में कृषि की जो भूमिका होनी चाहिए वह नहीं हो सकती, लेकिन उसके लिए हमें अपना माइंड सेट बदलना पड़ेगा। हमें सबसे पहले कृषि के प्रति अपने विचार को नकारात्मक से बदलकर सकारात्मक की ओर ले जाना चाहिए।
हमारे कई राज्यों में कृषि की विकास दर इतनी अधिक है कि उतनी ग्रोथ इंडस्ट्री में भी नहीं है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश ऐसे राज्य हैं जहां कृषि की ग्रोथ 6% से ज्यादा है। अगर तीन-चार राज्य 6 से 7% कृषि विकास दर हासिल कर सकते हैं तो उनकी नीतियों को अपना कर क्या बाकी देश में कृषि की वह विकास दर हासिल नहीं की जा सकती? अगर हम सही तरीके से कोशिश करें तो कृषि हमारी आर्थिक विकास का इंजन अवश्य बन सकता है।
प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा कि गांव के विकास का मतलब है समावेशी विकास। उन्होंने युवा पीढ़ी को पूर्व प्रधानमंत्री और किसान नेता चौधरी चरण सिंह की किताब जॉइंट फार्मिंग एक्सरेड पढ़ने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, चौधरी चरण सिंह ने कहा था कि किसानों का जमीन से जुड़ाव संतान से भी ज्यादा है। जमीन के साथ उसका मां बेटे का रिश्ता होता है। युवा पीढ़ी को इस किताब को पढ़ना चाहिए। इस किताब से चौधरी चरण सिंह की दूरदर्शिता का पता चलता है। इससे पता चलता है कि कृषि और ग्रामीण व्यवस्था को वह कैसे देखते थे। उनकी कही बातें आज भी प्रासंगिक हैं।
पॉलिसी एडवोकेसी और किसानों के विकास में रूरल वॉयस की अहम भूमिका
उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया आज बेहद कारगर माध्यम है क्योंकि इसके जरिये किसानों तक अहम जानकारी पहुंचाने के साथ- साथ नीति बनाने वालों यानी सरकारों तक पहुंचना बेहद आसान है। डिजिटल माध्यम में असीम संभावनाए हैं। इस दिशा में रूरल वॉयस बेहद अहम भूमिका निभा रहा है।
रमेश चंद के अनुसार, रूरल वॉयस पॉलिसी एडवोकेसी में भी अहम भूमिकाएं निभा रहा है। यह न केवल बेबाक तरीके से कृषि मुद्दों पर अपनी बातें रखता है। बल्कि पॉलिसी एडवोकेसी की दिशा में अहम कोशिशें कर रहा है। इस मौके पर उन्होंने यह भी कहा कि कृषि क्षेत्र को लेकर किसानों और निजी क्षेत्र दोनों को नजरिया बदलने की जरूरत है। उनके अनुसार, कॉरपोरेट जगत को किसान को केवल उपभोक्ता नहीं समझना चाहिए, बल्कि उसके साथ मिलकर विकास का नया मानक तय करना चाहिए। उन्होंने महाराष्ट्र के जलगांव जिले का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां पर एक प्राइवेट कंपनी और किसानों ने मिलकर जलगांव को दुनिया का 5 वां सबसे ज्यादा केला उत्पादन करने वाला एरिया बना दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए रूरल वॉयस के एडिटर इन चीफ हरवीर सिंह ने कहा कि तीन साल पहले कृषि और ग्रामीण भारत के लिए नई सोच के रूप में हमने रूरल वॉयस की शुरुआत की थी। महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत गांवों में बसता है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का कहना था कि देश की खुशहाली का रास्ता गांवों से होकर गुजरता है। आज चौधरी चरण सिंह का जन्मदिन भी है जिसे किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमने रूरल वॉयस की स्थापना के लिए इसी दिन को चुना जो हमारे लिए एक प्रेरणादायक दिन भी है।
उन्होंने कहा कि भारत पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, लेकिन आर्थिक तरक्की की इस लहर के उतार-चढ़ाव में गांव और ग्रामीण आबादी कहीं पीछे छूटती जा रही है। यह अंतर कैसे कम हो, इसी विचार को आगे बढ़ाने के लिए इसी साल नवंबर में हमने ‘रूरल वर्ल्ड’ का प्रकाशन भी शुरू किया।
ताजा आंकड़े कहते हैं कि भारत में कामकाजी लोगों का 45.8 फीसदी अब भी कृषि और सहयोगी क्षेत्र में काम करता है। ऐसे में भारत के लिए नया फॉर्मूला तलाशना होगा। भारत के विकसित राष्ट्र बनने का रास्ता कृषि केंद्रित अर्थव्यवस्था की नीति ही होगी, लेकिन यह रास्ता आसान नहीं है। इसी के मद्देजर हमने रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कान्क्लेव 2023 का मुख्य थीम मेकिंग एग्रीकल्चर इंजिन ऑफ इकोनामिक ग्रोथ रखा है।