छोटी कंपनियों के कीटनाशकों के नकली होने का अनुपात अधिक, जैविक कीटनाशकों में मिले केमिकल के अंश
सैंपल जांच के नतीजों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि बड़ी कंपनियों के औसतन 90 फीसदी से अधिक सैंपल सही पाए गए हैं, जबकि छोटी कंपनियों के 20 फीसदी से अधिक सैंपल जांच में फेल हो जाते हैं।

देश में नकली कीटनाशकों की बिक्री किसानों के लिए बड़ी समस्या बनती जा रही है। सरकार समय-समय पर विभिन्न कंपनियों के कीटनाशकों के सैंपल की जांच तो करती है, लेकिन छोटी कंपनियों का सैंपलिंग अनुपात कम होता है। जबकि जांच में ज्यादातर छोटी कंपनियों के सैंपल ही नकली पाए जाते हैं। इसके अलावा, जांच में कई राज्यों में जैविक कीटनाशक के नाम पर बेचे जाने वाले प्रोडक्ट में रासायनिक कीटनाशकों के अंश भी मिले हैं।
सैंपल जांच के नतीजों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि बड़ी कंपनियों के औसतन 90 फीसदी से अधिक सैंपल सही पाए गए हैं, जबकि छोटी कंपनियों के 20 फीसदी से अधिक सैंपल जांच में फेल हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में बड़ी कंपनियों के 7,369 सैंपल की जांच की गई जिनमें से 7,024 सही पाए गए और 293 फेल हो गए। दूसरी तरफ 159 छोटी कंपनियों के एक-एक सैंपल की ही जांच की गई और इनमें से 124 सैंपल सही निकले जबकि 38, यानी करीब 24% फेल हो गए। जानकारों का कहना है कि नकली कीटनाशकों पर लगाम लगाने के लिए छोटी कंपनियों के प्रोडक्ट की बड़े पैमाने पर जांच होनी चाहिए। ये आंकड़े सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत राज्यों की तरफ से उपलब्ध कराई गई जानकारी से मिले हैं।
उत्तर प्रदेशः छोटी कंपनियों के 22% सैंपल नकली
कुल मात्रा के लिहाज से देश में कीटनाशकों की सबसे ज्यादा खपत उत्तर प्रदेश में होती है। आरटीआई में दी जानकारी के अनुसार राज्य में 2020-21 से 2022-23 के दौरान 634 कंपनियां ऑपरेट कर रही थीं। इनमें से 11 बड़ी कंपनियों के 500 से ज्यादा सैंपल जांच की खातिर लिए गए, जबकि 159 छोटी कंपनियों के सिर्फ एक-एक सैंपल लिए गए। कुल 21,235 सैंपल में से 11 बड़ी कंपनियों के 7,369 सैंपल की जांच की गई जिनमें से 7,024 सही पाए गए और 293 फेल हो गए। उनके बाद की श्रेणी की 32 कंपनियों के 7,633 सैंपल की जांच की गई जिनमें से 7,033 पास और 381 फेल हुए। इस श्रेणी की कंपनियों के 100 से 500 सैंपल की जांच की गई। 31 कंपनियां ऐसी थीं जिनके 51 से 100 सैंपल लिए गए। उनके कुल 2,115 सैंपल की जांच हुई जिनमें से 1,990 सही पाए गए। सिर्फ एक सैंपल वाली 159 कंपनियों के 124 सैंपल ही सही निकले जबकि 38 सैंपल, यानी 78% फेल हो गए। यहां गौर करने वाली एक और बात यह है कि 71% सैंपल पहली दो कैटेगरी की कंपनियों के थे। जिन कंपनियों के सिर्फ एक सैंपल की जांच की गई, कुल सैंपल में उनका अनुपात सिर्फ एक प्रतिशत था।
राज्य में कीटनाशक बेचने वाली प्रमुख कंपनियों में इंसेक्टिसाइड इंडिया लिमिटेड, धानुका एग्रीटेक लिमिटेड, ट्रॉपिकल एग्रो सिस्टम्स इंडिया प्रा.लि, सुमितोमो केमिकल्स इंडिया लिमिटेड, बायर क्रॉप साइंस लिमिटेड, यूपीएल लिमिटेड जैसी कंपनियां शामिल हैं। इन सबके 500 से ज्यादा सैंपल लिए गए थे।
राजस्थानः छोटी कंपनियों के 13% सैंपल जांच में फेल
राजस्थान ने कंपनियों को ए, बी, सी आदि कैटेगरी में रखा है। अच्छी क्वालिटी के ट्रैक रिकॉर्ड वाली कंपनियों को ए कैटेगरी और संतोषजनक ट्रैक रिकॉर्ड वाली कंपनियों को बी कैटेगरी में रखा गया है। जिन कंपनियों को आगे सुधार की जरूरत है उन्हें सी कैटेगरी में, नई कंपनियों को एन कैटेगरी में और इनमें से किसी श्रेणी में नहीं आने वाली कंपनियों को नॉन डिस्क्रिप्टिव यानी एनडी कैटेगरी में रखा गया है।
राज्य में वर्ष 2019-20 से 2023-24 तक 390 कंपनियों के सैंपल की जांच की गई। इनमें ए कैटेगरी की 33, बी कैटेगरी की 43, सी कैटेगरी की 197 और एनडी कैटेगरी की 80 कंपनियां हैं। यहां भी सबसे ज्यादा ए कैटेगरी की कंपनियों के 8,044 सैंपल जांच की खातिर लिए गए। बी कैटेगरी की कंपनियों के 2,525, सी कैटेगरी की कंपनियों के 1,315 और एनडी कैटेगरी की कंपनियों के 1114 सैंपल का विश्लेषण किया गया। एन कैटेगरी की 37 कंपनियों के सैंपल नहीं लिए गए।
ए, बी, और सी कैटेगरी की कंपनियों के 99% सैंपल जांच में सही पाए गए जबकि एनडी कैटेगरी के 87% सैंपल ही सही निकले। दूसरे शब्दों में कहें तो पहली तीन कैटेगरी के सिर्फ एक प्रतिशत सैंपल जांच में फेल हुए जबकि एनडी कैटेगरी के 13% सैंपल पास नहीं हो सके।
राज्य में कीटनाशक बेचने वाली ए कैटेगरी कंपनियों में एडवांस एग्रो लाइफ प्राइवेट लिमिटेड, एग्रोकिंग पेस्टिसाइड्स प्राइवेट लिमिटेड, एशियन एग्रो इंडस्ट्रीज, बायर क्रॉप साइंस लिमिटेड, क्रिस्टल क्रॉप प्रोटेक्शन लिमिटेड, धानुका एग्रीटेक प्राइवेट लिमिटेड, इफको क्रॉप साइंस प्राइवेट लिमिटेड, रैलिस इंडिया लिमिटेड, सरस्वती एग्रो केमिकल जैसी कंपनियां शामिल हैं।
तेलंगानाः बड़ी कंपनियों के 99%, छोटी कंपनियों के 85% सैंपल सही
तेलंगाना में 2017-18 से 2021-22 के दौरान कीटनाशक बेचने वाली कंपनियों को 6 कैटेगरी में रखा गया। ए कैटेगरी में 8, बी में 29, सी में 17, डी में 59, ई में 79 और एफ कैटेगरी में 48 कंपनियां थीं। एफ कैटेगरी की कंपनियों के एक-एक सैंपल ही जांच की खातिर लिए गए, जबकि ए कैटेगरी की कंपनियों में हर एक के 500 से ज्यादा सैंपल की जांच हुई। राज्य में लिए गए कुल 19,280 सैंपल में से 9,430 ए कैटेगरी और 6,572 बी कैटेगरी की कंपनियों के थे। इन दोनों कैटेगरी की कंपनियों के 99% से ज्यादा सैंपल सही पाए गए। सी कैटेगरी की कंपनियों के भी लगभग 99% सैंपल सही निकले। डी कैटेगरी की कंपनियों के 97%, ई कैटेगरी की कंपनियों के 87.39% और एफ कैटेगरी की कंपनियों के 85.42% सैंपल सही पाए गए। कुल सैंपल में पहली दो कैटेगरी की कंपनियों का हिस्सा 83% था।
ओडिशाः ए कैटेगरी की कंपनियों के 70.59% सैंपल सही
ओडिशा में 2017-18 से 2022-23 के दौरान कैटेगरी ए और बी की 3-3, कैटेगरी सी की दो और कैटेगरी डी की 128 कंपनियां ऑपरेट कर रही थीं। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि कैटेगरी डी की किसी भी कंपनी का सैंपल जांच के लिए नहीं लिया गया। कैटेगरी सी की दोनों कंपनियों के एक-एक सैंपल की जांच की गई। राज्य में कुल 136 कंपनियों के सिर्फ 43 सैंपल की जांच की गई, जिनमें से 34 सैंपल ए कैटेगरी की कंपनियों के थे। ए कैटेगरी की कंपनियों के 70.59% सैंपल ही सही पाए गए। बी कैटेगरी की कंपनियों के भी सात में से पांच सैंपल सही निकले। सी कैटेगरी की कंपनियों के दोनों सैंपल सही पाए गए।
तमिलनाडुः जांच के लिए 71% से ज्यादा सैंपल बड़ी कंपनियों के
तमिलनाडु में 2017-18 से 2021-22 के दौरान 93 कंपनियां कीटनाशक बनाकर बेच रही थीं। इनमें से कैटेगरी ए में सिर्फ एक कंपनी जय कृष्णा पेस्टिसाइड्स लिमिटेड है। उसके अलावा बी कैटेगरी में 11, सी कैटेगरी में 6, डी कैटेगरी में 22, ई कैटेगरी में 38 और एफ कैटेगरी में 15 कंपनियां हैं। जय कृष्णा पेस्टिसाइड्स के 558 सैंपल लिए गए और उनमें से 544 की जांच की गई। उनमें से 535 सैंपल सही पाए गए। कुल 4088 सैंपल में से बी कैटेगरी की कंपनियों के 2362, सी कैटेगरी के 450, डी कैटेगरी के 530, ई कैटेगरी के 173 और एफ कैटेगरी की कंपनियों के 15 सैंपल थे। कुल सैंपल में 71% से ज्यादा कैटेगरी ए और कैटेगरी बी कंपनियों के थे।
कर्नाटकः 250 बायो कीटनाशक सैंपल में रसायन की मौजूदगी
आरटीआई के अनुसार, कर्नाटक में बायो कीटनाशक होने का दावा करने वाले 250 सैंपल का विश्लेषण किया गया। लेकिन प्रत्येक में रासायनिक कीटनाशक की मौजूदगी पाई गई। तथाकथित बायो प्रोडक्ट में इमामेक्टिन और अबामेक्टिन जैसे केमिकल पाए गए जिनका चीन से अवैध रूप से आयात होता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि करीब 30 सैंपल में निटेनपाइरैम कीटनाशक पाया गया जो भारत में रजिस्टर्ड तक नहीं है।
डीएओ बेंगलुरु ने 17 फरवरी 2020 को सभी ज्वाइंट डायरेक्टर को पत्र लिखा। इसके साथ 100 सैंपल की जांच के नतीजे भी थे। डीएओ ने ज्वाइंट डायरेक्टरों को उन कीटनाशक निर्माताओं के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा क्योंकि उन्होंने न सिर्फ किसानों के साथ धोखा किया, बल्कि किसानों और आम लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ भी किया। इससे सरकार को जीएसटी तथा अन्य टैक्स का नुकसान भी हुआ। कृषि सचिव ने 5 मई 2020 को सभी ज्वाइंट डायरेक्टरों को पत्र लिखा और निर्देश दिया कि जिन इंस्पेक्टरों ने निर्देश के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की, उनके खिलाफ कदम उठाए जाएं। तब जाकर इंस्पेक्टरों ने कार्रवाई शुरू की।
कर्नाटक सरकार को बायो के नाम पर रासायनिक कीटनाशक बेचने वाली दोषी कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी थी, लेकिन राज्य सरकार ने उनके खिलाफ कीटनाशक कानून 1968 के तहत मामला दर्ज किया जिसमें किसी सख्त सजा का प्रावधान नहीं है। यही नहीं, तथाकथित बायो कीटनाशक प्रयोग करने वाले किसानों को निर्यात में रिजेक्शन का सामना करना पड़ता है।
कीटनाशकों के अवैध आयात के दो तरीके हैं। एक है गलत प्रोडक्ट बताना (मिस-डिक्लेरेशन), जिसमें 100-200 डॉलर प्रति किलो वाले कीटनाशक की जगह 0.5 डॉलर प्रति किलो वाला अमीनो एसिड बताया जाता है। महंगे कीटनाशकों को सोडियम बाइकार्बोनेट, थायोनिल क्लोराइड आदि बताकर भी आयात होता है। दूसरा तरीका फर्जी निर्यात और आयात का है। इसमें कम कीमत वाला कोई प्रोडक्ट निर्यात किया जाता है। फिर उसे ‘रिजेक्ट हो गया’ बताकर उसका आयात किया जाता है, जबकि वास्तव में वह आयात महंगे कीटनाशकों का होता है।