रिफाइंड सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर आयात ड्यूटी 5 फीसदी घटी, खरीफ सीजन में तिलहन फसलों की बुवाई पर पड़ सकता है असर
केंद्रीय उपभोक्ता एवं खाद्य मंत्रालय की ओर से गुरुवार को जारी एक बयान में यह जानकारी दी गई है। बयान में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 14 जून, 2023 को एक अधिसूचना जारी कर आयात ड्यूटी को 17.5 फीसदी से घटाकर 12.5 फीसदी कर दिया है। यह दर 31 मार्च, 2024 तक प्रभावी रहेगी। बयान में कहा गया है कि खाद्य तेलों की घरेलू कीमतों को कम करने के लिए एहतियात के तौर पर यह कदम उठाया गया है। इसका फायदा उपभोक्ताओं को होगा। इससे पहले अक्टूबर 2021 में आयात ड्यूटी को 32.5 फीसदी से घटाकर 17.5 फीसदी किया गया था।
रिफाइंड सोयाबीन तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल पर आयात ड्यूटी में 5 फीसदी की कटौती करने का केंद्र सरकार ने फैसला किया है। इन दोनों खाद्य तेलों पर पहले 17.5 फीसदी की दर से आयात ड्यूटी लगती थी जिसे घटाकर 12.5 फीसदी कर दिया गया है। यह फैसला 15 जून से प्रभावी हो गया जो 31 मार्च, 2024 तक लागू रहेगा।
केंद्रीय उपभोक्ता एवं खाद्य मंत्रालय की ओर से गुरुवार को जारी एक बयान में यह जानकारी दी गई है। बयान में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 14 जून, 2023 को एक अधिसूचना जारी कर आयात ड्यूटी को 17.5 फीसदी से घटाकर 12.5 फीसदी कर दिया है। यह दर 31 मार्च, 2024 तक प्रभावी रहेगी। बयान में कहा गया है कि खाद्य तेलों की घरेलू कीमतों को कम करने के लिए एहतियात के तौर पर यह कदम उठाया गया है। इसका फायदा उपभोक्ताओं को होगा। इससे पहले अक्टूबर 2021 में आयात ड्यूटी को 32.5 फीसदी से घटाकर 17.5 फीसदी किया गया था।
सरकार के इस फैसले से किसान हतोत्साहित हो सकते हैं और इसका असर खरीफ सीजन में तिलहन फसलों की बुवाई पर पड़ सकता है। सूरजमुखी और सोयाबीन की बुवाई मुख्य रूप से खरीफ सीजन में ही होती है। किसानों को पहले से ही सूरजमुखी की वाजिब कीमत नहीं मिल पा रही है। अंतरराष्ट्रीय कीमतें घटने की वजह से घरेलू बाजार में सूरजमुखी की कीमत 4000-4500 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच चुकी है जिससे किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। खरीफ मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरकार ने सूरजमुखी का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 6760 रुपये प्रति क्विंटल और सोयाबीन का 4600 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
सूरजमुखी की खरीद की मांग को लेकर इसी महीने हरियाणा में किसानों का आंदोलन हुआ है। रबी सीजन की मुख्य तिलहन फसल सरसों का हाल पहले से बुरा है। इस साल खुले बाजार में इसका भाव लगातार एमएसपी से 1000 रुपये प्रति क्विंटल तक नीचे चल रहा है। 128 लाख टन उत्पादन अनुमान की तुलना में सरकार ने अब तक एमएसपी पर सरसों की खरीद सिर्फ 7.94 लाख टन ही की है। तिलहन किसानों को पूरी तरह से बाजार के भरोसे छोड़ दिया गया है। ऐसे में आयात ड्यूटी घटाने के फैसले से घरेलू कीमतों में और कमी आएगी जिससे किसानों में निराशा और बढ़ेगी और वे दूसरी फसल लगाने को मजबूर होंगे।
एक तरफ सरकार तिलहन फसलों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने और खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए एमएसपी में वृद्धि सहित दूसरे उपाय कर रही है ताकि किसान तिलहन फसलों के ज्यादा उत्पादन के लिए प्रेरित हों, वहीं दूसरी तरफ खाद्य तेलों के आयात को बढ़ावा दे रही है। इन विरोधाभासी नीतियों से देश तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर कैसे बनेगा और खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता कैसे कम होगी यह समझ से परे है। इसका जवाब तो सरकार ही दे सकती है। भारत अपनी कुल जरूरतों का करीब 65 फीसदी खाद्य तेल आयात करता है।