कृषि की तरक्की के लिए नए संस्‍थानों पर दारोमदार

भले ही भारत विश्व के प्रमुख कृषि निर्यातकों में से एक है, लेकिन इसके उत्पादन और वास्तविक क्षमता के बीच बहुत बड़ा अंतर है। एनसीईएल का उद्देश्य कृषि निर्यात को बढ़ावा देना है। यह समर्पित संस्था सहकारी प्रयासों के माध्यम से भारत के कृषि क्षेत्र की निर्यात क्षमता का दोहन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

कृषि की तरक्की के लिए नए संस्‍थानों पर दारोमदार

कृषि क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 18% का योगदान करने के साथ राष्ट्रीय कार्यबल के 45% को रोजगार भी प्रदान करता है। कृषि निर्यात के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष देशों में 8वें स्थान पर है, और इसका वैश्विक कृषि निर्यात में 2.33% हिस्सा है। इसके बावजूद भारत का 24 अरब डॉलर का एग्री-टेक बाजार अब भी काफी हद तक अप्रयुक्त है। भारतीय कृषि की कुछ विशेषताएं हैं- विविध कृषि-जलवायु परिदृश्य, जीडीपी और रोजगार में महत्वपूर्ण योगदान, पारंपरिक से आधुनिक कृषि पद्धतियों की ओर बदलाव और एग्री-टेक व डिजिटल समाधान पर बढ़ता ध्यान।

भारत में कषि और बागवानी उत्पादन

भारत ने बीते वर्षों में कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है। देश की कृषि जीडीपी 1970 के दशक की शुरुआत में लगभग 25 अरब डॉलर थी, जो बढ़कर 2024 में 630 अरब डॉलर से अधिक हो गई। इस वृद्धि को बागवानी, डेयरी, पोल्ट्री और इनलैंड एक्वाकल्चर जैसे अधिक मूल्य वाले क्षेत्रों ने गति प्रदान की है।

भारतीय कषि में सफलता की कहानियां और संबंधित संस्थान

भारतीय कृषि में सफलता की अनेक कहानियां हैं। जैसे हरित क्रांति, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य आत्मनिर्भरता दी। श्वेत क्रांति, जिसने दूध उत्पादन में महत्वपूर्ण वृद्धि की, और हाल में बागवानी क्षेत्र में आया उछाल, जिसने भारत को फलों और सब्जियों का प्रमुख उत्पादक बना दिया। एक उल्लेखनीय विशेषता है एग्रीटेक स्टार्टअप का उदय। वर्ष 2013 से 2020 के बीच 1,000 से अधिक एग्रीटेक स्टार्टअप उभरे। सफलता की इन सभी कहानियों का आधार आईसीएआर, भारतीय खाद्य निगम, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, अमूल/जीसीएमएमएफ, एनडीडीबी, कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, नाबार्ड जैसे कुछ प्रतिष्ठित संस्थान रहे हैं।

भारतीय कषि में सफलता और चुनौतियां

इन युगांतरकारी विकास को अंजाम देने वाले प्रतिष्ठित संस्थानों से हमें कई सफलताएं मिलीं। जैसे खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि, कृषि निर्यात में विविधीकरण और लगातार बढ़ती जनसंख्या तथा कृषि योग्य भूमि कम होने के बावजूद कई कृषि उपज में आत्मनिर्भरता। इन महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बावजूद कुछ चुनौतियां बनी रहीं। जैसे वैश्विक मानकों की तुलना में कम कृषि उत्पादकता, कमजोर बुनियादी ढांचा और आपूर्ति श्रृंखला की अक्षमताएं, वैश्विक मूल्यों में अस्थिरता और बाजार पहुंच की समस्याएं और कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव। हालांकि अनुसंधान और विकास में निवेश से फसलों की बेहतर किस्मों, खेती की उन्नत तकनीकों और अधिक उत्पादकता में सफलता मिली है। फिर भी भारत की औसत उपज और दुनिया की सर्वाधिक उपज के बीच बड़ा अंतर है। उदाहरण के लिए, भारत का औसत धान उत्पादन 3,878 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि विश्व का अधिकतम उत्पादन 10,386 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।

सरप्लस उत्पादन और निर्यात की संभावना

भारत में कृषि उत्पादन को काफी हद तक बढ़ाने की क्षमता है। हालांकि इससे कुछ कमोडिटी का उत्पादन सरप्लस में पहुंच सकता है और संभव है कि उनका उत्पादन वैश्विक व्यापार की जरूरत से अधिक हो जाए। उदाहरण के लिए, विश्व स्तर पर सर्वाधिक उपज हासिल करने पर भारत संभवतः 20 करोड़ मीट्रिक टन से अधिक चावल का सरप्लस उत्पादन कर सकता है। यह पूरे विश्व व्यापार के लिए काफी होगा और वैश्विक भूख के मुद्दे का भी हल कर देगा।

भारतीय कृषि को आगे और ऊंचे स्तर तक पहुंचाया जा सकता है। इसके लिए नए और समय के अनुकूल संस्थानों का निर्माण करना होगा, जिनके उद्देश्य कई लेकिन समानांतर होंगे। जैसे सहकारी पारिस्थितिकी तंत्र और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के माध्यम से उपज का एग्रीगेशन, फसल-विशिष्ट की उत्पादकता बढ़ाने के लिए अनुसंधान और विकास को प्रदर्शित करने वाले उत्कृष्टता केंद्र, टिकाऊ कृषि की खातिर प्रौद्योगिकी (एआई, आईओटी, रिमोट सेंसिंग) का लाभ उठाने के लिए सार्वजनिक-निजी साझेदारी, किसानों और वैश्विक बाजारों को जोड़ने के लिए वैश्विक उपभोक्ता-केंद्रित निर्यात संस्थान, और सबसे महत्वपूर्ण, जीएसटी काउंसिल की तर्ज पर भारतीय कृषि परिषद का गठन जिससे कृषि सुधार और नीतिगत हस्तक्षेप जारी रहें।

ऐसे उद्देश्यों के लिए डिजाइन की गई संस्थाएं पूरे कृषि क्षेत्र में निवेश के लिए आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करेंगी। ये संस्थाएं ग्रामीण क्षेत्रों में सतत रोजगार अवसरों के सृजन के लिए जरूरी भौतिक, डिजिटल और मानव संसाधन इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में मदद करेंगी। साथ ही, ये ग्रामीण और शहरी जीवनशैली के बीच अंतर को पाटेंगी और वैश्विक बाजार में एक प्रमुख खाद्य आपूर्तिकर्ता बनने की क्षमता पैदा करेंगी।

भारत में कषि सुधारों की जरूरत

कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान करने और इसके पूर्ण सामर्थ्य को उजागर करने के लिए सुधार आवश्यक हैं। सुधार के मुख्य क्षेत्रों में शामिल हैं- कृषि विपणन प्रणालियों का आधुनिकीकरण, आपूर्ति श्रृंखला की दक्षता में सुधार, कृषि में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना, सस्टेनेबल कृषि के तौर-तरीकों को प्रोत्साहित करना, किसानों के लिए ऋण और बीमा की सुविधा में सुधार करना। सौभाग्यवश, माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार का इस अनिवार्यता पर पूरा फोकस है। सरकार एकाधिक कार्यक्रमों, संस्थाओं और संसाधनों के साथ विधायिका और कार्यपालिका में सुधारों को लागू कर रही है।

भारत के कृषि निर्यात में वृद्धि की प्रचुर संभावनाएं हैं। देश पहले ही वैश्विक स्तर पर कृषि उत्पादों के शीर्ष 15 निर्यातकों में शामिल है। यह क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

निर्यात संभावना के प्रमुख कारक

 विविध कृषि-पारिस्थितिकी क्षेत्र: भारत की विविध जलवायु और भौगोलिक स्थितियां कृषि उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला के उत्पादन का माहौल देती हैं।

 बढ़ती वैश्विक मांग: बढ़ती वैश्विक जनसंख्या और बदलती आहार प्राथमिकताएं भारतीय कृषि निर्यात के लिए अवसर उत्पन्न करती हैं।

 सरकारी पहल: कृषि निर्यात नीति का उद्देश्य आने वाले वर्षों में कृषि निर्यात को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाना है।

 प्रौद्योगिकी में प्रगति: एग्री-टेक स्टार्टअप और डिजिटल पहल से कृषि क्षेत्र में उत्पादकता और गुणवत्ता में वृद्धि हो रही है।

निर्यात के लिए प्रमुख उत्पाद और अवसर

 चावल: सबसे बड़ा कृषि निर्यात उत्पाद, जिसका 2022-23 में कुल कृषि निर्यात में 20% से अधिक योगदान था। 

 समुद्री उत्पाद: वर्ष 2022-23 में 8.07 अरब डॉलर का निर्यात, जिससे तटीय राज्यों को लाभ।

 कॉफी: निर्यात में वृद्धि, विशेष रूप से इंस्टेंट कॉफी और री-एक्सपोर्ट में। 

 फल और सब्जियां: अंगूर, केले, अनार और प्रसंस्कृत उत्पादों के निर्यात में वृद्धि की संभावना। 

 मूल्य संवर्धित और जैविक उत्पाद: अधिक मूल्य वाले और प्रसंस्कृत कृषि निर्यात का हिस्सा बढ़ाने के अवसर।

इन चुनौतियों से निपटना जरूरी

 इन्फ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स: बेहतर कोल्ड चेन सुविधाओं, परिवहन और निर्यातोन्मुख इन्फ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता।

 गुणवत्ता मानक: अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करना। 

 मूल्य संवर्धन: निर्यात बास्केट में प्रसंस्कृत और मूल्य संवर्धित उत्पादों का हिस्सा बढ़ाना। 

 बाजार पहुंच: संभावित निर्यात बाजारों में शुल्क और गैर-शुल्क बाधाओं का समाधान निकालना।

समर्पित संस्थान का गठन

नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट लिमिटेड (एनसीईएल) को कृषि निर्यात को बढ़ावा देने में एक विशिष्ट भूमिका निभाने के लिए स्थापित किया गया है। यह सहकारी प्रयासों के माध्यम से भारत के कृषि क्षेत्र की निर्यात क्षमता को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

प्रमुख क्षेत्र जहां एनसीईएल योगदान कर सकता है

     उपज का एग्रीगेशन: एनसीईएल छोटे और सीमांत किसानों को उनके संसाधनों और उनकी उपज को एकत्र करने में मदद कर सकता है, ताकि निर्यात के लिए इकोनॉमी ऑफ स्केल प्राप्त की जा सके। 

     गुणवत्ता नियंत्रण और मानकीकरण: कृषि उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने के लिए कठोर गुणवत्ता नियंत्रण उपायों को लागू करे।

     मार्केट इंटेलिजेंस: सदस्य सहकारी समितियों को वैश्विक बाजार के ट्रेंड, मांग के पैटर्न और निर्यात अवसरों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करे।

 क्षमता निर्माण: सहकारी समितियों को निर्यात प्रक्रियाओं, डॉक्यूमेंटेशन और अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुपालन जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षण और मदद करे।

 ब्रांड का विकास: कृषि निर्यात के लिए एक मजबूत 'कोऑपरेटिव इंडिया' ब्रांड बनाए जो गुणवत्ता और सस्टेनेबिलिटी पर जोर दे। 

 इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास: एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड जैसी सरकारी पहल के साथ सहयोग करे, ताकि निर्यातोन्मुख इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास किया जा सके। 

 प्रौद्योगिकी अपनाना: सदस्य सहकारी समितियों में उत्पादकता और गुणवत्ता बेहतर करने के लिए एग्री-टेक समाधानों को अपनाने में सहायता करे। 

सरकारी पहल के साथ एलाइनमेंट

एनसीईएल कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के साथ मिलकर काम कर सकता है।

 डिजिटल कृषि मिशन (डीएएम): निर्यातोन्मुख कृषि तौर-तरीकों में सुधार के लिए डिजिटल तकनीक के उपयोग को बढ़ावा दे। 

 कृषि निर्यात नीति: कृषि निर्यात दोगुना करने और निर्यात बकेट में विविधता लाने के लक्ष्यों को प्राप्त करने में योगदान करे।

 एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड: फंड का उपयोग निर्यात-केन्द्रित बुनियादी ढांचा जैसे गोदाम, प्रसंस्करण इकाइयां और कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं के विकास के लिए करे। 

एनसीईएल के संभावित प्रभाव

 किसानों की आय में वृद्धि: निर्यात को सुगम बनाकर बेहतर मूल्य प्राप्ति और बाजार पहुंच के माध्यम से एनसीईएल किसानों की आय 25-35% तक बढ़ा सकता है।

 निर्यात में वृद्धि: कृषि निर्यात 60 अरब डॉलर और उससे अधिक ले जाने में योगदान कर सकता है। 

 ग्रामीण विकास: निर्यातोन्मुख मूल्य श्रृंखला और रोजगार के अवसर सृजित करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकता है।

 सतत कृषि: वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल उत्पादों के सस्टेनेबल तरीके और जैविक कृषि को बढ़ावा दे सकता है।

एनसीईएल के पास भारत के कृषि निर्यात परिदृश्य में सहकारी संस्थाओं की शक्ति का उपयोग करके एक गेमचेंजर बनने की क्षमता है। प्रमुख चुनौतियों का समाधान और सरकारी पहल के साथ समन्वय करते हुए एनसीईएल भारत को एक वैश्विक कृषि निर्यात महाशक्ति में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। साथ ही, किसानों और ग्रामीण समुदाय के लिए भी समान लाभ सुनिश्चित कर सकता है।

(अनुपम कौशिक, नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट लिमिटेड (एनसीईएल) के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं)

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