सिर्फ 17% सतत विकास लक्ष्य पूरा होने की राह पर, 12.2 करोड़ अतिरिक्त लोगों के सामने भूख की समस्या से खाद्य सुरक्षा भी खतरे में
संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जारी सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स रिपोर्ट 2024 के अनुसार सिर्फ 17% सतत विकास लक्ष्य समय पर पूरा होने की राह पर हैं। इसमें बताया गया है कि वर्ष 2019 की तुलना में 2022 में 2.3 करोड़ अधिक लोग भीषण गरीबी में चले गए और 12.2 करोड़ ज्यादा लोग भूख से पीड़ित थे।
सिर्फ 17% सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) समय पर पूरा होने की राह पर हैं, लगभग आधे लक्ष्यों में बहुत काम प्रगति हुई है और एक तिहाई से कुछ ज्यादा लक्ष्यों की दिशा में प्रगति या तो पूरी तरह रुक गई है अथवा हम और पीछे चले गए हैं। संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जारी सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स रिपोर्ट 2024 में यह बात कही गई है। रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभावों, दुनिया के अनेक के इलाकों में युद्ध, भू-राजनीतिक तनाव और जलवायु परिवर्तन ने सतत विकास लक्ष्यों की प्रगति को बुरी तरह प्रभावित किया है। इसमें बताया गया है कि वर्ष 2019 की तुलना में 2022 में 2.3 करोड़ अधिक लोग भीषण गरीबी में चले गए और 12.2 करोड़ ज्यादा लोग भूख से पीड़ित थे।
पिछले साल सितंबर में विभिन्न देशों के प्रमुख न्यूयॉर्क में सतत विकास लक्ष्यों की प्रगति की समीक्षा के लिए बैठे और इस बात पर चर्चा की कि इस दिशा में उन्हें गति बढ़ाने की जरूरत है। सतत विकास लक्ष्यों की प्रतिबद्धता दोहराते हुए वे इस बात पर भी सहमत हुए कि इन लक्ष्यों को वर्ष 2030 तक पूरी तरह हासिल करने के लिए तत्काल और बड़े प्रयास करने की जरूरत है। उस बैठक में जारी घोषणा पत्र में सदस्य देशों ने स्वीकार किया कि सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में प्रगति खतरे में है। 2030 तक उन लक्ष्यों को हासिल करने की प्रतिबद्धता भी जताई गई।
करीब साल भर बाद भी उन्हें लक्ष्यों पर खतरा बना हुआ है। सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स रिपोर्ट 2024 में बताया गया है कि अनेक मोर्चों पर प्रगति या तो पूरी तरह रुक गई है या हम और पीछे चले गए हैं। हालात सुधारने की बात बार-बार कहने के बावजूद यह स्थिति है। कोविड-19 के प्रभाव, युद्ध और जलवायु परिवर्तन तथा उसके आर्थिक असर ने पहले से जारी असमानता को और बढ़ाया है।
12.2 करोड़ अतिरिक्त लोगों के सामने भूख की समस्या
सतत विकास लक्ष्य 2 जीरो हंगर है, अर्थात दुनिया में कोई भी भूखा ना रहे। लेकिन वर्ष 2022 में 69.1 से 78.3 करोड़ लोगों ने भूख का सामना किया। बीच का आंकड़ा, 73.5 करोड़ का भी लें तो 2019 की तुलना में 2022 में 12.2 करोड़ अतिरिक्त लोग भूख की समस्या से ग्रस्त थे। खाद्य असुरक्षा का स्तर काफी बढ़ा हुआ था और लगातार 2 वर्षों तक इसमें कोई बदलाव नहीं आया। अनुमान है कि दुनिया की 29.5% आबादी या 240 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा की समस्या से मध्यम या बुरी तरह जूझ रहे थे।
5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण की समस्या गंभीर है। इससे उनका विकास रुकने का जोखिम बढ़ गया है। पूरी दुनिया में 2022 में 5 साल से कम उम्र के 22.3%, अर्थात 14.8 करोड़ बच्चों की लंबाई उम्र के हिसाब से कम (स्टंटिंग) थी। हालांकि 2015 के 24.6% की तुलना में यह कम है। मौजूदा ट्रेंड को देखते हुए कहा जा सकता है कि 2030 में 5 साल से कम उम्र का हर पांच में से एक बच्चा, यानी 19.5% बच्चे स्टंटिंग से प्रभावित होंगे।
सस्टेनेबल खेती के लिए प्रयास तेज करने की जरूरत
रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारी मौजूदा और भावी पीढ़ियों की जरूरतें सुनिश्चित करने के लिए प्रोडक्टिव और सस्टेनेबल खेती जरूरी है। वर्ष 2021 के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया प्रोडक्टिव और सस्टेनेबल खेती को हासिल करने से मध्यम दूरी पर थी (5 में से 3.4 अंक)। यही नहीं 2015 से इसमें कुछ सुधार भी देखने को मिला। हालांकि क्षेत्रीय विषमता काफी अधिक है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों में स्कोर 4.1 था जबकि सबसे कम विकसित देशों का स्कोर 2.6 रहा। मौजूदा साक्ष्य बताते हैं कि वर्ष 2030 तक प्रोडक्टिव और सस्टेनेबल खेती की दिशा में सुधार के लिए तत्काल और निरंतर प्रयास करने की जरूरत है। ऐसा नहीं करने पर हम लक्ष्य से काफी दूर रह जाएंगे।
छोटे किसानों की आय बड़े किसानों के आधे से भी कम
रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि एवं खाद्य उत्पादन प्रणाली को मजबूत बनाने और भूख से लड़ने में छोटे किसानों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उनका योगदान बड़ा होने के बावजूद ग्रामीण इलाकों के सबसे कमजोर वर्ग में वे आते हैं। पूरे एग्री फूड सिस्टम में भी उनकी उपस्थिति कमजोर ही रहती है। जितने देशों के आंकड़े उपलब्ध हैं, उनमें से 95% देशों के छोटे किसानों की आमदनी बड़े किसानों के आधे से भी कम पाई गई। यह असमानता सभी देशों में है, चाहे उसे देश की आमदनी का स्तर कुछ भी हो। महिलाओं की तुलना में पुरुष छोटे किसानों की आय अधिक होती है। करीब 50% देश में पाया गया कि महिला किसानों की तुलना में पुरुष किसानों की आमदनी 70% अधिक थी।
कृषि पर सरकार का खर्च
वर्ष 2015 से 2022 के दौरान कृषि पर विभिन्न देशों की सरकारों के खर्च में लगातार वृद्धि हुई। वर्ष 2022 में यह रिकॉर्ड 749 अरब डॉलर पर पहुंच गई। हालांकि जीडीपी में कृषि क्षेत्र के योगदान के अनुपात में कृषि पर सरकारी खर्च कम हुआ है। इसका इंडेक्स 2015 में 0.5 था, जबकि 2021 में गिरकर 0.43 पर आ गया। वर्ष 2022 में इसमें फिर बढ़ोतरी हुई और यह 0.48 के स्तर पर पहुंच गया। महामारी के दौरान सरकारों को दूसरे सेक्टर में संसाधन लगाने पड़े इसलिए कृषि क्षेत्र पर उनके खर्च में कमी आई।
60% देशों में खाद्य पदार्थों की कीमत अधिक
वर्ष 2022 में लगभग 60% देशों को मध्यम से अधिक खाद्य महंगाई का सामना करना पड़ा। वर्ष 2022 में 58.1% देशों में खाद्य महंगाई असामान्य रूप से अधिक थी। 2015 से 2019 के 15.2 प्रतिशत की तुलना में यह चार गुना है। मध्य एशिया, दक्षिण एशिया, पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में 2020 की तुलना में 2022 में खाद्य महंगाई कम थी, लेकिन 2015 से 2019 के औसत की तुलना में यह अधिक रही।
रूस यूक्रेन युद्ध के बाद लॉजिस्टिक्स और खाद्य आपूर्ति चेन में बाधा पहुंचने से खाद्य पदार्थ और ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि हुई। खासकर 2022 की पहली छमाही में ऐसा देखने को मिला। इस युद्ध से उर्वरकों की कीमतों में भी वृद्धि हुई जिससे किसानों के सामने खेती का संकट बढ़ा।
जलवायु के लक्ष्यों को हासिल करने में सफलता
रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग दुनिया भर की खेती के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है। वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल आर्गेनाइजेशन ने वर्ष 2023 को अब तक का सबसे गर्म साल बताया है। औद्योगिक युग की शुरुआत से पहले की तुलना में तापमान 1.45 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। संयुक्त राष्ट्र की एनवायरमेंट प्रोग्राम्स एमिशन गैप रिपोर्ट 2023 के अनुसार वर्ष 2022 में पूरी दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 57.5 गीगा टन कार्बन डाइऑक्साइड (या इक्विवेलेंट) के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इसमें दो तिहाई उत्सर्जन जीवाश्म ईंधन और उद्योगों से पैदा हुआ।
विभिन्न देशों की मौजूदा नीतियां अगर जारी रहीं तो विश्व तापमान तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। विभिन्न देशों ने जो अपने उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं उनका सख्ती से पालन करें तब भी ग्लोबल वार्मिंग 2.5 डिग्री सेल्सियस होगी। अगर यह देश नेट जीरो लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब होते हैं तब भी तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ेगा। हालांकि इन लक्ष्यों को हासिल करने की संभावना बहुत कम है। इस समय ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की संभावना सिर्फ 14% है। यह स्थिति मौजूदा दशक में ही उत्सर्जन कम करने के लिए बड़े कदम उठाने के महत्व को बताती है।