यूपी में गन्ने में फैला रोग, बचाव के लिए शुगरकेन रिसर्च काउंसिल की एडवाइजरी

उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद ने गन्ने की पत्तियों में पीलेपन और उकठा रोग के लिए एडवाइजरी जारी की है। इसमें गन्ने की कई किस्मों में रोग और जड़ बेधक कीट का प्रकोप बताया गया है। एडवाइजरी में फफूंदनाशक, कीटनाशक, स्वस्थ बीज, और जैविक उपचार के उपयोग की सलाह दी गई है

यूपी में गन्ने में फैला रोग, बचाव के लिए शुगरकेन रिसर्च काउंसिल की एडवाइजरी

उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल में बड़े पैमाने पर उकठा रोग लग गया है। जिससे फसल को काफी नुकसान पहुंचा है। गन्ने की विभिन्न किस्मों, जैसे को. 11015, को. 15027, को.वी.एस.आई. 8005, को.वी.एस.आई. 3102, को.वी.एस.आई. 0434 को इस रोग ने ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। इसके अलावा गन्ने की फसल में जड़ बेधक कीट का प्रकोप भी पाया गया है, जो रोगग्रस्त और स्वस्थ दोनों तरह के गन्नों को प्रभावित कर रहा है। गन्ने की फसल को रोग से सुरक्षित करने और किसानों को नुकसान से बचाने के लिए उत्तर प्रदेश काउंसिल ऑफ सुगरकेन रिसर्च, शाहजहांपुर (यूपी गन्ना शोध परिषद) ने इस संबंध में एडवाइजरी जारी की है।

उकठा रोग (विल्ट) और जड़ बेधक कीट की पहचान

उकठा रोग फ्यूजेरियम सैकेरी नामक फफूंद से उत्पन्न होता है। यह मिट्टी-जनित रोग है जो जड़ों और तनों की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है, जिससे पौधे की पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगता है। यह स्थिति खासतौर से 5 माह पुरानी फसल में देखी जाती है। पत्तियों का आगे का भाग पीला हो जाता है और धीरे-धीरे पूरा पौधा मुरझा जाता है। गन्ने के तने को काटने पर हल्के गुलाबी या लाल धारियां और जड़ के आंतरिक हिस्से में लाल धब्बे दिखाई देते हैं। अत्यधिक प्रभावित पौधों के तनों में सिकुड़न होती है और पत्तियों की मध्य शिराएं भी पीली हो जाती हैं।

जड़ बेधक कीट जड़ों और तनों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे पौधे के पोषक तत्वों का प्रवाह बाधित हो जाता है और पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। यह कीट उकठा रोग से प्रभावित और स्वस्थ दोनों प्रकार के गन्नों में पाया गया है।

कम बारिश, उच्च तापमान (30 से 35 डिग्री सेल्सियस), और कम नमी (50-60 प्रतिशत) जैसी मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियां इस रोग और कीट प्रकोप को बढ़ावा देती हैं। लंबे समय तक सूखा और कम बारिश भी इसके अनुकूल होती हैं।

उकठा रोग और जड़ बेधक कीट के प्रबंधन के उपाय

फफूंदनाशक का उपयोग: थायोफेनेट मिथाईल 70 डब्लू पी (13 ग्राम प्रति लीटर पानी) या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू पी (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) का घोल बनाकर 15-20 दिनों के अंतराल पर दो बार ड्रेंचिंग करें। इसके बाद हल्की सिंचाई करें।

कीटनाशक का उपयोग: क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. (2 लीटर), क्लोरपाइरीफॉस 50 प्रतिशत ई.सी. (1 लीटर), इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. (200 मिली), या बाइफेन्थ्रिन 10 ई.सी. (400 मिली) का 750 लीटर पानी में मिलाकर ड्रेंचिंग करें।

आगामी फसल में बचाव के उपाय

  • स्वस्थ बीज: स्वस्थ बीज का उपयोग अनिवार्य रूप से करें ताकि प्राथमिक संक्रमण से बचा जा सके।
  • फसल चक: गन्ना रोग से प्रभावित खेतों में अन्य फसलों की बुआई करें।
  • बीज उपचार: बीज के टुकड़ों को 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी अथवा थायोफेनेट मिथाईल 70 डब्लूपी तथा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल (0.5 मिली 1 लीटर पानी) कीटनाशक के साथ पारम्परिक विधि द्वारा 10-30 मिनट तक शोधन या भिगोकर अवश्य बुआई करें। एक या दो आंख के टुकड़ों 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू.पी. अथवा थायोफेनेट मिथाईल 70 डब्लू.पी. के साथ सेट ट्रीटमेन्ट डिवाइस में 30 मिनट तक से उपचारित अवश्य करें।
  • उकठा रोग नियंत्रण: उकठा रोग से बचाव के लिए मिट्टी में बोरेक्स (बोरिक एसिड) की 6 किलोग्राम तथा जिंक सल्फेट की 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग अवश्य करें।
  • जैविक उपचार: बुआई के समय जैव-नियन्त्रक ट्राइकोडर्मा हारजिएनम को 4 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से 40-80 किलोग्राम कम्पोस्ट खाद के साथ मिलाकर खेत की तैयारी अथवा गन्ना बुआई के समय नालियों में तथा व्यांत व ग्रोथ अवस्था में अवश्य प्रयोग करें।
  • जड़ बेधक कीट नियंत्रण: जड़ बेधक तथा अन्य कीट के नियन्त्रण के लिए बुआई के समय गन्ने के टुकडों पर प्रति एकड़ की दर से फिप्रोनिल 0.3 जी 8 किलोग्राम अथवा क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. 2 लीटर अथवा क्लोरपाड्रीफॉस 50 प्रतिशत ई.सी. 1 लीटर अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 200 मिली. अथवा बाइफेन्थ्रिन 10 ई.सी. का 400 मिली को 750 लीटर पानी के साथ मिलाकर ड्रेन्चिंग करें।
  • एक निश्चित समय अन्तराल पर खेतों में आवश्यकतानुसार सिचाई करते रहे।

सिंचाई प्रबंधन

खेत में समय-समय पर सिंचाई करते रहें ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे और पौधों को आवश्यक पोषण मिलता रहे। इस एडवाइजरी के पालन से गन्ना किसानों को अपनी फसलों को उकठा रोग और जड़ बेधक कीट से बचाने में मदद मिलेगी, जिससे उपज में सुधार होगा और फसल को नुकसान से बचाया जा सकेगा।

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