पश्चिमी यूपी में हार से भाजपा में घमासान, क्या है इस झगड़े की जड़

लोकसभा चुनावों में मुजफ्फरनगर, कैराना और सहारनपुर में भाजपा की हार और मेरठ में मामूली अंतर से जीत के बाद पार्टी के अंदरूनी टकराव सतह पर आ गये हैं

पश्चिमी यूपी में हार से भाजपा में घमासान, क्या है इस झगड़े की जड़

पश्चिमी यूपी में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच घमासान मचा हुआ है। इसके पीछे नेताओं के साथ-साथ जातियों के वर्चस्व की लड़ाई भी है जो लोकसभा चुनाव से पहले ही शुरू हो गई थी। लोकसभा चुनावों में मुजफ्फरनगर, कैराना और सहारनपुर में भाजपा की हार और मेरठ में मामूली अंतर से जीत के बाद पार्टी के अंदरूनी टकराव सतह पर आ गये हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और पूर्व विधायक संगीत सोम एक-दूसरे पर तीखे प्रहार कर रहे हैं। जुबानी तकरार भ्रष्टाचार के आरोपों तक पहुंच गई है। यह उस पश्चिमी यूपी में हो रहा है जो 2014 में मोदी लहर का एपिसेंटर था।

राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन, अरुण गोविल जैसे बाहरी उम्मीदवार को टिकट और कई नेताओं की आपसी कलह के कारण पश्चिमी यूपी में भाजपा संगठन के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। लोकसभा चुनाव से पहले ही ठाकुरों की नाराजगी की बातें उठने लगी थी। मुंबई से अरूण गोविल को लाकर भाजपा ने जिस तरह मेरठ का टिकट दिया, उससे पश्चिमी यूपी के पार्टी के ब्राह्मण नेता भी उनकी अनदेखी का आरोप लगा रहे हैं।

भाजपा के एक वरिष्ठ ब्राह्मण नेता ने रूरल वॉयस के साथ बातचीत में कहा कि पार्टी ने वादा किया था कि गाजियाबाद की सीट वैश्य उम्मीदवार को देने की स्थिति में मेरठ से किसी ब्राह्मण को लड़ाया जाएगा। लेकिन अरूण गोविल को बाहर से लाकर थोप दिया गया जो खुद वैश्य है और उनकी जीत के छोटे अंतर को लोग पार्टी की लगभग हार के रूप में देख रहे हैं। उनके मुताबिक, 2009 में राजनाथ सिंह जब गाजियाबाद से चुनाव लड़ने आये तो उस समय फार्मूला था कि गाजियाबाद से वैश्य और मेरठ से ब्राह्मण उम्मीदवार होगा, लेकिन राजनाथ सिंह के गाजियाबाद आने की स्थिति में मेरठ से राजेंद्र अग्रवाल को टिकट दिया गया।

लेकिन अब 2024 में जब गाजियाबाद सीट से वैश्य उम्मीदवार को टिकट मिला तो मेरठ में ब्राह्मण उम्मीदवार का दावा बनता था। इस सीट पर तीन लाख ब्राह्मण वोट हैं। ऐसे में जिस तरह से अरूण गोविल की जीत बहुत मामूली हुई है वह ब्राह्मणों की नाराजगी को भी जाहिर करती है। फिर यूपी में सपा और कांग्रेस का जो उभार हुआ है, उससे भाजपा के कई नाराज नेता कांग्रेस में उम्मीद देखने लगे हैं।  

पश्चिमी यूपी में भाजपा के लिए सबसे बड़ा झटका मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र में पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान की हार रही। अपनी हार के लिए संजीव बालियान ने सरधना के पूर्व विधायक संगीत सोम पर निशाना साधा। पत्रकारों से बात करते हुए संगीत सोम से जुड़े सवाल के जवाब में संजीव बालियान ने कहा, “जिन्होंने खुले तौर पर समाजवादी पार्टी का चुनाव लड़ाया और यहां बड़ी पोजिशन लिए हुए हैं और सरकारी सुविधाएं भी ले रहे हैं। मेरा निवेदन रहेगा कि पार्टी इस पर ध्यान देगी और कार्रवाई करेगी।” 

पलटवार करते हुए संगीत सोम ने मेरठ में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और संजीव बालियान पर निशाना साधा। संगीत सोम ने कहा कि उनके सरधना विधानसभा क्षेत्र में भाजपा नहीं हारी जबकि बुढाना और चरथावल में अपने गढ़ में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन के बारे में संगीत सोम ने कहा कि इसका भाजपा को कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि जो सीटें हम जीत रहे थे वह भी हार गए। आरएलडी अपनी सीटें ही जीतने में कामयाब रही।

संगीत सोम की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान संजीव बालियान के खिलाफ कथित रूप से एक पर्चा भी बांटा गया, जिसमें कई गंभीर आरोप लगाए गये हैं। बाद में जब मामले ने तूल पकड़ा तो सोम ने इस पर्चे से पल्ला झाड़ दिया। लेकिन पश्चिमी यूपी में भाजपा के दो प्रमुख नेताओं के बीच खुलेआम आरोप-प्रत्यारोप से पार्टी की काफी फजीहत हो रही है।  

इस बीच भाजपा की नई सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के व्यापार प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष रोहित अग्रवाल भी इस झगड़े में कूद गये। अग्रवाल ने कहा कि संगीत सोम जैसे नेता ने “जयचंद” का काम किया, जिसके कारण भाजपा मुजफ्फरनगर में हारी। हालांकि, राष्ट्रीय लोकदल पार्टी ने रोहित अग्रवाल के इस बयान का समर्थन नहीं किया और उन्हें नोटिस जारी कर ऐसी बयानबाजी पर चेतावनी दी।

मुजफ्फरनगर में भाजपा की हार पर इसलिए भी बवाल मचा है क्योंकि इसी क्षेत्र से 2014 में भाजपा की राष्ट्रीय लहर की शुरुआत हुई थी। संजीव बालियान और संगीत सोम दोनों ही 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद सुर्खियों में आए। संजीव बालियान 2014 में मुजफ्फरनगर से सांसद और फिर केंद्रीय मंत्री बने। वहीं, संगीत सोम 2012 से सरधना से भाजपा विधायक थे लेकिन 2022 में उन्हें सपा-रालोद गठबंधन से हार का सामना करना पड़ा था। तब संगीत सोम की हार के लिए भी भीतरघात को वजह माना गया था। तभी से संगीत सोम और संजीव बालियान के बीच जुबानी जंग जारी है। इस बीच, खतौली उपचुनाव में भाजपा की हार ने भी पश्चिमी यूपी में भाजपा की गुटबाजी को बढ़ा दिया। लोकसभा चुनाव के दौरान भी संजीव बालियान और संगीत सोम एक दूसरे पर तंज कसते रहे। 

जब राष्ट्रीय लोकदल के साथ भाजपा का गठबंधन हुआ तो संजीव बालियान की मुजफ्फरनगर सीट को काफी सेफ माना जा रहा था। लेकिन तभी ठाकुरों की नाराजगी का मुद्दा उठा जो पूरे चुनाव में छाया रहा। पश्चिमी यूपी में पीएम मोदी और सीएम आदित्यनाथ की कई रैलियों के बावजूद भाजपा को मुजफ्फरनगर, कैराना और सहारनपुर में हार का सामना करना पड़ा। जबकि मेरठ सीट भी बहुत कम अंतर से जीती। 

इस बीच, मुजफ्फरनगर में भाजपा को नुकसान पहुंचाने वाले बसपा प्रत्याशी दारा सिंह प्रजापति को मायावती ने पश्चिमी यूपी का प्रभारी बनाकर अतिपिछड़ा वर्ग को साधने का प्रयास किया है। त्यागी समाज श्रीकांत त्यागी प्रकरण के बाद से ही भाजपा के लिए चुनौती बना हुआ है। जबकि राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन भाजपा के परंपरागत मतदाताओं के गले नहीं उतर रहा है।

उधर, जाट समुदाय अभी भी पूरी तरह भाजपा के पाले में नहीं गया है। लेकिन इस गठबंधन ने भाजपा के भीतर खींचतान को जरूर बढ़ा दिया है। रालोद के 9 विधायकों और दो सांसदों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में भाजपा नेताओं में असुरक्षा की भावना है क्योंकि वे रालोद की वजह से हारे बैठे हैं और अब गठबंधन के कारण भविष्य में टिकट कटने की आशंका है। यह भी भाजपा में बढ़ती गुटबाजी की वजह है।

हाल के लोकसभा चुनाव और उसके बाद के घटनाक्रम से साफ हो गया है कि भाजपा को पश्चिमी यूपी में नेताओं के बीच समन्वय और स्थानीय मुद्दों पर ध्यान देना पड़ेगा। पश्चिमी यूपी में सियासी समीकरण बदल रहे हैं। ऐसे में भाजपा के साथ मजबूती से जुड़े रहे कई नेताओं और समुदायों को नई परिस्थितियों में साथ जोड़े रखना बड़ी चुनौती होगा। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बूते पश्चिमी यूपी में कामयाबी हासिल करती रही भाजपा के सामने अब विभिन्न समुदायों और उनके नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई से उबरने की चुनौती है। 

 

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