महंगाई पर आम आदमी की मुश्किलें कम होती नहीं दिखती, थोक महंगाई दर 15 माह से दो अंकों में
जून माह के लिए थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) 15.18 फीसदी रहा है जो मई के 15.88 फीसदी के मुकाबले मामूली रूप से कम है। वहीं जून में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 7.01 फीसदी रहा है जो मई की 7.04 फीसदी की खुदरा महंगाई दर के मुकाबले मामूली रूप से कम है। लेकिन इसे इस बात का संकेत नहीं मान लेना चाहिए कि महंगाई को लेकर आम आदमी की मुश्किलें जल्द ही कम होने जा रही हैं या फिर भारतीय रिजर्व बैंक का महंगाई को काबू करने के लिए पॉलिसी दरों में बढ़ोतरी का रुख बदलने जा रहा है। खुद रिजर्व बैंक के गर्वनर कह चुके हैं कि दिसंबर तक महंगाई दर रिजर्व बैंक के लक्षित (चार फीसदी से दो फीसदी कम या ज्यादा) स्तर से अधिक बनी रह सकती है। इसके लिए हमें अमेरिका में महंगाई के आये ताजा आंकड़े से भी कुछ संकेत लेने चाहिए। जो 9.1 फीसदी रहा है और 1981 के बाद से वहां महंगाई का सबसे ऊंचा स्तर है
जून माह के लिए थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) 15.18 फीसदी रहा है जो मई के 15.88 फीसदी के मुकाबले मामूली रूप से कम है वहीं जून माह के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 7.01 फीसदी रहा है जो मई की 7.04 फीसदी की खुदरा महंगाई दर के मुकाबले मामूली रूप से कम है। जून में थोक महंगाई दर के उच्च स्तर के पीछे पेट्रोलियम उत्पादों और खाद्य तेलों की महंगाई रही है। वहीं थोक और खुदरा महंगाई में आई इस मामूली कमी को इस बात का संकेत नहीं मान लेना चाहिए कि महंगाई को लेकर आम आदमी की मुश्किलें जल्द ही कम होने जा रही हैं या फिर भारतीय रिजर्व बैंक का महंगाई को काबू करने के लिए पॉलिसी दरों में बढ़ोतरी का रुख बदलने जा रहा है। खुद रिजर्व बैंक के गर्वनर कह चुके हैं कि दिसंबर तक महंगाई दर रिजर्व बैंक के लक्षित (चार फीसदी से दो फीसदी कम या ज्यादा) स्तर से अधिक बनी रह सकती है। हालांकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कह रही हैं कि सरकार की महंगाई पर पैनी नजर है। लेकिन उनके इस बयान का यह मतलब नहीं है कि आम आदमी को इससे राहत मिल जाएगी।
इसके लिए हमें अमेरिका में महंगाई के आये ताजा आंकड़े को देखना चाहिए जो 9.1 फीसदी रही है और 1981 के बाद से इसका सबसे ऊंचा स्तर है। हालांकि हम अभी अपने देश के मामले में इस तरह के स्तर पर नहीं आए हैं लेकिन यह भी सच है कि खुदरा महंगाई दर पिछले चार माह से रिजर्व बैंक के टारगेट से अधिक बनी हुई है । जून के लिए आया थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) 15.18 फीसदी रहा है तो मई में 15.88 फीसदी रहा था और यह नई सीरीज में अभी तक का उच्चतम स्तर है साथ ही यह पिछले 15 माह से दो अंकों में बना हुआ है। असल में घरेलू और वैश्विक स्तर पर महंगाई के पीछे कच्चे तेल और गैस की ऊंची कीमतें, खाद्य उत्पादों की ऊंची कीमतें, उर्वरकों की ऊंची कीमतें और रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के चलते कमोडिटीज की आपूर्ति में आई बाधाएं व उनकी कीमतों में आई तेजी रही है। हालांकि खाद्य उत्पादों की कीमतों ने नीचे का रुख किया है लेकिन बाकी कारक अभी भी अनिश्चिता पैदा कर रहे हैं जिसका सीधा असर घरेलू महंगाई पर पड़ रहा है। हमारी आयात पर बढ़ती निर्भरता महंगाई का एक बड़ा कारण है।
अमेरिका में आये महंगाई के ताजा आंकड़ों के बाद इकोनॉमिस्ट और मार्केट एक्सपर्ट का आकलन है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा कम से कम 75 आधार अंकों की ब्याज दर बढ़ोतरी लगभग तय है। कुछ एक्सपर्ट्स ब्याज दर में एक फीसदी तक की वृद्धि का अनुमान लगा रहे हैं। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने जून में ब्याज दर में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की थी, जो 1994 के बाद से अभी तक का सबसे ऊंचा स्तर है। दिलचस्प बात यह है कि खुद तेल और गैस के बड़े उत्पादकों में शुमार अमेरिका में महंगाई में वृद्धि की सबसे बड़ी वजह गैस और तेल की कीमतों और खाद्य उत्पादों की बढ़ती कीमतों को माना जा रहा है। अब सवाल उठता है जब भारत अपनी जरूरत का करीब 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है और गैस का बड़ा आयात करता है तो यहां इन इनर्जी उत्पादों की कीमतों में कमी की गुंजाइश बहुत अधिक नहीं है। हालांकि सुकून की बात है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों के प्रतिबंधों के बावजूद रूस दुनिया का दूसरा बड़ा कच्चा तेल निर्यातक देश बना हुआ है और भारत इसका फायदा उठा रहा है। रूस द्वारा डिस्काउंट पर बेचे जा रहे तेल के खरीदारों में चीन और भारत सबसे ऊपर बताये जा रहे हैं। वहीं देश के सबसे बड़े खाद्य उत्पाद आयात, खाद्य तेलों की कीमतों में भी वैश्विक बाजार में गिरावट आई है और इसका फायदा भारतीय आयातकों को हो रहा है। लेकिन दोनों मामलों में डॉलर के मुकाबले रूपये का लगातार कमजोर होना इस फायदे को सीमित या लगभग खत्म कर दे रहा है। गुरुवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रूपये की विनिमय दर 79.90 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंच गई। रुपये की लगातार कमजोरी के चलते आयातित महंगाई का असर बढ़ रहा है।
दूसरे अमेरिका में महंगाई के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने का सीधा मतलब है वहां ब्याज दरों में बढ़ोतरी होना और इसके नतीजे के रूप में भारत जैसी इमर्जिंग इकोनॉमी से विदेशी पूंजी के बाहर जाने की संभवनाएं बढ़ना। यानी स्टॉक मार्केट और रूपया दोनों अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले से प्रभावित होंगे।
असल में वैश्विक स्तर पर खाद्य महंगाई के रिकॉर्ड पर पहुंचने के साथ ही खाद्य उत्पादों के आयातकों की मुश्किलें बढ़ रही हैं। वहीं ब्लैक सी में मालवाहक जहाजों की आवाजाही प्रभावित होने और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते उर्वरकों की उपलब्धता का संकट बढ़ा है और उनकी कीमतों में भी भारी तेजी आई है। जिसके चलते खाद्य उत्पादों की उत्पादन लागत दुनिया भर में बढ़ रही है। विश्व में 1974, 2008 और उसके बाद अब 2022 में तीन बड़ी इनर्जी क्राइसिस पैदा हुई हैं। इस तीन इनर्जी क्राइसिस के दौरान 1974 में नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों की कीमतों में 341 फीसदी, 2008 में 68 फीसदी और 2022 में 169 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जिसका सीधा असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ रहा है। दुनिया भर में यूरिया के निर्यात बाजार में रूस की हिस्सेदारी 16 फीसदी है जबकि डीएपी और एमएपी में इसकी हिस्सेदारी 12 फीसदी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यह आपूर्ति प्रभावित हुई है। वहीं गेहूं, जौं और खाद्य तेलों के निर्यात में भी इन देशों की 25 फीसदी व उससे अधिक की भागीदारी है। इसकी सीधा असर इन उत्पादों की कीमतों पर पड़ा है। यह बात अलग है कि गेहूं और खाद्य तेलों समेत दूसरे खाद्य उत्पादों की कीमतों में गिरावट का रुख आ गया है।
जहां तक भारत की बात है तो महंगाई का असर समाज के हर वर्ग पर पड़ रहा है। मैन्यूफैक्चरिंग महंगाई दर बढ़ने से तमाम उत्पाद महंगे हुए हैं और खाद्य महंगाई दर में भी अभी कोई बड़ी राहत नहीं मिली है। हालांकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि सरकार की महंगाई पर पैनी नजर है। लेकिन उनका बयान देश के नागरिकों को महंगाई के चलते पैदा हो रही मुश्किलों को कम नहीं कर सकता है। वहीं इसे देखते हुए आने वाले दिनों में रिजर्व बैंक द्वारा एक बार फिर पॉलिसी ब्याज दरों में बढ़ोतरी को टालना मुश्किल होगा। रिजर्व बैंक ने 8 जून को रेपो रेट में आधा फीसदी की बढ़ोतरी की थी। यह स्थिति केवल भारत की ही नहीं है बल्कि यूरोप के देशों में भी महंगाई लगातार बढ़ी है। साथ ही अमेरिका समेत कई दूसरी विकसित अर्थव्यवस्थाओं के मंदी में जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है। इन हालात का प्रतिकूल असर भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर पर भी पड़ेगा। इसलिए जब तक सरकार कर दरों में कटौती नहीं करती तब तक राहत मिलना मुश्किल है। लेकिन आने वाले दिनों में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) के तहत कुछ उत्पादों और सेवाओं के लिए कर दरों में बढ़ोतरी की संभावना को देखते हुए आम आदमी की मुश्किलें बढ़ेगी। हालांकि दिलचस्प बात यह है कि गुरुवार को महाराष्ट्र की नई सरकार ने पेट्रोल पर वैट में कटौती कर कुछ राहत दी है।