आईएंडबी सीड्स के अधिग्रहण से क्रिस्टल क्रॉप प्रोटेक्शन सब्जियों के बीज बिजनेस में होगी मजबूतः सत्येंद्र सिंह

क्रिस्टल क्रॉप प्रोटेक्शन लिमिटेड फॉडर और कई दूसरे बीज सेगमेंट में मार्केट लीडर हैं। हाल ही में कंपनी ने आईएंडबी सीड्स का अधिग्रहण किया है जो मेरीगोल्ड बीज के मार्केट में लीडर है। पिछले साल क्रिस्टल का बीज बिजनेस 351 करोड़ रुपए का था, इस साल कंपनी ने 430 करोड़ रुपए का लक्ष्य रखा है।

आईएंडबी सीड्स के अधिग्रहण से क्रिस्टल क्रॉप प्रोटेक्शन सब्जियों के बीज बिजनेस में होगी मजबूतः  सत्येंद्र सिंह

एग्रो केमिकल बिजनेस की प्रमुख कंपनी  क्रिस्टल क्रॉप प्रोटेक्शन लिमिटेड ने हाल ही बीज कंपनी आईएंडबी सीड्स (I&B Seeds) का अधिग्रहण किया है। इस अधिग्रहण से क्रिस्टल सब्जियों के बीज के बिजनेस में भी आ गई है। क्रिस्टल क्रॉप प्रोटेक्शन लिमिटेड के सीईओ-सीड्स सत्येंद्र सिंह का कहना है कि अभी कंपनी के बीज कारोबार में सब्जियों के अलावा नौ फील्ड क्रॉप शामिल हैं। उनका दावा है कि क्रिस्टल क्रॉप चारा (फॉडर) समेत कई बीज सेगमेंट में मार्केट लीडर हैं। क्रिस्टल द्वारा पिछले दिनों अधिग्रहित की गई कंपनी आईएंडबी सीड्स मेरीगोल्ड बीज के मार्केट में लीडर है। पिछले साल कंपनी का बीज बिजनेस 351 करोड़ रुपए का था, इस साल हमने 430 करोड़ रुपए के सीड बिजनेस का लक्ष्य रखा है। सत्येंद्र सिंह से कंपनी के बीज बिजनेस और भावी योजनाओं के बारे में रूरल वॉयस के एडिटर इन चीफ हरवीर सिंह ने लंबी बीतचीत की। बातचीत के मुख्य अंश- 

-  क्रिस्टल क्रॉप प्रोटेक्शन लिमिटेड को एक एग्रोकेमिकल कंपनी के रूप में जाना जाता है। कंपनी का बीज बिजनेस कितना बड़ा है और यह किस तरह से बढ़ रहा है। 
क्रिस्टल क्रॉप प्रोटेक्शन लिमिटेड ने 2012 में सीड बिजनेस की शुरुआत की थी। उस समय उसने हैदराबाद की रोहिणी सीड्स का अधिग्रहण किया गया था। उससे पहले क्रिस्टल प्लांट प्रोटक्शन बिजनेस में थी। इसने 2018 में सिंजेंटा कंपनी के ज्वार और फॉडर बिजनेस का अधिग्रहण किया था। फिर, 2021 में बायर कंपनी से बाजरा, सरसों और कपास बिजनेस का अधिग्रहण किया। पिछले साल कोहिनूर सीड्स से सदानंद ब्रांड (कॉटन) को खरीदा। हाल ही इसने आईएंडबी सीड्स (I&B Seeds) कंपनी का अधिग्रहण किया है। 

-इस समय कंपनी का सीड बिजनेस किस तरह की फसलों में हैं? आपके बीज की किस्मों की खासियत क्या है?
हमारे पास सब्जियों के अलावा 9 फील्ड क्रॉप हैं। आईएंडबी के अधिग्रहण से हम सब्जियों के बिजनेस में आ जाएंगे। हमारी ताकत रिसर्च है। हमारा फोकस रिसर्च और डेवलपमेंट आधारित प्रोडक्ट पर है। बाजरा, सरसों और कपास में हमारी वैरायटी की उत्पादकता और रोग प्रतिरोधी क्षमता बहुत अच्छी है। बाजरा में हमारी हाइब्रिड वैरायटी 9001 सबसे अधिक बिकने वाला हाइब्रिड बाजरा बीज है। इसकी औसत उत्पादकता 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और यह रोग प्रतिरोधी भी है। कपास में हम कुछ इलाकों में अच्छा बिजनेस कर रहे हैं। दक्षिणी राजस्थान के जोधपुर और आसपास के इलाकों में हम मार्केट लीडर हैं। वहां हमारी हाइब्रिड वैरायटी 7007 काफी लोकप्रिय है। इसकी खासियत यह है कि इसमें जिनिंग प्रतिशत ज्यादा है। इससे किसान को अच्छी कीमत मिलती है। दक्षिण में हमने सदानंद को खरीदा है, उस वैरायटी की पिकिंग बहुत अच्छी है। कपास की हाइब्रिड वैरायटी में किसान यह देखते हैं कि उसकी पिकिंग कितनी मुश्किल या आसान है।

-राजस्थान और कई अन्य राज्यों में पिछले दो साल में कॉटन में काफी पेस्ट अटैक हुआ है। आपकी वैरायटी की परफॉर्मेंस कैसी थी?
कॉटन में पिंक बॉलवर्म की समस्या रही है। अभी कोई भी वैरायटी पिंक बॉलवर्म रेजिस्टेंट नहीं है। कीटों के लिए प्रतिरोधी क्षमता बीटी ट्रेट से आती है। अभी जो बीटी ट्रेड उपलब्ध हैं उनमें यह क्षमता नहीं है। इसमें कोई नई रिसर्च भी नहीं हो रही है।

-आपके कितने बीज रिसर्च सेंटर हैं?
अलग-अलग जगहों पर हमारे आठ रिसर्च सेंटर हैं और 20 जगहों पर ट्रायल किया जाता है। कपास का रिसर्च सेंटर तीन जगहों पर है, एक ज्वार का, एक बाजरे का और दो रिसर्च सेंटर सरसों के हैं। एक मुख्य रिसर्च सेंटर हैदराबाद में है। सरसों और गेहूं का रिसर्च सेंटर जयपुर में है। 
 
-आपकी कंपनी के सीड बिजनेस की वृद्धि दर कैसी है। किस क्षेत्र में आपकी वैरायटी को किसान तेजी से अपना रहे हैं?
इंडस्ट्री की ग्रोथ की बात करें तो पिछले 5 साल में सालाना औसत ग्रोथ 8% से 9% है। यह कभी दहाई में नहीं गई है। लेकिन पिछले तीन साल से हमारी ग्रोथ दो अंकों में रही है। मौजूदा साल में मेरा अनुमान है कि हमारा बीज बिजनेस 425 करोड़ रुपए के आसपास रहेगा। पिछले साल यह 351 करोड़ और उसे दो साल पहले 301 करोड़ रुपए था। हमें सबसे अच्छी ग्रोथ फॉडर, बाजरा और कॉटन में मिली है। हमारी वैरायटी से किसानों को डेढ़ गुना ज्यादा बायोमास मिल रहा है। हमारी बाजरे की वैरायटी की मांग राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में रहती है। 

-आगे कंपनी किन फसलों पर फोकस कर रही है?
हम चावल और मक्का पर फोकस कर रहे हैं। इसमें हमारी कुछ अच्छी वैरायटी हैं और आगे भी तैयारी कर रहे हैं। मक्के में हमने देरी से काम शुरू किया, पर जल्दी ही नई वैरायटी लॉन्च करने वाले हैं। हमें लगता है कि इसमें आगे अच्छी ग्रोथ देखने को मिलेगी।

-अभी आपने सब्जियों के बीज के बाजार में प्रवेश किया है। उससे क्या उम्मीद है?
हमने जिस आईएंडबी सीड्स (I&B Seeds)) का अधिग्रहण किया है वह एक भारतीय और अमेरिकी संयुक्त उपक्रम कंपनी थी। वह मेरीगोल्ड (गेंदा) के बीज मार्केट में मार्केट लीडर रही है। एक समय मेरीगोल्ड बीज के 50% मार्केट पर इसका नियंत्रण था। मेरीगोल्ड पर रिसर्च करने वाली यह एकमात्र भारतीय कंपनी है। बाकी कंपनियां थाईलैंड से बीज आयात करती हैं। इस कंपनी का मेरीगोल्ड में ब्रीडिंग प्रोग्राम काफी मजबूत है। इसके अलावा सब्जियों में टमाटर, मिर्च, स्वीट कॉर्न, खीरा, खरबूजा और तरबूज में भी इसकी रिसर्च है।

-सब्जियों के बीज के बिजनेस में आपने क्या टारगेट रखा है?
अभी हमने इस सेगमेंट में टार्गेट कम ही रखा है। भारत में सब्जियों पर बहुत कम काम हुआ है। इसमें आगे काफी गुंजाइश दिखती है। हमने जिस कंपनी का अधिग्रहण किया, उसने रिसर्च में काफी निवेश किया है। हमारा मानना है कि इस कंपनी में हम निवेश करें तो इसमें 15% से 20% तक की ग्रोथ हो सकती है। हमें इससे फील्ड क्रॉप और सब्जियां, दोनों के आरएंडडी में फायदा मिलेगा।

-सब्जियों के बीज काफी महंगे हैं। इसमें लगभग सारा बिजनेस प्राइवेट कंपनियों के हाथों में है। इसमें आप किसे अपना प्रतिद्वंद्वी मानते हैं?
बीज बिजनेस में कोई एक प्रतिद्वंद्वी नहीं हो सकता है। इसमें 25 से 30 से प्रतिशत बाजार सिंजेंटा, बीएसएफ, बायर जैसी तीन-चार कंपनियों के पास है। उसके बाद भारत, थाईलैंड और यूरोप की सैकड़ों कंपनियां हैं। इस बिजनेस में प्रतिस्पर्धा क्रॉप आधारित होगी। 

-आपके पास बहुराष्ट्रीय और भारतीय दोनों तरह की कंपनियों का अनुभव है। सीड बिजनेस पर एक तरह से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नियंत्रण है। रासी और  म्हाइको जैसी भारतीय कंपनियां भी सीड बिजनेस में अच्छा कर रही हैं। लेकिन जिस स्तर पर बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं उस स्केल पर कोई भारतीय कंपनी अभी तक क्यों नहीं पहुंच पाई है?
इसका प्रमुख कारण यह है कि रिसर्च का काम बहुत खर्चीला होता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां वह खर्च उठाने की स्थिति में हैं। विदेशी कंपनियों को भी देखें तो किसी भी कंपनी का भारत स्पेसिफिक रिसर्च नहीं है। भारत में ग्लोबल रिसर्च के बाय प्रोडक्ट आ रहे हैं। भारतीय कंपनियों के लिए रिसर्च में उस स्तर पर निवेश करना संभव नहीं है।

-भारत में आईसीएआर और कृषि विश्वविद्यालयों का सार्वजनिक क्षेत्र का रिसर्च सिस्टम है  क्या उनकी तरफ से बड़ा प्रयास नहीं हो रहा है?
पिछले कुछ सालों में इस दिशा में काफी चर्चा हो रही है। हमने भी इन संस्थाओं के साथ बातचीत शुरू की है, लेकिन अभी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं क्योंकि वहां अलग तरह की चुनौतियां हैं। आईएआरआई पूसा के साथ जरूर हमने चावल के लिए समझौता किया है। हम उनसे चावल की वैरायटी लेंगे।

-किसानों में जागरूकता बढ़ाने, उन्हें साथ लेकर चलने के लिए आप क्या कर रहे हैं?
सीड बिजनेस में हमारे करीब 500 लोग फील्ड में काम कर रहे हैं। हमारी टीम किसानों को बताती है कि हमारे बीज क्यों अच्छे हैं और उनका इस्तेमाल करने पर क्या तौर-तरीके अपनाने की जरूरत है। पिछले दो साल में किसानों को शिक्षित करने पर हमने काफी काम किया है। बीजों के मामले में किसान जब तक अपनी आंखों से नहीं देखता तब तक वह उसे अपनाता नहीं है।

-सब्जियों में कीटनाशकों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है। हमारे यहां ट्रेसेबिलिटी बहुत आसान नहीं है। आपका क्या कहना है?
मैं भी एक कंज्यूमर हूं। जब मैं सब्जियों के खेतों में जाता हूं तो लगता है कि हमें सब्जी नहीं खरीदनी चाहिए, क्योंकि किसान वहां बड़ी मात्रा में कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहा होता है। इसके लिए हमें सिर्फ किसानों को जानकारी देना पर्याप्त नहीं है, हमें उन्हें उसका समाधान भी बताना पड़ेगा। हमारा रेगुलेटरी सिस्टम बहुत प्रभावी नहीं है। इसके लिए पेस्टिसाइड इंडस्ट्री, सीड इंडस्ट्री, किसान और उपभोक्ता सबको मिलकर काम करने की जरूरत है।

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