विकल्प महंगे होने के कारण बंद नहीं हुआ पराली जलाना, बायोएनर्जी में संभावनाएं: आईएफजीई सर्वे
हालांकि किसान पराली जलाने से होने वाले पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों को स्वीकार करते हैं, इसके बावजूद उनका कहना है कि उनके पास कोई किफायती विकल्प नहीं है। फसल की कटाई और अगली बुवाई के बीच का समय बहुत कम होने के कारण किसान पराली जलाने के लिए मजबूर होते हैं, क्योंकि मैन्युअल सफाई या अन्य तरीके बहुत महंगे या अनुपलब्ध हैं।

प्रदूषण और पर्यावरण के खतरों को लेकर बढ़ती चिंताओं के बावजूद अनेक भारतीय किसान आर्थिक और अन्य बाधाओं के कारण पराली जलाने को मजबूर हैं। हाल ही में भारतीय ग्रीन एनर्जी फेडरेशन (IFGE) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ। सर्वेक्षण में छोटी जोत वाले खेत, महंगे कृषि यंत्र और सस्ते विकल्पों की अनुपलब्धता पराली जलाए जाने के प्रमुख कारणों के रूप में सामने आए।
हालांकि किसान पराली जलाने से होने वाले पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों को स्वीकार करते हैं, इसके बावजूद उनका कहना है कि उनके पास कोई किफायती विकल्प नहीं है। फसल की कटाई और अगली बुवाई के बीच का समय बहुत कम होने के कारण किसान पराली जलाने के लिए मजबूर होते हैं, क्योंकि मैन्युअल सफाई या अन्य तरीके बहुत महंगे या अनुपलब्ध हैं।
कुछ किसानों ने कहा कि पिछले एक दशक से पराली जलाना आम प्रथा बन गई है, क्योंकि अगली फसल की बुवाई के लिए समय बहुत कम मिलता है। अन्य किसानों ने बताया कि फसल कटाई के बाद बायोमास एकत्र करना महंगा है। ईंट भट्टों को छोड़कर अन्य खरीदारों की संख्या बहुत कम है।
सर्वेक्षण में बायोएनर्जी को आय के स्रोत के रूप में अपनाने को लेकर मिले-जुले विचार सामने आए। कुछ किसानों को फसल अवशेष बेचने में संभावनाएं नजर आईं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि बायोमास की खरीद प्रक्रिया असंगठित और श्रम-प्रधान है। साथ ही, बाजार मूल्य में उतार-चढ़ाव के कारण यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य भी नहीं होता है।
कुछ किसानों ने बायोगैस संयंत्र या बायोमास गैसीफायर जैसी बायोएनर्जी तकनीक को अपनाने में रुचि दिखाई, लेकिन उन्होंने बताया कि उन्हें स्थापित करने की लागत अधिक है और सरकारी समर्थन की कमी के कारण यह व्यावहारिक नहीं है। अन्य किसानों को बायोएनर्जी के लाभों की जानकारी ही नहीं थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र में बेहतर जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है। हालांकि कुछ किसानों का मानना है कि सरकार बायोएनर्जी को बढ़ावा देने के प्रयास कर रही है, लेकिन अधिकांश उत्तरदाताओं ने स्वीकार किया कि वे मौजूदा सरकारी योजनाओं या सब्सिडी के बारे में अनजान हैं।
सर्वेक्षण में किसानों की एक प्रमुख मांग यह सामने आई कि सरकार दीर्घकालिक मूल्य समझौते और खरीदारों के साथ साझेदारी सुनिश्चित करे। क्योंकि मूल्य निर्धारण अनिश्चित होने के कारण किसान बायोएनर्जी की ओर रुख करने से हिचकिचाते हैं। कुछ किसानों ने मशीनरी पर सब्सिडी और सरकारी समर्थन प्राप्त खरीद केंद्रों की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि बायोमास आपूर्ति को व्यावहारिक बनाया जा सके।
एक किसान ने सुझाव दिया कि यदि प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दी जाए, तो अधिक किसान पराली जलाने के बजाय अन्य विकल्प अपनाएंगे। एक अन्य किसान ने बताया कि बायो-कंपोस्टिंग को बढ़ावा देना पराली जलाने के बजाय एक बेहतर पारंपरिक कृषि समाधान हो सकता है।
सर्वेक्षण के परिणामों से पता चलता है कि बायोएनर्जी के बारे में जागरूकता बढ़ रही है, लेकिन आर्थिक बाधा तथा सस्ते विकल्प न होना इसे व्यापक रूप से अपनाने में रोड़ा बनी हुई हैं। किसान फसल अवशेष जलाने के बजाय बेचने के लिए तैयार हैं, बशर्ते उन्हें निश्चित लाभ, बेहतर बुनियादी ढांचा और सरकारी प्रोत्साहन मिले।