वैश्विक चुनौतियां और स्थानीय संस्थाओं की अहमियत

कृषि कई वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रही है। बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि किसानों को जमीन पर जिन स्थानीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, वे चुनौतियां वैश्विक रूप ले चुकी हैं। जलवायु संकट ऐसी ही एक समस्या है। दूसरी समान रूप से महत्वपूर्ण समस्या कृषि जैव विविधता का नुकसान है। 

वैश्विक चुनौतियां और स्थानीय संस्थाओं की अहमियत

कृषि कई वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रही है। बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि किसानों को जमीन पर जिन स्थानीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, वे चुनौतियां वैश्विक रूप ले चुकी हैं। जलवायु संकट ऐसी ही एक समस्या है। दूसरी समान रूप से महत्वपूर्ण समस्या कृषि जैव विविधता का नुकसान है। जैव विविधता सतत कृषि का एक महत्वपूर्ण घटक है। जैव विविधता खाद्य और पोषण सुरक्षा, बेहतर पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन सुनिश्चित करती है।

जैविक विविधता (बायोडायवर्सिटी) के संरक्षण और इसके सतत उपयोग को जैव विविधता पर कन्वेंशन (सीबीडी) में ‘मानवता की सामान्य चिंता’ के रूप में अंतरराष्ट्रीय कानून की मान्यता मिली थी। वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन (यूएनसीईडी) में सीबीडी की शुरुआत हुई थी। उसे ‘पृथ्वी सम्मेलन’ भी कहा जाता है। उसका आयोजन ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ था। भारत उन 150 देशों में शामिल था जिन्होंने उस समय सीबीडी पर हस्ताक्षर किए थे।

उसी वर्ष भारत में संविधान का 73वां संशोधन पारित हुआ जिसके तहत पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना हुई। अन्य प्रावधानों के अलावा यह प्रावधान लागू किया गया कि पंचायती राज संस्थाएं, स्थानीय स्वशासन वाली संस्थाएं होंगी। वे राज्य विधानसभा द्वारा प्रदत्त शक्तियों का ग्राम स्तर पर प्रयोग कर सकती हैं। पंचायती राज संस्थाओं की शक्तियां, अधिकार और जिम्मेदारियां (जो संविधान के अनुच्छेद 243जी में दी गई हैं) ग्यारहवीं अनुसूची में उल्लिखित विषयों तक होती हैं। उक्त अनुसूची के 29 विषयों में से पहला विषय ‘कृषि’ है। बायोडायवर्सिटी के बिना कृषि न तो जीवंत और समृद्ध हो सकती है, न ही लचीली।

संसद ने 2002 में सीबीडी के अनुरूप जैव विविधता अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम की धारा 41 में एक नए स्थानीय संस्थान – जैव विविधता प्रबंधन समिति (बीएमसी) की स्थापना का प्रावधान किया गया है। कानून के अनुसार, हर स्थानीय निकाय को बीएमसी स्थापित करना अनिवार्य था।

वर्ष 2004 में केंद्र सरकार ने जैव विविधता नियम जारी किए, जिसमें बीएमसी की संरचना और कार्य को नियम 22 में परिभाषित किया गया था। इसके अनुसार, एक बीएमसी में स्थानीय निकाय द्वारा नामित छह व्यक्ति होने चाहिए। उनमें कम से कम एक-तिहाई महिलाएं होनी चाहिए और कम से कम 18 प्रतिशत अनुसूचित जाति/जनजाति श्रेणी से होने चाहिए। बीएमसी का अध्यक्ष इस समिति के सदस्यों को ही चुनना था। दो दशक बाद, 22 अक्टूबर 2024 को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने नए जैव विविधता नियम जारी किए। इसमें बीएमसी की संरचना से संबंधित नियम (नियम 22) हटा दिया गया है।

जैव विविधता (संशोधन) अधिनियम, 2023 में यह प्रावधान किया गया है- (1बी) जैव विविधता प्रबंधन समिति की संरचना राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी। उक्त समिति के सदस्यों की संख्या सात से कम और ग्यारह से अधिक नहीं होगी।

नए जैव विविधता नियमों (नियम 2(1)(d)) के परिभाषा खंड में बीएमसी को अधिनियम की धारा 41 की उपधारा (1) के तहत स्थापित एक संस्था के रूप में परिभाषित किया गया है। जैव विविधता अधिनियम कहता है कि बीएमसी के कार्यों में जैव विविधता का संरक्षण, सतत उपयोग और दस्तावेजीकरण को बढ़ावा देना शामिल हैं। इसमें आवास का संरक्षण, भूमि, स्थानीय किस्मों, पालतू पशुओं की नस्लों और सूक्ष्म जीवों का संरक्षण और जैव विविधता से संबंधित जानकारी का संग्रह भी शामिल हैं।

नेशनल बायोडायवर्सिटी अथॉरिटी की वेबसाइट के अनुसार, भारत में कुल 2,77,688 बीएमसी हैं (28 राज्यों में 2,72,963 और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में 4,980 बीएमसी)। इसके मुकाबले देश में 731 कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) हैं। ये केवीके आईसीएआर के 11 एग्रीकल्चरल टेक्नोलॉजी एप्लिकेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट्स (एटीएआरआई) के तहत कार्य करते हैं, जो कृषि विस्तार विभाग के अधीन आते हैं। केवीके किसानों तक टेक्नोलॉजी ले जाने का माध्यम बन गए हैं। बीएमसी किसानों से एनएआरईएस तक जैव विविधता और उससे संबंधित संदेश और सामग्री पहुंचाने का माध्यम हो सकते हैं। बीएमसी ने जमीनी स्तर पर जैव विविधता-रक्षकों से औपचारिक आरएंडडी प्रणाली तक आनुवांशिक संसाधनों और उनकी जानकारी पहुंचाने का कार्य किया है और अब भी कर रहा है। उनके द्वारा जैव विविधता वाली कृषि परंपराओं को अपनाने की क्षमता पूरी तरह लागू की जानी चाहिए, चाहे वह बीजों से जुड़ी हो या नस्लों से। राज्य सरकारें इन जैव विविधता संस्थाओं में नया जीवन डाल सकती हैं।  

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क (जीबीएफ) को 2022 में सीबीडी के एक सम्मेलन में अपनाया गया था। जीबीएफ जैव विविधता को बहाल करने की एक योजना है। इसके मुख्य तत्व 2050 के लिए 4 लक्ष्य और 2030 के लिए 23 लक्ष्य हैं। यह मूल रूप से 2030 के बाद सतत विकास लक्ष्य का एक मार्ग है, जिसका उद्देश्य 2050 तक पृथ्वी पर प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीना है। यह मार्ग जैव विविधता को केंद्र में रखता है। जैव विविधता अधिनियम के 20 साल बाद, भारत ने जीबीएफ को मंजूरी दी। उसने जीबीएफ अभियान ‘जैव विविधता योजना: पृथ्वी पर जीवन के लिए’ के पहले चरण के लिए अपनी प्रतिबद्धता भी व्यक्त की है।
यदि खेतों और किसानों के करीबी जैव विविधता से जुड़े स्थानीय संस्थान जीवित रखें जाएं, तो वे न केवल सतत जीवन और आजीविका के लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेंगे, बल्कि वैश्विक चुनौतियों से निपटने में भी सहायक होंगे।

कृषि जैव विविधता की परिभाषा
फसलों, मवेशी, वानिकी और मछली पालन जैसे क्षेत्रों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पशुओं, पौधों और सूक्ष्मजीवों की विविधता और भिन्नता। इसमें आनुवंशिक संसाधनों (प्रजातियां, नस्लें) और खाद्य, चारा, रेशा, ईंधन और औषधियों में उपयोग की जाने वाली प्रजातियों की विविधता शामिल है। इसमें उत्पादन बढ़ाने में मददगार और बिना हार्वेस्टिंग वाली प्रजातियों की विविधता भी शामिल है (मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव, प्रिडेटर, पॉलिनेटर)। इसमें वे प्रजातियां भी शामिल हैं जो कृषि पारिस्थितिकी तंत्र (कृषि, चरागाह, वन और जल) को बेहतर बनाती हैं। 
(स्रोतः एफएओ, 1999a)

ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क के लक्ष्य
यह सुनिश्चित करना कि कृषि, एक्वाकल्चर, मत्स्य पालन और वानिकी का प्रबंधन सतत रूप से किया जाए, विशेष रूप से जैव विविधता के सस्टेनेबल उपयोग के जरिए। इसमें जैव विविधता अनुकूल परंपराओं, जैसे सस्टेनेबल इंटेंसिफिकेशन, कृषि पारिस्थितिकी और अन्य इनोवेटिव दृष्टिकोणों का प्रयोग बढ़ाना शामिल हैं। ये परंपराएं इन उत्पादन प्रणालियों की सहनशीलता, दीर्घकालिक क्षमता और उत्पादकता में योगदान करें। ये खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता का संरक्षण तथा इसकी पुनर्स्थापना और आमजन के लिए प्रकृति के योगदान को बनाए रखें।

(लेखिका लीगल रिसर्चर और पॉलिसी एनालिस्ट हैं, सस्टेनेबल एग्रीकल्चर और बायोडाइवर्सिटी कंजर्वेशन पर काम करती हैं। संपर्कः emailsbhutani@gmail.com)

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